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  • रखें पूरा विश्‍वास, मुश्‍किलों में देगा यहोवा साथ

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  • रखें पूरा विश्‍वास, मुश्‍किलों में देगा यहोवा साथ
  • प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है (अध्ययन)—2023
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  • परमेश्‍वर की मरज़ी पूरी करने पर ध्यान देते रहिए
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प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है (अध्ययन)—2023
w23 नवंबर पेज 14-19

अध्ययन लेख 48

रखें पूरा विश्‍वास, मुश्‍किलों में देगा यहोवा साथ

“तुम हिम्मत रखो . . . ‘क्योंकि मैं तुम्हारे साथ हूँ,’ सेनाओं के परमेश्‍वर यहोवा का यह ऐलान है।”​—हाग्गै 2:4.

गीत 118 “हमारा विश्‍वास बढ़ा”

एक झलकa

1-2. (क) यहूदियों की तरह आज हमें किन मुश्‍किलों का सामना करना पड़ता है? (ख) जब यहूदी यरूशलेम लौटे, उसके बाद क्या-क्या हुआ? (“हाग्गै, जकरयाह और एज्रा के दिनों में क्या हुआ?” नाम का बक्स देखें।)

क्या आप कई बार कल के बारे में सोचकर बहुत चिंता करने लगते हैं? शायद आपकी नौकरी चली गयी हो और आप यह सोचकर बहुत परेशान हो रहे हों कि आप अपने परिवार का पेट कैसे पालेंगे। या हो सकता है, आपके देश में राजनैतिक उथल-पुथल मची हो या फिर प्रचार में आपका विरोध किया जा रहा हो या आप पर ज़ुल्म किए जा रहे हों। और इन सब की वजह से आपको अपने परिवार की सुरक्षा को लेकर चिंता हो रही हो। सच में, ऐसे हालात का सामना करना बहुत मुश्‍किल होता है। पुराने ज़माने में यहूदियों को भी कुछ ऐसी ही मुश्‍किलों का सामना करना पड़ा था। आइए देखें कि यहोवा ने उस वक्‍त कैसे उनकी मदद की और इससे हम क्या सीख सकते हैं।

2 कुछ यहूदी काफी लंबे समय से बैबिलोन में रह रहे थे और वहाँ आराम से जी रहे थे। लेकिन फिर उन्हें बैबिलोन छोड़कर यरूशलेम जाना था, एक ऐसी जगह जिसके बारे में वे ज़्यादा कुछ नहीं जानते थे। इसके लिए उन्हें बहुत विश्‍वास की ज़रूरत थी। ऊपर से जब वे यरूशलेम पहुँचे, उसके कुछ ही समय बाद उन्हें पैसों की तंगी होने लगी, उनका विरोध किया जाने लगा और राजनैतिक उथल-पुथल भी हो रही थी। इस वजह से कुछ लोगों को वहाँ मंदिर बनाने के काम पर ध्यान देना मुश्‍किल लगने लगा। लेकिन फिर करीब ईसा पूर्व 520 में यहोवा ने हाग्गै और जकरयाह नाम के दो भविष्यवक्‍ताओं को यरूशलेम भेजा, ताकि वे उसके लोगों में फिर से जोश भर दें। (हाग्गै 1:1; जक. 1:1) जैसे हम आगे देखेंगे, उन भविष्यवक्‍ताओं ने लोगों से जो कहा, उससे उनका हौसला बुलंद हो गया। लेकिन फिर करीब 50 साल बाद उन यहूदियों का जोश फिर से ठंडा पड़ गया। तब यहोवा ने एज्रा नाम के एक कुशल नकल-नवीस को बैबिलोन से यरूशलेम भेजा ताकि वह उसके लोगों का हौसला बढ़ाए और वे सच्ची उपासना को फिर से ज़िंदगी में पहली जगह दें।​—एज्रा 7:1, 6.

हाग्गै, जकरयाह और एज्रा के दिनों में क्या हुआ?

हाग्गै, जकरयाह और एज्रा के दिनों में हुई खास घटनाएँ कब-कब घटीं, इसका एक चार्ट। ईसा पूर्व 537: यहूदी बैबिलोन से निकल रहें हैं। ईसा पूर्व 520: भविष्यवक्‍ता हाग्गै और जकरयाह यरूशलेम में इसराएलियों से बात कर रहे हैं। ईसा पूर्व 515: यरूशलेम में मंदिर। ईसा पूर्व 484: रानी एस्तेर राजा अहश-वेरोश की राजगद्दी के पास आ रही है। ईसा पूर्व 468: एज्रा यहूदियों के एक कारवाँ के साथ जा रहा है। ईसा पूर्व 455: यरूशलेम की शहरपनाह।

ईसा पूर्व

  1. 537: यहूदियों का पहला समूह बैबिलोन से यरूशलेम लौटा

  2. 520: हाग्गै और जकरयाह ने यरूशलेम में भविष्यवाणी की

  3. 515: मंदिर बनकर तैयार हो गया

  4. 484: जब क्षयर्ष प्रथम (अहश-वेरोश) ने यहूदियों को मार डालने का फरमान जारी किया, तो एस्तेर ने उन्हें बचाने के लिए कदम उठाया

  5. 468: एज्रा के साथ यहूदियों का दूसरा समूह बैबिलोन से यरूशलेम आया

  6. 455: यरूशलेम की शहरपनाह बनकर तैयार हो गयी

3. इस लेख में हम किन सवालों के जवाब जानेंगे? (नीतिवचन 22:19)

3 पुराने ज़माने में हाग्गै और जकरयाह ने जो भविष्यवाणियाँ कीं, उनसे परमेश्‍वर के लोगों को बहुत मदद मिली। वे विरोध के बावजूद यहोवा पर भरोसा बनाए रख पाए। उन भविष्यवाणियों से आज हमें भी मदद मिल सकती है। हम मुश्‍किलों के दौरान भी यहोवा पर अपना भरोसा बनाए रख सकते हैं। (नीतिवचन 22:19 पढ़िए।) आइए गौर करें कि हाग्गै और जकरयाह ने परमेश्‍वर की तरफ से क्या संदेश दिया और एज्रा ने हमारे लिए क्या बढ़िया मिसाल रखी। ऐसा करने से हमें इन सवालों के जवाब मिलेंगे: बैबिलोन से वापस आए यहूदियों को कौन-सी मुश्‍किलों का सामना करना पड़ा? मुश्‍किलों के दौरान हमें क्यों यहोवा की मरज़ी पूरी करने पर ध्यान देना चाहिए? और मुश्‍किलें आने पर हम कैसे यहोवा पर और भी भरोसा कर सकते हैं?

जब यहूदियों पर मुश्‍किलें आयीं, तो क्या हुआ?

4-5. शायद किस वजह से यहूदियों का जोश ठंडा पड़ गया होगा?

4 बैबिलोन से लौटनेवाले यहूदी जब यरूशलेम पहुँचे, तो उन्हें वहाँ बहुत कुछ करना था। उन्होंने फौरन यहोवा के लिए वेदी बनायी और मंदिर की नींव डाली। (एज्रा 3:1-3, 10) लेकिन कुछ ही समय बाद उनका जोश ठंडा पड़ गया। वह क्यों? क्योंकि मंदिर बनाने के साथ-साथ उन्हें अपने लिए घर बनाने थे, खेतों में बीज बोना था और अपने परिवार की ज़रूरतें पूरी करनी थीं। (एज्रा 2:68, 70) इसके अलावा कुछ लोग मंदिर बनाने के काम को रोकने की साज़िश कर रहे थे। उन्हें उन विरोधियों का भी सामना करना पड़ा।​—एज्रा 4:1-5.

5 उन यहूदियों को कुछ और मुश्‍किलों का भी सामना करना पड़ा। उस वक्‍त राजनैतिक उथल-पुथल मची हुई थी और यहूदियों के लिए अपनी ज़रूरतें पूरी करना भी मुश्‍किल हो गया था। बात यह थी कि उस वक्‍त वहाँ फारसियों का राज था। ईसा पूर्व 530 में फारस के राजा कुसरू की मौत हो गयी। उसके बाद कैमबीसिस फारस का राजा बना और वह अपनी सेना को लेकर मिस्र पर कब्ज़ा करने निकल पड़ा। शायद वे इसराएल के इलाके से होते हुए गए हों और रास्ते में सैनिकों ने इसराएलियों से कहा हो कि वे उनके लिए खाने-पीने और रहने का इंतज़ाम करें। इस वजह से उनकी मुश्‍किलें और बढ़ गयी होंगी। फिर कैमबीसिस की मौत के बाद दारा प्रथम फारस का राजा बना। जब उसने हुकूमत करनी शुरू की, उस वक्‍त भी बहुत-सी समस्याएँ थीं। लोग उससे बगावत कर रहे थे और पूरे फारस साम्राज्य में उथल-पुथल मची हुई थी। इस सबकी वजह से बहुत-से यहूदियों को इस बात की चिंता हो रही थी कि वे अपने परिवार की देखभाल कैसे करेंगे। और शायद इसी वजह से कुछ यहूदियों को लगा कि यह मंदिर बनाने का वक्‍त नहीं है।​—हाग्गै 1:2.

6. यहूदियों को और किस मुश्‍किल का सामना करना पड़ा और जकरयाह ने उन्हें किस बात का यकीन दिलाया? (जकरयाह 4:6, 7)

6 जकरयाह 4:6, 7 पढ़िए। पैसों की दिक्कत और राजनैतिक उथल-पुथल के अलावा यहूदियों को लोगों के विरोध का भी सामना करना पड़ रहा था। ईसा पूर्व 522 में उनके दुश्‍मनों की साज़िश कामयाब हो गयी और मंदिर बनाने के काम पर रोक लगा दी गयी। लेकिन जकरयाह ने यहूदियों को यकीन दिलाया कि यहोवा अपनी पवित्र शक्‍ति से हर मुश्‍किल दूर कर देगा। और ऐसा ही हुआ। मंदिर बनाने के काम पर जो रोक लगायी गयी थी, उसे ईसा पूर्व 520 में राजा दारा ने हटा दिया। यही नहीं, उसने मंदिर बनाने के लिए यहूदियों को पैसे दिए और वहाँ के राज्यपालों से कहा कि वे उनका पूरा-पूरा साथ दें।​—एज्रा 6:1, 6-10.

7. जब यहूदियों ने यहोवा की मरज़ी पूरी करने पर ध्यान दिया, तो यहोवा ने उन्हें कौन-सी आशीषें दीं?

7 भविष्यवक्‍ता हाग्गै और जकरयाह के ज़रिए यहोवा ने अपने लोगों से वादा किया कि अगर वे मंदिर बनाने के काम पर पूरा ध्यान देते रहेंगे, तो वह उनका साथ देगा। (हाग्गै 1:8, 13, 14; जक. 1:3, 16) यह सुनकर यहूदियों को बहुत हिम्मत मिली और ईसा पूर्व 520 में उन्होंने मंदिर बनाने का काम दोबारा शुरू कर दिया। और पाँच साल के अंदर ही मंदिर बनकर तैयार हो गया। यहूदी कई मुश्‍किलों से गुज़र रहे थे, फिर भी उन्होंने यहोवा की मरज़ी पूरी करने पर ध्यान दिया। इस वजह से यहोवा ने उन्हें खूब आशीषें दीं। वे ना सिर्फ अपने परिवार की ज़रूरतें पूरी कर पाए, बल्कि यहोवा के करीब आने में भी अपने परिवार की मदद कर पाए। और इसी वजह से वे सब खुशी से यहोवा की सेवा करते रहे।​—एज्रा 6:14-16, 22.

परमेश्‍वर की मरज़ी पूरी करने पर ध्यान देते रहिए

8. हाग्गै 2:4 में लिखी बात पर गौर करने से हम परमेश्‍वर की मरज़ी पूरी करने पर कैसे ध्यान देते रह पाएँगे? (फुटनोट भी देखें।)

8 महा-संकट बहुत करीब है। इसलिए हमें याद रखना चाहिए कि आज लोगों को खुशखबरी सुनाना बहुत ज़रूरी है। (मर. 13:10) लेकिन अगर हमें पैसों की तंगी का सामना करना पड़ रहा हो या प्रचार करते वक्‍त हमारा विरोध किया जा रहा हो, तो शायद प्रचार काम पर पूरा ध्यान देना हमारे लिए मुश्‍किल हो जाए। तो हम यहोवा के दिए काम को ज़िंदगी में पहली जगह कैसे दे सकते हैं? हमें यह पूरा भरोसा रखना चाहिए कि ‘सेनाओं का परमेश्‍वर यहोवा’b हमारी तरफ है। अगर हम अपनी मरज़ी पूरी करने से ज़्यादा यहोवा के काम को हमेशा अहमियत दें, तो वह हमारा साथ देगा। इसलिए हमें घबराने की कोई ज़रूरत नहीं।​—हाग्गै 2:4 पढ़िए।

9-10. एक पति-पत्नी ने कैसे अपनी ज़िंदगी में मत्ती 6:33 में लिखी यीशु की बात सच होते हुए देखी?

9 अब ज़रा भाई ओलेग और उनकी पत्नी ईरीनाc के उदाहरण पर ध्यान दीजिए। वे दोनों पायनियर सेवा कर रहे हैं। जब वे दूसरी जगह सेवा करने के लिए गए, उसी दौरान उनके देश की हालत बहुत खराब हो गयी जिसकी वजह से उनकी नौकरी चली गयी। करीब एक साल तक उनके पास कोई ढंग की नौकरी नहीं थी, कभी उनके पास काम होता, तो कभी नहीं। लेकिन उन्होंने हमेशा यहोवा का प्यार और उसकी परवाह महसूस की और कई बार भाई-बहनों ने भी उनकी मदद की। भाई ओलेग शुरू-शुरू में थोड़ा निराश हो गए थे, लेकिन वे इस मुश्‍किल का सामना कर पाए। कैसे? भाई बताते हैं, “उस दौरान प्रचार काम करते रहने से हमें बहुत मदद मिली। इस वजह से हम उन बातों पर ध्यान दे पाए जो सबसे ज़्यादा मायने रखती हैं।” इस दौरान भाई ओलेग और उनकी पत्नी काम की तलाश भी करते रहे और प्रचार काम में भी लगे रहे।

10 एक दिन जब वे प्रचार करके घर लौटे, तो उन्हें पता चला कि उनका एक दोस्त करीब 160 किलोमीटर (100 मील) सफर करके आया था और उनके लिए दो थैले भरकर खाने-पीने की चीज़ें लाया था। भाई ओलेग ने बताया, “उस दिन एक बार फिर हमें एहसास हो गया कि यहोवा और मंडली के भाई-बहनों को हमारी कितनी परवाह है! हमें यकीन हो गया कि शायद हम  कभी-कभी उम्मीद खो बैठें, लेकिन यहोवा  अपने सेवकों को कभी नहीं भूलता।”​—मत्ती 6:33.

11. आज हम किस बात का यकीन रख सकते हैं?

11 यहोवा चाहता है कि हम चेला बनाने के काम पर पूरा ध्यान देते रहें, क्योंकि इस पर लोगों की ज़िंदगी टिकी है। कुछ ऐसा ही यहोवा ने हाग्गै के ज़माने में अपने लोगों से कहा था, जैसा कि हमने पैराग्राफ 7 में देखा। उसने हाग्गै के ज़रिए इसराएलियों से कहा कि वे मंदिर बनाने का काम फिर से शुरू करें, मानो उसकी नींव फिर से डालें। यहोवा ने वादा किया कि अगर वे ऐसा करेंगे, तो वह उन्हें ‘आशीष देगा।’ (हाग्गै 2:18, 19) आज हम भी अगर यहोवा के दिए काम पर पूरा ध्यान देते रहें, तो हम यकीन रख सकते हैं कि वह हमें भी आशीषें देगा।

यहोवा पर भरोसा कैसे बढ़ाएँ?

12. एज्रा और उसके साथियों को क्यों यहोवा पर पूरा भरोसा रखना था?

12 ईसा पूर्व 468 में बैबिलोन में रहनेवाले यहूदियों का दूसरा समूह एज्रा के साथ यरूशलेम के लिए निकला। यह सफर करने के लिए उन्हें यहोवा पर पूरा भरोसा रखना था। वह क्यों? क्योंकि उनका सफर खतरे से खाली नहीं था। वे अपने साथ बहुत सारा सोना-चाँदी लेकर जा रहे थे जो मंदिर के काम के लिए दान में दिया गया था और लुटेरे उन्हें आसानी से लूट सकते थे। (एज्रा 7:12-16; 8:31) इसके अलावा उन्हें पता चला कि यरूशलेम में भी रहना सुरक्षित नहीं है, क्योंकि वहाँ अभी ज़्यादा लोग नहीं रहते और शहरपनाह और फाटक अब भी टूटे पड़े हैं। एज्रा की तरह हम यहोवा पर कैसे और भी भरोसा कर सकते हैं?

13. एज्रा ने यहोवा पर अपना भरोसा कैसे बढ़ाया? (फुटनोट भी देखें।)

13 एज्रा ने देखा था कि मुश्‍किल घड़ी में कैसे यहोवा ने अपने लोगों को सँभाला था। सालों पहले ईसा पूर्व 484 में राजा अहश-वेरोश ने यह फरमान जारी किया कि फारस साम्राज्य में जितने भी यहूदी हैं, उन सबको मार डाला जाए। (एस्ते. 3:7, 13-15) उस वक्‍त एज्रा शायद बैबिलोन में रहता था। अब एज्रा और उसके साथियों की जान खतरे में थी! “जिस-जिस ज़िले में” यहूदियों ने इस फरमान के बारे में सुना, वहाँ उन पर बड़ा मातम छा गया और वे रो-रोकर दुख मनाने लगे और उपवास करने लगे। उन्होंने ज़रूर यहोवा से फरियाद की होगी कि वह उनकी मदद करे। (एस्ते. 4:3) कुछ ही समय बाद पासा पलट गया। जिन लोगों ने यहूदियों को खत्म करने की साज़िश की थी, अब उन्हीं की जान पर बन आयी थी! सोचिए, यह जानकार एज्रा और बाकी यहूदियों को कैसा लगा होगा! (एस्ते. 9:1, 2) उस वक्‍त जो कुछ हुआ, उससे यहोवा पर एज्रा का भरोसा और भी बढ़ गया होगा। उसे यकीन हो गया होगा कि कल को अगर फिर कोई मुसीबत आए, तो यहोवा ज़रूर अपने लोगों को बचाएगा।d

14. मुश्‍किल घड़ी में एक बहन ने अपने अनुभव से क्या सीखा?

14 जब हम देखते हैं कि यहोवा मुश्‍किलों में कैसे हमें सँभालता है, तो उस पर हमारा भरोसा और भी बढ़ जाता है। पूर्वी यूरोप में रहनेवाली बहन ऐनस्टासीया के साथ कुछ ऐसा ही हुआ। उनके ऑफिस के लोग उन पर दबाव डालने लगे कि वे एक राजनैतिक मसले में उनका साथ दें। इस वजह से बहन को अपनी नौकरी छोड़नी पड़ी। वे कहती हैं, “मेरे साथ पहली बार ऐसा हो रहा था, जब मेरे हाथ में एक भी पैसा नहीं था।” उन्होंने यह भी कहा, “मैंने सबकुछ यहोवा पर छोड़ दिया और यहोवा ने बहुत अच्छी तरह मुझे सँभाला। कल को अगर फिर मेरी नौकरी छूट जाए, तो मुझे कोई डर नहीं होगा। मेरे पिता यहोवा ने जिस तरह आज मुझे सँभाला, वैसे ही वह कल भी सँभालेगा।”

15. एज्रा किस वजह से यहोवा पर अपना भरोसा बनाए रख पाया? (एज्रा 7:27, 28)

15 एज्रा ने खुद भी महसूस किया कि यहोवा ने उसका साथ दिया। जब एज्रा ने इस बारे में सोचा होगा कि कैसे यहोवा ने कई बार उसका साथ दिया है, तो इससे भी यहोवा पर उसका भरोसा बढ़ गया होगा। इसलिए उसने कहा कि “मेरा परमेश्‍वर यहोवा मेरे साथ है।” (एज्रा 7:27, 28 पढ़िए।) और एज्रा ने अपनी किताब में छ: बार कुछ ऐसी ही बात कही।​—एज्रा 7:6, 9; 8:18, 22, 31.

किन हालात में शायद हम साफ देख पाएँ कि यहोवा हमारा साथ दे रहा है? (पैराग्राफ 16)e

16. किन हालात में हम साफ देख पाते हैं कि यहोवा हमारे साथ है? (तसवीर भी देखें।)

16 मुश्‍किल हालात में यहोवा कैसे हमारी मदद कर सकता है? हो सकता है, आपको अधिवेशन में जाने के लिए छुट्टी चाहिए हो। या आप चाहते हों कि आपके काम के घंटों में कुछ फेरबदल किया जाए ताकि आप सभी सभाओं में जा सकें। ऐसे में अगर आप हिम्मत करके अपने बॉस से बात करें, तो आप देख पाएँगे कि यहोवा कैसे आपका साथ देता है। शायद आपने जो सोचा हो, यहोवा उससे भी बढ़िया हल निकाल दे। तब यहोवा पर आपका भरोसा और भी बढ़ जाएगा।

एज्रा दूसरे इसराएलियों के साथ मंदिर में रो रहा है। शकन्याह उसे खड़े होने में मदद कर रहा है।

लोगों ने जो पाप किए हैं, उनकी वजह से एज्रा मंदिर में रो रहा है और प्रार्थना कर रहा है। लोग भी रो रहे हैं। फिर शकन्याह एज्रा की हिम्मत बँधाता है और उससे कहता है, “इसराएल के लिए अब भी उम्मीद बाकी है। . . . हम तेरे साथ हैं।”​—एज्रा 10:2, 4 (पैराग्राफ 17)

17. मुश्‍किल हालात में एज्रा ने जो किया उसे कैसे पता चलता है कि वह नम्र था? (बाहर दी तसवीर देखें।)

17 एज्रा नम्र था, उसने यहोवा से मदद माँगी। जब भी एज्रा को यह चिंता होने लगती थी कि वह अपनी ज़िम्मेदारियाँ कैसे पूरी करेगा, तो वह यहोवा को पुकारता था। (एज्रा 8:21-23; 9:3-5) जब यहूदियों ने देखा कि एज्रा यहोवा पर पूरी तरह निर्भर है, तो उन्होंने एज्रा का साथ दिया और उसकी तरह यहोवा पर भरोसा रखा। (एज्रा 10:1-4) इससे हम क्या सीखते हैं? आज शायद हमें भी इस बात को लेकर चिंता हो कि हम अपने परिवार की ज़रूरतें कैसे पूरी करेंगे या उनकी हिफाज़त कैसे करेंगे। ऐसे में हमें यहोवा से प्रार्थना करनी चाहिए और उस पर भरोसा रखना चाहिए।

18. हम यहोवा पर अपना भरोसा कैसे बढ़ा सकते हैं?

18 जब हम नम्र रहते हैं और यहोवा से प्रार्थना करते हैं और भाई-बहनों से मदद लेते हैं, तो परमेश्‍वर पर हमारा भरोसा बढ़ जाता है। ज़रा बहन एरिका की मिसाल पर ध्यान दीजिए जो तीन बच्चों की माँ हैं। एक बार उन्हें पहाड़ जैसी मुसीबतों का सामना करना पड़ा। कुछ ही समय के अंदर उनके एक अजन्मे बच्चे की मौत हो गयी और उनके पति गुज़र गए। ऐसे में भी वे यहोवा पर भरोसा करती रहीं। उस वक्‍त को याद करते हुए बहन कहती हैं, “आप पहले से नहीं जान सकते कि यहोवा कैसे आपकी मदद करेगा, लेकिन वह करता ज़रूर है। कई बार तो ऐसे तरीकों से कि आप हैरान रह जाते हैं! मेरी कई प्रार्थनाओं का जवाब भाई-बहनों के ज़रिए मिला। कभी उन्होंने हौसला बढ़ानेवाली बातें कहीं, तो कभी मेरे लिए कुछ किया। मैंने सीखा है कि अगर मैं अपने दोस्तों को खुलकर अपनी परेशानी बताऊँ, तो वे ज़्यादा अच्छी तरह मेरी मदद कर पाएँगे।”

अंत तक यहोवा पर भरोसा करते रहिए

19-20. जो यहूदी यरूशलेम नहीं लौट पाए थे, उनसे हम क्या सीख सकते हैं?

19 जो यहूदी यरूशलेम नहीं लौट पाए, हम उनसे भी काफी कुछ सीख सकते हैं। उनमें से कई लोगों की उम्र हो गयी थी, कुछ बीमार थे और कुछ पर परिवार की ज़िम्मेदारियाँ थीं, इसलिए शायद वे उतना नहीं कर पाए जितना वे करना चाहते थे। फिर भी जो लोग यरूशलेम आ रहे थे, उनके हाथ उन्होंने खुशी-खुशी मंदिर के लिए दान भेजा। (एज्रा 1:5, 6) और ऐसा मालूम होता है कि जब यहूदियों का पहला समूह बैबिलोन से यरूशलेम लौटा, उसके करीब 19 साल बाद भी बैबिलोन में रहनेवाले यहूदी परमेश्‍वर के भवन के लिए दान भेज रहे थे।​—जक. 6:10.

20 क्या आप अपने हालात की वजह से यहोवा के लिए उतना नहीं कर पा रहे हैं, जितना आप चाहते हैं? अगर हाँ, तो भी आप यकीन रख सकते हैं कि आप दिल से जो भी करते हैं, उसकी यहोवा बहुत कदर करता है। हम ऐसा क्यों कह सकते हैं? ध्यान दीजिए कि यहोवा ने भविष्यवक्‍ता जकरयाह से क्या कहा था। उसने भविष्यवक्‍ता से कहा कि बैबिलोन में रहनेवाले यहूदियों ने जो सोना-चाँदी दान किया है, उससे एक ताज बनाया जाए। (जक. 6:11) यह “शानदार ताज” इस बात की “याद” दिलाता कि बैबिलोन में रहनेवाले यहूदियों ने कैसे दिल खोलकर दान किया था। (जक. 6:14) उसी तरह हम भी यकीन रख सकते हैं कि मुश्‍किलों के दौरान हम दिल से यहोवा के लिए जो भी करते हैं, उसे वह कभी नहीं भूलेगा।​—इब्रा. 6:10.

21. हमें ऐसा क्या करना होगा जिससे कि भविष्य में मुश्‍किलों के दौरान भी हम यहोवा पर भरोसा कर सकें?

21 इन आखिरी दिनों में हमें किसी-न-किसी मुश्‍किल का सामना करना ही पड़ेगा और भविष्य में शायद हालात और भी बदतर हो जाएँ। (2 तीमु. 3:1, 13) लेकिन हमें बहुत ज़्यादा चिंता करने की ज़रूरत नहीं है। याद कीजिए कि यहोवा ने हाग्गै के दिनों में अपने लोगों से क्या कहा था, “मैं तुम्हारे साथ हूँ . . . तुम मत डरो।” (हाग्गै 2:4, 5) अगर हम यहोवा की मरज़ी पूरी करने में जी-तोड़ मेहनत करते रहें, तो हम भी यकीन रख सकते हैं कि यहोवा हमारा साथ देगा। इसके अलावा हमने हाग्गै और जकरयाह की भविष्यवाणी से और एज्रा के उदाहरण से जो बातें सीखीं, उन्हें मानने से भी हमें बहुत फायदा होगा। फिर भविष्य में हमारे सामने चाहे कैसी भी मुश्‍किलें आएँ, हम पूरा भरोसा रख पाएँगे कि यहोवा हमें सँभालेगा।

आपका जवाब क्या होगा?

  • मुश्‍किलें आने पर यहोवा की सेवा के लिए हमारा जोश कैसे कम हो सकता है?

  • मुश्‍किलें आने पर भी हमें क्यों यहोवा की मरज़ी पूरी करने पर ध्यान देना चाहिए?

  • मुश्‍किलों के दौरान हम कैसे यहोवा पर और भी भरोसा कर सकते हैं?

गीत 122 अटल रहें!

a जब हम पैसों की तंगी झेलते हैं, राजनैतिक उथल-पुथल होती है या प्रचार के दौरान हमारा विरोध किया जाता है, तब यहोवा पर भरोसा रखना बहुत ज़रूरी होता है। इस लेख में हम जानेंगे कि हम उस पर अपना भरोसा कैसे बढ़ा सकते हैं।

b ‘सेनाओं का परमेश्‍वर यहोवा,’ ये शब्द हाग्गै की किताब में 14 बार आते हैं। यहूदी जब ये शब्द सुनते होंगे, तो उन्हें याद आता होगा कि यहोवा के पास बेहिसाब ताकत है और उसके पास स्वर्गदूतों की एक विशाल सेना है। ये शब्द सुनकर आज हमें भी यही बात याद आती है।​—भज. 103:20, 21.

c इस लेख में कछ लोगों के नाम उनके असली नाम नहीं हैं।

d एज्रा परमेश्‍वर के वचन का एक कुशल नकल-नवीस था। इसलिए यरूशलेम जाने से पहले भी उसे पूरा भरोसा था कि यहोवा ने जो भविष्यवाणियाँ की हैं, वे ज़रूर पूरी होंगी।​—2 इति. 36:22, 23; एज्रा 7:6, 9, 10; यिर्म. 29:14.

e तसवीर के बारे में: एक भाई अधिवेशन में जाने के लिए काम की जगह पर अपने मालिक से छुट्टी माँगता है, पर वह मना कर देता है। फिर वह भाई यहोवा से प्रार्थना करके मदद माँगता है और मालिक से दोबारा बात करने के लिए तैयारी करता है। वह मालिक को अधिवेशन का न्यौता दिखाता है और उसे बताता है कि बाइबल में लिखी बातों को मानने से हम और भी अच्छे इंसान बन पाते हैं। मालिक को ये बातें अच्छी लगती हैं और वह भाई को छुट्टी दे देता है।

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