वॉचटावर ऑनलाइन लाइब्रेरी
वॉचटावर
ऑनलाइन लाइब्रेरी
हिंदी
  • बाइबल
  • प्रकाशन
  • सभाएँ
  • be पेज 21-पेज 26 पैरा. 5
  • पढ़ने में ध्यान लगाए रह

इस भाग के लिए कोई वीडियो नहीं है।

माफ कीजिए, वीडियो डाउनलोड नहीं हो पा रहा है।

  • पढ़ने में ध्यान लगाए रह
  • परमेश्‍वर की सेवा स्कूल से फायदा उठाइए
  • उपशीर्षक
  • मिलते-जुलते लेख
  • मौके का फायदा उठाइए
  • सही मंशा के साथ पढ़िए
  • सही रफ्तार से पढ़िए
  • ध्यान लगाना सीखिए
  • लोगों के सामने पढ़कर सुनाना
  • पढ़ने के लिए वक्‍त निकालिए
  • दैनिक बाइबल पठन से लाभ प्राप्त करना
    प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1995
  • बाइबल पढ़ना—मज़ेदार और लाभदायक
    प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—2000
  • अपने आपको पढ़ने में लौलीन कीजिए
    प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1996
  • उन्हें सिखाना जो ठीक से पढ़ नहीं पाते
    हमारी राज-सेवा—2009
और देखिए
परमेश्‍वर की सेवा स्कूल से फायदा उठाइए
be पेज 21-पेज 26 पैरा. 5

पढ़ने में ध्यान लगाए रह

दुनिया के हर 6 में से 1 इंसान को पढ़ना नहीं आता, क्योंकि उसे कभी स्कूल जाने का मौका ही नहीं मिला। और जो लोग पढ़ सकते हैं, वे भी विरले ही कोई किताब या कुछ और पढ़ते हैं। पढ़ सकना एक ऐसी काबिलीयत है, जिसकी मदद से आप किताबों के ज़रिए देश-विदेश की सैर कर सकते हैं, ऐसे लोगों से मिल सकते हैं जिनकी ज़िंदगी के बारे में जानकर आपकी ज़िंदगी सँवर सकती है, और ऐसा ज्ञान हासिल कर सकते हैं जो समस्याओं का सामना करने में आपकी मदद कर सकता है।

पेज 22 पर दी तसवीर

आप अपने बच्चों को अच्छी किताबें पढ़कर सुनाइए, इससे उन्हें बड़े होकर अच्छे इंसान बनने में मदद मिलेगी

स्कूल में एक बच्चा जितनी अच्छी तरह पढ़ेगा, उतना ही उसे स्कूल से फायदा होगा। बड़ा होने पर उसे किस किस्म की नौकरी मिलेगी और गुज़र-बसर के लिए उसे कितने घंटे काम करना पड़ेगा, यह भी काफी हद तक उसकी पढ़ने की काबिलीयत पर निर्भर करता है। जिन गृहणियों में पढ़ने की आदत होती है, वे अपने परिवार की अच्छी देखभाल कर पाती हैं। वे पौष्टिक खाना तैयार करने, साफ-सफाई का खयाल रखने और अपने परिवार का बीमारी से बचाव करने में काबिल होती हैं। जो माताएँ पढ़ने की शौकीन होती हैं, उनके बच्चों के दिमागी विकास पर भी इसका काफी अच्छा असर होता है।

मगर हाँ, पढ़ाई से मिलनेवाला सबसे बड़ा फायदा यह है कि आप इसके ज़रिए ‘परमेश्‍वर का ज्ञान प्राप्त’ कर सकते हैं। (नीति. 2:5) परमेश्‍वर की सेवा में पढ़ने की काबिलीयत बहुत काम आती है। मसीही सभाओं में बाइबल और उसकी समझ देनेवाली किताबें-पत्रिकाएँ पढ़ी जाती हैं। प्रचार काम में आप कितने असरदार हैं, यह भी काफी हद तक इस बात पर निर्भर करता है कि आप किस तरीके से पढ़ते हैं। सभाओं और प्रचार की तैयारी करने के लिए भी आपको पढ़ने की ज़रूरत होती है। तो फिर, आप कितनी आध्यात्मिक उन्‍नति कर पाएँगे, यह काफी हद तक इस बात पर निर्भर है कि पढ़ने की आपकी आदतें कैसी हैं।

मौके का फायदा उठाइए

पेज 22 पर दी तसवीर

दूसरों को पढ़कर सुनाते वक्‍त लिखे हुए विचारों और भावनाओं को व्यक्‍त करना सीखिए

आज जो लोग परमेश्‍वर के मार्गों को सीख रहे हैं उनमें से कुछ, बहुत कम पढ़े-लिखे हैं। उन्हें पढ़ना-लिखना सिखाने की ज़रूरत हो सकती है ताकि वे आध्यात्मिकता में और ज़्यादा तरक्की कर सकें। या हो सकता है कि उन्हें पढ़ने की अपनी काबिलीयत बढ़ाने के लिए किसी से खास मदद की ज़रूरत पड़े। कुछ कलीसियाएँ अपने इलाके की ज़रूरत के हिसाब से ऐसी क्लासें रखती हैं जिनमें पढ़ना-लिखना सिखाया जाता है। इस इंतज़ाम से हज़ारों लोगों को फायदा हुआ है। इस बात को मद्देनज़र रखते हुए कि ठीक से पढ़ना कितना ज़रूरी है, कुछ कलीसियाएँ मसीही सेवा स्कूल के साथ-साथ पढ़ाई-सुधार क्लासें चलाती हैं। लेकिन जिन कलीसियाओं में ऐसी क्लासों का इंतज़ाम नहीं है, वहाँ के भाई-बहन भी अगर हर दिन कुछ वक्‍त निकालकर अपने आप ज़ोर से पढ़ें और मसीही सेवा स्कूल में हर हफ्ते हाज़िर होकर उसमें भाग लें, तो वे अच्छी तरक्की कर सकते हैं।

अफसोस की बात है कि आज बहुत-से लोग, कॉमिक्स और टी.वी. जैसी चीज़ों की तरफ इतने आकर्षित हो चुके हैं कि अब किताबों में उनकी कोई दिलचस्पी नहीं रही। जो लोग टी.वी. ज़्यादा देखते हैं और किताबें कम पढ़ते हैं, वे पढ़ने की कला नहीं बढ़ा पाते, और उनके सोचने, तर्क करने और ठीक से अपनी बात कहने की क्षमता में रुकावट आ जाती है।

जिन किताबों और पत्रिकाओं की मदद से हमें बाइबल की बातें समझ में आती हैं, उन्हें “विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास” ने तैयार किया है। इनमें बहुत ही ज़रूरी आध्यात्मिक सच्चाइयों का भंडार है। (मत्ती 24:45; 1 कुरि. 2:12, 13) इसके अलावा, ये हमें संसार के बदलते हालात की ताज़ा जानकारी देती हैं और बताती हैं कि यह हमारे लिए क्या मायने रखते हैं। ये हमें सृष्टि से वाकिफ कराती हैं और सिखाती हैं कि ज़िंदगी की समस्याओं का कैसे सामना किया जा सकता है। इन सबसे बढ़कर, ये सिखाती हैं कि परमेश्‍वर के बताए तरीके से उसकी सेवा कैसे की जाए और उसकी मंज़ूरी कैसे पाएँ। अगर आप इस तरह के अच्छे विषय पढ़ेंगे तो आप एक आध्यात्मिक इंसान बन सकेंगे।

लेकिन अच्छी तरह पढ़ना आना अपने-आप में एक बड़ी बात नहीं है। इस काबिलीयत का सही इस्तेमाल भी किया जाना चाहिए। जिस तरह हम अपने खाने की चीज़ें चुन-चुनकर खरीदते हैं, उसी तरह यह ज़रूरी है कि हम पढ़ने के लिए सही किताबें चुनें। ऐसा भोजन क्यों खाना, जिसमें कोई पौष्टिक तत्व न हो, या जो आपकी जान ही ले ले? उसी तरह ऐसी किताबें भी क्यों पढ़ें जो आपके दिलो-दिमाग को भ्रष्ट कर सकती हैं, फिर चाहे आप इन्हें सिर्फ मन-बहलाने के लिए ही क्यों न पढ़ें? कौन-सी किताबें पढ़नी चाहिए और कौन-सी नहीं, यह बाइबल के सिद्धांतों के आधार पर तय करना चाहिए। इसलिए किताबें चुनते वक्‍त, ऐसी आयतों को ध्यान में रखिए, जैसे सभोपदेशक 12:12, 13; इफिसियों 4:22-24; 5:3, 4; फिलिप्पियों 4:8; कुलुस्सियों 2:8; 1 यूहन्‍ना 2:15-17; और 2 यूहन्‍ना 10.

सही मंशा के साथ पढ़िए

सुसमाचार की किताबों का गहराई से अध्ययन करने पर यह साफ ज़ाहिर हो जाता है कि पढ़ने के साथ-साथ सही मंशा का होना बहुत ज़रूरी है। मत्ती की किताब पर ध्यान दीजिए। वहाँ हम उन धर्मगुरुओं के बारे में पढ़ते हैं जो व्यवस्था के ज्ञानी थे, मगर यीशु को फँसाने के इरादे से उससे छल भरे सवाल पूछते थे। लेकिन यीशु, परमेश्‍वर के वचन से उन्हें जवाब देने से पहले पूछता था: “क्या तुम ने नहीं पढ़ा?” और “क्या तुम ने यह कभी नहीं पढ़ा?” (मत्ती 12:3, 5; 19:4; 21:16, 42; 22:31) धर्मगुरुओं की मिसाल से हम यह सबक सीखते हैं कि अगर हमारी मंशा सही नहीं होगी, तो हम या तो आयतों का गलत मतलब निकालेंगे या उनका मतलब समझेंगे ही नहीं। फरीसी इसलिए शास्त्र पढ़ते थे क्योंकि उनका मानना था कि वे इसके ज़रिए हमेशा की ज़िंदगी के हकदार बन सकते हैं। लेकिन जैसा यीशु ने समझाया, हमेशा की ज़िंदगी का इनाम ऐसे लोगों को नहीं मिलेगा जो ना तो परमेश्‍वर से प्रेम करते हैं और ना ही उसके उद्धार के इंतज़ाम को कबूल करते हैं। (यूह. 5:39-43) फरीसी स्वार्थी थे और उनकी मंशा सही नहीं थी, इसलिए शास्त्र की उनकी समझ बिगड़ी हुई थी।

यहोवा का वचन पढ़ने की सबसे पवित्र मंशा है, उसके लिए दिल में प्रेम होना। यह प्रेम हमें परमेश्‍वर की मरज़ी जानने के लिए उकसाएगा क्योंकि प्रेम “सत्य से आनन्दित होता है।” (1 कुरि. 13:6) हो सकता है हम शुरू से ही पढ़ने के शौकीन न हों, लेकिन अगर हम अपने “सारे मन” से यहोवा को प्यार करते हैं, तो हम मन लगाकर, जी-जान से उसका ज्ञान हासिल करने की कोशिश करेंगे। (मत्ती 22:37) यहोवा के लिए प्यार हमारे अंदर उसे जानने की दिलचस्पी पैदा करेगा और यह दिलचस्पी हमें उसके बारे में सीखने के लिए उकसाएगी।

सही रफ्तार से पढ़िए

पढ़ने का संबंध शब्दों को पहचानने से है। इस वक्‍त आप यही कर रहे हैं, आप शब्दों को पहचान रहे हैं और उनका मतलब भी आपके ध्यान में आता जा रहा है। अगर आप पढ़ने की रफ्तार बढ़ाना चाहते हैं, तो आपको एक नज़र में एक-से-ज़्यादा शब्द पहचानने की कोशिश करनी होगी। एक-एक शब्द को रुककर देखने के बजाय एक-साथ कई शब्दों को देखिए और पढ़ने की कोशिश कीजिए। जैसे-जैसे आप इसमें सुधार करते जाएँगे, आप पाएँगे कि आप जो पढ़ते हैं, वह आपको ज़्यादा अच्छी तरह समझ में आने लगा है।

पेज 24 पर दी तसवीर

अगर परिवार के सदस्य साथ मिलकर पढ़ें, तो उनकी एकता मज़बूत होगी

लेकिन जब आप किसी गूढ़ विषय के बारे में पढ़ते हैं, तो उसकी ज़्यादा-से-ज़्यादा समझ हासिल करने के लिए आपको पढ़ने का एक अलग तरीका अपनाना होगा। वह तरीका क्या है? गौर कीजिए कि यहोवा ने यहोशू को शास्त्र पढ़ने के बारे में क्या सलाह दी। यहोवा ने उससे कहा: “व्यवस्था की यह पुस्तक तेरे चित्त से कभी न उतरने पाए, इसी में . . . ध्यान दिए रहना।” (यहो. 1:8) जब एक इंसान किसी विषय पर गहराई से सोचता या ध्यान देता है, तो वह अकसर धीरे-धीरे कुछ बुदबुदाता है। इसलिए, जिस इब्रानी शब्द का अनुवाद “ध्यान” देना किया गया है, उसी शब्द के लिए कुछ अनुवादों में ‘मंद स्वर में पढ़ना’ अनुवाद किया गया है। (भज. 63:6; 77:12; 143:5) जी हाँ, जब कोई पढ़ते वक्‍त ध्यान देता है, तो वह गहराई से सोचता या मनन करता है, फटाफट पढ़ता नहीं जाता। परमेश्‍वर का वचन पढ़ते वक्‍त अगर आप साथ-साथ मनन भी करेंगे, तो आपके दिल और दिमाग पर इसका ज़्यादा गहरा असर होगा। बाइबल की भविष्यवाणियाँ, सलाह, नीतिवचन, कविताएँ, यहोवा के न्याय के संदेश, उसके मकसद के बारे में ब्योरेवार जानकारी और लोगों की ज़िंदगी की ढेरों सच्ची मिसालें, ऐसे लोगों के लिए अनमोल खज़ाना हैं जो यहोवा के मार्गों पर चलना चाहते हैं। इसलिए बाइबल को इस तरह पढ़ना कितना फायदेमंद होगा ताकि यह आपके दिल और दिमाग पर एक गहरी छाप छोड़ जाए!

ध्यान लगाना सीखिए

पेज 22 पर दी तसवीर

आपकी आध्यात्मिक उन्‍नति काफी हद तक आपके पढ़ने की आदत पर निर्भर करती है

जब आप किसी घटना के बारे में पढ़ रहे हैं, तो कल्पना कीजिए कि आप भी वहाँ मौजूद हैं और सबकुछ अपनी आँखों से देख रहे हैं। किरदारों की ज़िंदगी में क्या-क्या हो रहा है, वे किन भावनाओं से गुज़र रहे हैं, आप भी उसे महसूस करने की कोशिश कीजिए। हो सकता है कि पहला शमूएल के 17 अध्याय में दाऊद और गोलियत के किस्से और ऐसे ही दूसरे किस्सों को पढ़ते वक्‍त यह करना ज़्यादा आसान लगे। लेकिन अगर आप निर्गमन और लैव्यव्यवस्था में निवासस्थान के निर्माण और याजकवर्ग के इंतज़ाम की शुरूआत के बारे में दी गयी बारीकियाँ पढ़ते वक्‍त भी यही तरीका अपनाएँ, तो आपकी पढ़ाई में जान आ सकती है। आप निवासस्थान के तंबू की लंबाई-चौड़ाई और याजकों द्वारा इस्तेमाल की गयी सामग्रियों की मन-ही-मन तसवीर बनाइए। साथ ही, बलिदान में चढ़ाए जानेवाले धूप, भुने हुए अन्‍न और जानवरों की होमबलि से निकलनेवाली खुशबू की कल्पना कीजिए। सोचिए कि जब याजक तंबू में सेवा करते थे, तो उनमें कैसी श्रद्धा और विस्मय की भावना होती होगी! (लूका 1:8-10) इस तरह पढ़ते वक्‍त अपनी इंद्रियों का इस्तेमाल करने और भावनाओं को महसूस करने से, आप जो पढ़ रहे हैं उसकी अहमियत समझ पाएँगे और उसे याद रख पाएँगे।

लेकिन अगर आप पढ़ते वक्‍त ध्यान न दें, तो आपका मन भटक सकता है। आपकी नज़र पेज पर ही होगी, मगर मन कहीं और होगा। क्या कमरे में संगीत बज रहा है? क्या टी.वी. चल रहा है? क्या घर के लोग बातें कर रहे हैं? अच्छा होगा अगर आप एक शांत जगह पर बैठकर पढ़ाई करें। मगर हाँ, यह भी हो सकता है कि आपका ध्यान भटकने की वजह खुद आप हों। शायद आपने दिन भर काफी भाग-दौड़ की हो। उफ, सुबह से लेकर शाम तक हुई एक-एक बात आपको याद आती जाती है! दिन-भर जो कुछ हुआ, उसे याद करना वैसे तो अच्छी बात है, मगर यह पढ़ते वक्‍त नहीं करना चाहिए। शायद जब आप पढ़ने बैठते हैं, तो शुरू में आपका ध्यान पढ़ाई पर लगा रहता है या हो सकता है, आप प्रार्थना करके अपनी पढ़ाई शुरू करते हों। लेकिन धीरे-धीरे आप पाते हैं कि आपका दिमाग सैर पर निकलने लगता है। ऐसे में दोबारा कोशिश कीजिए। आप जो पढ़ रहे हैं, उसी पर ध्यान लगाए रखने के लिए अपने साथ सख्ती बरतिए। ऐसा करने से आप धीरे-धीरे सुधार कर पाएँगे।

पढ़ते वक्‍त अगर आपको कोई मुश्‍किल शब्द मिलता है, तो आप क्या करते हैं? कुछ कठिन शब्दों की परिभाषा या उनके बारे में जानकारी आपको शायद लेख में ही मिल जाए। या हो सकता है कि आस-पास के वाक्य पढ़कर आप उन शब्दों का मतलब समझ जाएँ। लेकिन अगर आपको मतलब नहीं मालूम, तो शब्दकोश या डिक्शनरी में उनका मतलब ज़रूर ढूँढ़िए। और अगर आपके पास शब्दकोश नहीं है, तो उन शब्दों पर निशान लगाकर रखिए ताकि आप बाद में किसी और से उनका मतलब पूछ सकें। ऐसा करने से आपका शब्द-ज्ञान बढ़ेगा और पढ़ते वक्‍त आपकी समझने की शक्‍ति बढ़ेगी।

लोगों के सामने पढ़कर सुनाना

पेज 22 पर दी तसवीर

दूसरों को पढ़कर सुनाने में ध्यान लगाए रहिए

जब प्रेरित पौलुस ने तीमुथियुस को बताया कि वह पढ़ने में ध्यान लगाए रह, तो वह खासकर दूसरों को पढ़कर सुनाने के बारे में बात कर रहा था। (1 तीमु. 4:13, हिन्दुस्तानी बाइबल) दूसरों के लिए अच्छी तरह पढ़ने का मतलब सिर्फ शब्दों को ज़ोर-ज़ोर से पढ़कर सुना देना नहीं है। पढ़नेवाले को शब्दों का मतलब और उनमें ज़ाहिर किए गए विचारों को समझना चाहिए। तभी वह पढ़ते समय लिखे हुए विचारों और भावनाओं को सही-सही ज़ाहिर कर पाएगा। मगर हाँ, इसके लिए पहले से अच्छी तैयारी और अभ्यास की ज़रूरत है। इसीलिए, पौलुस ने यह आग्रह किया था: ‘पढ़ने की तरफ ध्यान लगाए रह।’ (तिरछे टाइप हमारे।) इस काबिलीयत को बढ़ाने में आपको, परमेश्‍वर की सेवा स्कूल से बेहतरीन तालीम मिलेगी।

पढ़ने के लिए वक्‍त निकालिए

“परिश्रमी की योजनाएं नि:सन्देह लाभदायक होती हैं, परन्तु प्रत्येक उतावली करने वाला निश्‍चय ही दरिद्रता में फंस जाता है।” (नीति. 21:5, NHT) यह बात पढ़ने की हमारी ख्वाहिश के बारे में भी कितनी सच है! पढ़ाई से ‘लाभ’ पाने के लिए हमें पूरी लगन और सूझ-बूझ के साथ योजना बनानी चाहिए, तभी हमारे दूसरे काम, पढ़ने के वक्‍त में बाधा नहीं बनेंगे।

आप कब पढ़ते हैं? क्या आपको सवेरे-सवेरे पढ़ना ज़्यादा फायदेमंद लगता है? या क्या आप दोपहर के वक्‍त पढ़ने में अच्छी तरह ध्यान दे पाते हैं? अगर आप दिन में पढ़ाई के लिए सिर्फ 15 या 20 मिनट का समय भी निकालेंगे, तो आप इतना कुछ पढ़ पाएँगे कि आप दंग रह जाएँगे। इसमें कामयाबी का राज़ है, बिना नागा पढ़ना।

यहोवा ने अपने महान उद्देश्‍यों को एक किताब में दर्ज़ करवाने का चुनाव क्यों किया? इसलिए ताकि लोग उसके लिखित वचन को पढ़ सकें। उसे पढ़कर ही वे यहोवा के आश्‍चर्यकर्मों से वाकिफ होते हैं, उनके बारे में अपने बच्चों को बता पाते हैं और परमेश्‍वर के बड़े-बड़े कामों को याद रख पाते हैं। (भज. 78:5-7) यहोवा ने हमें अपना जीवनदायी वचन देकर जो दरियादिली दिखाई है, उसके लिए अपनी कदरदानी दिखाने का सबसे बढ़िया तरीका है, उस वचन को मन लगाकर पढ़ना।

आपने क्या-क्या पढ़ने का कार्यक्रम बनाया है?

  • क्या आपकी सूची में बाइबल सबसे पहले आती है?

  • क्या आप प्रहरीदुर्ग और सजग होइए! का हर अंक पढ़ते हैं?

  • जब आपको बाइबल की समझ देनेवाला कोई नया साहित्य मिलता है, तब क्या आप उसे फौरन पढ़ना शुरू कर देते हैं?

  • जब आपको हमारी राज्य सेवकाई मिलती है, तो क्या आप यह जानने के लिए उसे पढ़ते हैं कि उसमें और भी बेहतर तरीके से प्रचार करने के बारे में क्या-क्या सुझाव दिए गए हैं?

  • अब तक आप यहोवा के साक्षियों की कितनी पुरानी किताबें-पत्रिकाएँ पढ़ चुके हैं?

    हिंदी साहित्य (1972-2025)
    लॉग-आउट
    लॉग-इन
    • हिंदी
    • दूसरों को भेजें
    • पसंदीदा सेटिंग्स
    • Copyright © 2025 Watch Tower Bible and Tract Society of Pennsylvania
    • इस्तेमाल की शर्तें
    • गोपनीयता नीति
    • गोपनीयता सेटिंग्स
    • JW.ORG
    • लॉग-इन
    दूसरों को भेजें