अध्ययन लेख 34
सच्चाई की राह पर चलते रहिए
“मुझे इससे ज़्यादा किस बात से खुशी मिल सकती है कि मैं यह सुनूँ कि मेरे बच्चे सच्चाई की राह पर चल रहे हैं।”—3 यूह. 4.
गीत 111 हमारी खुशी के कई कारण
एक झलकa
1. हमें एक-दूसरे से इस बारे में बात क्यों करनी चाहिए कि हमें सच्चाई कैसे मिली?
“आपको सच्चाई कैसे मिली?” जब हम किसी भाई या बहन से पहली बार मिलते हैं, तो अकसर उनसे यह सवाल करते हैं। शायद भाई-बहनों ने आपसे भी कई बार यह सवाल किया होगा। हमें अपने भाई-बहनों से यह सुनना बहुत अच्छा लगता है कि उन्होंने यहोवा के बारे में कैसे जाना और क्यों उससे प्यार करने लगे। और हमें भी उन्हें यह बताकर बहुत खुशी होती है कि हम सच्चाई से इतना प्यार क्यों करते हैं। (रोमि. 1:11) जब हम भाई-बहनों से इस बारे में बात करते हैं, तो हमें एहसास होता है कि यहोवा के साक्षी होना कितनी बड़ी बात है और सच्चाई कितनी अनमोल है। इससे हमारा इरादा पक्का हो जाता है कि हम ‘सच्चाई की राह पर चलते रहें,’ यानी ऐसी ज़िंदगी जीएँ जिससे यहोवा खुश हो।—3 यूह. 4.
2. इस लेख में हम किस बारे में चर्चा करेंगे?
2 इस लेख में हम चर्चा करेंगे कि हम क्यों सच्चाई से इतना प्यार करते हैं। हम यह भी जानेंगे कि अगर सच्चाई हमारे लिए अनमोल है, तो हमें क्या करते रहना चाहिए। इस बारे में जानने से हम यहोवा का और भी एहसान मानने लगेंगे कि वह हमें अपने करीब लाया और हम सच्चाई जान पाए। (यूह. 6:44) और हमारा मन करेगा कि हम दूसरों को भी सच्चाई के बारे में बताते रहें।
हमें सच्चाई से प्यार क्यों है?
3. सच्चाई से प्यार करने की सबसे बड़ी वजह क्या है?
3 हम कई वजहों से सच्चाई से प्यार करते हैं। इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि हम यहोवा से प्यार करते हैं, जिसने हमें सच्चाई बतायी है। उसके वचन बाइबल से हमने जाना है कि वह ना सिर्फ पूरी दुनिया का बनानेवाला है, बल्कि वह एक पिता की तरह हमारी बहुत परवाह भी करता है। (1 पत. 5:7) वह “दयालु और करुणा से भरा है, क्रोध करने में धीमा और अटल प्यार और सच्चाई से भरपूर है।” (निर्ग. 34:6) वह हमेशा न्याय करता है। (यशा. 61:8) हमें तकलीफ में देखकर उसे भी तकलीफ होती है और वह उस वक्त का बेसब्री से इंतजार कर रहा है जब वह हमारे सारे दुख दूर कर देगा। (यिर्म. 29:11) हमें भी उस वक्त का इंतजार है। सच में, यहोवा हमसे कितना प्यार करता है! इसी वजह से हम भी उससे बहुत प्यार करते हैं।
बाइबल की सच्चाइयाँ लंगर की तरह हैं
जैसे एक लंगर तूफान में नाव को सँभाले रहता है, उसी तरह मुश्किलें आने पर अपनी आशा के बारे में सोचकर हम खुद को सँभाल पाते हैं। यह आशा हमें हिम्मत देती है, इसलिए हमारा मन करता है कि हम दूसरों को भी इसके बारे में बताएँ (पैराग्राफ 4-7)
4-5. पौलुस ने क्यों कहा कि हमारी आशा एक लंगर की तरह है?
4 सच्चाई से प्यार करने की एक और वजह यह है कि इसे जानने से हमें बहुत फायदा हुआ है। जैसे बाइबल में यह सच्चाई बतायी गयी है कि आनेवाले वक्त में परमेश्वर हमें एक अच्छी ज़िंदगी देगा। इसी बारे में प्रेषित पौलुस ने लिखा, “यह आशा हमारी ज़िंदगी के लिए एक लंगर है, जो पक्की और मज़बूत है।” (इब्रा. 6:19) जब समुंदर में तूफान आता है, तो नाविक लंगर गिरा देते हैं जिससे नाव सँभल जाती है। उसी तरह जब हमारी ज़िंदगी में तूफान जैसी मुश्किलें आती हैं, तो अपनी आशा के बारे में सोचने से हम खुद को सँभाल पाते हैं।
5 पौलुस ने यह बात अभिषिक्त मसीहियों को लिखी थी जिन्हें स्वर्ग में जीने की आशा थी। लेकिन जिन मसीहियों को धरती पर जीने की आशा है, उनके लिए भी उनकी आशा एक लंगर की तरह है। (यूह. 3:16) इस आशा से हमें जीने का मकसद मिल गया है।
6-7. सच्चाई जानकर बहन ईवॉन को क्या फायदा हुआ?
6 ईवॉन नाम की एक बहन के अनुभव पर ध्यान दीजिए। उसके माता-पिता यहोवा के साक्षी नहीं थे। जब वह छोटी थी, तो उसे मौत से बहुत डर लगता था। एक बार उसने एक किताब में पढ़ा, ‘एक दिन सबकुछ खत्म हो जाएगा।’ यह बात वह अपने दिमाग से निकाल ही नहीं पा रही थी। वह कहती है, ‘रात-भर मुझे यह बात सताती रहती थी कि ना जाने कल क्या होगा। और मैं ठीक से सो नहीं पाती थी। मैं सोचती थी, “ज़िंदगी सिर्फ इतनी-सी नहीं हो सकती। हमें क्यों बनाया गया है?” मैं मरना नहीं चाहती थी।’
7 जब ईवॉन 18-19 साल की थी, तब वह पहली बार यहोवा के साक्षियों से मिली। बाइबल से उसे पता चला कि एक दिन यह धरती बहुत खूबसूरत बन जाएगी और वह इस पर हमेशा-हमेशा तक जी पाएगी। धीरे-धीरे इस बात पर उसका यकीन बढ़ने लगा। सच्चाई जानकर उसे क्या फायदा हुआ? वह बताती है, ‘अब मैं रात को चैन से सो पाती हूँ। मुझे मौत से डर नहीं लगता और ना ही यह सोचकर चिंता होती है कि कल क्या होगा।’ सच्चाई जानकर ईवॉन की ज़िंदगी बदल गयी। सच्चाई उसके लिए बहुत अनमोल है। वह दूसरों को भी इस आशा के बारे में बताती है कि आगे चलकर हम सब एक अच्छी ज़िंदगी जीएँगे। और ऐसा करने से उसे बहुत खुशी मिलती है।—1 तीमु. 4:16.
बाइबल की सच्चाइयाँ खज़ाने की तरह हैं
हमें आज यहोवा की सेवा करने का मौका मिला है और आगे चलकर उसके राज में हम हमेशा तक ऐसा कर पाएँगे। यह किसी खज़ाने से कम नहीं! इसके लिए हम अपना सबकुछ छोड़ने को तैयार हैं (पैराग्राफ 8-11)
8-9. (क) यीशु की मिसाल में बताए आदमी के लिए वह खज़ाना कितना अनमोल था? (ख) आपके लिए सच्चाई कितनी अनमोल है?
8 बाइबल में परमेश्वर के राज के बारे में खुशखबरी भी बतायी गयी है। यीशु ने बताया कि यह सच्चाई ज़मीन में छिपे खज़ाने की तरह है। उसने कहा, “स्वर्ग का राज ज़मीन में छिपे खज़ाने की तरह है जो एक आदमी को मिलता है। वह इसे दोबारा वहीं छिपा देता है और खुशी के मारे जाकर अपना सबकुछ बेच देता है और उस ज़मीन को खरीद लेता है।” (मत्ती 13:44) वह आदमी उस खज़ाने को ढूँढ़ नहीं रहा था। लेकिन जब उसे वह मिला, तो उसने क्या किया? वह जानता था कि यह खज़ाना कितना अनमोल है। इसलिए उसे पाने के लिए वह अपना सबकुछ छोड़ने को तैयार था। उसने उस ज़मीन को खरीदने के लिए अपना सबकुछ बेच दिया।
9 क्या आपके लिए भी सच्चाई इतनी ही अनमोल है? ज़रूर होगी! आज हमें यहोवा की सेवा करने से बहुत खुशी मिलती है और हमें परमेश्वर के राज में हमेशा तक जीने की आशा है। दुनिया की बड़ी-से-बड़ी चीज़ भी इन आशीषों के सामने कुछ नहीं है। यह हमारे लिए कितनी बड़ी बात है कि हम यहोवा के करीब आ पाए हैं, उसके साथ एक रिश्ता बना पाए हैं। और इस रिश्ते को बनाए रखने के लिए हम अपना सबकुछ छोड़ने को तैयार रहते हैं। जितनी खुशी हमें ‘यहोवा को खुश करने’ से मिलती है, उतनी और किसी चीज़ से नहीं मिलती।—कुलु. 1:10.
10-11. माइकल क्यों एक बहुत बड़ा बदलाव कर पाया?
10 हममें से कई लोगों ने यहोवा का दिल खुश करने के लिए बहुत कुछ छोड़ा है। शायद हमारा दुनिया में एक अच्छा नाम था, अच्छा-खासा करियर था या हम बहुत पैसा कमा रहे थे। लेकिन जब हमने यहोवा के बारे में जाना, तो हमने यह सबकुछ छोड़ दिया। कुछ लोगों ने तो अपने जीने का तरीका तक बदल दिया। माइकल ने भी ऐसा ही किया। शुरू-शुरू में वह सच्चाई नहीं जानता था। जब वह जवान था, तो उसने कराटे करने की ट्रेनिंग ली। वह बताता है, “अपनी सेहत बनाने के लिए मैं दिन-रात कसरत करता था। कई बार तो लगता था, कोई मेरी टक्कर का नहीं है।” फिर वह यहोवा के साक्षियों के साथ अध्ययन करने लगा और उसने जाना कि यहोवा को हिंसा से कितनी नफरत है। (भज. 11:5) लेकिन माइकल बताता है, ‘जो पति-पत्नी मेरे साथ अध्ययन करते थे, उन्होंने मुझसे कभी नहीं कहा कि मैं कराटे करना छोड़ दूँ। वे बस मुझे बाइबल की सच्चाइयाँ सिखाते रहे।’
11 माइकल यहोवा के बारे में सीखता गया और यहोवा से और भी प्यार करने लगा। जब उसने जाना कि यहोवा अपने लोगों से कितना प्यार करता है, उसे उनकी कितनी परवाह है, तो यह बात उसके दिल को छू गयी। कुछ समय बाद वह समझ गया कि उसे कराटे छोड़ना होगा। लेकिन इससे उसकी ज़िंदगी बदल जाती। वह कहता है, “यह मेरी ज़िंदगी का सबसे मुश्किल फैसला था। पर मैं जानता था कि यहोवा इससे खुश होगा। और उसे खुश करने के लिए, उसकी सेवा करने के लिए मैं कुछ भी छोड़ने को तैयार था।” माइकल समझ गया था कि सच्चाई कितनी अनमोल है। इसी वजह से वह इतना बड़ा बदलाव कर पाया।—याकू. 1:25.
बाइबल की सच्चाइयाँ रौशनी की तरह हैं
बाइबल की सच्चाइयाँ रौशनी की तरह हैं जो इस अंधेरी दुनिया में हमें सही राह दिखाती हैं (पैराग्राफ 12-13)
12-13. बाइबल की सच्चाइयों ने कैसे मायली की ज़िंदगी रौशन कर दी?
12 बाइबल में यह भी बताया गया है कि सच्चाई रौशनी की तरह है जो अंधेरे में हमें सही राह दिखाती है। (भज. 119:105; इफि. 5:8) जब मायली ने, जो अज़रबाइजान से है, बाइबल से सच्चाई जानी, तो उसे इस अंधेरी दुनिया में मानो रौशनी मिल गयी। मायली के पिता मुस्लिम थे और माँ यहूदी। वह कहती है, “मेरे मन में कभी यह सवाल तो नहीं आया कि ईश्वर है या नहीं, पर मेरे मन में दूसरे कई सवाल आते थे। मैं सोचती थी कि ईश्वर ने हम इंसानों को क्यों बनाया। क्या इसलिए कि हम ज़िंदगी-भर तकलीफें सहें और मरने के बाद भी नरक की आग में तड़पते रहें? लोग कहते थे कि सबकुछ ऊपरवाले की मरज़ी से ही होता है। इसलिए मैं सोचती थी, ‘क्या इंसान सिर्फ परमेश्वर के हाथ की कठपुतली है और वह बस ऊपर बैठा तमाशा देख रहा है?’”
13 मायली अपने सवालों के जवाब ढूँढ़ती रही। फिर वह बाइबल अध्ययन करने लगी और यहोवा की साक्षी बन गयी। वह बताती है, ‘मैं बाइबल में जो भी पढ़ रही थी, वह बिलकुल सही लग रहा था। मुझे अपने सभी सवालों के जवाब मिलने लगे, अब मेरे मन में कोई उलझन नहीं थी। मुझे बहुत सुकून मिला और मैं खुश रहने लगी।’ मायली की तरह हम भी कितने खुश हैं कि यहोवा ने हमें “अंधकार से निकालकर अपनी शानदार रौशनी में बुलाया है।”—1 पत. 2:9.
14. हम बाइबल की सच्चाइयों के लिए अपना प्यार कैसे बढ़ा सकते हैं? (“बाइबल की सच्चाइयाँ और किसकी तरह हैं?” नाम का बक्स देखें।)
14 बाइबल की सच्चाइयाँ बहुत अनमोल हैं और इनसे हमें बहुत फायदा होता है। जैसा हमने देखा, ये एक लंगर, खज़ाने और रौशनी की तरह हैं। बाइबल में सच्चाई की तुलना और भी कई चीज़ों से की गयी है। तो क्यों ना जब आप अगली बार निजी अध्ययन करें, तो इस बारे में थोड़ी खोजबीन करें और सोचें कि आप और किन वजहों से सच्चाई से प्यार करते हैं? इस तरह बाइबल की सच्चाइयों के लिए हमारा प्यार बढ़ता जाएगा। और जब हमारा प्यार बढ़ेगा, तो हम क्या करेंगे?
अगर आप सच्चाई से प्यार करते हैं, तो आप क्या करेंगे?
15. अगर आप सच्चाई से प्यार करते हैं, तो आप क्या करेंगे?
15 अगर हम सच्चाई से प्यार करते हैं, तो हम लगातार बाइबल और बाइबल पर आधारित किताबों-पत्रिकाओं का अध्ययन करेंगे। हम चाहे कितने ही समय से सच्चाई के बारे में क्यों ना जानते हों, अध्ययन करने से हम हमेशा नयी-नयी बातें सीख सकते हैं। प्रहरीदुर्ग के सबसे पहले अंक में बताया गया था, ‘दुनिया एक जंगल की तरह है जिसमें झूठ जंगली पौधों की तरह हर जगह फैला हुआ है। लेकिन सच्चाई एक छोटे-से फूल की तरह है, जो इन जंगली पौधों के बीच छिपा हुआ है। सबसे पहले तो आपको उसे ध्यान से ढूँढ़ना होगा और जब वह आपको मिल जाए, तो आपको नीचे झुककर उसे निकालना होगा। लेकिन सच्चाई के सिर्फ एक ही फूल से संतुष्ट मत हो जाइए। और भी फूल ढूँढ़ते रहिए, उन्हें इकट्ठा करते रहिए।’ अगर आप दिल लगाकर अध्ययन करें, तो आपकी मेहनत ज़रूर रंग लाएगी।
16. आपको अध्ययन करने का कौन-सा तरीका पसंद है? (नीतिवचन 2:4-6)
16 शायद हममें से हर किसी को पढ़ना या अध्ययन करना पसंद ना हो। लेकिन यहोवा चाहता है कि हम बाइबल की सच्चाइयों को ‘ढूँढ़ते रहें,’ उन्हें ‘खोजते रहें’ ताकि उन्हें और अच्छी तरह समझ सकें। (नीतिवचन 2:4-6 पढ़िए।) ऐसा करने से हमें बहुत फायदा होगा। कोरी नाम का एक भाई बताता है कि बाइबल पढ़ते वक्त वह एक-एक करके हर आयत को समझने की कोशिश करता है। वह कहता है, ‘पहले मैं आयत का हर एक फुटनोट पढ़ता हूँ। फिर उससे जुड़ी दूसरी आयतें देखता हूँ और अगर उस आयत के बारे में किसी प्रकाशन में समझाया गया है, तो उसे भी पढ़ता हूँ। इस तरह मैं बहुत-सी नयी बातें सीख पाता हूँ!’ हम चाहे किसी भी तरीके से अध्ययन करते हों, जब हम अध्ययन करने के लिए समय निकालते हैं और मेहनत करते हैं, तो इससे पता चलता है कि हमें सच्चाई से कितना प्यार है।—भज. 1:1-3.
17. सच्चाई के मुताबिक जीने का क्या मतलब है? (याकूब 1:25)
17 बाइबल की सच्चाइयों का अध्ययन करना ज़रूरी है। लेकिन इतना काफी नहीं है, हमें कुछ और भी करना होगा। हमें सच्चाई के मुताबिक जीना होगा। इसका मतलब जो सच्चाइयाँ हमने सीखी हैं, हमें उन्हें मानना होगा, तभी हम सच में खुश रह पाएँगे। (याकूब 1:25 पढ़िए।) पर हम कैसे पता लगा सकते हैं कि हम सच्चाई के मुताबिक जी रहे हैं या नहीं? एक भाई ने बताया कि हम सोच सकते हैं कि हम किन मामलों में सच्चाई के मुताबिक चल रहे हैं और किन मामलों में हमें सुधार करने की ज़रूरत है। प्रेषित पौलुस ने भी कुछ ऐसा ही करने को कहा था। उसने कहा, “हमने जिस हद तक तरक्की की है, आओ हम इसी राह पर कायदे से चलते रहें।”—फिलि. 3:16.
18. हमें ‘सच्चाई की राह पर चलते रहने’ की कोशिश क्यों करनी चाहिए?
18 ज़रा सोचिए, जब हम ‘सच्चाई की राह पर चलने’ की पूरी कोशिश करते हैं, तो हमें कितने फायदे होते हैं! हम एक अच्छी ज़िंदगी जी पाते हैं, यहोवा का दिल खुश कर पाते हैं और इससे भाई-बहनों को भी खुशी मिलती है। (नीति. 27:11; 3 यूह. 4) तो आइए हम सब सच्चाई से प्यार करें और इसके मुताबिक जीएँ!
गीत 144 इनाम पे रखो नज़र!
a हम अकसर बाइबल की शिक्षाओं को सच्चाई कहते हैं और जब एक व्यक्ति उन्हें मानने लगता है, तो हम कहते हैं कि उसने सच्चाई अपना ली है। चाहे हम हाल ही में यहोवा के साक्षी बने हों या सालों से यहोवा को जानते हों, हम सबको इस बारे में सोचना चाहिए कि हम क्यों सच्चाई से इतना प्यार करते हैं। ऐसा करने से यहोवा को खुश करने का हमारा इरादा और भी पक्का हो जाएगा।