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w97 8/1 पेज 30-31

पाठकों के प्रश्‍न

यहोवा के साक्षी क्योंकि ईमानदार होने का प्रयास करते हैं और वे एक दूसरे पर भरोसा रखते हैं, तो उनके बीच में जब व्यापारिक सौदा होता है तो वे एक लिखित इक़रारनामा बनाना क्यों महत्त्वपूर्ण समझते हैं?

उनका ऐसा करना शास्त्रीय, व्यावहारिक और प्रेमपूर्ण है। वह कैसे? आइए व्यापारिक इक़रारनामों के इन पहलुओं पर विचार करें।

अपने वाचा के लोगों, इस्राएलियों के साथ परमेश्‍वर के व्यवहार का लिखित रिकॉर्ड बाइबल प्रस्तुत करती है। इसमें ऐसे व्यापारिक सौदे दिए गए हैं जिनमें सच्चे उपासक समाविष्ट थे। उत्पत्ति अध्याय २३ में एक उदाहरण दिया गया है जिस पर हम विचार कर सकते हैं। जब उसकी प्रिय सारा की मृत्यु हुई, तब इब्राहीम क़ब्र के लिए एक जगह हासिल करना चाहता था। वह हेब्रोन के पास रहनेवाले कनानियों से सौदा करने लगा। आयत ७-९ दिखाती हैं कि जो ज़मीन का टुकड़ा उसे चाहिए था उसके लिए इब्राहीम ने सुनिश्‍चित क़ीमत पेश की। आयत १० साबित करती है कि यह पेशकश सबके सामने की गयी थी, और नगर के फाटक के पास दूसरे लोगों ने इसे सुना था। आयत १३ दिखाती है कि ज़मीन के मालिक ने इब्राहीम को ज़मीन यूँ ही दे देने की पेशकश की, लेकिन उसने जवाब दिया कि वह ज़मीन को केवल दाम देकर ही लेगा। और आयत १७, १८, और २० बताती हैं कि ऐसा ही हुआ, और “जितने हित्ती उसके नगर के फाटक से होकर भीतर जाते थे, उन सभों के साम्हने” यह बात पक्की हुई।

लेकिन, जब ऐसा व्यापारिक सौदा करनेवाले दोनों सच्चे उपासक हों तो क्या कुछ अलग कार्यवाही होगी? यिर्मयाह का अध्याय ३२ जवाब देता है। आयत ६ से हम देखते हैं कि यिर्मयाह को अपने चचेरे भाई से ज़मीन ख़रीदनी थी। आयत ९ दिखाती है कि उचित क़ीमत पर समझौता हुआ। अब आयत १०-१२ पढ़िए: “और मैं [यिर्मयाह] ने दस्तावेज़ में दस्तख़त और मुहर हो जाने पर, गवाहों के साम्हने वह चान्दी कांटे में तौलकर उसे दे दी। तब मैं ने मोल लेने की दोनों दस्तावेज़ें जिन में सब शर्तें लिखी हुई थीं, और जिन में से एक पर मुहर थी और दूसरी खुली थी, उन्हें लेकर अपने चचेरे भाई हनमेल के और उन गवाहों के साम्हने जिन्हों ने दस्तावेज़ में दस्तख़त किए थे, और उन सब यहूदियों के साम्हने भी जो पहरे के आंगन में बैठे हुए थे, नेरिय्याह के पुत्र बारूक को जो महसेयाह का पोता था, सौंप दिया।”

जी हाँ, हालाँकि यिर्मयाह एक संगी उपासक, यहाँ तक कि एक रिश्‍तेदार के साथ सौदा कर रहा था, उसने कुछ उचित क़ानूनी कार्यवाही पूरी की। दो लिखित रिकॉर्ड बनाए गए—एक जिसे खुला रखा गया ताकि आसानी से देखा जा सके, दूसरा जिस पर मुहर लगायी गयी थी ताकि अगर खुले दस्तावेज़ की यथार्थता के बारे में कभी कोई संदेह हो तो वह दोहरा सबूत प्रदान करेगा। यह सारा सौदा, जैसे आयत १३ कहती है, “उनके साम्हने” हुआ। सो यह सरेआम, गवाहों के सामने किया गया, कानूनी व्यापारिक सौदा था। तो फिर, स्पष्ट है कि शास्त्रीय पूर्वोदाहरण को लेकर सच्चे उपासक ऐसे सुनिश्‍चित और लिखित तरीक़े से मामलों को निपटाते हैं।

यह व्यावहारिक भी है। हम जानते हैं कि यह कथन कितना सच है कि “सब समय और संयोग के वश में है।” (सभोपदेशक ९:११) उसमें समर्पित और वफ़ादार मसीही भी शामिल हैं। याकूब ४:१३, १४ इस बात को यूँ कहता है: “तुम जो यह कहते हो, कि आज या कल हम किसी और नगर में जाकर वहां एक वर्ष बिताएंगे, और ब्योपार करके लाभ उठाएंगे। और यह नहीं जानते कि कल क्या होगा।” इसलिए, शायद हम एक परियोजना शुरू करें, जैसे कि कुछ ख़रीदना, समझौते के अनुसार कोई काम या सेवा करना, या किसी के लिए कोई वस्तु तैयार करना। लेकिन कल—या अगले महीने या अगले साल—क्या होगा? अगर हमारे या दूसरे व्यक्‍ति के साथ दुर्घटना हो गयी तो? इस बात से समझौते को पूरा करना असंभव लग सकता है। क्या होगा अगर हम अमुक काम नहीं कर पाते या सेवा नहीं दे सकते, या दूसरे व्यक्‍ति को पैसे की अदायगी करना लगभग असंभव लगता है या वह समझौते का अपना भाग नहीं निभा पाता? अगर कोई लिखित समझौता नहीं है, तो वास्तविक समस्याएँ उठ सकती हैं, ऐसी समस्याएँ जिन्हें एक सरल लिखित इक़रारनामे के होते हुए सुलझाया या टाला जा सकता था।

इसके अलावा, हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि जीवन के अनेक पहलुओं के अनिश्‍चित होने का यह भी अर्थ हो सकता है कि किसी और को हमारे (या दूसरे व्यक्‍ति के) व्यापारिक मामलों की ज़िम्मेदारी उठानी पड़े या उन्हें निपटाना पड़े। याकूब ने आयत १४ में आगे कहा: “तुम तो मानो भाप समान हो, जो थोड़ी देर दिखाई देती है, फिर लोप हो जाती है।” सच तो यह है, अचानक ही हमारी मौत हो सकती है। अगर किसी भी व्यक्‍ति के साथ कुछ अनहोनी हो जाती है, तो असल में, एक लिखित समझौता या एक इक़रारनामा मामलों का निपटारा जारी रखने में दूसरों की मदद कर सकता है।

एक तरह से, यह तीसरे पहलू की ओर भी ले जाता है—लिखित इक़रारनामे प्रेम की अभिव्यक्‍ति होते हैं। निश्‍चय ही, अगर किसी भी व्यक्‍ति की मृत्यु होती है या वह किसी अपंग करनेवाली दुर्घटना का शिकार हो जाता है, तो उसकी बाध्यताओं या आर्थिक अपेक्षाओं का लिखित रिकॉर्ड देना एक मसीही के लिए प्रेम की अभिव्यक्‍ति होती। और जिस भाई के साथ हम सौदा कर रहे हैं, उस पर भरोसे की कमी दिखाने के बजाय हम प्रेम दिखाएँगे, अगर हम एक लिखित इक़रारनामा बनाएँ जो साफ़-साफ़ और सही-सही बताएगा कि वह क्या करने के लिए बाध्य है या क्या हासिल करने की स्थिति में है। अगर दो अपरिपूर्ण पक्षों में से कोई एक कुछ विवरणों या ज़िम्मेदारियों को भूल भी जाए, तो यह प्रेमपूर्ण क़दम दुर्भावना या नाराज़गी के लिए किसी भी कारण को कम करेगा। और हम में से कौन है जो अपरिपूर्ण, भुलक्कड़ या विवरणों अथवा हेतुओं को ग़लत समझने के लिए प्रवृत्त नहीं है?—मत्ती १६:५.

दूसरे तरीक़े भी हैं जिनसे, लिखित व्यापारिक समझौते हमारे भाई, परिवार और आम तौर पर कलीसिया के लिए प्रेम प्रदर्शित करते हैं। लेकिन यह साफ़ होना चाहिए कि प्रेम की अभिव्यक्‍ति होने के अलावा, पर्याप्त विवरण देनेवाले ऐसे लिखित रिकॉर्ड व्यावहारिक और शास्त्रीय हैं।

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