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पढ़ने में ध्यान लगाए रहपरमेश्वर की सेवा स्कूल से फायदा उठाइए
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पढ़ने में ध्यान लगाए रह
दुनिया के हर 6 में से 1 इंसान को पढ़ना नहीं आता, क्योंकि उसे कभी स्कूल जाने का मौका ही नहीं मिला। और जो लोग पढ़ सकते हैं, वे भी विरले ही कोई किताब या कुछ और पढ़ते हैं। पढ़ सकना एक ऐसी काबिलीयत है, जिसकी मदद से आप किताबों के ज़रिए देश-विदेश की सैर कर सकते हैं, ऐसे लोगों से मिल सकते हैं जिनकी ज़िंदगी के बारे में जानकर आपकी ज़िंदगी सँवर सकती है, और ऐसा ज्ञान हासिल कर सकते हैं जो समस्याओं का सामना करने में आपकी मदद कर सकता है।
आप अपने बच्चों को अच्छी किताबें पढ़कर सुनाइए, इससे उन्हें बड़े होकर अच्छे इंसान बनने में मदद मिलेगी
स्कूल में एक बच्चा जितनी अच्छी तरह पढ़ेगा, उतना ही उसे स्कूल से फायदा होगा। बड़ा होने पर उसे किस किस्म की नौकरी मिलेगी और गुज़र-बसर के लिए उसे कितने घंटे काम करना पड़ेगा, यह भी काफी हद तक उसकी पढ़ने की काबिलीयत पर निर्भर करता है। जिन गृहणियों में पढ़ने की आदत होती है, वे अपने परिवार की अच्छी देखभाल कर पाती हैं। वे पौष्टिक खाना तैयार करने, साफ-सफाई का खयाल रखने और अपने परिवार का बीमारी से बचाव करने में काबिल होती हैं। जो माताएँ पढ़ने की शौकीन होती हैं, उनके बच्चों के दिमागी विकास पर भी इसका काफी अच्छा असर होता है।
मगर हाँ, पढ़ाई से मिलनेवाला सबसे बड़ा फायदा यह है कि आप इसके ज़रिए ‘परमेश्वर का ज्ञान प्राप्त’ कर सकते हैं। (नीति. 2:5) परमेश्वर की सेवा में पढ़ने की काबिलीयत बहुत काम आती है। मसीही सभाओं में बाइबल और उसकी समझ देनेवाली किताबें-पत्रिकाएँ पढ़ी जाती हैं। प्रचार काम में आप कितने असरदार हैं, यह भी काफी हद तक इस बात पर निर्भर करता है कि आप किस तरीके से पढ़ते हैं। सभाओं और प्रचार की तैयारी करने के लिए भी आपको पढ़ने की ज़रूरत होती है। तो फिर, आप कितनी आध्यात्मिक उन्नति कर पाएँगे, यह काफी हद तक इस बात पर निर्भर है कि पढ़ने की आपकी आदतें कैसी हैं।
मौके का फायदा उठाइए
दूसरों को पढ़कर सुनाते वक्त लिखे हुए विचारों और भावनाओं को व्यक्त करना सीखिए
आज जो लोग परमेश्वर के मार्गों को सीख रहे हैं उनमें से कुछ, बहुत कम पढ़े-लिखे हैं। उन्हें पढ़ना-लिखना सिखाने की ज़रूरत हो सकती है ताकि वे आध्यात्मिकता में और ज़्यादा तरक्की कर सकें। या हो सकता है कि उन्हें पढ़ने की अपनी काबिलीयत बढ़ाने के लिए किसी से खास मदद की ज़रूरत पड़े। कुछ कलीसियाएँ अपने इलाके की ज़रूरत के हिसाब से ऐसी क्लासें रखती हैं जिनमें पढ़ना-लिखना सिखाया जाता है। इस इंतज़ाम से हज़ारों लोगों को फायदा हुआ है। इस बात को मद्देनज़र रखते हुए कि ठीक से पढ़ना कितना ज़रूरी है, कुछ कलीसियाएँ मसीही सेवा स्कूल के साथ-साथ पढ़ाई-सुधार क्लासें चलाती हैं। लेकिन जिन कलीसियाओं में ऐसी क्लासों का इंतज़ाम नहीं है, वहाँ के भाई-बहन भी अगर हर दिन कुछ वक्त निकालकर अपने आप ज़ोर से पढ़ें और मसीही सेवा स्कूल में हर हफ्ते हाज़िर होकर उसमें भाग लें, तो वे अच्छी तरक्की कर सकते हैं।
अफसोस की बात है कि आज बहुत-से लोग, कॉमिक्स और टी.वी. जैसी चीज़ों की तरफ इतने आकर्षित हो चुके हैं कि अब किताबों में उनकी कोई दिलचस्पी नहीं रही। जो लोग टी.वी. ज़्यादा देखते हैं और किताबें कम पढ़ते हैं, वे पढ़ने की कला नहीं बढ़ा पाते, और उनके सोचने, तर्क करने और ठीक से अपनी बात कहने की क्षमता में रुकावट आ जाती है।
जिन किताबों और पत्रिकाओं की मदद से हमें बाइबल की बातें समझ में आती हैं, उन्हें “विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास” ने तैयार किया है। इनमें बहुत ही ज़रूरी आध्यात्मिक सच्चाइयों का भंडार है। (मत्ती 24:45; 1 कुरि. 2:12, 13) इसके अलावा, ये हमें संसार के बदलते हालात की ताज़ा जानकारी देती हैं और बताती हैं कि यह हमारे लिए क्या मायने रखते हैं। ये हमें सृष्टि से वाकिफ कराती हैं और सिखाती हैं कि ज़िंदगी की समस्याओं का कैसे सामना किया जा सकता है। इन सबसे बढ़कर, ये सिखाती हैं कि परमेश्वर के बताए तरीके से उसकी सेवा कैसे की जाए और उसकी मंज़ूरी कैसे पाएँ। अगर आप इस तरह के अच्छे विषय पढ़ेंगे तो आप एक आध्यात्मिक इंसान बन सकेंगे।
लेकिन अच्छी तरह पढ़ना आना अपने-आप में एक बड़ी बात नहीं है। इस काबिलीयत का सही इस्तेमाल भी किया जाना चाहिए। जिस तरह हम अपने खाने की चीज़ें चुन-चुनकर खरीदते हैं, उसी तरह यह ज़रूरी है कि हम पढ़ने के लिए सही किताबें चुनें। ऐसा भोजन क्यों खाना, जिसमें कोई पौष्टिक तत्व न हो, या जो आपकी जान ही ले ले? उसी तरह ऐसी किताबें भी क्यों पढ़ें जो आपके दिलो-दिमाग को भ्रष्ट कर सकती हैं, फिर चाहे आप इन्हें सिर्फ मन-बहलाने के लिए ही क्यों न पढ़ें? कौन-सी किताबें पढ़नी चाहिए और कौन-सी नहीं, यह बाइबल के सिद्धांतों के आधार पर तय करना चाहिए। इसलिए किताबें चुनते वक्त, ऐसी आयतों को ध्यान में रखिए, जैसे सभोपदेशक 12:12, 13; इफिसियों 4:22-24; 5:3, 4; फिलिप्पियों 4:8; कुलुस्सियों 2:8; 1 यूहन्ना 2:15-17; और 2 यूहन्ना 10.
सही मंशा के साथ पढ़िए
सुसमाचार की किताबों का गहराई से अध्ययन करने पर यह साफ ज़ाहिर हो जाता है कि पढ़ने के साथ-साथ सही मंशा का होना बहुत ज़रूरी है। मत्ती की किताब पर ध्यान दीजिए। वहाँ हम उन धर्मगुरुओं के बारे में पढ़ते हैं जो व्यवस्था के ज्ञानी थे, मगर यीशु को फँसाने के इरादे से उससे छल भरे सवाल पूछते थे। लेकिन यीशु, परमेश्वर के वचन से उन्हें जवाब देने से पहले पूछता था: “क्या तुम ने नहीं पढ़ा?” और “क्या तुम ने यह कभी नहीं पढ़ा?” (मत्ती 12:3, 5; 19:4; 21:16, 42; 22:31) धर्मगुरुओं की मिसाल से हम यह सबक सीखते हैं कि अगर हमारी मंशा सही नहीं होगी, तो हम या तो आयतों का गलत मतलब निकालेंगे या उनका मतलब समझेंगे ही नहीं। फरीसी इसलिए शास्त्र पढ़ते थे क्योंकि उनका मानना था कि वे इसके ज़रिए हमेशा की ज़िंदगी के हकदार बन सकते हैं। लेकिन जैसा यीशु ने समझाया, हमेशा की ज़िंदगी का इनाम ऐसे लोगों को नहीं मिलेगा जो ना तो परमेश्वर से प्रेम करते हैं और ना ही उसके उद्धार के इंतज़ाम को कबूल करते हैं। (यूह. 5:39-43) फरीसी स्वार्थी थे और उनकी मंशा सही नहीं थी, इसलिए शास्त्र की उनकी समझ बिगड़ी हुई थी।
यहोवा का वचन पढ़ने की सबसे पवित्र मंशा है, उसके लिए दिल में प्रेम होना। यह प्रेम हमें परमेश्वर की मरज़ी जानने के लिए उकसाएगा क्योंकि प्रेम “सत्य से आनन्दित होता है।” (1 कुरि. 13:6) हो सकता है हम शुरू से ही पढ़ने के शौकीन न हों, लेकिन अगर हम अपने “सारे मन” से यहोवा को प्यार करते हैं, तो हम मन लगाकर, जी-जान से उसका ज्ञान हासिल करने की कोशिश करेंगे। (मत्ती 22:37) यहोवा के लिए प्यार हमारे अंदर उसे जानने की दिलचस्पी पैदा करेगा और यह दिलचस्पी हमें उसके बारे में सीखने के लिए उकसाएगी।
सही रफ्तार से पढ़िए
पढ़ने का संबंध शब्दों को पहचानने से है। इस वक्त आप यही कर रहे हैं, आप शब्दों को पहचान रहे हैं और उनका मतलब भी आपके ध्यान में आता जा रहा है। अगर आप पढ़ने की रफ्तार बढ़ाना चाहते हैं, तो आपको एक नज़र में एक-से-ज़्यादा शब्द पहचानने की कोशिश करनी होगी। एक-एक शब्द को रुककर देखने के बजाय एक-साथ कई शब्दों को देखिए और पढ़ने की कोशिश कीजिए। जैसे-जैसे आप इसमें सुधार करते जाएँगे, आप पाएँगे कि आप जो पढ़ते हैं, वह आपको ज़्यादा अच्छी तरह समझ में आने लगा है।
अगर परिवार के सदस्य साथ मिलकर पढ़ें, तो उनकी एकता मज़बूत होगी
लेकिन जब आप किसी गूढ़ विषय के बारे में पढ़ते हैं, तो उसकी ज़्यादा-से-ज़्यादा समझ हासिल करने के लिए आपको पढ़ने का एक अलग तरीका अपनाना होगा। वह तरीका क्या है? गौर कीजिए कि यहोवा ने यहोशू को शास्त्र पढ़ने के बारे में क्या सलाह दी। यहोवा ने उससे कहा: “व्यवस्था की यह पुस्तक तेरे चित्त से कभी न उतरने पाए, इसी में . . . ध्यान दिए रहना।” (यहो. 1:8) जब एक इंसान किसी विषय पर गहराई से सोचता या ध्यान देता है, तो वह अकसर धीरे-धीरे कुछ बुदबुदाता है। इसलिए, जिस इब्रानी शब्द का अनुवाद “ध्यान” देना किया गया है, उसी शब्द के लिए कुछ अनुवादों में ‘मंद स्वर में पढ़ना’ अनुवाद किया गया है। (भज. 63:6; 77:12; 143:5) जी हाँ, जब कोई पढ़ते वक्त ध्यान देता है, तो वह गहराई से सोचता या मनन करता है, फटाफट पढ़ता नहीं जाता। परमेश्वर का वचन पढ़ते वक्त अगर आप साथ-साथ मनन भी करेंगे, तो आपके दिल और दिमाग पर इसका ज़्यादा गहरा असर होगा। बाइबल की भविष्यवाणियाँ, सलाह, नीतिवचन, कविताएँ, यहोवा के न्याय के संदेश, उसके मकसद के बारे में ब्योरेवार जानकारी और लोगों की ज़िंदगी की ढेरों सच्ची मिसालें, ऐसे लोगों के लिए अनमोल खज़ाना हैं जो यहोवा के मार्गों पर चलना चाहते हैं। इसलिए बाइबल को इस तरह पढ़ना कितना फायदेमंद होगा ताकि यह आपके दिल और दिमाग पर एक गहरी छाप छोड़ जाए!
ध्यान लगाना सीखिए
आपकी आध्यात्मिक उन्नति काफी हद तक आपके पढ़ने की आदत पर निर्भर करती है
जब आप किसी घटना के बारे में पढ़ रहे हैं, तो कल्पना कीजिए कि आप भी वहाँ मौजूद हैं और सबकुछ अपनी आँखों से देख रहे हैं। किरदारों की ज़िंदगी में क्या-क्या हो रहा है, वे किन भावनाओं से गुज़र रहे हैं, आप भी उसे महसूस करने की कोशिश कीजिए। हो सकता है कि पहला शमूएल के 17 अध्याय में दाऊद और गोलियत के किस्से और ऐसे ही दूसरे किस्सों को पढ़ते वक्त यह करना ज़्यादा आसान लगे। लेकिन अगर आप निर्गमन और लैव्यव्यवस्था में निवासस्थान के निर्माण और याजकवर्ग के इंतज़ाम की शुरूआत के बारे में दी गयी बारीकियाँ पढ़ते वक्त भी यही तरीका अपनाएँ, तो आपकी पढ़ाई में जान आ सकती है। आप निवासस्थान के तंबू की लंबाई-चौड़ाई और याजकों द्वारा इस्तेमाल की गयी सामग्रियों की मन-ही-मन तसवीर बनाइए। साथ ही, बलिदान में चढ़ाए जानेवाले धूप, भुने हुए अन्न और जानवरों की होमबलि से निकलनेवाली खुशबू की कल्पना कीजिए। सोचिए कि जब याजक तंबू में सेवा करते थे, तो उनमें कैसी श्रद्धा और विस्मय की भावना होती होगी! (लूका 1:8-10) इस तरह पढ़ते वक्त अपनी इंद्रियों का इस्तेमाल करने और भावनाओं को महसूस करने से, आप जो पढ़ रहे हैं उसकी अहमियत समझ पाएँगे और उसे याद रख पाएँगे।
लेकिन अगर आप पढ़ते वक्त ध्यान न दें, तो आपका मन भटक सकता है। आपकी नज़र पेज पर ही होगी, मगर मन कहीं और होगा। क्या कमरे में संगीत बज रहा है? क्या टी.वी. चल रहा है? क्या घर के लोग बातें कर रहे हैं? अच्छा होगा अगर आप एक शांत जगह पर बैठकर पढ़ाई करें। मगर हाँ, यह भी हो सकता है कि आपका ध्यान भटकने की वजह खुद आप हों। शायद आपने दिन भर काफी भाग-दौड़ की हो। उफ, सुबह से लेकर शाम तक हुई एक-एक बात आपको याद आती जाती है! दिन-भर जो कुछ हुआ, उसे याद करना वैसे तो अच्छी बात है, मगर यह पढ़ते वक्त नहीं करना चाहिए। शायद जब आप पढ़ने बैठते हैं, तो शुरू में आपका ध्यान पढ़ाई पर लगा रहता है या हो सकता है, आप प्रार्थना करके अपनी पढ़ाई शुरू करते हों। लेकिन धीरे-धीरे आप पाते हैं कि आपका दिमाग सैर पर निकलने लगता है। ऐसे में दोबारा कोशिश कीजिए। आप जो पढ़ रहे हैं, उसी पर ध्यान लगाए रखने के लिए अपने साथ सख्ती बरतिए। ऐसा करने से आप धीरे-धीरे सुधार कर पाएँगे।
पढ़ते वक्त अगर आपको कोई मुश्किल शब्द मिलता है, तो आप क्या करते हैं? कुछ कठिन शब्दों की परिभाषा या उनके बारे में जानकारी आपको शायद लेख में ही मिल जाए। या हो सकता है कि आस-पास के वाक्य पढ़कर आप उन शब्दों का मतलब समझ जाएँ। लेकिन अगर आपको मतलब नहीं मालूम, तो शब्दकोश या डिक्शनरी में उनका मतलब ज़रूर ढूँढ़िए। और अगर आपके पास शब्दकोश नहीं है, तो उन शब्दों पर निशान लगाकर रखिए ताकि आप बाद में किसी और से उनका मतलब पूछ सकें। ऐसा करने से आपका शब्द-ज्ञान बढ़ेगा और पढ़ते वक्त आपकी समझने की शक्ति बढ़ेगी।
लोगों के सामने पढ़कर सुनाना
दूसरों को पढ़कर सुनाने में ध्यान लगाए रहिए
जब प्रेरित पौलुस ने तीमुथियुस को बताया कि वह पढ़ने में ध्यान लगाए रह, तो वह खासकर दूसरों को पढ़कर सुनाने के बारे में बात कर रहा था। (1 तीमु. 4:13, हिन्दुस्तानी बाइबल) दूसरों के लिए अच्छी तरह पढ़ने का मतलब सिर्फ शब्दों को ज़ोर-ज़ोर से पढ़कर सुना देना नहीं है। पढ़नेवाले को शब्दों का मतलब और उनमें ज़ाहिर किए गए विचारों को समझना चाहिए। तभी वह पढ़ते समय लिखे हुए विचारों और भावनाओं को सही-सही ज़ाहिर कर पाएगा। मगर हाँ, इसके लिए पहले से अच्छी तैयारी और अभ्यास की ज़रूरत है। इसीलिए, पौलुस ने यह आग्रह किया था: ‘पढ़ने की तरफ ध्यान लगाए रह।’ (तिरछे टाइप हमारे।) इस काबिलीयत को बढ़ाने में आपको, परमेश्वर की सेवा स्कूल से बेहतरीन तालीम मिलेगी।
पढ़ने के लिए वक्त निकालिए
“परिश्रमी की योजनाएं नि:सन्देह लाभदायक होती हैं, परन्तु प्रत्येक उतावली करने वाला निश्चय ही दरिद्रता में फंस जाता है।” (नीति. 21:5, NHT) यह बात पढ़ने की हमारी ख्वाहिश के बारे में भी कितनी सच है! पढ़ाई से ‘लाभ’ पाने के लिए हमें पूरी लगन और सूझ-बूझ के साथ योजना बनानी चाहिए, तभी हमारे दूसरे काम, पढ़ने के वक्त में बाधा नहीं बनेंगे।
आप कब पढ़ते हैं? क्या आपको सवेरे-सवेरे पढ़ना ज़्यादा फायदेमंद लगता है? या क्या आप दोपहर के वक्त पढ़ने में अच्छी तरह ध्यान दे पाते हैं? अगर आप दिन में पढ़ाई के लिए सिर्फ 15 या 20 मिनट का समय भी निकालेंगे, तो आप इतना कुछ पढ़ पाएँगे कि आप दंग रह जाएँगे। इसमें कामयाबी का राज़ है, बिना नागा पढ़ना।
यहोवा ने अपने महान उद्देश्यों को एक किताब में दर्ज़ करवाने का चुनाव क्यों किया? इसलिए ताकि लोग उसके लिखित वचन को पढ़ सकें। उसे पढ़कर ही वे यहोवा के आश्चर्यकर्मों से वाकिफ होते हैं, उनके बारे में अपने बच्चों को बता पाते हैं और परमेश्वर के बड़े-बड़े कामों को याद रख पाते हैं। (भज. 78:5-7) यहोवा ने हमें अपना जीवनदायी वचन देकर जो दरियादिली दिखाई है, उसके लिए अपनी कदरदानी दिखाने का सबसे बढ़िया तरीका है, उस वचन को मन लगाकर पढ़ना।
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अध्ययन करने से ढेरों आशीषें मिलती हैंपरमेश्वर की सेवा स्कूल से फायदा उठाइए
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अध्ययन करने से ढेरों आशीषें मिलती हैं
क्या आपने कभी लोगों को फल खरीदते देखा है? यह पता लगाने के लिए कि फल पक चुका है या नहीं, ज़्यादातर लोग उसके रंग और आकार को देखते हैं। कई उसे सूँघते हैं। कुछ लोग छूकर, तो कुछ दबाकर देखते हैं। और कई एक-एक फल को हाथों में लेकर अंदाज़ा लगाने की कोशिश करते हैं कि इनमें कौन-सा ज़्यादा वज़नदार और रस से भरा है। इस वक्त उन सभी के दिमाग में क्या चल रहा है? वे फलों के बारे में हर छोटी-छोटी बात की जाँच-परख कर रहे हैं। फलों के बीच फर्क देख रहे हैं, याद कर रहे हैं कि पिछली बार उन्होंने जो फल खरीदे थे, उसके मुकाबले ये कैसे हैं। उन्होंने ध्यान से चुनने और जाँचने-परखने में जो इतना वक्त लगाया है, इस मेहनत का फल ज़रूर मीठा निकलेगा।
मगर, परमेश्वर के वचन का अध्ययन करने में हम जो मेहनत करते हैं, उसके फायदे इस रस भरी दावत से भी कई गुना ज़्यादा हैं। जब बाइबल अध्ययन की हमारी ज़िंदगी में एक अहम जगह होती है, तो हमारा विश्वास मज़बूत होता है, हमारा प्यार और गहरा होता है, हम प्रचार में ज़्यादा निपुण होते हैं और हम जो फैसले करते हैं उनसे ज़ाहिर होता है कि हममें समझ और परमेश्वर की बुद्धि है। ये सारी आशीषें कितनी अनमोल हैं, इनके बारे में नीतिवचन 3:15 कहता है: “जितनी वस्तुओं की तू लालसा करता है, उन में से कोई भी उसके तुल्य न ठहरेगी।” आपको ये आशीषें मिल रही हैं या नहीं, यह काफी हद तक इस बात पर निर्भर करता है कि आप किस तरीके से अध्ययन करते हैं।—कुलु. 1:9, 10.
मनन करने के लिए वक्त निकालिए
अध्ययन क्या होता है? अध्ययन का मतलब सिर्फ ऊपरी तौर पर पढ़ना नहीं है। अध्ययन का मतलब है, अपनी दिमागी शक्ति का इस्तेमाल करके किसी विषय को ध्यान से और वक्त लगाकर बहुत अच्छी तरह जाँचना। अध्ययन में यह भी शामिल है कि आप जो पढ़ रहे हैं, उसकी जाँच-परख करना और आप जो पहले से जानते हैं उसके साथ नयी जानकारी की तुलना करना। साथ ही, जो कहा गया है, उसके लिए दी गयी दलीलों या कारणों पर गौर करना। अध्ययन करते वक्त जब आपको ऐसे कुछ विचार मिलें जो आपके लिए नए हों, तो उन पर गहराई से सोचिए। इसके अलावा, यह भी गौर कीजिए कि आप बाइबल से दी गयी सलाह को और अच्छी तरह कैसे अमल में ला सकते हैं। यहोवा का एक साक्षी होने के नाते आप यह भी ध्यान रखेंगे कि दूसरों की मदद करने के लिए उस जानकारी का कब और कैसे इस्तेमाल कर सकते हैं। इसमें कोई शक नहीं कि बिना मनन के अध्ययन अधूरा है।
अपने मन को सही हालत में लाना
अपने अध्ययन से पूरा लाभ पाने के लिए अपना हृदय तैयार कीजिए
जब आप अध्ययन करने बैठते हैं, तब शायद आप बाइबल, संस्था की कुछ किताबें, पेन या पेंसिल यहाँ तक कि एक नोटबुक साथ रखकर तैयार होते हैं। लेकिन इनके साथ-साथ क्या आपने अपने हृदय को भी तैयार किया है? बाइबल बताती है कि एज्रा ने “यहोवा की व्यवस्था का अर्थ बूझ लेने, और उसके अनुसार चलने, और इस्राएल में विधि और नियम सिखाने के लिये अपना मन लगाया [“अपना हृदय तैयार किया,” NW] था।” (एज्रा 7:10) अपने हृदय को तैयार करने का क्या मतलब है?
जब हम अध्ययन शुरू करने से पहले प्रार्थना करते हैं, तो हम परमेश्वर के वचन का अध्ययन सही मन से शुरू करते हैं। हम चाहते हैं कि यहोवा जो भी हिदायतें दे, वे हमारे अंदर तक यानी हमारे दिल की गहराई तक समा जाएँ। इसलिए जब भी आप अध्ययन करने बैठें, सबसे पहले यहोवा की आत्मा के लिए बिनती कीजिए। (लूका 11:13) आप जिस जानकारी का अध्ययन करने जा रहे हैं, उसका मतलब क्या है? वह यहोवा के मकसद के बारे में क्या बताती है? उसकी मदद से आप भले-बुरे में कैसे फर्क कर सकते हैं? उसमें दिए गए उसूलों को आप अपनी ज़िंदगी में कैसे लागू कर सकते हैं? और उस जानकारी की मदद से यहोवा के साथ आपका रिश्ता कैसे और मज़बूत हो सकता है? इन सब बातों की समझ पाने के लिए यहोवा से गुज़ारिश कीजिए। (नीति. 9:10) अध्ययन करते वक्त ‘परमेश्वर से बुद्धि मांगते रहिए।’ (याकू. 1:5) खुद की जाँच कीजिए कि आपने अध्ययन में जो सीखा है, क्या आप सचमुच उसके मुताबिक चल रहे हैं? साथ ही, यहोवा से प्रार्थना कीजिए कि आपके मन से गलत विचारों या बुरी इच्छाओं को निकाल फेंकने में वह आपकी मदद करे। यहोवा आपको जो सिखाता है, उसके लिए हमेशा उसका “धन्यवाद” कीजिए। (भज. 147:7) इस तरह प्रार्थना में यहोवा की मदद माँगते हुए अध्ययन करने से हम उसके और भी करीब आएँगे, क्योंकि हम वही करते हैं जो यहोवा अपने वचन के ज़रिए हमें बताता है।—भज. 145:18.
यह एक बहुत बड़ा फर्क है कि यहोवा के लोग उसके वचन को स्वीकार करते हैं और उसके मुताबिक चलते हैं, जबकि दुनिया के लोग ऐसा नहीं करते। जिन लोगों में परमेश्वर के लिए भक्ति नहीं, उन्हें बाइबल की लिखी बातों पर शक करने और उसकी सच्चाई पर उँगली उठाने में बड़ा मज़ा आता है। लेकिन हम ऐसा नज़रिया नहीं रखते। हम यहोवा पर पूरा भरोसा रखते हैं। (नीति. 3:5-7) अगर हमें कोई बात समझ नहीं आती, तो हम उतावली में इस नतीजे पर नहीं पहुँच जाते कि ज़रूर यह बात गलत होगी। इसके बजाय हम उसके बारे में खोजबीन करते हैं, गहराई से अध्ययन करते हैं और जवाब पाने के लिए यहोवा के वक्त का इंतज़ार करते हैं। (मीका 7:7) एज्रा की तरह अध्ययन करने में हमारा भी यही मकसद है कि सीखी हुई बातें अपने जीवन में लागू करें और दूसरों को भी सिखाएँ। अगर हमारे मन में ऐसी भावना होगी, तो हम बेशक अपने अध्ययन से ढेरों आशीषें पाएँगे।
अध्ययन करने का तरीका
पहले पैराग्राफ से पढ़ते हुए सीधे आखिरी पैराग्राफ पर खत्म करने के बजाय, पहले पूरे लेख या अध्याय की एक झलक पाने के लिए उस पर एक सरसरी नज़र डालिए। लेख के शीर्षक पर गौर कीजिए। वह शीर्षक ही आपके अध्ययन का विषय होगा। फिर इसके बाद, लेख के उपशीर्षकों को ध्यान से देखिए कि विषय से उनका क्या ताल्लुक है। अगर लेख में समझाने के लिए कुछ तसवीरें, चार्ट या ‘आपने क्या सीखा’ जैसे बक्स दिए गए हैं, तो उन पर गौर कीजिए। फिर खुद से ये सवाल पूछिए: ‘अभी मैंने लेख का जो ऊपरी मुआयना किया, उसके आधार पर मैं इस लेख से क्या सीखने की उम्मीद कर सकता हूँ? यह जानकारी मेरे लिए किस तरह फायदेमंद होगी?’ इससे आपको पता चल जाएगा कि आप क्या सीखने जा रहे हैं।
आपकी भाषा में खोजबीन करने के जो-जो ज़रिए उपलब्ध हैं, उन्हें कैसे इस्तेमाल करें यह जानिए
अब लेख की करीब से जाँच कीजिए। प्रहरीदुर्ग के अध्ययन लेखों और संस्था की दूसरी कुछ किताबों में पैराग्राफ के लिए सवाल भी दिए जाते हैं। इसलिए हर पैराग्राफ को पढ़ने के साथ-साथ उसके जवाबों पर निशान लगाना अच्छा रहता है। जिन लेखों में सवाल नहीं दिए जाते, उनमें भी आप ऐसे खास मुद्दों पर निशान लगा सकते हैं, जिन्हें आप याद रखना चाहेंगे। अगर लेख में दिया कोई विचार आपके लिए नया है, तो उसे अच्छी तरह समझने के लिए उस पर थोड़ा ज़्यादा वक्त लगाइए। इस बात का ध्यान रखिए कि क्या लेख में कुछ ऐसे उदाहरण या ऐसी दलीलें पेश की गयी हैं, जिन्हें आप घर-घर के प्रचार में या अपने आनेवाले भाषण में बता सकते हैं। ऐसे लोगों के बारे में सोचिए जिन्हें आप अध्ययन से सीखी बातें बताकर उनका विश्वास मज़बूत कर सकते हैं। आप जो मुद्दे इस्तेमाल करना चाहते हैं, उन पर निशान लगाइए और अध्ययन खत्म करने के बाद, दोबारा उन पर गौर कीजिए।
लेख में बाइबल की आयतों के हवाले खोलकर पढ़िए। सोचिए कि हर आयत का पूरे पैराग्राफ के साथ क्या संबंध है।
हो सकता है कि अध्ययन करते वक्त आपको कुछ ऐसे मुद्दे मिलें जो फौरन समझ न आएँ, या फिर उनके बारे में और अच्छी तरह खोजबीन करने का आपका मन करे। ऐसे में, अध्ययन छोड़कर उन मुद्दों की खोजबीन में लग जाने के बजाय, उन्हें नोट कर लीजिए और बाद में ज़्यादा खोजबीन कीजिए। अकसर लेख में आगे जाकर उन्हीं मुद्दों को और अच्छी तरह समझाया जाता है। अगर नहीं, तो आप उनके बारे में खोजबीन कर सकते हैं। खोजबीन के लिए आप क्या कुछ नोट कर सकते हैं? जैसे कोई आयत, जो आपको ठीक-ठीक समझ ना आयी हो। या जैसे उस आयत का लेख के विषय से क्या संबंध है। या शायद आपको लगता है कि लेख में दिया विचार आपको समझ तो आया, मगर इतनी अच्छी तरह नहीं कि आप किसी दूसरे को समझा सकें। ऐसे मुद्दों को बस यूँ ही छोड़ देने के बजाय, अध्ययन पूरा होने के बाद उन पर खोजबीन करना अक्लमंदी का काम होगा।
बाइबल की आयतें खोलकर ज़रूर पढ़िए
जब प्रेरित पौलुस ने इब्रानी मसीहियों के नाम एक लंबी, ब्योरेवार पत्री लिखी, तब उसने आधे में रुककर लिखा: “मुख्य बात यह है।” (इब्रा. 8:1, NHT) क्या आप भी अध्ययन के दौरान बीच-बीच में खुद को याद दिलाते हैं कि ये-ये, लेख के मुख्य मुद्दे हैं? गौर कीजिए कि पौलुस ने ऐसा क्यों किया। दरअसल, ईश्वर-प्रेरणा से लिखी अपनी इस चिट्ठी के पिछले अध्यायों में ही उसने यह साबित कर दिया था कि मसीह, परमेश्वर का ठहराया श्रेष्ठ महायाजक है और इस हैसियत से वह स्वर्ग में प्रवेश कर चुका है। (इब्रा. 4:14–5:10; 6:20) अब फिर से, इस मुख्य मुद्दे को अध्याय 8 की शुरूआत में अलग से बताकर और उस पर ज़ोर देकर पौलुस चाहता था कि उसके पढ़नेवाले ध्यान दें कि इस मुद्दे का उनकी ज़िंदगी से गहरा ताल्लुक है। उसने बताया कि मसीह उनकी खातिर परमेश्वर के सामने प्रकट हो चुका है और उनके लिए स्वर्ग के “पवित्र स्थान” में प्रवेश करने का रास्ता खोल दिया है। (इब्रा. 9:24; 10:19-22) इस तरह पौलुस ने पहले उन्हें अपनी आशा का पक्का यकीन दिलाया ताकि वे आगे के अध्यायों में विश्वास, धीरज और मसीही चालचलन के बारे में दी जानेवाली सलाह को मानने के लिए तैयार हो सकें। उसी तरह अध्ययन के दौरान, मुख्य मुद्दों पर ध्यान देने से हमें यह समझ आएगा कि उनके ज़रिए मुख्य विषय को किस तरह समझाया गया है। साथ ही, जो हमने पढ़ा है उस पर हमें क्यों चलना चाहिए इसकी ठोस वजह भी हमारे दिमाग में अच्छी तरह बैठ जाएगी।
क्या आपका अध्ययन, आपको सीखी हुई बातों पर अमल करने के लिए उभारेगा? यह सवाल वाकई गंभीर है। इसलिए अध्ययन करते वक्त जब आप कुछ सीखते हैं, तब खुद से पूछिए: ‘मैंने जो सीखा है, उसके मुताबिक मुझे अपने सोच-विचार और ज़िंदगी के लक्ष्यों में क्या बदलाव करने चाहिए? मैं अपनी किसी समस्या का हल करने, कोई फैसला करने या कोई लक्ष्य हासिल करने के लिए इस जानकारी का इस्तेमाल कैसे कर सकता हूँ? मैं इस जानकारी को अपने परिवार में, सेवकाई में और कलीसिया में कैसे लागू कर सकता हूँ?’ परमेश्वर से मदद माँगते हुए इन सवालों पर विचार कीजिए और सोचिए कि आप ज़िंदगी के किन-किन मौकों पर इस जानकारी को काम में ला सकते हैं।
किसी अध्याय या लेख का अध्ययन पूरा कर लेने के बाद, कुछ देर के लिए उसकी खास बातों को मन-ही-मन दोहराइए। मुख्य मुद्दों और उन्हें समझाने के लिए दी गयी दलीलों को याद करने की कोशिश कीजिए। ऐसा करने से यह जानकारी आपकी याददाश्त में बस जाएगी और वह भविष्य में भी आपके काम आ सकेगी।
क्या अध्ययन करें
हम, यहोवा के लोगों के पास अध्ययन के लिए किताबों की कोई कमी नहीं है, हमारे पास इनका भंडार है। लेकिन शुरूआत कहाँ से करें? अच्छा होगा अगर हम रोज़ाना बाइबल वचनों पर ध्यान दीजिए में दी गयी आयत और उसकी टिप्पणी का हर रोज़ अध्ययन करें। हर हफ्ते होनेवाली कलीसिया की सभाओं की अगर हम पहले से तैयारी करेंगे, तो हमें सभाओं से काफी फायदा होगा। इन सबके अलावा, कुछ लोग संस्था के उन साहित्यों का भी अध्ययन करने के लिए समय निकालते हैं जो उनके सच्चाई सीखने से पहले प्रकाशित की गयी थीं। और कुछ लोग हफ्ते की अपनी बाइबल पढ़ाई में से कुछ आयतों को चुनकर, उन पर गहराई से अध्ययन करते हैं।
अगर अपने हालात की वजह से आप सभी सभाओं की अच्छी तैयारी नहीं कर पाते, तो आप क्या कर सकते हैं? ऐसे में, तैयारी के नाम पर सारी जानकारी फटाफट पढ़कर खत्म करने की गलती मत कीजिए। और यह सोचकर कि सभी भागों की तैयारी करना आपके लिए मुमकिन नहीं है, ऐसा भी न हो कि आप किसी भी सभा के लिए बिलकुल भी तैयारी न करें। इसलिए तय कीजिए कि आप किन-किन भागों की तैयारी कर सकते हैं और फिर उनका अच्छी तरह अध्ययन कीजिए। हर हफ्ते ऐसा करने की आदत डालिए। वक्त के गुज़रते, दूसरी सभाओं की तैयारी को भी अपने इस अध्ययन में शामिल करने की कोशिश कीजिए।
‘अपने घराने को मज़बूत कर’
यहोवा को मालूम है कि आपको यानी घर के मुखिया को अपने परिवार की ज़रूरतें पूरी करने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ती है। इसीलिए नीतिवचन 24:27 (NW) में कहा गया है: “अपना बाहर का कामकाज ठीक करना, और अपना खेत तैयार करना।” लेकिन आपको अपने परिवार की आध्यात्मिक ज़रूरतों का भी ध्यान रखना है। इसलिए यह आयत आगे कहती है: “उसके बाद तुम्हें अपना घराना भी मज़बूत करना चाहिए।” परिवार के मुखिया इस सलाह पर कैसे अमल कर सकते हैं? नीतिवचन 24:3 (NW) जवाब देता है: “समझ से [घराना] स्थिर होगा।”
कैसे समझ, अपने घराने को मज़बूत करने में आपकी मदद कर सकती है? समझ का मतलब है, जो सामने नज़र आता सिर्फ उसी को नहीं, बल्कि उसके आगे देखने की दिमागी काबिलीयत। यह कहना बिलकुल सही होगा कि पारिवारिक अध्ययन को फायदेमंद बनाने के लिए आपको सबसे पहले अपने परिवार के सदस्यों का अध्ययन करना होगा यानी उनको अच्छी तरह समझना होगा। क्या आपके परिवार के सदस्य आध्यात्मिक बातों में तरक्की कर रहे हैं? उनके साथ बातचीत करते वक्त, उनकी बातें गौर से सुनिए। क्या उनमें शिकायत करने या नाराज़गी और गुस्से के लक्षण नज़र आ रहे हैं? क्या वे धन-दौलत और ऐशो-आराम की चीज़ों को ज़्यादा अहमियत देते हैं? अपने बच्चों के साथ प्रचार करते वक्त, देखिए कि जब वे अपने स्कूल या कॉलेज के साथियों से मिलते हैं, तब क्या वे बिना किसी संकोच के अपने साथियों को बताते हैं कि वे यहोवा के साक्षी हैं? जब आपका परिवार साथ मिलकर बाइबल पढ़ता और अध्ययन करता है, तो क्या सभी इसका आनंद लेते हैं? क्या वे सच्चे दिल से यहोवा के मार्गों पर चल रहे हैं? अगर ऐसी बातों पर आप नज़दीकी से ध्यान देंगे, तो परिवार के मुखिया होने के नाते आपको पता चलेगा कि आपको हर सदस्य में आध्यात्मिक गुण पैदा करने और उन्हें बढ़ाने के लिए क्या कदम उठाने होंगे।
इस तरह जायज़ा लेने के बाद प्रहरीदुर्ग और सजग होइए! में उन मामलों से जुड़े लेख ढूँढ़िए जिनमें आपके परिवार को सुधार करने की ज़रूरत है। फिर उन्हें बताइए कि अगले अध्ययन में पूरा परिवार किस विषय पर चर्चा करेगा, ताकि वे पहले से इस बारे में सोच सकें। अध्ययन के दौरान प्यार भरा माहौल बनाए रखिए। परिवार के किसी सदस्य को बिना डाँटे-फटकारे या उसे शर्मिंदा किए बगैर बताइए कि जिस विषय पर चर्चा की जा रही है, उसकी क्या अहमियत है और परिवार को इस मामले में क्या-क्या सुधार करने की ज़रूरत है। चर्चा में हर सदस्य को शामिल कीजिए। हरेक की यह समझने में मदद कीजिए कि किस तरह यहोवा का वचन “सिद्ध” है, और हरेक की ज़िंदगी में सही मार्गदर्शन देता है।—भज. 19:7, NHT.
मेहनत का फल पाना
आध्यात्मिक समझ के बिना जागरूक और होशियार लोग, विश्व-मंडल की, संसार की घटनाओं की, यहाँ तक कि खुद अपनी बारीकी से जाँच करके काफी जानकारी हासिल कर लेते हैं, मगर वे यह समझने से चूक जाते हैं कि इन सबको किस मकसद से बनाया गया था। दूसरी तरफ, जो लोग परमेश्वर के वचन का लगातार अध्ययन करते हैं, वे परमेश्वर की आत्मा की मदद से समझ पाते हैं कि विश्व-मंडल में यहोवा की हस्तकला नज़र आती है, संसार की घटनाएँ बाइबल की भविष्यवाणियाँ पूरी कर रही हैं और आज्ञा माननेवाले इंसानों के लिए परमेश्वर का मकसद पूरा हो रहा है।—मर. 13:4-29; रोमि. 1:20; प्रका. 12:12.
परमेश्वर के वचन का हर रोज़ अध्ययन करने से हमें जो फायदे मिलते हैं, वे वाकई लाजवाब हैं! लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि हम घमंड से फूल जाएँगे बल्कि हमें हमेशा नम्र रहना चाहिए। (व्यव. 17:18-20) परमेश्वर के वचन का अध्ययन करने पर हम “पाप के छल” में फँसने से भी बचेंगे क्योंकि जब परमेश्वर का वचन हमारे दिलों में काम करेगा, तो काफी मुमकिन है कि पाप का विरोध करने का हमारा इरादा इतना मज़बूत होगा कि पाप में पड़ने की लालसा, इसे तोड़ नहीं पाएगी। (इब्रा. 2:1; 3:13; कुलु. 3:5-10) इस तरह हमारा ‘चाल-चलन यहोवा के योग्य होगा ताकि वह सब प्रकार से प्रसन्न हो, और हम में हर प्रकार के भले कामों का फल लगे।’ (कुलु. 1:10) इसी मकसद से हम परमेश्वर के वचन का अध्ययन करते हैं और बेशुमार आशीषें पाते हैं।
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खोजबीन कैसे करेंपरमेश्वर की सेवा स्कूल से फायदा उठाइए
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खोजबीन कैसे करें
राजा सुलैमान ने ‘चिन्तन किया, खोजबीन की, और बहुत से नीतिवचन क्रम में संजोए।’ क्यों? क्योंकि वह “सच्चाई के वचन शुद्ध रूप में” लिखना चाहता था। (सभो. 12:9, 10, NHT) लूका ने मसीह के जीवन की घटनाओं को क्रमानुसार लिखने के लिए “सब बातों का सम्पूर्ण हाल आरम्भ से ठीक ठीक जांच किया।” (लूका 1:3) परमेश्वर के इन दोनों सेवकों ने खोजबीन की।
खोजबीन करने का मतलब क्या है? इसका मतलब है किसी एक विषय पर जानकारी हासिल करने के लिए उसके बारे में छानबीन करना। इसके लिए पढ़ना ज़रूरी है और जिस तरीके से हम पूरा ध्यान लगाकर अध्ययन करते हैं, उसी तरह हमें खोजबीन भी करनी है। इसमें दूसरों से पूछताछ भी करना शामिल है।
आपको कब-कब खोजबीन करने की ज़रूरत पड़ सकती है? इसकी कुछ मिसालों पर गौर कीजिए। अध्ययन करते या बाइबल पढ़ते वक्त, आपके मन में कुछ ऐसे सवाल उठेंगे जिनका जवाब जानना आपके लिए बेहद ज़रूरी है। या फिर गवाही देते वक्त कोई आपसे ऐसा सवाल पूछ ले जिसके जवाब में आप कोई खास जानकारी ढूँढ़कर देना चाहें। या फिर जब आपको भाषण देने की ज़िम्मेदारी मिलती है।
आइए भाषण देने की मिसाल पर चर्चा करें। हो सकता है कि आपके भाषण का विषय बहुत आम हो। तो आप उसे अपनी कलीसिया के फायदे के लिए कैसे पेश कर सकते हैं? खोजबीन करने से आपके भाषण को जानदार और दिलचस्प बनाया जा सकता है। जब एक आम मुद्दे को समझाने के लिए एक या दो आँकड़े या कोई मिसाल दी जाती है, जो आपके विषय पर ठीक बैठती है और जिसका आपके सुननेवालों की ज़िंदगी से सीधा ताल्लुक होता है, तो इसी आम मुद्दे से लोग बहुत कुछ सीख सकेंगे और यह जानकारी उन्हें कदम उठाने के लिए भी उभारेगी। जिस लेख से आपको भाषण देना है, उसे शायद संसार भर के पाठकों को ध्यान में रखकर तैयार किया गया है। लेकिन आपको एक कलीसिया या किसी एक व्यक्ति को मन में रखकर भाषण के मुद्दे खुलकर समझाने होंगे, उदाहरण देने होंगे और लागू करने के तरीके बताने होंगे। तो फिर, शुरूआत कैसे की जाए?
सीधे खोजबीन में जुटने से पहले, एक पल रुककर अपने सुननेवालों के बारे में सोचिए। आप जो बताने जा रहे हैं, उसके बारे में उन्हें पहले से कितनी जानकारी है? उन्हें क्या जानना चाहिए? फिर सोचिए कि आपका मकसद क्या है। समझाना? यकीन दिलाना? किसी बात को गलत साबित करना? या फिर सुननेवालों को कुछ कदम उठाने के लिए प्रेरित करना? अगर समझाना है, तो आपको विषय के बारे में और ज़्यादा जानकारी देकर उसे साफ-साफ बताना होगा। हो सकता है कि सुननेवाले खास मुद्दों को समझते हैं, मगर आपको यह समझाना होगा कि जो बताया जा रहा है उसे कब और कैसे अमल में लाया जा सकता है। अगर आपका मकसद यकीन दिलाना है, तो आपको कारण बताने होंगे कि ऐसा क्यों कहा गया है, साथ ही इसके लिए आपको सबूत पेश करने होंगे। किसी बात को गलत साबित करने के लिए मुद्दे के दोनों पक्षों का बढ़िया ज्ञान होना और पेश किए जा रहे सबूतों को अच्छी तरह जाँचना भी बहुत ज़रूरी है। बेशक, हमारी कोशिश सिर्फ यह नहीं होगी कि हम ज़बरदस्त दलीलें पेश करें बल्कि यह कि हम नम्रता के साथ साफ तौर पर सच्चाई पेश कर सकें। अगर आप किसी को प्रेरित करना चाहते हैं, तो आपको उसके दिल तक पहुँचना होगा। इसका मतलब है, सुननेवाले के सामने एक लक्ष्य रखना और फिर उस पर चलने की उसमें ख्वाहिश पैदा करना। अगर आप कुछ ऐसे लोगों की मिसालें बताएँगे, जिन्होंने मुश्किल-से-मुश्किल वक्त में भी ऐसा ही किया था, तो इससे आपकी बात सुननेवालों के दिल तक पहुँच सकती है।
तो क्या आप अब खोजबीन करना शुरू कर सकते हैं? अभी नहीं, ज़रा ठहरिए। देखिए कि आपको कुल कितनी जानकारी की ज़रूरत है। इसके लिए आपको समय को ध्यान में रखना होगा। अगर आपको यह जानकारी दूसरों के सामने पेश करनी है, तो उसके लिए कितना समय तय किया गया है? पाँच मिनट? पैंतालीस मिनट? क्या आप कलीसिया में भाषण दे रहे हैं जिसका वक्त तय होता है? या फिर हालात के हिसाब से आपको वक्त मिलेगा जैसा बाइबल अध्ययन या चरवाही भेंट के दौरान?
आखिर में, देखिए कि आपके पास खोजबीन करने के लिए क्या-क्या साहित्य है। आपके घर पर जो साहित्य है, उसके अलावा क्या आपके राज्यगृह की लाइब्रेरी में दूसरा साहित्य मिल सकता है? जो भाई-बहन लंबे अरसे से सच्चाई में हैं, क्या वे आपको खोजबीन के लिए अपना साहित्य इस्तेमाल करने की इजाज़त दे सकते हैं? क्या आपके इलाके में कोई पब्लिक लाइब्रेरी है, जहाँ आप ज़रूरत पड़ने पर दूसरी किताबों से जानकारी इकट्ठी कर सकते हैं?
खोजबीन की हमारी सबसे अहम किताब, बाइबल का इस्तेमाल
अगर आपको किसी आयत पर खोजबीन करनी है, तो सबसे पहले बाइबल में ढूँढ़िए।
आस-पास की आयतों को जाँचिए। खुद से पूछिए: ‘यह आयत किसके लिए लिखी गयी थी? इसे किन हालात में लिखी गयी और जिन लोगों के लिए लिखी गयी उनका रवैया कैसा था, इस बारे में आस-पास की आयतें क्या बताती हैं?’ इन छोटी-मोटी बातों का पता लगाने से आप उस आयत को अच्छी तरह समझ पाएँगे, और ऐसी जानकारी को अगर आप अपने किसी भाषण में बताएँगे, तो आपका भाषण जानदार होगा।
उदाहरण के लिए, इब्रानियों 4:12 का हवाला अकसर यह बताने के लिए दिया जाता है कि परमेश्वर के वचन में लोगों के दिलों पर असर करने की शक्ति है और यह उनकी ज़िंदगी बदल सकता है। लेकिन यह कैसे होता है, इस आयत के आस-पास की आयतों को पढ़ने से हम यह और अच्छी तरह समझ पाते हैं। इस आयत से पहले बताया गया है कि जिस देश की प्रतिज्ञा यहोवा ने इब्राहीम से की थी, उसमें जाने से पहले जब इस्राएली 40 साल तक वीराने में भटक रहे थे, तो उनके साथ क्या-क्या हुआ। (इब्रा. 3:7–4:13) इस्राएलियों के लिए “परमेश्वर का वचन,” इब्राहीम के साथ बाँधी यहोवा की वाचा थी कि वह उन्हें विश्राम में पहुँचाएगा। उसका यह वचन जीवित था और अपने अंजाम की तरफ बढ़ रहा था। इस्राएली बिना किसी शक के उसके वचन पर पूरा विश्वास कर सकते थे। लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। वे पूरे रास्ते यानी मिस्र से निकालकर, सीनै पर्वत तक और फिर वहाँ से वादा किए देश तक कुड़कुड़ाते रहे। यहोवा जिस तरीके से अपना वचन पूरा कर रहा था, उसकी तरफ उनके रवैए से ज़ाहिर हुआ कि उनके दिल में क्या था। आज भी, परमेश्वर के वचन में लिखे उसके वादों की तरफ लोग जो रुख अपनाते हैं, उससे खुलासा होता है कि उनके दिलों में क्या है।
क्रॉस-रेफ्रेन्स में दी आयतों को खोलकर पढ़िए। कुछ बाइबलों में क्रॉस-रेफ्रेन्स यानी दूसरी आयतों के हवाले दिए जाते हैं, जो काफी मददगार हो सकते हैं। न्यू वर्ल्ड ट्रांस्लेशन ऑफ द होली स्क्रिप्चर्स् बाइबल इसकी एक बढ़िया मिसाल है। सन् 1978 में प्रकाशित नयी हिन्दी बाइबिल में भी कई क्रॉस-रेफ्रेन्स दिए गए हैं। उदाहरण के लिए, 1 पतरस 3:6 पर ध्यान दीजिए जिसमें बताया गया है कि सारा, मसीही पत्नियों के लिए एक बढ़िया मिसाल है। इसके साथ, उत्पत्ति 18:12 का हवाला इसे और भी पुख्ता करता है। इसमें बताया गया है कि सारा, इब्राहीम को “मन में” स्वामी कहती थी यानी वह पूरे दिल से इब्राहीम के अधीन थी। क्रॉस-रेफ्रेन्स की मदद से आपको न सिर्फ ऐसी गहरी समझ मिलेगी, बल्कि इनकी मदद से आप जान पाएँगे कि बाइबल की कोई भविष्यवाणी कैसे पूरी हुई या व्यवस्था की चीज़ें जिनका नमूना थी, वह असलियत में आज क्या है। लेकिन याद रखिए कि कुछ क्रॉस-रेफ्रेन्स ये सब जानकारी देने के लिए नहीं होते। उनमें सिर्फ मिलते-जुलते विचार, किसी की ज़िंदगी या किसी इलाके के बारे में जानकारी होती है।
बाइबल कॅनकॉर्डन्स की मदद लीजिए। बाइबल कॅनकॉर्डन्स में अक्षरों (जैसे क, ख, ग, . . .) के क्रमानुसार बाइबल के शब्दों की सूची दी जाती है। आप जिस विषय पर खोजबीन करते हैं, उससे मेल खानेवाली आयतें ढूँढ़ने में यह आपकी मदद कर सकती है। और जब आप उन आयतों को पढ़कर देखेंगे, तो आप अपने विषय की और जानकारी पाएँगे। आप परमेश्वर के वचन में दी गयी सच्चाई का नमूना देख पाएँगे। न्यू वर्ल्ड ट्रांस्लेशन में भी “बाइबल वड्र्स् इंडैक्स्ड” है जिसमें बाइबल के शब्दों और उनसे जुड़ी आयतों की एक आम सूची दी गयी है। इससे भी ज़्यादा जानकारी का भंडार आपको कॉम्प्रिहॆन्सिव कॅनकॉर्डन्स में मिलेगा। अगर यह आपकी भाषा में है, तो आप उसकी मदद से उन सभी आयतों को ढूँढ़ सकते हैं जिनमें बाइबल के हर मुख्य शब्द का ज़िक्र आता है।
खोजबीन के दूसरे साहित्य का इस्तेमाल करना सीखिए
इस किताब के पेज 33 पर बक्स में खोजबीन के लिए और भी साहित्य के नाम दिए हैं, जिन्हें “विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास” ने तैयार किया है। (मत्ती 24:45-47) इनमें से कई साहित्यों के अंदर एक विषय-सूची होती है और कुछ के आखिर में एक इंडैक्स होता है, जिनकी मदद से आप पता लगा सकते हैं कि फलाँ-फलाँ जानकारी किस पेज पर दी गयी है। हर साल प्रहरीदुर्ग और सजग होइए! (अँग्रेज़ी) के आखिरी अंक में एक इंडैक्स दिया जाता है, जिनमें साल के सभी लेखों की सूची होती है।
अगर आपको मालूम रहेगा कि बाइबल की समझ देनेवाले किस साहित्य में क्या जानकारी है, तो आपकी खोजबीन में तेज़ी आ सकती है। मान लीजिए कि आपको किसी भविष्यवाणी, किसी शिक्षा, मसीही चालचलन या बाइबल के सिद्धांतों पर अमल करने के बारे में जानकारी चाहिए। इन सभी विषयों के लिए प्रहरीदुर्ग मददगार हो सकती है। सजग होइए! में दुनिया की ताज़ा खबरों, आजकल की आम समस्याओं, धर्म, विज्ञान और देश-विदेश के लोगों के बारे में लेख पाए जाते हैं। वह सर्वश्रेष्ठ मनुष्य जो कभी जीवित रहा किताब में सुसमाचार की किताबों की हर घटना पर सिलसिलेवार ढंग से व्याख्या दी गयी है। रॆवलेशन—इट्स ग्रैंड क्लाइमैक्स एट हैंड!, दानिय्येल की भविष्यवाणी पर ध्यान दें! और यशायाह की भविष्यवाणी—सारे जगत के लिए उजियाला के दोनों भागों में बाइबल में पायी जानेवाली पूरी-की-पूरी किताबों पर आयत-दर-आयत चर्चा की गयी है। आम तौर पर प्रचार में पूछे जानेवाले बाइबल के सैकड़ों सवालों के सही जवाब, आप रीज़निंग फ्रॉम द स्क्रिप्चर्स् में पा सकते हैं। अगर आपको दूसरे धर्मों, उनकी शिक्षाओं और उनके इतिहास के बारे में जानना है, तो मैनकाइंड्स सर्च फॉर गॉड किताब देखिए। आज के यहोवा के साक्षियों के इतिहास की जानकारी, यहोवा के साक्षी—वे कौन हैं? उनके विश्वास क्या हैं? ब्रोशर में दी गयी है। संसार भर में हो रहे प्रचार काम की ताज़ा जानकारी आपको हाल की जनवरी 1 की प्रहरीदुर्ग पत्रिका में मिल सकती हैं। इंसाइट ऑन द स्क्रिप्चर्स्, बाइबल का ज्ञान देनेवाला कोश है और इसमें बहुत-से नक्शे दिए गए हैं। इसकी मदद से आप बाइबल में बताए गए लोगों, जगहों, चीज़ों, भाषाओं या घटनाओं की ब्योरेवार जानकारी हासिल कर सकते हैं।
“वॉच टावर पब्लिकेशन्स इंडैक्स।” बीस से भी ज़्यादा भाषाओं में छपे इस इंडैक्स से आप जान सकते हैं कि फलाँ विषय के बारे में आपको संस्था के किन-किन साहित्यों में जानकारी मिलेगी। यह दो भागों में बँटा हुआ है, सबजॆक्ट इंडैक्स यानी विषयों की सूची और स्क्रिप्चर इंडैक्स यानी आयतों की सूची। जब आपको किसी विषय पर खोजबीन करनी है, तो उससे जुड़े किसी शब्द को सबजॆक्ट इंडैक्स में ढूँढ़िए और जब आप किसी आयत को अच्छी तरह समझना चाहते हैं, तो फिर उसे स्क्रिप्चर इंडैक्स में ढूँढ़िए। और जिन सालों का आप इंडैक्स इस्तेमाल कर रहे हैं, अगर उनमें उस विषय या आयत के बारे में कुछ जानकारी छपी है, तो आपके पास ऐसे कई हवाले होंगे जिन्हें खोलकर पढ़ने से आप जानकारी पा सकते हैं। इंडैक्स में संकेत-चिन्ह किन साहित्यों के लिए इस्तेमाल हुए हैं, यह जानने के लिए इंडैक्स की शुरूआत में दिए गए संकेत-चिन्हों की सूची देखिए। (मिसाल के लिए, आप को यह समझने में मदद मिलेगी कि w99 3/1 15 का मतलब है, साल 1999 की अँग्रेज़ी प्रहरीदुर्ग का मार्च 1 अंक, पेज 15.) “प्रचार काम में मिले अनुभव” (“Field Ministry Experiences”) और “यहोवा के साक्षियों की जीवन-कहानियाँ” (“Life Stories of Jehovah’s Witnesses”) जैसे मुख्य शीर्षकों की मदद से आप, कलीसिया का जोश बढ़ानेवाले भाषण तैयार कर सकते हैं।
खोजबीन करना इतना दिलचस्प होता है कि बड़ी आसानी से आपका ध्यान दूसरे विषयों की तरफ जा सकता है। इसलिए आप जिस विषय पर खोजबीन करते हैं, उससे अपना ध्यान हटने मत दीजिए, उसी से ताल्लुक रखनेवाली जानकारी खोजिए। अगर इंडैक्स में किसी किताब या पत्रिका के पेज नंबर दिए हैं, तो उन्हें खोलकर लेख के उपशीर्षकों पर नज़र दौड़ाते हुए पैराग्राफों के पहले वाक्यों को पढ़ते जाइए। इससे आपको पता लग जाएगा कि उनमें वह जानकारी है या नहीं जिसे आप तलाश रहे हैं। अगर आप बाइबल की किसी आयत का मतलब ढूँढ़ रहे हैं, तो इंडैक्स में जिस लेख और पेज का हवाला दिया गया है, उसे खोलकर सबसे पहले उस जगह को तलाशिए जहाँ वह आयत लिखी है। उसके बाद आस-पास दी गयी जानकारी पढ़िए।
सीडी-रॉम पर “वॉचटावर लाइब्रेरी।” अगर आपके पास कंप्यूटर है, तो सीडी-रॉम पर वॉचटावर लाइब्रेरी का इस्तेमाल करने से आपको बहुत फायदा होगा क्योंकि इसमें हमारे बहुत-से साहित्य मौजूद हैं। इसमें दिए गए सर्च प्रोग्राम से आप वॉचटावर लाइब्रेरी के किसी भी साहित्य में बड़ी आसानी से किसी भी शब्द, कई शब्द या कोई आयत ढूँढ़ सकते हैं। अगर वॉचटावर लाइब्रेरी आपकी भाषा में नहीं है, तो आप किसी ऐसी अंतर्राष्ट्रीय भाषा में उपलब्ध वॉचटावर लाइब्रेरी इस्तेमाल कर सकते हैं, जिससे आप वाकिफ हैं।
मसीही साहित्य की दूसरी लाइब्रेरियाँ
नौजवान तीमुथियुस को ईश्वर-प्रेरणा से लिखी अपनी दूसरी पत्री में, पौलुस ने कहा कि वह कुछ “पुस्तकें विशेष करके चर्म्मपत्रों” को उसके पास रोम ले आए। (2 तीमु. 4:13) इससे ज़ाहिर होता है कि पौलुस कुछ लेखों को बहुत कीमती समझता था और उन्हें अपने पास रखता था। आप भी वैसा ही कर सकते हैं। क्या आप प्रहरीदुर्ग, सजग होइए! और हमारी राज्य सेवकाई की अपनी कॉपियों को कलीसिया की सभाओं में इस्तेमाल करने के बाद सँभालकर रखते हैं? अगर हाँ, तो आप खोजबीन के लिए अपने दूसरे साहित्यों के साथ-साथ इनका भी इस्तेमाल कर सकते हैं। ज़्यादातर कलीसियाएँ, अपने राज्यगृह की लाइब्रेरी में अलग-अलग मसीही साहित्य रखती हैं। ये साहित्य कलीसिया के सभी भाई-बहनों के बहुत काम आते हैं और वे राज्यगृह में रहते वक्त उनका इस्तेमाल कर सकते हैं।
निजी फाइलें बनाइए
हमेशा इस बात का ध्यान रखिए कि अगर किसी अखबार या पत्रिका में कोई दिलचस्प खबर, आँकड़ा या कोई उदाहरण छपता है, तो उसे काट लीजिए या उनकी एक कॉपी निकालकर रख लीजिए। इसे आप अपनी बातचीत में या सिखाते वक्त इस्तेमाल कर सकते हैं। उस कटिंग या कॉपी पर अखबार या पत्रिका की तारीख, उसका नाम और हो सके तो लेखक या प्रकाशक का नाम लिखिए। कलीसिया की सभाओं में ऐसी दलीलों और उदाहरणों को नोट कर लीजिए जिनकी मदद से आप दूसरों को सच्चाई समझा सकें। क्या आपको कभी एक अच्छा उदाहरण सूझा है, मगर उसे फौरन इस्तेमाल करने का मौका आपको नहीं मिला? अगर ऐसा है, तो उसे लिखकर एक फाइल में रख लीजिए। परमेश्वर की सेवा स्कूल में काफी समय तक तालीम पाने के बाद आपने ज़रूर सुसमाचार सुनाने के कई तरीके और पेशकश तैयार कर लिए होंगे। भाषण के बाद उनके नोट्स् फेंक देने के बजाय, उन्हें सँभालकर रखिए। आपने जो खोजबीन की है, वह बाद में भी काम आ सकती है।
लोगों से बातचीत कीजिए
लोगों से बात करने से आपको ढेर सारी जानकारी मिल सकती है। लूका ने अपनी सुसमाचार की किताब में लिखी काफी जानकारी, चश्मदीद गवाहों से पूछ-पूछकर हासिल की थी। (लूका 1:1-4) हो सकता है कि आप जिस विषय पर खोजबीन कर रहे हैं, उसके बारे में आपका कोई संगी मसीही आपको बहुत कुछ बता सके। इफिसियों 4:8, 11-16 के मुताबिक मसीह ने ‘मनुष्यों में दान’ दिए हैं, जो ‘परमेश्वर के पुत्र की पहिचान’ और सही ज्ञान में बढ़ने में हमारी मदद करते हैं। लंबे अरसे से परमेश्वर की सेवा करते आए भाई-बहनों से सवाल पूछने पर आप बहुत-से अच्छे विचार सीख सकते हैं। लोगों से बात करने से आप यह भी जान सकते हैं कि उनके दिमाग में क्या चल रहा है और फिर इसकी मदद से आप अपनी जानकारी को इस तरह तैयार कर सकते हैं जिससे सुननेवाले को सचमुच फायदा हो।
खोजबीन से मिली जानकारी की जाँच कीजिए
गेहूँ की कटाई के बाद, दानों को फटककर भूसे से अलग किया जाता है। खोजबीन के मामले में भी यही बात लागू होती है। इससे पहले कि आप खोजबीन से मिली जानकारी दूसरों को बताएँ, आपको उसमें से गैर-ज़रूरी बातें निकाल देनी होंगी, ताकि आप सिर्फ वही बताएँ जो फायदेमंद है।
अगर आप खोजबीन से मिली जानकारी को किसी भाषण में बताने जा रहे हैं, तो अपने आप से पूछिए: ‘मैं जो जानकारी इस्तेमाल करने की सोच रहा हूँ क्या वह मेरे भाषण को वाकई असरदार बनाएगी? या फिर, भले ही यह जानकारी दिलचस्प है, मगर क्या यह मेरे विषय से हटकर है जिससे लोगों का ध्यान भंग हो सकता है?’ अगर आप भाषण में ताज़ा खबरें, या विज्ञान और चिकित्सा से ताल्लुक रखनेवाली कुछ बातें बताने की सोच रहे हैं, तो पहले ठीक से देख लीजिए कि वह जानकारी नयी है या पुरानी, क्योंकि ऐसे क्षेत्रों में अकसर नित नए बदलाव आते रहते हैं। यह भी याद रखिए कि हमारी पुरानी किताबों में दिए गए कुछ मुद्दों में शायद सुधार किया गया हो, इसलिए उस विषय के बारे में छपे हाल के किसी लेख या किताब की मदद लीजिए।
दुनियावी किताबों में खोजबीन करते वक्त एहतियात बरतने की खास ज़रूरत है। यह कभी मत भूलिए कि जहाँ सच्चाई की बात आती है, सिर्फ परमेश्वर का वचन ही पूरी तरह सच्चा है। (यूह. 17:17) परमेश्वर के उद्देश्य को पूरा करने में यीशु सबसे अहम भूमिका निभाता है। इसलिए कुलुस्सियों 2:3 कहता है: “[यीशु] में बुद्धि और ज्ञान से सारे भण्डार छिपे हुए हैं।” इसलिए दुनियावी किताबों से मिली जानकारी को इन सच्चाइयों की कसौटी पर परखकर जाँचिए। अपने आप से पूछिए: ‘क्या इसमें कोई बात काफी बढ़ा-चढ़ाकर कही गयी है, अटकलों पर या सीमित ज्ञान पर आधारित है? क्या इस किताब को अपना स्वार्थ पूरा करने या पैसा कमाने के मकसद से लिखा गया था? क्या इसकी सच्चाई को दूसरी भरोसेमंद जानकारी से परखा जा सकता है? सबसे बढ़कर, क्या यह बाइबल की सच्चाई से मेल खाती है?’
नीतिवचन 2:1-5 हमें उकसाता है कि हम ज्ञान, सूझ-बूझ और समझ की लगातार ऐसे खोज करें, मानो हम ‘चान्दी और गुप्त धन’ की खोज कर रहे हों। इस तरह खोजने का मतलब है कि हमें खूब मेहनत करने की ज़रूरत है और हमें इससे बढ़िया प्रतिफल मिलेगा। खोजबीन करने में मेहनत ज़रूर लगती है, मगर इससे आप, परमेश्वर के विचार जान पाएँगे, गलत धारणाओं को बदल पाएँगे और सच्चाई की और गहरी समझ पाएँगे। साथ ही, आप अपने भाषण को जानदार और असरदार बना पाएँगे। इसलिए आपको भाषण देने में आनंद आएगा, और लोग भी दिलचस्पी के साथ सुनेंगे।
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