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  • “आनंद और पवित्र शक्‍ति से भरपूर”

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  • “आनंद और पवित्र शक्‍ति से भरपूर”
  • ‘परमेश्‍वर के राज के बारे में अच्छी तरह गवाही दो’
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  • प्रचार ‘काम के लिए अलग किए जाते हैं’ (प्रेषि. 13:1-12)
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‘परमेश्‍वर के राज के बारे में अच्छी तरह गवाही दो’
bt अध्या. 11 पेज 85-92

अध्याय 11

“आनंद और पवित्र शक्‍ति से भरपूर”

विरोधियों के साथ सही तरह से पेश आने में पौलुस एक मिसाल रखता है

प्रेषितों 13:1-52 पर आधारित

1, 2. बरनबास और शाऊल को जो ज़िम्मेदारी मिली वह दूसरे काबिल भाइयों से कैसे अलग है? इससे प्रेषितों 1:8 की भविष्यवाणी कैसे और भी ज़ोर-शोर से पूरी होगी?

अंताकिया की मंडली के लिए यह बहुत खुशी का दिन है! कई भविष्यवक्‍ता और शिक्षक जमा हैं और पवित्र शक्‍ति उन सबमें से बरनबास और शाऊल को एक खास ज़िम्मेदारी के लिए चुनती है।a उन्हें खुशखबरी का संदेश लेकर दुनिया के दूर-दूर के इलाकों तक जाना है। (प्रेषि. 13:1, 2) इससे पहले भी काबिल भाइयों को दूसरे इलाकों में भेजा गया था लेकिन वे ऐसे इलाके थे जहाँ कई लोग मसीही बन चुके थे। (प्रेषि. 8:14; 11:22) मगर अब बरनबास और शाऊल को ऐसे देशों में भेजा जा रहा है जहाँ ज़्यादातर लोगों ने खुशखबरी नहीं सुनी। और इन दोनों प्रेषितों के साथ मरकुस को भी भेजा जा रहा है जो उनकी सेवा करेगा।

2 करीब 14 साल पहले यीशु ने अपने चेलों से कहा था, “तुम . . . यरूशलेम और सारे यहूदिया और सामरिया में, यहाँ तक कि दुनिया के सबसे दूर के इलाकों में मेरे बारे में गवाही दोगे।” (प्रेषि. 1:8) यीशु की यह भविष्यवाणी अब और भी ज़ोर-शोर से पूरी होगी, क्योंकि बरनबास और शाऊल मिशनरी सेवा शुरू करनेवाले हैं।b

प्रचार ‘काम के लिए अलग किए जाते हैं’ (प्रेषि. 13:1-12)

3. पहली सदी में लंबा सफर तय करना क्यों मुश्‍किल होता था?

3 आज गाड़ियों और हवाई जहाज़ वगैरह की बदौलत हम सैकड़ों किलोमीटर का सफर कुछ ही घंटों में तय कर सकते हैं। लेकिन प्रेषितों के ज़माने में ज़्यादातर सफर पैदल चलकर करना पड़ता था और वह भी ऊबड़-खाबड़ रास्तों पर। एक दिन में एक इंसान ज़्यादा-से-ज़्यादा 30 किलोमीटर चल पाता था, क्योंकि इसके बाद पैरों में जान नहीं रहती।c हालाँकि बरनबास और शाऊल अपनी नयी ज़िम्मेदारी को लेकर बहुत खुश हैं मगर वे जानते हैं कि इस काम में बहुत मेहनत लगेगी और उन्हें कई त्याग करने पड़ेंगे।​—मत्ती 16:24.

सड़क से सफर करना कैसा होता था?

प्रेषितों के दिनों में सड़क से सफर करने में बहुत समय लगता था और यह काफी थका देनेवाला होता था। यह शायद समुद्री सफर से ज़्यादा महँगा भी होता था। लेकिन कई जगहों तक सिर्फ पैदल चलकर ही पहुँचा जा सकता था।

एक व्यक्‍ति दिन-भर में ज़्यादा-से-ज़्यादा 30 किलोमीटर ही चल पाता था। उसे कड़ी धूप, बारिश, गरमी और ठंड सहनी पड़ती थी और डाकू-लुटेरों का भी डर लगा रहता था। प्रेषित पौलुस ने कहा कि उसे “बार-बार सफर के खतरों से, नदियों के खतरों से, डाकुओं के खतरों से” गुज़रना पड़ा।​—2 कुरिं. 11:26.

पूरे रोमी साम्राज्य में पक्की सड़कें थीं। मुख्य सड़कों पर हर 30 किलोमीटर के बाद एक सराय या रुकने की जगह होती थी। बीच-बीच में खाने की जगह या ऐसी दुकानें होती थीं, जहाँ से लोग ज़रूरत की चीज़ें खरीद सकते थे। उस ज़माने के लेखकों का कहना है कि इन जगहों पर बहुत भीड़ होती थी, ये बहुत गंदी और खटमलों से भरी हुई होती थीं। ये जगह बदनाम थीं क्योंकि यहाँ अकसर बुरे और नीच किस्म के लोग आकर रुकते थे। सराय के मालिक अकसर वहाँ रुकनेवालों की चीज़ें लूट लेते थे। इन सरायों में वेश्‍याओं का इंतज़ाम भी होता था।

मसीही ज़रूर ऐसी जगहों से दूर रहते होंगे। लेकिन सफर में अगर वे किसी ऐसी जगह से गुज़रते जहाँ उनके कोई दोस्त-रिश्‍तेदार नहीं होते, तो शायद उन्हें ऐसी जगहों में रुकना पड़ता होगा।

4. (क) बरनबास और शाऊल को कैसे चुना जाता है? इस पर मसीही भाई क्या करते हैं? (ख) हम उन भाइयों का साथ कैसे दे सकते हैं जिन्हें मंडली में ज़िम्मेदारियाँ दी जाती हैं?

4 बरनबास और शाऊल को ही क्यों इस ‘काम के लिए अलग किया गया’? (प्रेषि. 13:2) बाइबल इसकी कोई वजह नहीं बताती। लेकिन हम जानते हैं कि पवित्र शक्‍ति के मार्गदर्शन में ही इन दोनों आदमियों को चुना जाता है। अंताकिया की मंडली के भविष्यवक्‍ता और शिक्षक इस फैसले को कबूल करते हैं और उन्हें पूरा-पूरा सहयोग देते हैं। ज़रा सोचिए, बरनबास और शाऊल को उस वक्‍त कितनी खुशी हुई होगी जब वहाँ के मसीही भाई बिना किसी जलन-कुढ़न के उपवास और प्रार्थना करते हैं और ‘उन दोनों पर हाथ रखते हैं और उन्हें रवाना करते हैं।’ (प्रेषि. 13:3) आज भी भाइयों को मंडली में ज़िम्मेदारियाँ दी जाती हैं या निगरान ठहराया जाता है। उन भाइयों से जलने के बजाय हमें यह सलाह माननी चाहिए, “उनके काम की वजह से प्यार से उनकी बहुत कदर करो।” (1 थिस्स. 5:13) इस तरह हम उन भाइयों का पूरा-पूरा साथ दे रहे होंगे।

5. कुप्रुस द्वीप में गवाही देने के लिए बरनबास और शाऊल ने क्या किया?

5 अंताकिया से बरनबास और शाऊल पैदल चलकर पास के सिलूकिया बंदरगाह पहुँचते हैं। वहाँ से समुद्री जहाज़ पर चढ़कर वे कुप्रुस द्वीप के लिए रवाना होते हैं जो करीब 200 किलोमीटर दूर है।d बरनबास कुप्रुस का ही रहनेवाला है इसलिए वह ज़रूर अपने द्वीप के इलाकों में खुशखबरी सुनाने के लिए बेताब होगा। जब बरनबास और शाऊल उस द्वीप के पूर्वी छोर पर बसे सलमीस शहर पहुँचते हैं तो वे तुरंत वहाँ “यहूदियों के सभा-घरों में परमेश्‍वर का वचन सुनाने” लगते हैं।e (प्रेषि. 13:5) वे कुप्रुस द्वीप के एक छोर से दूसरे छोर तक जाते हैं और रास्ते में पड़नेवाले बड़े-बड़े शहरों में खुशखबरी सुनाते हैं। इसके लिए इन मिशनरियों को करीब 160 किलोमीटर पैदल चलना पड़ा होगा।

यहूदियों का सभा-घर

मूल भाषा में शब्द “सभा-घर” का मतलब है “इकट्ठा करना।” शुरू-शुरू में इस शब्द का इस्तेमाल एक ऐसे समूह के लिए किया जाता था जो एक-साथ इकट्ठा होता था। लेकिन बाद में यह शब्द उस जगह या इमारत के लिए इस्तेमाल होने लगा जहाँ यहूदी उपासना के लिए इकट्ठा होते थे।

माना जाता है कि जब यहूदियों को बंदी बनाकर बैबिलोन ले जाया गया तब से वे उपासना करने के लिए सभा-घरों में इकट्ठा होने लगे। सभा-घरों में यहोवा के बारे में सिखाया जाता था, शास्त्र से पढ़ा जाता था और शास्त्र की बातें समझायी जाती थीं। ईसवी सन्‌ पहली सदी में इसराएल देश के हर कसबे में एक सभा-घर था और बड़े शहरों में एक-से-ज़्यादा सभा-घर होते थे। यरूशलेम में तो कई सभा-घर थे।

बैबिलोन की बँधुआई से छूटने के बाद सभी यहूदी इसराएल नहीं लौटे। कई यहूदी कारोबार करने के लिए दूसरे देश चले गए। ईसा पूर्व पाँचवीं सदी के आते-आते यहूदी, फारस के पूरे साम्राज्य में फैल चुके थे। (एस्ते. 1:1; 3:8) समय के चलते, भूमध्य सागर के आस-पास के सभी इलाकों में यहूदी लोग आकर बस चुके थे। उन इलाकों में भी यहूदियों ने अपने-अपने सभा-घर बनाए।

सभा-घर में एक मंच होता था और मंच के सामने और उसके दोनों तरफ लोगों के बैठने की जगह होती थी। हर हफ्ते सब्त के दिन इसी मंच से मूसा का कानून पढ़कर सुनाया जाता और उसका मतलब समझाया जाता था। कोई भी वफादार यहूदी आदमी यह काम कर सकता था।

6, 7. (क) सिरगियुस पौलुस कौन है? बार-यीशु क्यों पूरी कोशिश करता है कि सिरगियुस पौलुस खुशखबरी ना अपनाए? (ख) बार-यीशु को रोकने के लिए शाऊल क्या करता है?

6 पहली सदी में कुप्रुस द्वीप के लोग झूठे देवी-देवताओं को मानते थे। बरनबास और शाऊल को इस बात का एहसास तब होता है जब वे द्वीप के पश्‍चिमी तट पर बसे पाफुस शहर पहुँचते हैं। वहाँ उन्हें ‘बार-यीशु नाम का एक यहूदी मिलता है। वह एक जादूगर और झूठा भविष्यवक्‍ता है।’ और ‘वह उस प्रांत के राज्यपाल सिरगियुस पौलुस के साथ-साथ रहता है। सिरगियुस पौलुस एक अक्लमंद इंसान है।’f उन दिनों, रोम के बड़े-बड़े लोग यहाँ तक कि सिरगियुस पौलुस जैसे “अक्लमंद इंसान” भी ज़रूरी फैसले करते वक्‍त जादूगरों या ज्योतिषियों से सलाह लेते थे। लेकिन राज का संदेश सुनकर सिरगियुस पौलुस की दिलचस्पी बढ़ जाती है और वह “परमेश्‍वर का वचन सुनने की गहरी इच्छा” दिखाता है। बार-यीशु को यह बात अच्छी नहीं लगती। इस आदमी को इलीमास नाम से भी जाना जाता है जिसका मतलब ही “जादूगर” है।​—प्रेषि. 13:6-8.

7 बार-यीशु जानता है कि अगर सिरगियुस पौलुस ने राज का संदेश कबूल कर लिया तो वह उसकी सलाह मानना छोड़ देगा। इसलिए वह पूरी कोशिश करता है कि “राज्यपाल इस विश्‍वास को न अपनाए।” (प्रेषि. 13:8) मगर शाऊल भी हाथ-पर-हाथ धरे बैठा नहीं रहता। ब्यौरा बताता है, ‘तब शाऊल, जिसका नाम पौलुस भी है, पवित्र शक्‍ति से भरकर बार-यीशु की तरफ टकटकी लगाकर देखता है और कहता है, “अरे शैतान की औलाद, तू जो हर तरह की धोखाधड़ी और मक्कारी से भरा हुआ है और हर तरह की नेकी का दुश्‍मन है, क्या तू यहोवा की सीधी राहों को बिगाड़ना नहीं छोड़ेगा? अब देख! यहोवा का हाथ तेरे खिलाफ उठा है और तू अंधा हो जाएगा और कुछ वक्‍त के लिए सूरज की रौशनी नहीं देख पाएगा।” उसी पल उसकी आँखों के आगे घने कोहरे जैसा धुँधलापन और अँधेरा छा जाता है और वह इधर-उधर टटोलने लगता है कि कोई उसका हाथ पकड़कर उसे ले चले।’g यह सब देखकर ‘राज्यपाल विश्‍वासी बन जाता है क्योंकि वह यहोवा की शिक्षा से दंग रह जाता है।’​—प्रेषि. 13:9-12.

अदालत में एक भाई के हाथ में खुली बाइबल है और वह जज के सामने सच्चाई की पैरवी कर रहा है।

पौलुस की तरह हम भी निडर होकर सच्चाई की पैरवी करते हैं

8. हम पौलुस की तरह निडर कैसे हो सकते हैं?

8 आज भी विरोधी पूरी कोशिश करते हैं कि दिलचस्पी रखनेवाले लोग राज का संदेश ना अपनाएँ। लेकिन जिस तरह पौलुस बार-यीशु से नहीं डरा था हमें भी विरोधियों से नहीं डरना चाहिए और सच्चाई की पैरवी करनी चाहिए। उनसे बात करते वक्‍त हमें ध्यान रखना चाहिए कि हमारे बोल “हमेशा मन को भानेवाले और सलोने हों।” (कुलु. 4:6) पर दिलचस्पी रखनेवालों को सच्चाई सिखाने के लिए हमसे जो हो सकेगा हम करेंगे, हम विरोधियों के डर से चुप नहीं रहेंगे। बार-यीशु की तरह झूठा धर्म भी आज ‘यहोवा की सीधी राहों को बिगाड़ता’ है। इसलिए हमें निडर होकर उसके गलत कामों के बारे में बताना चाहिए। (प्रेषि. 13:10) आइए हम पौलुस की तरह हिम्मत के साथ गवाही दें और सच्चाई सीखने में नेकदिल लोगों की मदद करें। आज यहोवा हमें चमत्कार करने की शक्‍ति नहीं देता, जैसे उसने पौलुस को दी थी। पर हम एक बात का यकीन रख सकते हैं। वह हमें अपनी पवित्र शक्‍ति ज़रूर देगा ताकि हम सही मन रखनेवालों को सच्चाई सिखा सकें।​—यूह. 6:44.

‘हिम्मत बँधाने के लिए कुछ कहो’ (प्रेषि. 13:13-43)

9. पौलुस और बरनबास ने ज़िम्मेदार भाइयों के लिए क्या मिसाल रखी?

9 इसके बाद बरनबास, पौलुस और उनका साथी मरकुस पाफुस शहर छोड़ते हैं। वे जहाज़ से करीब 250 किलोमीटर दूर पिरगा शहर के लिए निकल पड़ते हैं जो एशिया माइनर के तट के पास है। अब तक जब भी इन तीनों की बात हुई है तो बरनबास का नाम सबसे पहले आता था लेकिन अब एक बदलाव होता है। प्रेषितों 13:13 से लेखक जब भी इनका ज़िक्र करता है तो उन्हें “पौलुस और उसके साथी” कहकर बुलाता है। इससे पता चलता है कि अब से पौलुस प्रचार काम की अगुवाई करने लगता है। लेकिन इस बात का कोई इशारा नहीं मिलता कि इस वजह से बरनबास पौलुस से जलने लगा। इसके बजाय, ये दोनों मसीही परमेश्‍वर की मरज़ी पूरी करने में कंधे-से-कंधा मिलाकर काम करते हैं। पौलुस और बरनबास ने ज़िम्मेदार भाइयों के लिए क्या ही बढ़िया मिसाल रखी! सच्चे मसीही एक-दूसरे से बड़ा बनने के बजाय यीशु की यह बात याद रखते हैं, “तुम सब भाई हो।” यीशु ने यह भी कहा था कि “जो कोई खुद को बड़ा बनाता है, उसे छोटा किया जाएगा और जो कोई खुद को छोटा बनाता है उसे बड़ा किया जाएगा।”​—मत्ती 23:8, 12.

10. पिरगा से पिसिदिया के अंताकिया तक का सफर कैसा रहा होगा?

10 पिरगा पहुँचने पर मरकुस पौलुस और बरनबास को छोड़कर यरूशलेम लौट जाता है। बाइबल नहीं बताती कि मरकुस क्यों अचानक लौट गया। पौलुस और बरनबास अपना सफर जारी रखते हैं। वे पिरगा से पिसिदिया के अंताकिया शहर जाते हैं, जो गलातिया प्रांत में है। यह सफर आसान नहीं है क्योंकि पिसिदिया का अंताकिया समुद्र-तल से करीब 1,100 मीटर की ऊँचाई पर था। वहाँ पहुँचने के लिए उन्हें पहाड़ी रास्तों से जाना होता था। यह सफर खतरे से खाली नहीं था क्योंकि वहाँ बहुत-से लुटेरे होते थे। शायद इस दौरान पौलुस की तबियत भी ठीक नहीं थी।h

11, 12. सभा-घर में पौलुस क्या करता है ताकि लोग उसके संदेश में दिलचस्पी लें?

11 पिसिदिया के अंताकिया में, पौलुस और बरनबास सब्त के दिन सभा-घर में जाते हैं। आयत बताती है, ‘वहाँ जब सबके सामने कानून और भविष्यवक्‍ताओं की किताबें पढ़कर सुनायी गयीं, तो इसके बाद सभा-घर के अधिकारी पौलुस और उसके साथियों को यह कहकर बुलाते हैं, “भाइयो, अगर लोगों की हिम्मत बँधाने के लिए तुम्हारे पास कहने को कुछ हो तो कहो।”’ (प्रेषि. 13:15) तब पौलुस सभा के सामने बोलने के लिए उठता है।

12 पौलुस सबसे पहले कहता है, “इसराएलियो और परमेश्‍वर का डर माननेवाले दूसरे लोगो, सुनो।” (प्रेषि. 13:16) सभा-घर में बैठे इन लोगों में से कुछ यहूदी हैं और कुछ ऐसे लोग हैं जिन्होंने यहूदी धर्म अपनाया था। इन लोगों ने अब तक यीशु को मसीहा नहीं माना था। तो अब पौलुस क्या करता है ताकि लोग उसके संदेश में दिलचस्पी लें? सबसे पहले, वह चंद शब्दों में इसराएल राष्ट्र का इतिहास बताता है। वह समझाता है कि जब इसराएली “मिस्र में परदेसियों की तरह रहते थे” तो यहोवा ने “उन्हें महान किया” और फिर उनके आज़ाद होने के बाद वह 40 साल तक “वीराने में उन्हें बरदाश्‍त करता रहा।” पौलुस यह भी समझाता है कि इसराएली कैसे वादा किए गए देश पर कब्ज़ा कर पाए और यहोवा ने वह “देश इसराएलियों को विरासत में दे दिया।” (प्रेषि. 13:17-19) कहा जाता है कि पौलुस ने उन्हीं बातों के बारे में बात की, जो कुछ देर पहले सब्त के मौके पर शास्त्र से पढ़कर सुनायी गयी थीं। अगर यह अंदाज़ा सही है, तो यह कहना भी सही होगा कि पौलुस “सब किस्म के लोगों के लिए सबकुछ बना।”​—1 कुरिं. 9:22.

13. हम क्या कर सकते हैं ताकि लोग हमारे संदेश में दिलचस्पी लें?

13 पौलुस की तरह हम क्या कर सकते हैं ताकि लोग हमारे संदेश में दिलचस्पी लें? अगर हमें पता चले कि घर-मालिक किस धर्म को मानता है, तो हम ऐसे विषय चुन सकते हैं जिनके बारे में बात करना उसे पसंद हो। या अगर घर-मालिक बाइबल के कुछ वचन जानता है तो हम उन्हीं वचनों पर बात कर सकते हैं। उसे उसकी अपनी बाइबल से आयतें पढ़वाना और भी अच्छा रहेगा। हमें ऐसे और भी तरीके सोचने चाहिए जिनसे हम लोगों की दिलचस्पी बढ़ा सकें।

14. (क) पौलुस, यीशु के बारे में बताना कैसे शुरू करता है? वह लोगों को क्या कहकर आगाह करता है? (ख) पौलुस की बात का लोगों पर क्या असर होता है?

14 इसके बाद पौलुस उन्हें समझाता है कि इसराएली राजाओं के वंश से ‘उद्धारकर्ता यीशु’ आया था और उसके आने से पहले यूहन्‍ना बपतिस्मा देनेवाले ने रास्ता तैयार किया था। फिर पौलुस बताता है कि यीशु को मार डाला गया और दोबारा ज़िंदा किया गया। (प्रेषि. 13:20-37) वह आगे कहता है, “तुम जान लो कि उसी के ज़रिए तुम्हें पापों की माफी मिल सकती है और यही खबर हम तुम्हें सुना रहे हैं। . . . एक इंसान यीशु के ज़रिए निर्दोष ठहर सकता है, बशर्ते वह विश्‍वास करे।” फिर पौलुस सभा-घर में लोगों को आगाह करता है, “खबरदार रहो कि भविष्यवक्‍ताओं की किताबों में लिखी यह बात कहीं तुम्हारे साथ न घटे: ‘हे ठट्ठा करनेवालो, देखो, ताज्जुब करो और मिट जाओ, क्योंकि मैं तुम्हारे दिनों में ऐसा काम करनेवाला हूँ जिसके बारे में अगर कोई तुम्हें बारीकी से भी बताए, तो भी तुम हरगिज़ उसका यकीन नहीं करोगे।’” पौलुस के भाषण का लोगों पर ज़बरदस्त असर होता है। ‘वे बिनती करने लगते हैं कि ये बातें उन्हें अगले सब्त के दिन फिर सुनायी जाएँ।’ यही नहीं, जब सभा खत्म होती है “तो बहुत-से यहूदी और यहूदी धर्म अपनानेवाले, जो परमेश्‍वर की उपासना करते थे, पौलुस और बरनबास के साथ-साथ” जाते हैं।​—प्रेषि. 13:38-43.

“हम दूसरे राष्ट्रों के पास जा रहे हैं” (प्रेषि. 13:44-52)

15. अगले सब्त के दिन क्या होता है?

15 अगले सब्त के दिन, “करीब-करीब पूरा शहर” पौलुस का भाषण सुनने के लिए इकट्ठा होता है। यह देखकर कुछ यहूदी भड़क जाते हैं। वे ‘पौलुस की बातों को गलत साबित करने के लिए बहस करने लगते हैं और उसकी बातों की निंदा करने लगते हैं।’ मगर पौलुस और बरनबास निडर होकर उनसे कहते हैं, “यह ज़रूरी था कि परमेश्‍वर का वचन पहले तुम यहूदियों को सुनाया जाए। मगर तुम इसे ठुकरा रहे हो और दिखा रहे हो कि तुम हमेशा की ज़िंदगी के लायक नहीं हो, इसलिए देखो! हम दूसरे राष्ट्रों के पास जा रहे हैं। यहोवा ने हमें यह आज्ञा दी है, ‘मैंने तुझे राष्ट्रों के लिए रौशनी ठहराया है ताकि तू पृथ्वी के छोर तक उद्धार का संदेश सुनाए।’”​—प्रेषि. 13:44-47; यशा. 49:6.

गुस्से से पागल भीड़ पौलुस और बरनबास को पिसिदिया के अंताकिया शहर से भगाती है।

“उन्होंने पौलुस और बरनबास पर ज़ुल्म करवाया . . . और चेले आनंद और पवित्र शक्‍ति से भरपूर होते रहे।”​—प्रेषितों 13:50-52

16. पौलुस और बरनबास की बात सुनकर यहूदी क्या करते हैं? जब इन भाइयों का विरोध किया जाता है, तो वे क्या करते हैं?

16 पौलुस और बरनबास की बात सुनकर गैर-यहूदी बहुत खुश होते हैं और “वे सभी जो हमेशा की ज़िंदगी पाने के लायक अच्छा मन रखते थे, विश्‍वासी बन” जाते हैं। (प्रेषि. 13:48) जल्द ही यहोवा का वचन आस-पास के पूरे इलाके में फैल जाता है। लेकिन वहाँ के यहूदी खुश नहीं होते। पौलुस और बरनबास ने उनसे कहा कि परमेश्‍वर का वचन पहले उन्हें ही सुनाया गया था, लेकिन उन्होंने मसीहा को ठुकरा दिया। इसलिए अब वे परमेश्‍वर से सज़ा पाने के लायक हैं। तब वे यहूदी, शहर की जानी-मानी औरतों को और खास-खास आदमियों को भड़काते हैं और ‘पौलुस और बरनबास पर ज़ुल्म करवाते और उन्हें अपनी सरहदों के बाहर खदेड़ देते हैं।’ इस पर पौलुस और बरनबास क्या करते हैं? वे ‘अपने पैरों की धूल झाड़ देते हैं ताकि उनके खिलाफ गवाही हो और वे इकुनियुम शहर चले जाते हैं।’ क्या इसका मतलब है कि पिसिदिया के अंताकिया में मसीही धर्म मिट जाएगा? बिलकुल नहीं! आयत बताती है कि अंताकिया में रहनेवाले चेले “आनंद और पवित्र शक्‍ति से भरपूर होते रहे।”​—प्रेषि. 13:50-52.

17-19. हम पौलुस और बरनबास से क्या सीख सकते हैं? उनकी तरह बनने से हम क्यों खुश रहेंगे?

17 ये वफादार भाई जिस तरह प्रचार काम में लगे रहे, उससे हम एक ज़रूरी बात सीखते हैं। वह यह कि हम प्रचार करना कभी बंद नहीं करते, फिर चाहे दुनिया के बड़े-बड़े लोग हमें रोकने की लाख कोशिश करें। एक और बात पर ध्यान दीजिए। जब अंताकिया के लोगों ने परमेश्‍वर का संदेश ठुकरा दिया, तो पौलुस और बरनबास ने “अपने पैरों की धूल झाड़ दी।” इसका यह मतलब नहीं था कि वे लोगों से गुस्सा थे, बल्कि यह कि वहाँ के लोगों का अब जो अंजाम होगा उसके लिए वे दोनों ज़िम्मेदार नहीं हैं। ये मिशनरी जानते थे कि वे लोगों के साथ ज़बरदस्ती नहीं कर सकते कि वे यीशु पर विश्‍वास करें। लेकिन एक चीज़ वे कर सकते हैं और वह है, प्रचार करते रहना। और वे ऐसा ही करते हैं। वे अंताकिया छोड़कर इकुनियुम चले जाते हैं और वहाँ खुशखबरी सुनाने लगते हैं।

18 लेकिन अंताकिया में रहनेवाले चेलों के बारे में क्या कहा जा सकता है? पौलुस और बरनबास अब उनके साथ नहीं हैं और वे ऐसे लोगों के बीच रह रहे हैं जो उनके प्रचार काम का विरोध करते हैं। फिर भी वे निराश नहीं होते। ऐसा नहीं था कि लोग खुशखबरी कबूल करते, तो ही चेले खुश रहते। उनकी खुशी किस बात पर निर्भर होती, इस बारे में यीशु ने कहा था, “सुखी हैं वे जो परमेश्‍वर का वचन सुनते हैं और उस पर चलते हैं!” (लूका 11:28) जी हाँ, अंताकिया के चेलों ने ठान लिया था कि वे यीशु की बात मानेंगे और प्रचार करते रहेंगे।

19 पौलुस और बरनबास की तरह आइए हम हमेशा याद रखें कि हमारा काम खुशखबरी का प्रचार करना है। लोग सुनेंगे या नहीं, यह उनका फैसला है। अगर लोग हमारी नहीं सुनते, तो हम पहली सदी के चेलों को याद रखेंगे और उनकी तरह बनने की कोशिश करेंगे। हम विरोध के बावजूद खुश रहेंगे क्योंकि हमें सच्चाई की कदर है और हम पवित्र शक्‍ति के मार्गदर्शन में चलते हैं।​—गला. 5:18, 22.

बरनबास​—“दिलासे का बेटा”

बरनबास का असली नाम यूसुफ था। वह कुप्रुस का रहनेवाला एक लेवी था और उन भाइयों में से एक था जो यरूशलेम की मंडली में अगुवाई करते थे। दूसरों को दिलासा देना उसके स्वभाव में था, इसलिए प्रेषितों ने उसे बरनबास नाम दिया जिसका मतलब था, “दिलासे का बेटा।” (प्रेषि. 4:36) गौर कीजिए कि एक मौके पर जब भाई-बहनों को मदद की ज़रूरत थी, तो उसने तुरंत क्या किया।

बरनबास सिक्कों की दो थैलियाँ दान कर रहा है।

ईसवी सन्‌ 33 में पिन्तेकुस्त के दिन 3,000 लोगों ने बपतिस्मा लिया। शायद इनमें से ज़्यादातर लोग दूसरे देशों से यरूशलेम आए थे और उन्होंने सोचा नहीं होगा कि उन्हें इतने दिन यहाँ रुकना पड़ेगा। इतने सारे भाई-बहनों की देखभाल करने के लिए मंडली को पैसों की ज़रूरत थी। तब बरनबास ने दरियादिली दिखाते हुए अपनी ज़मीन का एक टुकड़ा बेच दिया और रकम लाकर प्रेषितों के पैरों पर रख दी।​—प्रेषि. 4:32-37.

बरनबास एक अनुभवी प्राचीन था और हमेशा दूसरों की मदद करता था। जब शाऊल नया-नया मसीही बना, तो चेले उससे डरने लगे क्योंकि वह मसीहियों को सताने के लिए जाना जाता था। तब बरनबास ही शाऊल की मदद करने के लिए आगे आया। (प्रेषि. 9:26, 27) एक बार जब पौलुस ने बरनबास और पतरस को सलाह दी कि उन्हें यहूदी और गैर-यहूदी मसीहियों के बीच फर्क नहीं करना चाहिए, तो बरनबास ने नम्रता से उसकी सलाह मानी। (गला. 2:9, 11-14) इन सबसे पता चलता है कि बरनबास को जो नाम दिया गया था, “दिलासे का बेटा” वह उस पर खरा उतरा।

a यह बक्स देखें, “बरनबास​—‘दिलासे का बेटा।’”

b इस समय तक दूर-दूर के इलाकों में काफी हद तक नयी मंडलियाँ बन चुकी थीं। जैसे, यरूशलेम से करीब 550 किलोमीटर दूर उत्तर की तरफ सीरिया के अंताकिया में।

c यह बक्स देखें, “सड़क से सफर करना कैसा होता था?”

d उस ज़माने में अगर हवा का रुख सही हो तो जहाज़ से दिन-भर में करीब 160 किलोमीटर की दूरी तय की जा सकती थी। लेकिन अगर मौसम खराब होता तो सफर में ज़्यादा वक्‍त लगता था।

e यह बक्स देखें, “यहूदियों का सभा-घर।”

f कुप्रुस द्वीप में रोमी सरकार का शासन था और उन्होंने अपनी तरफ से एक राज्यपाल को वहाँ ठहराया था।

g इस घटना के बाद से शाऊल, पौलुस कहलाया जाने लगा। कुछ लोगों का कहना है कि उसने सिरगियुस पौलुस के सम्मान में यह रोमी नाम अपनाया था। लेकिन यह सच नहीं है क्योंकि कुप्रुस छोड़ने के बाद भी वह यह नाम इस्तेमाल करता रहा। उसने अपना रोमी नाम इसलिए इस्तेमाल किया होगा क्योंकि उसे “गैर-यहूदी राष्ट्रों के लिए प्रेषित” चुना गया था। ऐसा करने की शायद एक और वजह थी। वह यह कि उसके इब्रानी नाम शाऊल का उच्चारण एक ऐसे यूनानी शब्द से मिलता-जुलता है जिसका गलत मतलब निकलता है।​—रोमि. 11:13.

h इसके कुछ साल बाद पौलुस ने गलातियों के नाम खत में लिखा, “अपनी बीमारी की वजह से मुझे पहली बार तुम्हें खुशखबरी सुनाने का मौका मिला था।”​—गला. 4:13.

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