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  • कुख़्यात “वेश्‍या” उसका विनाश
    प्रहरीदुर्ग—1989 | मई 1
    • १. बड़ी वेश्‍या ने “पृथ्वी के राजाओं” के साथ किस तरह व्यभिचार किया है, और इसका परिणाम क्या हुआ है?

      हम जो कुछ भी विचार-विमर्श करते आए हैं, वह काफ़ी गंभीर है। परंतु, हमें ग़ौर करना चाहिए कि प्रकाशितवाक्य १७:२ “पृथ्वी के राजाओं” के साथ बड़ी वेश्‍या के व्यभिचार के विषय भी बताता है। हालाँकि उसका पतन हुआ है, वह अब भी काफ़ी हद तक इस संसार की सहेली है, और वह अपने उद्देश्‍यों को पूरा करने के लिए सांसारिक शासकों से चालबाज़ी से काम निकालने की कोशिश करती है। (याकूब ४:४) बड़ी बाबेलोन और राजनीतिक शासकों के बीच नाजायज़ संबंधों से बननेवाली इस आत्मिक वेश्‍यावृत्ति के फलस्वरूप करोड़ों निर्दोष लोगों को बेवक्‍त मौत के घाट उतारा गया है। यह पर्याप्त मात्रा में बुरा था ही कि बड़ी वेश्‍या विश्‍व युद्ध I में, लड़ाई के दोनों पक्ष में अंतर्ग्रस्त थी। लेकिन विश्‍व युद्ध II से संबंधित उसके पाप निश्‍चय ही “स्वर्ग तक पहुँच गए हैं”! (प्रकाशितवाक्य १८:५) हम ऐसा क्यों कहते हैं?

      २. (अ)फ्रांज़ फ़ॉन पापेन ने आडॉल्फ हिट्‌लर को जर्मनी का शासक बनने की मदद किस तरह की, और पहले के जर्मन चांसलर ने उस पेपल सामंत का वर्णन किस तरह किया? (ब) नाट्‌ज़ी सरकार और वैटिकन के बीच की धर्मसन्धि में, कौनसे दो खण्डवाक्य गुप्त रखे गए? (फुटनोट देखें.)

      २ ख़ैर, एक उदाहरण के तौर पर, अत्याचारी ॲडोल्फ हिट्‌लर जर्मनी का चांसलर​—और तानाशाह​—किस तरह बन गया? यह एक पेपल सामंत के राजनीतिक षड्यंत्र के ज़रिए हुआ, जिसका वर्णन पूर्वगामी जर्मन चांसलर, कुर्त फ़ॉन श्‍लाइशर ने कुछ इस प्रकार किया कि “वह इस तरीक़े का गद्दार है जिसके सामने यहूदा इसकरियोती भी एक संत नज़र आता है।” यह फ्रांज़ फ़ॉन पापेन था, जिसने हिट्‌लर के नीचे साम्यवाद का विरोध और जर्मनी को एक कर देने के लिए कैथोलिक ॲक्शन (एक गुट) और उद्योग में के सर्वप्रमुख व्यक्‍तियों को संघबद्ध किया। विश्‍वासघात के सौदे के अनुसार, फ़ॉन पापेन को उप-चांसलर बना दिया गया। हिट्‌लर ने फ़ॉन पापेन के नेतृत्त्व में एक प्रतिनिधि-मण्डल को नाट्‌ज़ी सरकार और वैटिकन के बीच एक धर्मसन्धि की व्यवस्था करने के लिए रोम भेज दिया। पोप पायस XI ने जर्मन उपराजदूतों को बताया कि वह कितना खुश था कि “अब जर्मन सरकार के अध्यक्ष-स्थान पर एक ऐसा आदमी है जो अटल रूप से साम्यवाद के विरुद्ध है,” और जुलाई २०, १९३३ के रोज़, वैटिकन में एक विस्तृत समारोह में, कार्डिनल पाचेल्ली ने (जो जल्द ही पोप पायस XII बननेवाला था), धर्मसन्धि पर हस्ताक्षर किया।a

      ३. (अ)एक इतिहासकार ने नाट्‌ज़ी सरकार और वैटिकन के बीच की धर्मसन्धि के बारे में क्या लिखा? (ब) वैटिकन में आयोजित उत्सवों के दौरान, फ्रांज़ फ़ॉन पापेन को क्या सम्मान प्रदान किया गया? (क) फ्रांज़ फ़ॉन पापेन ने ऑस्ट्रिया के नाट्‌ज़ी अधीनीकरण में क्या भूमिका अदा की?

      ३ एक इतिहासकार लिखता है: “[वैटिकन के साथ] की धर्मसन्धि हिट्‌लर के लिए एक बड़ी जीत थी। इस से उसे बाहरी दुनिया से प्राप्त पहला नैतिक अनुमोदन मिला, और वह भी एक बहुत ही गौरवशाली सूत्र से।” वैटिकन में हो रहे उत्सवों के दौरान, पाचेल्ली ने फ़ॉन पापेन को पायस के धर्मसंघ के ग्रैन्ड क्रॉस का उच्च पेपल पदक प्रदान किया।b १९४८ में छपी, अपनी किताब, बढ़नेवाली आँधी (द गॅद्‌रिंग स्टॉर्म) में, विंस्टन चर्चहिल बताता है कि फ़ॉन पापेन ने आगे किस तरह ऑस्ट्रिया के नाट्‌ज़ी अधीनीकरण के लिए चर्च का समर्थन हासिल करने “एक अच्छे कैथोलिक के तौर पर अपने नाम” का उपयोग किया। १९३८ में, हिट्‌लर के जन्मदिन के सम्मानार्थ, कार्डिनल इन्‍निट्‌ज़र ने आदेश दिया कि सभी ऑस्ट्रियायी चर्चें स्वस्तिका ध्वज फहराए, अपने घण्टे बजाए, और नाट्‌ज़ी तानाशाह के लिए प्रार्थना करे।

      ४, ५. (अ) वैटिकन के सिर पर रक्‍तपात का एक घोर अपराध क्यों है? (ब) जर्मन कैथोलिक बिशपों ने हिट्‌लर को खुला समर्थन कैसे दिया?

      ४ इसीलिए वैटिकन के मत्थे रक्‍तपात का भारी अपराध बना रहता है! बड़ी बाबेलोन का एक प्रमुख हिस्सा होने के नाते, इसने हिट्‌लर को सत्ता दिलाने में और उसे “नैतिक” समर्थन देने में अर्थपूर्ण रूप से मदद की। हिट्‌लर की नृशंसता को मौन रूप से सहमति देकर वैटिकन और आगे गया। नाट्‌ज़ी आतंक के उस दीर्घ दशक के दौरान, जब लाखों कैथोलिक सैनिक नाट्‌ज़ी शासन का गौरव कायम रखने के लिए लड़ और मर रहे थे और जब करोड़ों अन्य अभागे लोग हिट्‌लर के गैस कमरों में परिसमाप्त किए जा रहे थे, तब भी रोमी धर्मगुरु चुप रहा।

      ५ जर्मन कैथोलिक बिशपों ने हिट्‌लर को खुला समर्थन भी दिया। जिस दिन जापान, उस समय जर्मनी के युद्धकालीन साझेदार, ने पर्ल हार्बर पर चोरी-छिपे आक्रमण किया, उसी दिन द न्यू यॉर्क टाइमस्‌ में यह रिपोर्ट छपी गयी थी: “फुलडा में एकत्र हुए जर्मन कैथोलिक बिशपों के कांफ़रेन्स ने सभी दैवी अनुष्ठान के आरंभ और अंत में पढ़े जाने के लिए एक ख़ास ‘युद्ध प्रार्थना’ के प्रवर्तन की सिफ़ारिश की है। प्रार्थना में जर्मन हथियार को विजय-प्राप्ति की आशीष देने और सभी सैनिकों की जानें और स्वास्थ्य की रक्षा करने के लिए ईश्‍वर से याचना की जाती है। इस के अतिरिक्‍त बिशपों ने कैथोलिक पादरियों को सीखाया कि वे महीने में कम से कम एक बार एक ख़ास इतवार-प्रवचन रखें जिस में वे ‘ज़मीन पर, समुद्र पर, और आकाश में’ के जर्मन सैनिकों को याद करें।”

      ६. अगर वैटिकन और नाट्‌ज़ियों के बीच कोई आत्मिक व्यभिचार न होता तो दुनिया शायद कौनसी बड़ी व्यथा और अत्याचार से बची होती?

      ६ यदि वैटिकन और नाट्‌ज़ियों के बीच कोई प्रणय संबंध नहीं होते, तो शायद यह दुनिया, युद्ध में कई बीसियों करोड़ सैनिक और असैनिक लोगों की हत्या की, तथा ग़ैर-आर्य होने की वजह से साठ लाख यहूदियों के खून की, और​—यहोवा की नज़रों में सबसे क़ीमती​—दोनों अभिषिक्‍त और “अन्य भेड़” वर्ग के उसके हज़ारों गवाहों के, जिन में से कई गवाह नाट्‌ज़ी नज़रबंदी शिबिरों में मरे, बड़े अत्याचार सहने की घोर यंत्रणा से बची गयी होती।​—यूहन्‍ना १०:१०, १६.

  • कुख़्यात “वेश्‍या” उसका विनाश
    प्रहरीदुर्ग—1989 | मई 1
    • [पेज 11 पर बक्स]

      पोप की ख़मोशी

      एच. डब्ल्यू. ब्लड्‌-रायन अपनी किताब फ्रांज़ फ़ॉन पापेन​—उसका जीवन और कालावधि में, जो १९३९ में प्रकाशित हुई, उन साज़िशों का ब्योरेवार वर्णन करता है, जिन के ज़रिए उस पेपल सामंत ने हिट्‌लर को सत्ताधिकार दिला दिया और नाट्‌ज़ियों के साथ वैटिकन की धर्मसन्धि का प्रबंध किया। वे भयानक हत्याकांड, जिन में यहूदी, यहोवा के गवाह, और अन्यों का समावेश था, उन के संबंध में लेखक कहता है: “पाच्चेली [पोप पायस XII] क्यों ख़ामोश रहा? इसलिए कि पश्‍चिमी जर्मन लोगों के एक पवित्र रोमी साम्राज्य के लिए फ़ॉन पापेन की योजना में, उसने भविष्य में फिर से लौकिक सत्ता का आसन धारण किए हुए वैटिकन के साथ साथ, एक ज़्यादा प्रभावशाली कैथोलिक चर्च की कल्पना की। . . . वही पाच्चेली अब आत्मिक तानाशाही का अधिकार जता रहा है, फिर भी हिट्‌लर-से आक्रमण और उत्पीड़न पर ज़रा सी भी आवाज़ नहीं उठी है। . . . जैसे मैं ये पंक्‍तियाँ लिखता हूँ, हत्याकाण्ड के तीन दिन गुज़रें हैं, और अब तक प्रतियोगियों, जिन के लगभग आधे लोग कैथोलिक हैं, उन के प्राणों के लिए वैटिकन के मुँह से एक भी प्रार्थना नहीं निकली है। जब ये आदमी, अपनी सारी पार्थीव प्रभावकारिता से वंचित होकर अपने परमेश्‍वर, जो हिसाब माँगेगा, के सामने खड़ा होंगे, तब का लेखा-जोखा डरावना होगा। उनका बहाना क्या हो सकता है? कुछ नहीं!”

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