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न्यायियों का सारांश

      • बिन्यामीन के लोगों का अपराध (1-30)

न्यायियों 19:1

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न्यायियों 19:9

फुटनोट

  • *

    शा., “डेरे।”

न्यायियों 19:10

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  • +यह 15:8, 63; 18:28; न्या 1:8

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    प्रहरीदुर्ग,

    1/15/2005, पेज 27

न्यायियों 19:16

संबंधित आयतें

  • +न्या 19:1
  • +यह 18:21, 28

न्यायियों 19:18

फुटनोट

  • *

    या शायद, “और मैं यहोवा के भवन में सेवा करता हूँ।”

संबंधित आयतें

  • +न्या 19:1, 2

न्यायियों 19:19

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  • +उत 24:32
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न्यायियों 19:20

फुटनोट

  • *

    शा., “तुझे शांति मिले।”

न्यायियों 19:22

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  • +उत 19:4, 5; लैव 20:13; रोम 1:27; 1कुर 6:9, 10; यहू 7

न्यायियों 19:24

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न्यायियों 19:25

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न्यायि. 19:16न्या 19:1
न्यायि. 19:16यह 18:21, 28
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न्यायि. 19:19उत 18:5; 19:3
न्यायि. 19:22उत 19:4, 5; लैव 20:13; रोम 1:27; 1कुर 6:9, 10; यहू 7
न्यायि. 19:24उत 19:6-8
न्यायि. 19:25न्या 19:2
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पवित्र शास्त्र का नयी दुनिया अनुवाद
न्यायियों 19:1-30

न्यायियों

19 उन दिनों इसराएल राष्ट्र में कोई राजा न था।+ उस समय एक लेवी एप्रैम के पहाड़ी प्रदेश+ के एक दूर-दराज़ इलाके में रहता था। उसने एक औरत को अपनी उप-पत्नी बनाया जो यहूदा के बेतलेहेम+ से थी। 2 मगर उसकी उप-पत्नी ने उससे बेवफाई की और उसे छोड़कर अपने पिता के घर यहूदा के बेतलेहेम चली गयी। उसे वहाँ रहते चार महीने हो गए। 3 फिर उसका पति उसे मनाने और वापस ले जाने आया। उसके साथ उसका सेवक भी आया था और उनके पास दो गधे थे। उसकी उप-पत्नी उसे अपने पिता के घर के अंदर ले गयी। उसे देखकर लड़की का पिता खुश हो गया 4 और उसने उसे तीन दिन रुकने के लिए मना लिया। तीन दिन तक लेवी वहीं रहा और उसने अपने ससुर के साथ खाया-पीया।

5 चौथे दिन सुबह-सुबह जब वे जाने की तैयारी करने लगे, तो लड़की के पिता ने अपने दामाद से कहा, “पहले कुछ खा-पी ले कि तुझे ताकत मिले, फिर चले जाना।” 6 तब उस लेवी और उसके ससुर ने बैठकर खाया-पीया। इसके बाद उसके ससुर ने कहा, “आज रात यहीं रुक जा और मौज कर।” 7 वह लेवी जाने के लिए उठा मगर उसका ससुर उससे मिन्‍नत करता रहा, इसलिए वह उस रात वहीं ठहर गया।

8 जब पाँचवें दिन वह सुबह-सुबह जाने के लिए उठा, तो लड़की के पिता ने कहा, “पहले कुछ खा-पी ले कि तुझे ताकत मिले।” ससुर और दामाद ने खाया-पीया और देर तक वहीं बैठे रहे। 9 जब लेवी अपनी उप-पत्नी और अपने सेवक के साथ जाने के लिए उठा तो उसके ससुर ने कहा, “देख, दिन ढलने पर है, कुछ ही देर में अँधेरा हो जाएगा। आज रात यहीं रुक जा और मौज कर। फिर कल सुबह-सुबह अपने घर* के लिए रवाना हो जाना।” 10 लेकिन लेवी वहाँ एक और रात नहीं रुकना चाहता था, इसलिए वह अपनी उप-पत्नी, सेवक और सामान से लदे दोनों गधों को लेकर निकल पड़ा और यबूस यानी यरूशलेम+ तक गया।

11 जब वे यबूस के पास पहुँचे तो शाम होने लगी। सेवक ने अपने मालिक से कहा, “क्या हम यबूसियों के शहर में चलें और आज रात वहीं रुक जाएँ?” 12 मालिक ने उससे कहा, “यहाँ कोई इसराएली नहीं रहता इसलिए हम परदेसियों के इस शहर में नहीं रुकेंगे। हम गिबा+ तक जाएँगे।” 13 उसने यह भी कहा, “आओ जल्दी करो, हम गिबा या रामाह+ तक पहुँचने की कोशिश करते हैं। उन्हीं में से किसी एक जगह रात बिताएँगे।” 14 वे आगे बढ़े। बिन्यामीन गोत्र के शहर, गिबा के पास पहुँचते-पहुँचते सूरज ढलने लगा।

15 इसलिए वे रात काटने के लिए गिबा में गए। वे जाकर शहर के चौक पर बैठ गए, लेकिन किसी ने उन्हें अपने घर में पनाह नहीं दी।+ 16 तब एक बूढ़ा आदमी खेतों में काम करके वापस घर लौट रहा था। वह एप्रैम के पहाड़ी प्रदेश+ से था, मगर कुछ समय से गिबा में रह रहा था। वहाँ के निवासी बिन्यामीन गोत्र से थे।+ 17 जब उसने शहर के चौक पर उस लेवी को बैठे देखा तो उसने पूछा, “तू कहाँ से आया है और तुझे कहाँ जाना है?” 18 लेवी ने जवाब दिया, “हम यहूदा के बेतलेहेम से आ रहे हैं और हमें एप्रैम के पहाड़ी प्रदेश के एक दूर के इलाके में जाना है। मैं वहीं का रहनेवाला हूँ। दरअसल मैं किसी काम से यहूदा के बेतलेहेम गया था+ और अब यहोवा के भवन जा रहा हूँ।* मगर यहाँ हमें कोई अपने घर में पनाह नहीं दे रहा। 19 मेरे पास अपने गधों के लिए भरपूर चारा और पुआल है।+ और अपने लिए, अपनी उप-पत्नी और अपने सेवक के लिए रोटियाँ+ और दाख-मदिरा भी है। हमारे पास खाने-पीने की तो कोई कमी नहीं।” 20 तब उस बूढ़े आदमी ने कहा, “मेरे घर में तुम्हारा स्वागत है।* मैं तुम लोगों का पूरा-पूरा खयाल रखूँगा। बस शहर के चौक पर रात मत गुज़ारो।” 21 यह कहकर वह बूढ़ा आदमी उन्हें अपने घर ले आया। उसने उनके गधों को चारा डाला और उन सबने अपने पैर धोए। फिर वे बैठकर खाने-पीने लगे।

22 वे खा-पी रहे थे कि तभी शहर के कुछ नीच आदमियों ने आकर घर को घेर लिया और दरवाज़ा पीटने लगे। वे घर के मालिक, उस बूढ़े आदमी से कहने लगे, “बाहर ला उस आदमी को जो तेरे घर आया है। हमें उसके साथ संभोग करना है।”+ 23 यह सुनकर बूढ़ा आदमी घर से बाहर आया और उसने कहा, “मेरे भाइयो, ऐसा दुष्ट काम मत करो। वह आदमी मेरे घर आया मेहमान है, उसके साथ यह घिनौना काम मत करो। 24 मेरी एक कुँवारी बेटी है और उस आदमी की उप-पत्नी भी है। मैं उन्हें तुम्हारे पास ले आता हूँ, अगर तुम्हें कुछ करना ही है, तो उनके साथ कर लो।+ मगर इस आदमी को छोड़ दो, उसके साथ ऐसा घिनौना काम मत करो।”

25 लेकिन उन आदमियों ने उस बूढ़े की एक न सुनी। तब लेवी ने अपनी उप-पत्नी को पकड़कर उनके पास बाहर धकेल दिया।+ उन आदमियों ने रात-भर उसका बलात्कार किया और उसे तड़पाया। और पौ फटते ही उसे भेज दिया। 26 वह उस बूढ़े आदमी के घर आयी जहाँ उसका पति रुका हुआ था और वहीं दरवाज़े के सामने गिर पड़ी और उजाला होने तक वहीं पड़ी रही। 27 जब उसका पति सुबह उठा और उसने सफर पर निकलने के लिए घर के दरवाज़े खोले, तो उसने देखा कि उसकी उप-पत्नी दरवाज़े पर पड़ी हुई है और उसके हाथ दहलीज़ पर फैले हुए हैं। 28 उसने अपनी उप-पत्नी से कहा, “उठ, हमें जाना है।” लेकिन उसे कोई जवाब न मिला क्योंकि वह मर चुकी थी। लेवी ने उसे उठाकर अपने गधे पर लाद दिया और अपने घर की ओर चल पड़ा।

29 घर पहुँचकर उसने एक छुरा लिया और अपनी उप-पत्नी की लाश के 12 टुकड़े किए और इसराएल के हर गोत्र को एक-एक टुकड़ा भेज दिया। 30 जिस किसी ने उसे देखा, वह कहने लगा, “इसराएल में ऐसी घटना पहले कभी नहीं घटी। मिस्र से निकलने के बाद से लेकर आज तक हमने न तो कभी ऐसा होते देखा, न सुना। अब इस बारे में गहराई से सोचो, आपस में सलाह करो+ और बताओ कि हमें क्या करना चाहिए।”

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