जैसे-जैसे अंत निकट आता है “मन की स्थिरता”
“सब बातों का अंत निकट आ गया है। इसलिए मन में स्थिर बनो।” —१ पतरस ४:७, NW.
१. “मन में स्थिर” होने में क्या शामिल है?
जिस तरीक़े से मसीही अपना जीवन बिताते हैं उस पर प्रेरित पतरस के उपरोक्त शब्दों का गहरा प्रभाव पड़ना चाहिए। लेकिन, पतरस ने अपने पाठकों से जीवन की रोज़मर्रा की ज़िम्मेदारियों और चिंताओं से मुँह मोड़ने के लिए नहीं कहा; न ही उसने आनेवाले विनाश के कारण दहशत का भाव रखने का प्रोत्साहन दिया। इसके बजाय उसने आग्रह किया: “मन में स्थिर बनो।” “मन में स्थिर” होने में अच्छी सूझ-बूझ दिखाना, अपनी बोलचाल और कार्यों में संवेदनशील, बुद्धिमान, और समझदार होना शामिल है। इसका मतलब है हमारे सोच-विचार और कार्यों पर परमेश्वर के वचन का नियंत्रण होना। (रोमियों १२:२) क्योंकि हम “इस कुटिल और भ्रष्ट पीढ़ी के बीच” रहते हैं, तो समस्याओं और कठिनाइयों को टालने के लिए एक स्थिर मन की ज़रूरत है।—फिलिप्पियों २:१५, NHT.
२. यहोवा का धीरज आज मसीहियों को कैसे फ़ायदा पहुँचाता है?
२ “मन की स्थिरता” हमें अपने बारे में एक मर्यादित, यथार्थवादी दृष्टिकोण रखने में भी मदद करती है। (तीतुस २:१२, NW; रोमियों १२:३) यह २ पतरस ३:९ में अभिलिखत वचनों को मद्देनज़र रखते हुए अनिवार्य है: “प्रभु अपनी प्रतिज्ञा के विषय में देर नहीं करता, जैसी देर कितने लोग समझते हैं; पर तुम्हारे विषय में धीरज धरता है, और नहीं चाहता, कि कोई नाश हो; बरन यह कि सब को मन फिराव का अवसर मिले।” ध्यान दीजिए कि यहोवा ने न केवल अविश्वासियों के संबंध में, बल्कि “तुम्हारे विषय में”—मसीही कलीसिया के सदस्यों के विषय में—भी धीरज धरा है। क्यों? क्योंकि “[वह] नहीं चाहता, कि कोई नाश हो।” संभवतः कुछ लोगों को अनंत जीवन का तोहफ़ा पाने के योग्य होने के लिए अभी-भी परिवर्तन और समंजन करने की ज़रूरत है। इसलिए आइए हम उन क्षेत्रों को देखें जिनमें शायद कुछ समंजन करने की ज़रूरत हो।
हमारे व्यक्तिगत संबंधों में “मन की स्थिरता”
३. अपने बच्चों के संबंध में माता-पिता ख़ुद से शायद कौन-से प्रश्न पूछें?
३ घर को शांति का आशियाना होना चाहिए। लेकिन कुछ लोगों के लिए यह ‘झगड़े-रगड़े से भरा’ होता है। (नीतिवचन १७:१) आपका परिवार कैसा है? क्या आपका घर “क्रोध, और कलह, और निन्दा” से मुक्त है? (इफिसियों ४:३१) आपके बच्चों के बारे में क्या? क्या उन्हें लगता है कि उन्हें प्यार किया जाता और सराहा जाता है? (लूका ३:२२ से तुलना कीजिए।) क्या आप उन्हें उपदेश देने और सिखाने के लिए समय दे रहे हैं? क्या आप जलजलाहट और क्रोध के बजाय ‘धार्मिकता में शिक्षा’ देते हैं? (२ तीमुथियुस ३:१६, NHT) क्योंकि बच्चे “यहोवा के दिए हुए दान हैं” उसे इस बात में अत्यधिक दिलचस्पी है कि उनके साथ कैसा व्यवहार किया जाता है।—भजन १२७:३.
४. (क) तब क्या परिणाम हो सकता है यदि एक पति अपनी पत्नी से कठोर रीति से व्यवहार करता है? (ख) पत्नियाँ परमेश्वर के साथ शांति और पूरे परिवार की ख़ुशी को कैसे बढ़ावा दे सकती हैं?
४ हमारे विवाह साथी के बारे में क्या? “पति अपनी अपनी पत्नी से अपनी देह के समान प्रेम रखे, जो अपनी पत्नी से प्रेम रखता है, वह अपने आप से प्रेम रखता है। क्योंकि किसी ने कभी अपने शरीर से बैर नहीं रखा बरन उसका पालन-पोषण करता है, जैसा मसीह भी कलीसिया के साथ करता है।” (इफिसियों ५:२८, २९) एक गाली-गलौज करनेवाला, रौब जमानेवाला, या हठीला पुरुष न केवल अपने घर की शांति को ख़तरे में डालता है बल्कि परमेश्वर के साथ अपने संबंध को भी कमज़ोर बनाता है। (१ पतरस ३:७) पत्नियों के बारे में क्या? इसी प्रकार वे भी ‘अपने अपने पति के ऐसे आधीन रहें, जैसे प्रभु के।’ (इफिसियों ५:२२) परमेश्वर को प्रसन्न करने का विचार रखने से एक पत्नी को अपने पति की कमियों को नज़रअंदाज़ करने और बिना नाराज़गी के उसके अधीन रहने में मदद मिल सकती है। कभी-कभी, एक पत्नी शायद अपने दिल की बात कहने के लिए बाध्य महसूस करे। नीतिवचन ३१:२६ एक योग्य पत्नी के बारे में कहता है: “वह बुद्धि की बात बोलती है, और उसके वचन कृपा की शिक्षा के अनुसार होते हैं।” अपने पति के साथ कृपालु और आदरपूर्ण तरीक़े से व्यवहार करने के द्वारा वह परमेश्वर के साथ शांति बनाए रखती है, तथा पूरे परिवार की ख़ुशी को बढ़ावा देती है।—नीतिवचन १४:१.
५. अपने माता-पिता के साथ अपने व्यवहार के बारे में युवाओं को बाइबल की सलाह क्यों माननी चाहिए?
५ युवा जनों, आप अपने माता-पिता के साथ कैसा व्यवहार करते हैं? क्या आप ऐसी व्यंगात्मक, अनादरपूर्ण भाषा का इस्तेमाल करते हैं जिसे दुनिया अकसर बर्दाश्त करती है? या क्या आप बाइबल की इस आज्ञा का पालन कर रहे हैं: “हे बालको, प्रभु में अपने माता-पिता के आज्ञाकारी बनो, क्योंकि यह उचित है। अपनी माता और पिता का आदर कर (यह पहिली आज्ञा है, जिस के साथ प्रतिज्ञा भी है)। कि तेरा भला हो, और तू धरती पर बहुत दिन जीवित रहे”?—इफिसियों ६:१-३.
६. संगी उपासकों के साथ हम शांति कैसे ढूँढ़ सकते हैं?
६ हम तब भी “मन की स्थिरता” दिखाते हैं जब हम संगी उपासकों के साथ ‘मेल मिलाप को ढूंढ़ते हैं, और उसके यत्न में रहते हैं।’ (१ पतरस ३:११) समय-समय पर असहमति और ग़लतफ़हमियाँ पैदा हो जाती हैं। (याकूब ३:२) यदि शत्रुता को बढ़ने दिया जाए, तो पूरी कलीसिया की शांति को ख़तरा हो सकता है। (गलतियों ५:१५) सो जल्दी ही झगड़ों को सुलझाएँ; शांतिमय समाधान ढूँढ़िए।—मत्ती ५:२३-२५; इफिसियों ४:२६; कुलुस्सियों ३:१३, १४.
“मन की स्थिरता” और पारिवारिक ज़िम्मेदारियाँ
७. (क) रोज़मर्रा के मामलों में “मन की स्थिरता” दिखाने के लिए पौलुस ने कैसे प्रोत्साहित किया? (ख) घरेलू ज़िम्मेदारियों के प्रति मसीही पतियों और पत्नियों को क्या मनोवृत्ति रखनी चाहिए?
७ प्रेरित पौलुस ने मसीहियों को ‘मन की स्थिरता के साथ जीवन बिताने’ की सलाह दी। (तीतुस २:१२, NW) यह दिलचस्पी की बात है कि इस संदर्भ में पौलुस स्त्रियों से ‘अपने पतियों और बच्चों से प्रीति रखने। और संयमी, [मन में स्थिर] पतिव्रता, घर का कारबार करनेवाली होने’ का आग्रह करता है। (तीतुस २:४, ५) पौलुस ने यह सा.यु., ६१-६४ में, यहूदी रीति-व्यवस्था की समाप्ति से कुछ वर्ष पहले लिखा। फिर भी, रोज़मर्रा के मामले, जैसे घर का काम, अब भी महत्त्वपूर्ण थे। इसलिए पति-पत्नी दोनों को अपनी घरेलू ज़िम्मेदारियों का हितकर, सकारात्मक दृष्टिकोण रखना चाहिए ताकि “परमेश्वर के वचन की निन्दा न होने पाए।” एक परिवार के मुखिया ने एक मेहमान से अपने घर की भोंडी दशा के लिए क्षमा माँगी। उसने बताया कि यह इसलिए अस्त-व्यस्त पड़ा था “क्योंकि वह पायनियर कार्य कर रहा था।” जब हम राज्य के हित के लिए त्याग करते हैं, तो यह तारीफ़ की बात है लेकिन अपने परिवारों के हित को न त्यागने के लिए सावधानी बरतने की ज़रूरत है।
८. पारिवारिक मुखिया संतुलित रूप से अपने परिवार की ज़रूरतों की देखभाल कैसे कर सकते हैं?
८ बाइबल पिताओं से अपने परिवार को प्राथमिकता देने का आग्रह करती है, यह कहती है कि जो अपने परिवार के लिए प्रबंध नहीं करता “वह विश्वास से मुकर गया है, और अविश्वासी से भी बुरा बन गया है।” (१ तीमुथियुस ५:८) संसार-भर में रहने के स्तरों में भिन्नता है, और भौतिक अपेक्षाओं को संतुलित रखना अच्छी बात है। “मुझे न तो निर्धन कर और न धनी बना,” नीतिवचन ३०:८ के लेखक ने प्रार्थना की। फिर भी, माता-पिता को अपने बच्चों की भौतिक ज़रूरतों को नज़रअंदाज़ नहीं करना चाहिए। उदाहरण के लिए, क्या यह बुद्धिमानी की बात होगी कि जानते-बूझते एक व्यक्ति ईश्वरशासित विशेषाधिकारों के पीछे भागने के लिए अपने परिवार की बुनियादी ज़रूरतें भी पूरी न करे? क्या यह उस व्यक्ति के बच्चों को कुंठित नहीं कर सकता? इसकी विषमता में, नीतिवचन २४:२७ कहता है: “अपना बाहर का कामकाज ठीक करना, और खेत में उसे तैयार कर लेना; उसके बाद अपना घर बनाना।” जी हाँ, जबकि भौतिक वस्तुओं के बारे में चिंता करना अपनी जगह ठीक है, “अपना घर बनाना”—आध्यात्मिक और भावनात्मक रूप से—अनिवार्य है।
९. पारिवारिक मुखियाओं के लिए अपनी मृत्यु या बीमारी की संभावना को ध्यान में रखना बुद्धिमानी क्यों है?
९ यदि आपकी बेवक़्त मौत हो जाती है तो क्या उसके लिए आपने अपने परिवार की गुज़र-बसर का इंतज़ाम कर रखा है? नीतिवचन १३:२२ कहता है: “भला मनुष्य अपने नाती-पोतों के लिये भाग छोड़ जाता है।” यहोवा के ज्ञान और उसके साथ संबंध को विरासत में देने के अलावा, माता-पिता अपने बच्चों के लिए भौतिक रूप से प्रबंध करने में दिलचस्पी रखेंगे। अनेक देशों में ज़िम्मेदार पारिवारिक मुखिया कुछ जमा-पूँजी, एक वसीयतनामा, और बीमा रखने की कोशिश करेंगे। आख़िरकार, परमेश्वर के लोग “समय और संयोग के वश” से बेअसर तो नहीं हैं। (सभोपदेशक ९:११) पैसा “आड़ का काम देता है” और ध्यानपूर्वक योजना बनाना अकसर मुश्किलों को टाल सकता है। (सभोपदेशक ७:१२) ऐसे देशों में जहाँ चिकित्सा-सेवा का ख़र्च सरकार नहीं उठाती, कुछ लोग शायद स्वास्थ्य ज़रूरतों के लिए कुछ पैसा अलग रखें या किसी तरह का स्वास्थ्य बीमा करवाने का फ़ैसला करें।a
१०. मसीही माता-पिता अपने बच्चों के लिए कैसे ‘धन बटोर’ सकते हैं?
१० शास्त्र यह भी कहता है: “लड़के-बालों को माता-पिता के लिये धन बटोरना न चाहिए, पर माता-पिता को लड़के-बालों के लिये।” (२ कुरिन्थियों १२:१४) संसार में माता-पिता के लिए अपने बच्चों के भविष्य की पढ़ाई और शादी के लिए पैसा जमा करना आम बात है ताकि वे उन्हें जीवन में अच्छी शुरूआत दे सकें। क्या आपने अपने बच्चे के आध्यात्मिक भविष्य के लिए धन बटोरने के बारे में सोचा है? उदाहरण के लिए मान लीजिए, कि एक बड़ा बच्चा पूर्ण-समय सेवकाई कर रहा है। जबकि पूर्ण-समय सेवकों को न तो बाहर से सहायता की माँग ही करनी चाहिए न ही उम्मीद रखनी चाहिए, फिर भी प्रेममय माता-पिता शायद उसके पूर्ण-समय सेवा में बने रहने के लिए ‘उसकी आवश्यकता के अनुसार उसकी सहायता करने’ का फ़ैसला करें।—रोमियों १२:१३, NHT; १ शमूएल २:१८, १९; फिलिप्पियों ४:१४-१८.
११. क्या पैसे का यथार्थवादी दृष्टिकोण रखना विश्वास की कमी को दर्शाता है? समझाए।
११ पैसे का यथार्थवादी दृष्टिकोण रखना इस बात पर विश्वास की कमी की ओर इशारा नहीं करता कि शैतान की दुष्ट व्यवस्था का अंत निकट है। यह मात्र “खरी बुद्धि” और अच्छी परख दिखाने की बात है। (नीतिवचन २:७; ३:२१) यीशु ने एक बार कहा कि पैसे के इस्तेमाल में “इस संसार के लोग . . . रीति व्यवहारों में ज्योति के लोगों से अधिक चतुर हैं।” (लूका १६:८) तो इसमें कोई ताज्जुब नहीं कि कुछ लोगों ने, जिस तरीक़े से वे अपने साधनों का इस्तेमाल करते हैं, उसमें समंजन करने की ज़रूरत को देखा है ताकि वे अपने परिवार की अच्छी तरह देखभाल कर सकें।
शिक्षा के प्रति हमारे दृष्टिकोण में “मन की स्थिरता”
१२. यीशु ने अपने चेलों को नयी परिस्थितियों के अनुसार ढलना कैसे सिखाया?
१२ “इस संसार की रीति और व्यवहार बदलते जाते हैं” और बड़े आर्थिक परिवर्तन और शिल्पविज्ञान विकास अति शीघ्रता से हो रहे हैं। (१ कुरिन्थियों ७:३१) लेकिन, यीशु ने अपने चेलों को अनुकूलनशील बनना सिखाया। जब उसने उन्हें उनके पहले प्रचार अभियान पर भेजा तब उनसे कहा: “अपने पटुकों में न तो सोना, और न रूपा, और न तांबा रखना। मार्ग के लिये न झोली रखो, न दो कुरते, न जूते और न लाठी लो, क्योंकि मजदूर को उसका भोजन मिलना चाहिए।” (मत्ती १०:९, १०) लेकिन एक बाद के अवसर पर, यीशु ने कहा: “जिस के पास बटुआ हो वह उसे ले, और वैसे ही झोली भी।” (लूका २२:३६) क्या बदल गया था? परिस्थितियाँ। धार्मिक वातावरण ज़्यादा शत्रुतापूर्ण हो गया था, और अब उन्हें अपने लिए प्रबंध करने थे।
१३. शिक्षा का मुख्य उद्देश्य क्या है, और माता-पिता इस संबंध में अपने बच्चों के सहायक कैसे बन सकते हैं?
१३ उसी तरह आज भी, माता-पिता को आजकल की आर्थिक वास्तविकताओं को ध्यान में रखने की शायद ज़रूरत हो। उदाहरण के लिए क्या आप इस बात का ध्यान रख रहे हैं कि आपके बच्चों को पर्याप्त स्कूली शिक्षा मिल रही है? शिक्षा का मुख्य उद्देश्य एक युवा को यहोवा का प्रभावशाली सेवक बनाने के लिए सज्जित करना होना चाहिए। और सब प्रकार की शिक्षाओं में से सबसे महत्त्वपूर्ण आध्यात्मिक शिक्षा है। (यशायाह ५४:१३) माता-पिता अपने बच्चों की आर्थिक रूप से मदद करने की अपनी योग्यता के बारे में भी चिंता करते हैं। सो अपने बच्चों को मार्गदर्शन दीजिए, उचित स्कूली विषय चुनने में उनकी सहायता कीजिए, और उनके साथ चर्चा कीजिए कि अतिरिक्त शिक्षण पाने का प्रयास करना बुद्धिमानी होगा या नहीं। ऐसे फ़ैसले पारिवारिक ज़िम्मेदारी हैं, और दूसरों को इन फ़ैसलों की आलोचना नहीं करनी चाहिए। (नीतिवचन २२:६) उनके बारे में क्या जिन्होंने अपने बच्चों को घर पर शिक्षा देने का फ़ैसला किया है?b जबकि कई लोगों ने सराहनीय काम किया है, लेकिन कुछ लोगों ने इस कार्य को जितना सोचा था उससे कठिन पाया है और उनके बच्चों को नुक़सान उठाना पड़ा है। सो यदि आप घर पर शिक्षा देने की सोच रहे हैं, तो पहले निश्चित कर लीजिए, यथार्थवादी रूप से जाँच कीजिए कि क्या आपके पास इसका कौशल और इस पर बने रहने का आत्म-अनुशासन है।—लूका १४:२८.
‘बड़ाई मत खोजिए’
१४, १५. (क) बारूक ने अपना आध्यात्मिक संतुलन कैसे खो दिया? (ख) अपने लिए ‘बड़ाई खोजना’ उसके लिए मूर्खता क्यों थी?
१४ क्योंकि इस व्यवस्था का अंत अभी नहीं आया है, कुछ लोग शायद उन बातों की खोज में लगने के लिए प्रवृत्त हों जो संसार पेश करता है—प्रतिष्ठापूर्ण पेशा, कमाईवाली नौकरियाँ, और दौलत। यिर्मयाह के लिपिक बारूक पर ध्यान दीजिए। उसने विलाप किया: “हाय मुझ पर! क्योंकि यहोवा ने मुझे दु:ख पर दु:ख दिया है; मैं कराहते कराहते थक गया और मुझे कुछ चैन नहीं मिलता।” (यिर्मयाह ४५:३) बारूक थक चुका था। यिर्मयाह के लिपिक के रूप में काम करना कठिन, और तनावपूर्ण था। (यिर्मयाह ३६:१४-२६) और इस तनाव का कोई अंत नज़र नहीं आ रहा था। यरूशलेम का विनाश होने में अभी १८ वर्ष बाक़ी थे।
१५ यहोवा ने बारूक को बताया: “देख, इस सारे देश को जिसे मैं ने बनाया था, उसे मैं आप ढा दूंगा, और जिन को मैं ने रोपा था, उन्हें स्वयं उखाड़ फेंकूंगा। इसलिये सुन, क्या तू अपने लिये बड़ाई खोज रहा है? उसे मत खोज।” बारूक अपना संतुलन खो बैठा था। उसने ‘अपने लिये बड़ाई खोजनी’ शुरू कर दी थी, संभवतः दौलत, प्रतिष्ठा, या भौतिक सुरक्षा। क्योंकि यहोवा ‘सारे देश को उखाड़ फ़ेंक रहा था,’ तो इन वस्तुओं की खोज में रहने का क्या तुक था? इसलिए यहोवा ने बारूक को यह गंभीर अनुस्मारक दिया: “मैं सारे मनुष्यों पर विपत्ति डालूंगा; परन्तु जहां कहीं तू जाएगा वहां मैं तेरा प्राण बचाकर तुझे जीवित रखूंगा।” भौतिक संपत्ति यरूशलेम के नाश में नहीं बचती! यहोवा ने केवल ‘उसका प्राण बचाकर उसे जीवित रखने’ की गारंटी दी।—यिर्मयाह ४५:४, ५.
१६. बारूक के अनुभव से यहोवा के लोग आज क्या सबक़ सीख सकते हैं?
१६ बारूक ने यहोवा के सुधार पर ध्यान दिया, और यहोवा के वायदे के अनुसार, बारूक की जान बच गई। (यिर्मयाह ४३:६, ७) यहोवा के लोगों के लिए आज यह क्या ही शक्तिशाली सबक़ है! यह समय ‘अपने लिए बड़ाई की खोज करने’ का नहीं है। क्यों? क्योंकि “संसार और उस की अभिलाषाएं दोनों मिटते जाते हैं।”—१ यूहन्ना २:१७.
शेष समय का सर्वोत्तम प्रयोग
१७, १८. (क) जब नीनवे के निवासियों ने पश्चाताप किया तो योना ने कैसी प्रतिक्रिया दिखाई? (ख) यहोवा ने योना को क्या सबक़ सिखाया?
१७ तब हम शेष समय का सर्वोत्तम प्रयोग कैसे कर सकते हैं? भविष्यवक्ता योना के अनुभव से सीखिए। वह “नीनवे को गया . . . और यह प्रचार करता गया, अब से चालीस दिन के बीतने पर नीनवे उलट दिया जाएगा।” योना चकित रह गया, नीनवे के निवासियों ने उसके संदेश को सुना और पश्चाताप किया! यहोवा ने उस नगर को नाश नहीं किया। तब योना की क्या प्रतिक्रिया हुई? “हे यहोवा, मेरा प्राण ले ले; क्योंकि मेरे लिये जीवित रहने से मरना ही भला है।”—योना ३:३, ४; ४:३.
१८ तब यहोवा ने योना को एक महत्त्वपूर्ण सबक़ सिखाया। उसने “एक रेंड़ का पेड़ उगाकर ऐसा बढ़ाया कि योना के सिर पर छाया हो . . . योना उस रेंड़ के पेड़ के कारण बहुत ही आनन्दित हुआ।” लेकिन योना की ख़ुशी पल-भर के लिए थी क्योंकि वह पेड़ जल्द ही सूख गया। इस परेशानी के कारण योना का “क्रोध भड़का।” यहोवा ने अपनी बात पर ज़ोर दिया। उसने कहा: “रेंड़ के पेड़ के लिये . . . तू ने तरस खाई है। फिर यह बड़ा नगर नीनवे, जिस में एक लाख बीस हजार से अधिक मनुष्य हैं जो अपने दहिने बाएं हाथों का भेद नहीं पहिचानते, और बहुत घरैलू पशु भी उस में रहते हैं, तो क्या मैं उस पर तरस न खाऊं?”—योना ४:६, ७, ९-११.
१९. किस प्रकार की आत्म-केंद्रित विचारधारा से हम दूर रहना चाहेंगे?
१९ योना का तर्क कितना आत्म-केंद्रित था! वह एक पेड़ के लिए तरस खा सकता था, लेकिन उसे नीनवे के लोगों पर रत्ती-भर तरस नहीं आया—उन लोगों के लिए जो आध्यात्मिक रीति से कहा जाए तो ‘अपने दहिने बाएं हाथों का भेद नहीं पहिचानते थे।’ इसी तरह हम भी इस दुष्ट संसार के विनाश की शायद लालसा करें और यह सही है! (२ थिस्सलुनीकियों १:८) लेकिन इंतज़ार करने के साथ-साथ, हमें उन सत्हृदयी लोगों की मदद करने की ज़िम्मेदारी है, जो आध्यात्मिक रूप से कहें तो ‘अपने दहिने बाएं हाथों का भेद नहीं पहिचानते।’ (मत्ती ९:३६; रोमियों १०:१३-१५) ज़्यादा से ज़्यादा लोगों को यहोवा का मूल्यवान ज्ञान पाने में मदद करने के लिए क्या आप शेष बचे थोड़े समय का इस्तेमाल करेंगे? किसी को जीवन पाने में मदद करने के काम से बढ़कर और क्या ख़ुशी की बात होगी?
“मन की स्थिरता” के साथ जीना जारी रखिए
२०, २१. (क) आनेवाले दिनों में, कौन-से कुछ तरीक़े हैं जिनसे हम “मन की स्थिरता” दिखा सकते हैं? (ख) “मन की स्थिरता” के साथ जीने से कौन-सी आशिषें मिलेंगी?
२० जैसे-जैसे शैतान की व्यवस्था विनाश की ओर लुढ़कना जारी रखती है, हमारे सामने निश्चित ही नई चुनौतियाँ आएँगी। २ तीमुथियुस ३:१३ पूर्वबताता है: “दुष्ट, और बहकानेवाले धोखा देते हुए, और धोखा खाते हुए, बिगड़ते चले जाएंगे।” लेकिन “निराश होकर हियाव न” छोड़िए। (इब्रानियों १२:३) सामर्थ के लिए यहोवा पर निर्भर रहिए। (फिलिप्पियों ४:१३) लचीला होना सीखिए, पिछली बातों पर विचार करते रहने के बजाय, इन बदतर होते हालात के अनुसार ढलना सीखिए। (सभोपदेशक ७:१०) व्यावहारिक बुद्धि का प्रयोग कीजिए और “विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास” द्वारा दिए गए निर्देशनों के अनुसार चलिए।—मत्ती २४:४५-४७.
२१ कितना समय बाकी बचा है हम नहीं जानते। फिर भी, हम विश्वास के साथ कह सकते हैं कि “सब बातों का अंत निकट आ गया है।” जब तक अंत आता है, दूसरों के साथ अपने व्यवहार में, जिस तरीक़े से हम अपने परिवार की देख-भाल करते हैं और अपनी लौकिक ज़िम्मेदारियों के संबंध में आइए हम “मन की स्थिरता” के साथ जीएँ। ऐसा करने से, हम सभी यह विश्वास रख सकते हैं कि हम अंततः “शान्ति में निष्कलंक और निर्दोष” पाये जाएँगे!—२ पतरस ३:१४, NHT.
[फुटनोट]
a उदाहरण के लिए अमरीका में, अनेक लोग स्वास्थ्य बीमा करवाते हैं हालाँकि ऐसा करना आगे चलकर महँगा पड़ता है। कुछ साक्षी परिवारों ने पाया है कि अमुक डॉक्टर अरक्तीय विकल्पों पर ग़ौर करने के लिए तब ज़्यादा इच्छुक होते हैं जब परिवार का स्वास्थ्य-बीमा होता है। अनेक चिकित्सक निश्चित बीमा योजनाओं या सरकारी स्वास्थ्य बीमा के अंतर्गत अनुमानित पैसा लेना स्वीकार करेंगे।
b एक व्यक्ति घर पर शिक्षा लेना चाहता है या नहीं यह एक व्यक्तिगत मामला है। अप्रैल ८, १९९३ की सजग होइए! (अंग्रेज़ी) का लेख “घर पर शिक्षा—क्या यह आपके लिए है?” देखिए।
पुनर्विचार के मुद्दे
◻ अपने व्यक्तिगत संबंधों में हम “मन की स्थिरता” कैसे दिखा सकते हैं?
◻ अपनी पारिवारिक ज़िम्मेदारी की देखभाल करने में हम संतुलन कैसे दिखा सकते हैं?
◻ अपने बच्चों की लौकिक शिक्षा में माता-पिता को दिलचस्पी क्यों लेनी चाहिए?
◻ बारूक और योना से हम कौन-से सबक़ सीखते हैं?
[पेज 18 पर तसवीर]
जब एक पति-पत्नी एक दूसरे से बुरा सलूक करते हैं तो वे यहोवा के साथ अपना रिश्ते को कमज़ोर बनाते हैं
[पेज 20 पर तसवीर]
माता-पिता को अपने बच्चों की शिक्षा में दिलचस्पी लेनी चाहिए