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w24 सितंबर पेज 19
यीशु अपने वफादार प्रेषितों के साथ प्रभु का संध्या-भोज मना रहा है।

आपने पूछा

जब यीशु ने प्रभु के संध्या-भोज की शुरूआत की, तो वे 70 चेले कहाँ थे जिन्हें यीशु ने पहले प्रचार करने के लिए भेजा था? क्या उन्होंने यीशु के पीछे चलना छोड़ दिया था?

यीशु के वे 70 चेले प्रभु के संध्या-भोज में नहीं थे, इसका यह मतलब नहीं कि यीशु उनसे खुश नहीं था या उन चेलों ने यीशु के पीछे चलना छोड़ दिया था। यीशु यह भोज सिर्फ अपने प्रेषितों के साथ खाना चाहता था।

यीशु अपने 12 प्रेषितों से भी खुश था और 70 चेलों से भी। यीशु ने अपने चेलों को बुलाकर उनमें से 12 को चुना था और उन्हें प्रेषित नाम दिया था। (लूका 6:12-16) जब यीशु गलील में था, तो उसने “अपने 12 चेलों को बुलाया” और “उन्हें परमेश्‍वर के राज का प्रचार करने और चंगा करने भेजा।” (लूका 9:1-6) बाद में, जब यीशु यहूदिया में था, तो उसने “70 और चेले चुने” और “उन्हें दो-दो की जोड़ियों में” भेजा। (लूका 9:51; 10:1) इससे पता चलता है कि यीशु के चेले अलग-अलग इलाकों में फैले हुए थे और उसके बारे में प्रचार करते थे।

जब फसह का त्योहार आता था, तो यीशु के चेले अकसर अपने परिवार के साथ मिलकर यह त्योहार मनाते थे। (निर्ग. 12:6-11, 17-20) अपनी मौत से कुछ समय पहले, यीशु भी अपने प्रेषितों के साथ यह त्योहार मनाने के लिए यरूशलेम गया। पर उसने यहूदिया, गलील और पेरिया के सभी चेलों को फसह मानने के लिए यरूशलेम नहीं बुलाया। तो ज़ाहिर है कि यीशु इस मौके पर सिर्फ अपने प्रेषितों के साथ समय बिताना चाहता था। उसने उनसे कहा, “मेरी बड़ी तमन्‍ना थी कि मैं दुख झेलने से पहले तुम्हारे साथ फसह का खाना खाऊँ।”—लूका 22:15.

यीशु के पास ऐसा करने की एक वजह थी। वह “परमेश्‍वर का मेम्ना” था जो बहुत जल्द अपनी जान देकर “दुनिया का पाप” दूर ले जानेवाला था। (यूह. 1:29) यहोवा के लिए सारे बलिदान यरूशलेम में चढ़ाए जाते थे, इसलिए यीशु भी अपना बलिदान यरूशलेम में ही देनेवाला था। फसह के दिन खाया जानेवाला मेम्ना इस बात की याद दिलाता था कि यहोवा ने किस तरह इसराएलियों को मिस्र से छुड़ाया था। लेकिन यीशु का बलिदान, फसह के मेम्ने से कहीं बढ़कर था। क्योंकि इस बलिदान से इंसानों को पाप और मौत से छुटकारा मिलता। (1 कुरिं. 5:7, 8) यीशु के बलिदान की वजह से ही 12 प्रेषित आगे चलकर मसीही मंडली की नींव बनते। (इफि. 2:20-22) एक और बात गौर करनेवाली है कि पवित्र नगरी यरूशलेम “12 नींव के पत्थरों पर खड़ी” है और “उन पत्थरों पर मेम्ने के 12 प्रेषितों के नाम लिखे” हैं। (प्रका. 21:10-14) ये वफादार प्रेषित यहोवा के मकसद को पूरा करने में एक अहम भूमिका निभानेवाले थे। यही सबसे बड़ी वजह है कि यीशु ने अपने प्रेषितों के साथ अपना आखिरी फसह मनाया और उसके कुछ ही समय बाद प्रभु के संध्या-भोज की शुरूआत की।

यह सच है कि उस रात 70 चेले और दूसरे चेले यीशु के साथ प्रभु के संध्या-भोज में नहीं थे, लेकिन इस भोज से सभी वफादार चेलों को फायदा होनेवाला था। जिन चेलों का आगे चलकर पवित्र शक्‍ति से अभिषेक होता, वे भी राज के उस करार में बँध जाते जो यीशु ने उस रात अपने प्रेषितों से किया था।—लूका 22:29, 30.

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