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यिर्मयाह का सारांश

      • लोग वही रास्ता चुनते हैं जिस पर सब चलते हैं (1-7)

      • यहोवा के वचन के बिना बुद्धि कहाँ? (8-17)

      • यहूदा का घाव देखकर यिर्मयाह दुखी (18-22)

        • “क्या गिलाद में बलसाँ नहीं है?” (22)

यिर्मयाह 8:2

संबंधित आयतें

  • +व्य 4:19; 2रा 17:16; 21:1, 3; यिर्म 19:13; यहे 8:16; सप 1:4, 5
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यिर्मयाह 8:5

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यिर्मयाह 8:6

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यिर्मयाह 8:7

फुटनोट

  • *

    या “अपना तय समय जानता है।”

  • *

    या शायद, “सारस।”

  • *

    या “प्रवास करते हैं।”

संबंधित आयतें

  • +यश 1:3

इंडैक्स

  • खोजबीन गाइड

    प्रहरीदुर्ग (अध्ययन),

    3/2023, पेज 16-17

    प्रहरीदुर्ग,

    8/1/2002, पेज 32

यिर्मयाह 8:8

फुटनोट

  • *

    या “की हिदायत।”

  • *

    या “सचिवों।”

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  • +यश 8:1

यिर्मयाह 8:9

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  • +यश 29:14

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  • +यिर्म 5:31; 6:12-15; 27:9; विल 2:14; यहे 22:28

यिर्मयाह 8:11

संबंधित आयतें

  • +यिर्म 23:16, 17; यहे 13:10

इंडैक्स

  • खोजबीन गाइड

    प्रहरीदुर्ग,

    5/1/1988, पेज 22-23

    4/1/1987, पेज 24

यिर्मयाह 8:12

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  • +यिर्म 3:3
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यिर्मयाह 8:14

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यिर्मयाह 8:15

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यिर्मयाह 8:21

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यिर्मयाह 8:22

फुटनोट

  • *

    या “मलहम।”

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  • +उत 37:25
  • +यिर्म 30:12, 13
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इंडैक्स

  • खोजबीन गाइड

    प्रहरीदुर्ग,

    10/1/2010, पेज 25-26

दूसरें अनुवाद

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दूसरी

यिर्म. 8:2व्य 4:19; 2रा 17:16; 21:1, 3; यिर्म 19:13; यहे 8:16; सप 1:4, 5
यिर्म. 8:2यिर्म 16:4
यिर्म. 8:5यिर्म 5:3
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यिर्म. 8:22उत 37:25
यिर्म. 8:22यिर्म 30:12, 13
यिर्म. 8:22यिर्म 30:17; 33:4, 6
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पवित्र शास्त्र का नयी दुनिया अनुवाद
यिर्मयाह 8:1-22

यिर्मयाह

8 यहोवा ऐलान करता है, “उस समय यहूदा के राजाओं, हाकिमों, याजकों, भविष्यवक्‍ताओं और यरूशलेम के लोगों की हड्डियाँ उनकी कब्रों से निकाली जाएँगी। 2 उन्हें सूरज, चाँद और आकाश की सारी सेना के सामने बिखेर दिया जाएगा, जिनसे उन्हें बहुत प्यार था, जिनकी वे सेवा करते थे और जिनके पीछे वे जाते थे, जिनसे सलाह करते थे और जिनके आगे दंडवत करते थे।+ वे न तो इकट्ठी की जाएँगी और न ही दफनायी जाएँगी। वे धरती के ऊपर खाद की तरह पड़ी रहेंगी।”+

3 सेनाओं का परमेश्‍वर यहोवा ऐलान करता है, “इस दुष्ट घराने के बचे हुए लोगों को मैं जिन-जिन जगहों में तितर-बितर करूँगा, वहाँ वे जीवन के बजाय मौत की कामना करेंगे।

4 तू उनसे कहना, ‘यहोवा कहता है,

“क्या वे गिरेंगे और दोबारा नहीं उठेंगे?

अगर एक पलटकर लौटे तो क्या दूसरा भी नहीं लौटेगा?

 5 यरूशलेम के ये लोग क्यों मुझसे विश्‍वासघात करने से बाज़ नहीं आते?

वे छल का रास्ता नहीं छोड़ते,

वे पलटकर लौटने से इनकार करते हैं।+

 6 मैंने उन पर ध्यान दिया, उनकी बात सुनता रहा, मगर उनके बात करने का तरीका सही नहीं था।

एक भी इंसान अपनी दुष्टता पर नहीं पछताया, न ही उसने पूछा, ‘मैंने क्या किया है?’+

हर कोई बार-बार उसी रास्ते पर लौट जाता है जिस पर सब चलते हैं,

जैसे घोड़ा सरपट दौड़ता हुआ जंग में जाता है।

 7 आकाश में उड़नेवाला लगलग भी जानता है कि कब उसे उड़कर दूसरी जगह जाना है,*

फाख्ता, बतासी और सारिका* भी समय पर लौटते हैं।*

मगर मेरे अपने लोग यहोवा के फैसले नहीं समझते।”’+

 8 ‘तुम लोग कैसे कह सकते हो, “हम बुद्धिमान हैं, हमारे पास यहोवा का कानून* है”?

सच तो यह है कि शास्त्रियों* की झूठी कलम+ का इस्तेमाल सिर्फ झूठ लिखने के लिए किया गया है।

 9 बुद्धिमानों को शर्मिंदा किया गया है।+

वे घबरा जाएँगे और पकड़े जाएँगे।

देखो, उन्होंने यहोवा का वचन ठुकरा दिया है,

तो फिर उनके पास बुद्धि कहाँ से होगी?

10 इसलिए मैं उनकी पत्नियाँ दूसरे आदमियों को दे दूँगा,

उनके खेत दूसरों के अधिकार में कर दूँगा,+

क्योंकि छोटे से लेकर बड़े तक, हर कोई बेईमानी से कमाता है,+

भविष्यवक्‍ता से लेकर याजक तक, हर कोई धोखाधड़ी करता है।+

11 वे यह कहकर मेरे लोगों की बेटी का घाव सिर्फ ऊपर से ठीक करते हैं,

“शांति है! शांति है!”

जबकि कोई शांति नहीं है।+

12 क्या उन्हें अपने घिनौने कामों पर शर्म आती है?

नहीं, बिलकुल शर्म नहीं आती!

उनमें शर्म नाम की चीज़ है ही नहीं!+

इसलिए वे भी उनकी तरह गिरेंगे जो गिर चुके हैं।

जब मैं उन्हें सज़ा दूँगा तब वे ठोकर खाकर गिर पड़ेंगे।’+ यह बात यहोवा ने कही है।

13 यहोवा ऐलान करता है, ‘जब मैं उन्हें इकट्ठा करूँगा तो उनका अंत कर दूँगा।

न अंगूर की बेल पर एक अंगूर बचेगा, न ही अंजीर के पेड़ पर एक अंजीर बचेगा और सारे पत्ते मुरझा जाएँगे।

मैंने उन्हें जो भी दिया था उसे वे खो देंगे।’”

14 “हम यहाँ क्यों बैठे हैं?

चलो हम इकट्ठे होकर किलेबंद शहरों में जाएँ और वहाँ मर जाएँ।+

क्योंकि हमारा परमेश्‍वर यहोवा हमें मिटा देगा,

वह हमें ज़हर मिला पानी पिलाता है,+

क्योंकि हमने यहोवा के खिलाफ पाप किया है।

15 हमने शांति की आशा की थी, मगर कुछ भला नहीं हुआ।

ठीक होने की उम्मीद की थी, मगर खौफ छाया रहा!+

16 दान से उसके घोड़ों का फुफकारना सुनायी दे रहा है।

उसके घोड़ों के हिनहिनाने से पूरी धरती काँप रही है।

दुश्‍मन आते हैं और पूरा देश और उसका सबकुछ खा जाते हैं,

शहर और उसके निवासियों को निगल जाते हैं।”

17 यहोवा ऐलान करता है, “मैं तुम्हारे बीच साँप भेज रहा हूँ,

ऐसे ज़हरीले साँप जिन्हें मंत्र फूँककर काबू नहीं किया जा सकता।

वे तुम्हें डसकर ही रहेंगे।”

18 मेरा दुख बरदाश्‍त से बाहर है,

मेरा मन रोगी है।

19 दूर देश से मदद की पुकार सुनायी दे रही है,

मेरे अपने लोगों की बेटी कह रही है,

“क्या यहोवा सिय्योन में नहीं है?

क्या उसका राजा वहाँ नहीं है?”

“वे क्यों अपनी खुदी हुई मूरतों से,

निकम्मे और पराए देवताओं से मेरा क्रोध भड़काते हैं?”

20 “कटाई का दौर बीत चुका है, गरमियाँ जा चुकी हैं,

मगर हमें नहीं बचाया गया!”

21 अपने लोगों की बेटी का घाव देखकर मैं दुख से बेहाल हूँ,+

मैं बहुत मायूस हूँ।

मैं सदमे में हूँ।

22 क्या गिलाद में बलसाँ* नहीं है?+

क्या वहाँ कोई वैद्य नहीं है?+

तो फिर क्यों मेरे लोगों की बेटी की सेहत ठीक नहीं हुई?+

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