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  • परमेश्‍वर का वचन सिखाने के लिए फायदेमंद है
  • हमारी राज-सेवा—2013
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राज-सेवा 8/13 पेज 1

परमेश्‍वर का वचन सिखाने के लिए फायदेमंद है

1. सेवा साल 2014 के सर्किट सम्मेलन का विषय क्या है? और कार्यक्रम में किस सवाल का जवाब दिया जाएगा?

1 हमारा “महान उपदेशक” यहोवा पूरे विश्‍व में सबसे बढ़िया शिक्षक है। (यशा. 30: 20, 21 एन.डब्ल्यू.) यहोवा हमें कैसे सिखाता है? उसने हमें एक किताब दी है जो बाकी सभी किताबों से कहीं बढ़कर है। वह है बाइबल, जो उसका प्रेरित वचन है। परमेश्‍वर की तरफ से मिलनेवाली शिक्षा कैसे हमें शारीरिक, दिमागी, जज़बाती और आध्यात्मिक तौर पर फायदा पहुँचा सकती है? इस सवाल का जवाब, सेवा साल 2014 के हमारे सर्किट सम्मेलन कार्यक्रम में गौर किया जाएगा। कार्यक्रम का विषय है, “परमेश्‍वर का वचन सिखाने के लिए फायदेमंद है,” जो 2 तीमुथियुस 3:16 पर आधारित है।

2. कार्यक्रम के मुख्य मुद्दे किन सवालों के जवाबों के ज़रिए बताए जाएँगे?

2 इन मुख्य मुद्दों पर गौर कीजिए: कार्यक्रम के मुख्य मुद्दे आगे दिए सवालों के जवाबों के ज़रिए चर्चा किए जाएँगे:

• परमेश्‍वर से मिलनेवाली शिक्षा का हमारी ज़िंदगी पर क्या असर होता है? (यशा. 48:17, 18)

• अगर हम हालात में फेरबदल करके पूरे समय की सेवा करने की कोशिश करते हैं, तो हम किस बात का यकीन रख सकते हैं? (मला. 3:10)

• जब हमारा सामना “परायी शिक्षाओं” से होता है, तब हमें किस तरह पेश आना चाहिए? (इब्रा. 13:9)

• हम यीशु के “सिखाने का तरीका” कैसे लागू कर सकते हैं? (मत्ती 7:28, 29)

• मंडली में सिखानेवालों को क्यों खुद को सिखाना ज़रूरी है? (रोमि. 2:21)

• परमेश्‍वर का वचन किस के लिए फायदेमंद है? (2 तीमु. 3:16)

• सारी जातियों के ‘कम्पकपाऐं जाने’ का लोगों पर क्या असर हुआ है? (हाग्गै 2:6, 7)

• यहोवा को हम पर क्या भरोसा है? (इफि. 5:1)

• यहोवा की शिक्षाओं में बने रहने के लिए क्यों हमें कड़ी मेहनत करनी चाहिए? (लूका 13:24)

3. सही समय पर तैयार किए गए इस कार्यक्रम में हाज़िर होना और उसे ध्यान से सुनना हमारे लिए क्यों ज़रूरी है?

3 कार्यक्रम का विषय 2 तीमुथियुस अध्याय 3 आयत 16 पर आधारित है। इन शब्दों को लिखने से पहले, पौलुस ने संकटों से भरे वक्‍त के बारे में बताया जो अंतिम दिनों की निशानी है। उसने लिखा: “दुष्ट और फरेबी, बुराई में बद-से-बदतर होते चले जाएँगे। वे खुद तो गुमराह होंगे, साथ ही दूसरों को भी गुमराह करते जाएँगे।” (2 तीमु. 3:13) हम गुमराह न हों, इसके लिए कितना ज़रूरी है कि हम परमेश्‍वर से मिलनेवाली शिक्षा को सुनें और उसे लागू करें। इसलिए आइए पक्का इरादा कर लें कि सही समय पर तैयार किए गए इस कार्यक्रम में हम हाज़िर होंगे और उसे ध्यान से सुनेंगे।

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