अध्ययन लेख 35
गीत 121 संयम रखना ज़रूरी
बुरी इच्छाओं पर जीत कैसे हासिल करें?
“पाप को अपने नश्वर शरीर में राजा बनकर राज मत करने दो और शरीर की इच्छाओं के गुलाम बनकर उसकी मत मानो।”—रोमि. 6:12.
क्या सीखेंगे?
हम जानेंगे कि हमें क्यों इस बात को लेकर निराश नहीं होना चाहिए कि हमारे मन में बुरी इच्छाएँ आती हैं और इन इच्छाओं से लुभाए जाने पर हम इन्हें कैसे ठुकरा सकते हैं।
1. सभी इंसानों को कौन-सी लड़ाई लड़नी होती है?
क्या कभी आपको कुछ ऐसा करने की ज़बरदस्त इच्छा हुई है जो यहोवा को पसंद नहीं? अगर हाँ, तो निराश मत होइए। बाइबल में लिखा है, “तुम पर ऐसी कोई अनोखी परीक्षा नहीं आयी जो दूसरे इंसानों पर न आयी हो।” (1 कुरिं. 10:13) इसका मतलब, आप अकेले इंसान नहीं जिसे अपनी गलत इच्छाओं से लड़ना पड़ता है, सभी इंसानों को यह लड़ाई लड़नी होती है। पर खुशी की बात है कि यहोवा की मदद से आप यह लड़ाई जीत सकते हैं।
2. कुछ मसीहियों को और बाइबल विद्यार्थियों को किन गलत इच्छाओं से लड़ना पड़ता है? (तसवीरें भी देखें।)
2 बाइबल में यह भी लिखा है, “हर किसी की इच्छा उसे खींचती और लुभाती है, जिससे वह परीक्षा में पड़ता है।” (याकू. 1:14) हर इंसान को अलग-अलग इच्छाएँ लुभा सकती हैं। जैसे हो सकता है कि एक भाई का मन करे कि वह किसी औरत के साथ नाजायज़ संबंध रखे। वहीं किसी और भाई का मन कर सकता है कि वह किसी आदमी के साथ संबंध रखे। जिसे पहले पोर्नोग्राफी देखने की आदत थी, उसे दोबारा गंदी तसवीरें देखने का दिल कर सकता है। और जिसे एक वक्त पर ड्रग्स लेने या शराब पीने की आदत थी, उसका मन कर सकता है कि वह दोबारा इन्हें लेने लगे। हमने यहाँ सिर्फ कुछ ही गलत इच्छाओं के बारे में बात की जो एक मसीही या बाइबल विद्यार्थी के मन में उठ सकती हैं और उसे लुभा सकती हैं। पर ऐसी और भी इच्छाएँ हैं जिससे एक व्यक्ति को लड़ना पड़ सकता है। सच तो यह है कि हम सबकी ज़िंदगी में ऐसा वक्त आता है जब हम प्रेषित पौलुस की तरह महसूस करते हैं जिसने लिखा, “जब मैं अच्छा करना चाहता हूँ, तो अपने अंदर बुराई को ही पाता हूँ।”—रोमि. 7:21.
हम कहीं भी और कभी-भी बुरी इच्छाओं से लुभाए जा सकते हैं (पैराग्राफ 2)c
3. अगर एक व्यक्ति के मन में बार-बार बुरी इच्छाएँ उठती हैं, तो उसे क्या लग सकता है?
3 अगर आपके मन में बार-बार बुरी इच्छाएँ उठती हैं, तो शायद आपको लगे कि आप इतने लाचार और बेबस हैं कि अपनी बुरी इच्छाओं से नहीं लड़ सकते। यही नहीं, इन इच्छाओं की वजह से आपको यह भी लग सकता है कि आप यहोवा की नज़र में दोषी हैं और वह आपको हमेशा की ज़िंदगी नहीं देगा। पर ये दोनों खयाल गलत हैं। इस लेख में यही बात समझायी जाएगी। हम इन दो सवालों पर चर्चा करेंगे: (1) आपको क्यों लग सकता है कि आप लाचार और बेबस हैं और यहोवा की नज़र में दोषी हैं? और (2) आप बुरी इच्छाओं पर कैसे जीत हासिल कर सकते हैं?
शैतान हमें क्या यकीन दिलाना चाहता है?
4. (क) शैतान क्यों चाहता है कि हम यह सोचें कि हम अपनी बुरी इच्छाओं से नहीं लड़ सकते? (ख) हम क्यों कह सकते हैं कि हम इतने लाचार और बेबस नहीं कि अपनी बुरी इच्छाओं से लड़ ना सकें?
4 जब कोई गलत इच्छा आपको लुभाती है, तो शैतान चाहता है कि आप यह सोचें कि आप इतने बेबस और लाचार हैं कि उस इच्छा से नहीं लड़ सकते। यीशु यह जानता था, इसलिए उसने अपने चेलों को इस तरह प्रार्थना करना सिखाया, “जब हम पर परीक्षा आए तो हमें गिरने न दे, मगर हमें शैतान से बचा।” (मत्ती 6:13) शैतान का दावा है कि अगर एक इंसान को लुभाया जाए, तो वह यहोवा का वफादार नहीं रहेगा। (अय्यू. 2:4, 5) लेकिन सच तो यह है कि जब शैतान अपनी इच्छाओं से लुभाया गया, तो उन इच्छाओं से लड़ने के बजाय, वह खुद उनमें फँस गया और यहोवा का वफादार नहीं रहा। इसलिए शैतान सोचता है कि हम इंसान भी लुभाए जाने पर यहोवा को छोड़ देंगे। उसे तो यहाँ तक लगा कि यहोवा का परिपूर्ण बेटा भी लुभाए जाने पर उसकी आज्ञा तोड़ देगा। (मत्ती 4:8, 9) पर सोचिए, क्या हम सच में इतने लाचार और बेबस हैं कि अपनी बुरी इच्छाओं से लड़ ना सकें? बिलकुल नहीं! प्रेषित पौलुस ने लिखा, “जो मुझे ताकत देता है, उसी से मुझे सब बातों के लिए शक्ति मिलती है।” (फिलि. 4:13) जी हाँ, यहोवा की मदद से हम अपनी बुरी इच्छाओं से लड़ सकते हैं!
5. हम क्यों कह सकते हैं कि यहोवा को यकीन है कि हम बुरी इच्छाओं से लड़ सकते हैं?
5 यहोवा शैतान से बिलकुल अलग है। उसे पूरा यकीन है कि हम बुरी इच्छाओं से लड़ सकते हैं और उसके वफादार रह सकते हैं। हम ऐसा क्यों कह सकते हैं? क्योंकि बाइबल में उसने पहले से लिखवाया है कि उसके वफादार लोगों की एक बड़ी भीड़ महा-संकट से बच निकलेगी। हम जानते हैं कि यहोवा झूठ नहीं बोल सकता। तो जब उसने कहा है कि एक बड़ी भीड़ नयी दुनिया में जाएगी, तो इसका मतलब उसे यकीन है कि बहुत सारे लोग “अपने चोगे मेम्ने के खून में धोकर सफेद” करेंगे और परमेश्वर की नज़र में नेक ठहरेंगे। (प्रका. 7:9, 13, 14) इससे साफ पता चलता है कि यहोवा हमें बेबस और लाचार नहीं समझता। उसे यकीन है कि हम गलत इच्छाओं से लड़ सकते हैं।
6-7. शैतान हमें और किस बात का यकीन दिलाना चाहता है?
6 शैतान हमें एक और बात का यकीन दिलाना चाहता है। अपरिपूर्ण होने की वजह से हमारे मन में बुरी इच्छाएँ उठती हैं, इसलिए शैतान चाहता है कि हम यह मान बैठें कि हम परमेश्वर की नज़र में दोषी हैं और वह हमें हमेशा की ज़िंदगी नहीं देगा। लेकिन सच तो यह है कि शैतान यहोवा की नज़र में दोषी है और परमेश्वर उसे हमेशा की ज़िंदगी नहीं देगा। उसने तो उसे सज़ा भी सुना दी है। (उत्प. 3:15; प्रका. 20:10) शैतान के पास कोई उम्मीद नहीं है, इसलिए वह हम इंसानों से जलता है, क्योंकि हमारे पास हमेशा जीने की आशा है। तभी वह हमें यकीन दिलाना चाहता है कि हम पापी इंसानों के लिए कोई आशा नहीं है। लेकिन यह सरासर झूठ है। बाइबल में बताया है कि यहोवा हमें दोषी नहीं ठहराता, बल्कि हमारी मदद करना चाहता है। इसमें लिखा है, “वह नहीं चाहता कि कोई भी नाश हो बल्कि यह कि सबको पश्चाताप करने का मौका मिले।”—2 पत. 3:9.
7 तो अगर हम यह मान बैठें कि हम इतने बेबस और लाचार हैं कि अपनी बुरी इच्छाओं से नहीं लड़ सकते या सोचें कि हम यहोवा की नज़र में दोषी हैं, तो शैतान की जीत होगी। वह क्यों? क्योंकि शैतान यही चाहता है कि हम इस तरह सोचने लगें। अब क्योंकि हम यह बात समझ गए हैं, इसलिए आइए हम डटकर उसका मुकाबला करें—1 पत. 5:8, 9.
पापी होने की वजह से हमें क्या लग सकता है?
8. “पाप” का क्या मतलब है? (भजन 51:5) (“इसका क्या मतलब है?” भी देखें।)
8 जैसा हमने देखा, शैतान चाहता है कि हम सोचें कि हम बुरी इच्छाओं से नहीं लड़ सकते और इन इच्छाओं की वजह से हम यहोवा की नज़र में दोषी हैं। लेकिन एक और वजह से हम ऐसा सोचने लग सकते हैं। वह क्या है? आदम और हव्वा से हमें विरासत में पाप मिला है।a और पापी होने की वजह से हम ऐसा सोचने लग सकते हैं।—अय्यू. 14:4; भजन 51:5 पढ़िए।
9-10. (क) पाप का आदम-हव्वा पर क्या असर हुआ? (तसवीर भी देखें।) (ख) पापी होने की वजह से हम कैसे महसूस करते हैं?
9 पाप का आदम-हव्वा पर क्या असर हुआ? यहोवा की आज्ञा तोड़ने के बाद, वे उससे छिप गए और अपने शरीर को ढकने लगे। इंसाइट ऑन द स्क्रिप्चर्स किताब में लिखा है, “पाप की वजह से वे [1] दोषी महसूस करने लगे, [2] उन्हें चिंता सताने लगी, [3] वे बेचैन रहने लगे और [4] शर्मिंदा महसूस करने लगे।” यह ऐसा था मानो आदम-हव्वा चार कमरोंवाले एक घर में कैद हो गए। वे एक कमरे से दूसरे कमरे में जा सकते थे, लेकिन कभी घर से बाहर नहीं निकल सकते थे। इसका मतलब, पापी होने की वजह से वे कभी दोषी महसूस करते, तो कभी उन्हें चिंता सताती। वे कभी बेचैन रहते, तो कभी शर्मिंदा महसूस करते। लेकिन वे इस पापी हालत से छुटकारा नहीं पा सकते थे।
10 आदम-हव्वा और हम इंसानों में एक फर्क है। उन्हें फिरौती बलिदान से कोई फायदा नहीं होगा। लेकिन हमें इससे फायदा हो सकता है। हमें अपने पापों की माफी मिल सकती है और हम एक साफ ज़मीर के साथ यहोवा की सेवा कर सकते हैं। (1 कुरिं. 6:11) पर एक बात तो है, आदम-हव्वा से हमें विरासत में पाप ज़रूर मिला है। इसलिए गलतियाँ करने पर हम भी दोषी महसूस करते हैं, हमें चिंता सताती है, हम बेचैन हो जाते हैं और शर्मिंदा महसूस करते हैं। बाइबल में लिखा है कि हमने “आदम की तरह कानून तोड़कर पाप नहीं किया,” फिर भी पाप हम पर राज कर रहा है और हम उसकी गिरफ्त में हैं। (रोमि. 5:14) लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि हम अपनी बुरी इच्छाओं से नहीं लड़ सकते या हम परमेश्वर की नज़र में दोषी हैं। पर कभी-कभी हममें ऐसी सोच आ सकती है और हम निराश हो सकते हैं। ऐसे में हम क्या कर सकते हैं?
पाप करने की वजह से आदम और हव्वा दोषी महसूस करने लगे, उन्हें चिंता सताने लगी, वे बेचैन रहने लगे और शर्मिंदा महसूस करने लगे (पैराग्राफ 9)
11. जब हमारा दिल हमसे कहे कि हम अपनी बुरी इच्छाओं से नहीं लड़ सकते, तो हमें क्या करना चाहिए और क्यों? (रोमियों 6:12)
11 अपनी पापी हालत की वजह से शायद हमारा दिल हमसे कहे कि हम अपनी बुरी इच्छाओं से नहीं लड़ सकते। लेकिन हमें उसकी नहीं सुननी चाहिए। क्यों नहीं? क्योंकि बाइबल में लिखा है कि हमें पाप को अपने ऊपर “राजा बनकर राज” नहीं करने देना है। (रोमियों 6:12 पढ़िए।) इसका मतलब, जब हमारे मन में बुरी इच्छाएँ आती हैं, तो हमें उनके मुताबिक काम नहीं करना है। यह हम पर है कि हम अपनी बुरी इच्छाओं के आगे झुकेंगे या नहीं। (गला. 5:16) यहोवा को पूरा यकीन है कि लुभाए जाने पर हम बुरी इच्छाओं को ठुकरा सकते हैं। अगर उसे यकीन नहीं होता, तो वह हमें कभी ऐसा करने के लिए नहीं कहता। (व्यव. 30:11-14; रोमि. 6:6; 1 थिस्स. 4:3) इससे साफ पता चलता है कि हम इतने बेबस और लाचार नहीं कि अपनी बुरी इच्छाओं से लड़ ना सकें।
12. जब हमारा दिल हमसे कहे कि बुरी इच्छाएँ होने की वजह से हम यहोवा की नज़र में दोषी हैं, तो हमें क्या करना चाहिए और क्यों?
12 उसी तरह, जब हमारा दिल हमसे कहे कि बुरी इच्छाओं की वजह से हम यहोवा की नज़र में दोषी हैं, तो हमें उसकी नहीं सुननी चाहिए। क्यों नहीं? क्योंकि बाइबल में बताया है कि यहोवा अच्छी तरह समझता है कि हम पापी हैं। (भज. 103:13, 14) और वह हमारे बारे में “सबकुछ जानता है।” (1 यूह. 3:19, 20) वह जानता है कि पापी होने की वजह से हमारा झुकाव हमेशा बुराई की तरफ होता है। लेकिन अगर हम अपनी गलत इच्छाओं के आगे ना झुकें और पाप करने से दूर रहें, तो हम यहोवा की नज़र में नेक बने रहेंगे। हम क्यों इस बात का यकीन रख सकते हैं?
13-14. अगर किसी के मन में बुरी इच्छाएँ आती हैं, तो क्या इसका यह मतलब है कि यहोवा उससे खुश नहीं? समझाइए।
13 बाइबल में बताया है कि गलत काम करने की इच्छा होना और उसके मुताबिक काम करना, इन दोनों में फर्क है। ना चाहते हुए भी बुरी इच्छाएँ हमारे मन में उठ सकती हैं, लेकिन हम इन इच्छाओं के मुताबिक काम करने से खुद को रोक सकते हैं। मिसाल के लिए, पहली सदी में कुरिंथ की मंडली में कुछ लोग ऐसे थे जो मसीही बनने से पहले समलैंगिक संबंध रखते थे। उनके बारे में पौलुस ने कहा, “तुममें से कुछ लोग पहले ऐसे ही काम करते थे।” लेकिन क्या इसका यह मतलब है कि मसीही बनने के बाद उनके मन में कभी ऐसे गलत काम करने का खयाल नहीं आया? यह मानना सही नहीं होगा क्योंकि ऐसी बुरी इच्छाएँ मन में घर कर जाती हैं और इनसे पीछा छुड़ाना आसान नहीं होता। ये इच्छाएँ बार-बार मन में उठ सकती हैं। लेकिन कुरिंथ के जिन मसीहियों ने खुद पर संयम रखा और अपनी बुरी इच्छाओं के मुताबिक काम नहीं किया, यहोवा उनसे खुश था। और वे उसकी नज़र में “शुद्ध” थे। (1 कुरिं. 6:9-11) आज हम भी उसकी नज़र में शुद्ध ठहर सकते हैं।
14 आप चाहे किसी भी बुरी इच्छा से लड़ रहे हों, आप उस पर जीत हासिल कर सकते हैं। हो सकता है, आप उस इच्छा को पूरी तरह मन से निकाल ना पाएँ, लेकिन आप संयम रख सकते हैं। आप उस इच्छा के मुताबिक काम करने से दूर रह सकते हैं ‘जो आपका शरीर चाहता और सोचता है।’ (इफि. 2:3) आप यह कैसे कर सकते हैं? आइए जानें।
बुरी इच्छाओं से कैसे लड़ें?
15. बुरी इच्छाओं से लड़ने के लिए हमें क्या करना होगा और क्यों?
15 बुरी इच्छाओं से लड़ने के लिए ज़रूरी है कि आप पहले अपनी कमज़ोरियों को कबूल करें और ‘झूठी दलीलें’ देकर खुद को धोखा ना दें। (याकू. 1:22) जैसे हो सकता है, आप बहुत ज़्यादा शराब पीते हों, लेकिन खुद को यह दलील देते हों कि ‘मैं इतना कहाँ पीता हूँ, दूसरे तो मुझसे ज़्यादा पीते हैं।’ या फिर हो सकता है कि आप शादीशुदा हों और आपको पोर्नोग्राफी देखने की आदत हो। ऐसे में शायद आप खुद से कहें, ‘अगर मेरी पत्नी मुझसे प्यार करती और मुझ पर ध्यान देती, तो मैं गंदी तसवीरें क्यों देखता?’ अगर आप खुद को इस तरह की दलीलें देंगे, तो आप आसानी से गलत काम कर बैठेंगे। इसलिए अपने मन में भी गलत कामों के लिए सफाई मत दीजिए। अपनी गलती मानिए और सुधार कीजिए।—गला. 6:7.
16. आप सही काम करने का अपना इरादा कैसे मज़बूत कर सकते हैं?
16 अपनी कमज़ोरियों को कबूल करने के साथ-साथ यह भी ज़रूरी है कि आप पक्का इरादा कर लें कि आप बुरी इच्छाओं के आगे नहीं झुकेंगे। (1 कुरिं. 9:26, 27; 1 थिस्स. 4:4; 1 पत. 1:15, 16) इसके लिए आप क्या कर सकते हैं? सबसे पहले सोचिए कि आपकी कमज़ोरी क्या है। और आप किस हालात में और किस वक्त उसके लिए लुभाए जा सकते हैं। जैसे जब आप बहुत थके होते हैं, क्या तब आप गलत काम करने के लिए लुभाए जा सकते हैं? या फिर देर रात को गलत काम करने का आपका मन कर सकता है? इसके बाद सोचिए कि ऐसे हालात में आप क्या करेंगे। इस तरह पहले से सोचने से आप परीक्षा में नहीं पड़ेंगे।—नीति. 22:3.
17. हम यूसुफ से क्या सीख सकते हैं? (उत्पत्ति 39:7-9) (तसवीरें भी देखें।)
17 ज़रा सोचिए, जब पोतीफर की पत्नी ने यूसुफ को लुभाने की कोशिश की, तो उसने क्या किया। उसने तुरंत उसे मना कर दिया और वहाँ से भाग गया। (उत्पत्ति 39:7-9 पढ़िए।) इससे क्या पता चलता है? यही कि यूसुफ ने पहले से सोच रखा था कि वह किसी परायी औरत के साथ संबंध नहीं रखेगा। उसी तरह हमें भी पहले से पक्का इरादा कर लेना चाहिए कि अगर हमें लुभाया जाए, तो हम क्या करेंगे। ऐसा करने से जब हम पर आज़माइश आएगी, तो हम सही कदम उठा पाएँगे, क्योंकि हमने पहले से उस बारे में सोच रखा है।
पाप करने के लिए लुभाए जाने पर यूसुफ की तरह तुरंत कदम उठाइए! (पैराग्राफ 17)
‘खुद को जाँचते रहें’
18. बुरी इच्छाओं पर जीत पाने के लिए आप क्या कर सकते हैं? (2 कुरिंथियों 13:5)
18 बुरी इच्छाओं पर जीत पाने के लिए ज़रूरी है कि हम ‘खुद को जाँचते रहें।’ इसका मतलब, हमें अपनी कमज़ोरी को लेकर समय-समय पर खुद की जाँच करनी है। (2 कुरिंथियों 13:5 पढ़िए।) यह हम कैसे कर सकते हैं? अपनी सोच और कामों को जाँचिए और अगर कुछ सुधार करने की ज़रूरत है, तो उसे कीजिए। मान लीजिए आपके मन में कोई बुरी इच्छा आयी, पर आपने उसे ठुकरा दिया। तब भी खुद से पूछिए: ‘इसे ठुकराने में मुझे कितनी देर लगी?’ अगर आपको थोड़ा वक्त लगा, तो खुद को कोसिए मत। इसके बजाय, सोचिए कि आप क्या कर सकते हैं ताकि अगली बार आप तुरंत उसे ठुकरा सकें। इसके लिए आप खुद से इस तरह के सवाल कर सकते हैं: ‘क्या मैं बुरी इच्छाओं को और भी जल्दी ठुकरा सकता हूँ? मैं जिस तरह का मनोरंजन कर रहा हूँ, क्या उस वजह से इन्हें ठुकराना मेरे लिए मुश्किल तो नहीं हो रहा? कोई गंदा सीन आने पर क्या मैं तुरंत अपनी आँखें फेर लेता हूँ? यहोवा चाहता है कि मैं संयम बरतूँ और इसमें मेहनत लगती है, पर क्या मैं मानता हूँ कि उसकी बात मानने में ही मेरी भलाई है?’—भज. 101:3.
19. छोटे-छोटे गलत फैसले लेने की वजह से बुरी इच्छाओं से लड़ना कैसे मुश्किल हो सकता है?
19 खुद की जाँच करते वक्त ध्यान रखिए कि आप अपनी गलतियों के लिए मन-ही-मन सफाई ना देने लगें। बाइबल में लिखा है, “दिल सबसे बड़ा धोखेबाज़ है और यह उतावला होता है।” (यिर्म. 17:9) यीशु ने भी कहा था कि दिल से “दुष्ट विचार” निकलते हैं। (मत्ती 15:19) उदाहरण के लिए, जिस व्यक्ति ने पोर्नोग्राफी देखना छोड़ दिया है, वह कुछ वक्त बाद शायद ऐसी तसवीरें देखने लगे जो उसे इतनी गंदी ना लगें और वह खुद को यह दलील दे, ‘ये तसवीरें इतनी भी बुरी नहीं, इनमें किसी को नंगा थोड़ी ना दिखाया गया है।’ या यह भी हो सकता है कि वह गलत कामों के ख्वाब देखता हो और सोचे, ‘इसमें क्या बुराई है? मैं तो सिर्फ इस बारे में सोच रहा हूँ, वैसा कर थोड़ी ना रहा हूँ।’ यह ऐसा है मानो उसका धोखेबाज़ दिल “शरीर की इच्छाएँ पूरी करने की योजनाएँ” बना रहा हो। (रोमि. 13:14) आप ऐसा करने से कैसे दूर रह सकते हैं? याद रखिए, छोटे-छोटे गलत फैसले लेने से आप कोई बड़ी गलती कर सकते हैं, इसलिए हर फैसला सोच-समझकर लीजिए।b बुरे कामों के लिए बहाने मत बनाइए, बल्कि उन ‘दुष्ट विचारों’ को तुरंत ठुकराइए।
20. नयी दुनिया के बारे में हम क्या उम्मीद कर सकते हैं और आज हम बुरी इच्छाओं से कैसे लड़ सकते हैं?
20 जैसा हमने सीखा, यहोवा हमें बुरी इच्छाओं को ठुकराने की ताकत देता है। हम कितने शुक्रगुज़ार हैं कि उसने हमारे लिए फिरौती का इंतज़ाम किया है ताकि हमें नयी दुनिया में हमेशा की ज़िंदगी मिल सके। ज़रा सोचिए, नयी दुनिया में हमें फिर कभी बुरी इच्छाओं से लड़ना नहीं पड़ेगा! तब हमें यहोवा की सेवा करने से कितनी खुशी मिलेगी। लेकिन उस वक्त के आने तक हम पूरा यकीन रख सकते हैं कि हम बुरी इच्छाओं से लड़ सकते हैं। हम इन इच्छाओं के आगे लाचार और बेबस नहीं, ना ही इन इच्छाओं की वजह से यहोवा हमें दोषी मानता है। इनसे लड़ने में हम जो मेहनत कर रहे हैं, यहोवा उस पर आशीष देगा। यकीन रखिए, हम इन इच्छाओं पर ज़रूर जीत हासिल कर सकते हैं!
गीत 122 अटल रहें!
a इसका क्या मतलब है? जब एक इंसान कोई गलत काम करता है जैसे चोरी करता है, व्यभिचार करता है या किसी का खून करता है, तो बाइबल में उसे “पाप” कहा गया है। (निर्ग. 20:13-15; 1 कुरिं. 6:18) बाइबल की कुछ आयतों में हमारी अपरिपूर्ण या पापी हालत को भी “पाप” कहा गया है। पाप हममें पैदाइशी है, यह हमें आदम-हव्वा से मिला है। इसलिए चाहे हमने कोई गलत काम ना भी किया हो, तब भी हम पापी हैं।
b ध्यान दीजिए कि नीतिवचन 7:7-23 में बताए नौजवान ने किस तरह छोटे-छोटे गलत फैसले लिए, जिस वजह से वह नाजायज़ यौन-संबंध रखने का बड़ा पाप कर बैठा।
c तसवीर के बारे में : बायीं तरफ: एक नौजवान भाई कॉफी शॉप में बैठा है और दो आदमी एक-दूसरे से प्यार कर रहे हैं। दायीं तरफ: दो लोग सिगरेट पी रहे हैं और एक बहन उन्हें देख रही है।