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अध्याय 52

असरदार तरीके से उपदेश देना और उकसाना

आपको क्या करने की ज़रूरत है?

यकीन दिलानेवाले तर्क से या फिर किसी भरोसेमंद किताब या आदरणीय इंसान की सलाह बताकर, दूसरों को कदम उठाने के लिए उकसाइए। ऐसा करने के लिए पूरे जोश और उत्साह से बात करने की ज़रूरत है।

इसकी क्या अहमियत है?

दूसरों को असरदार तरीके से उकसाने से यह बात उनके मन में बैठ जाएगी कि यहोवा की आशीष पाने के लिए बेहद ज़रूरी है कि वे फौरन ऐसे मार्ग पर चलना शुरू करें जो यहोवा को मंज़ूर हो।

मसीही प्राचीन को इस काबिल होना चाहिए कि वह “खरी शिक्षा से उपदेश दे सके” या उकसा सके। (तीतु. 1:9) कभी-कभी यह काम बहुत मुश्‍किल हालात में करने की ज़रूरत पड़ती है। प्राचीनों के लिए बाइबल में दिए निर्देशों के मुताबिक सलाह देना ज़रूरी है। इसलिए, उन्हें इस सलाह पर चलना चाहिए: ‘उपदेश देने में अपने आप को लगाये रख।’ (1 तीमु. 4:13, ईज़ी-टू-रीड वर्शन) हालाँकि इस अध्याय में चर्चा की गयी बातें खासकर प्राचीनों और उन भाइयों के लिए हैं जो इस खास ज़िम्मेदारी के काबिल बनने की कोशिश कर रहे हैं। मगर इससे सभी को फायदा हो सकता है, क्योंकि कभी-कभी माता-पिता को अपने बच्चों को समझाना-बुझाना पड़ता है, या बाइबल अध्ययन करानेवालों को अपने विद्यार्थियों को कदम उठाने के लिए उकसाना पड़ता है। तब भी यहाँ दिए निर्देश लागू होते हैं।

किन हालात में उपदेश देने की ज़रूरत है। किन हालात में उपदेश देने की ज़रूरत है, यह तय करने के लिए अच्छा होगा अगर हम जाँच करें कि बाइबल में किन-किन हालात में उपदेश दिए गए हैं। प्रेरित पतरस ने प्राचीनों को उकसाया कि वे परमेश्‍वर के झुंड की रखवाली करने की अपनी ज़िम्मेदारी पर ध्यान दें। (1 पत. 5:1, 2) पौलुस ने तीतुस को सलाह दी कि वह जवान पुरुषों को समझाए कि वे “संयमी” हों। (तीतु. 2:6) पौलुस ने अपने संगी मसीहियों से बिनती की कि वे ‘एक ही बात कहें’ और ऐसे लोगों से बचकर रहें जो भाइयों में फूट पैदा करना चाहते हैं। (1 कुरि. 1:10; रोमि. 16:17; फिलि. 4:2) हालाँकि पौलुस ने थिस्सलुनीके की कलीसिया को उसकी अच्छी बातों के लिए सराहा, फिर भी उसने उनको उकसाया कि उन्हें जो उपदेश मिला था, उस पर अमल करने के लिए और ज़्यादा मेहनत करें। (1 थिस्स. 4:1, 10) पतरस ने अपने संगी मसीहियों से बिनती की कि ‘सांसारिक अभिलाषाओं से बचे रहें।’ (1 पत. 2:11) यहूदा ने अपने भाइयों को उकसाया कि वे ‘विश्‍वास के लिये पूरा यत्न करें,’ क्योंकि उनके बीच ऐसे अधर्मी लोग आ मिले थे जो लुचपन के कामों में लगे हुए थे। (यहू. 3, 4) और सभी मसीहियों को बढ़ावा दिया गया कि वे एक-दूसरे को उकसाते और समझाते रहें ताकि वे पाप के छल में फँसकर कठोर न हो जाएँ। (इब्रा. 3:13) पतरस ने उन यहूदियों को, जिन्होंने अब तक मसीह पर विश्‍वास नहीं किया था, यह नसीहत दी: “अपने आप को इस टेढ़ी जाति से बचाओ।”—प्रेरि. 2:40.

ऐसे हालात में ज़ोर देकर उकसाने और समझाने-बुझाने के लिए किन गुणों की ज़रूरत है? उपदेश देनेवाला बिना किसी कठोरता या रुखाई के कैसे दिखा सकता है कि वह जो कह रहा है, उसके मुताबिक जल्द-से-जल्द कदम उठाने की ज़रूरत है?

“प्रेम से।” अगर हम “प्रेम से” नहीं उकसाएँगे, तो हमारा समझाना-बुझाना शायद सुनने में कठोर लगे। (फिले. 9) बेशक, जब भाषण देनेवाला कोई ऐसी जानकारी पेश करता है, जिसके हिसाब से फौरन कदम उठाने की सख्त ज़रूरत है, तो उसके बात करने के लहज़े से यह साफ ज़ाहिर होना चाहिए। ऐसे हालात में, अगर उसकी आवाज़ में नरमी होगी, तो इससे लगेगा मानो वह किसी बात के लिए माफी माँग रहा है। लेकिन साथ ही, वक्‍ता को उत्साह से और गहरी भावनाओं के साथ आग्रह करना चाहिए। प्यार से आग्रह करने से सुननेवाले भी कदम उठाने के लिए प्रेरित होंगे। पौलुस ने अपनी और अपने साथियों की तरफ से बोलते वक्‍त, थिस्सलुनीकियों से कहा: ‘तुम जानते हो, कि जैसा पिता अपने बालकों के साथ बर्ताव करता है, वैसे ही हम तुम में से हर एक को भी उपदेश करते थे।’ (1 थिस्स. 2:11) उन मसीही ओवरसियरों ने बड़े प्यार से भाइयों को समझाया-बुझाया। आपकी बातों से भी यह ज़ाहिर हो कि आप अपने सुननेवालों की सच्ची परवाह करते हैं।

व्यवहार-कुशलता से काम लीजिए। जिन्हें आप किसी काम के लिए उकसाना चाहते हैं, उन्हें गुस्सा मत दिलाइए। मगर साथ ही, अपने सुननेवालों को “परमेश्‍वर की सारी मनसा” बताने से पीछे मत हटिए। (प्रेरि. 20:27) सुननेवालों में से जो लोग सलाह के लिए एहसानमंद हैं, वे आपसे नाराज़ नहीं होंगे, न ही आपके लिए उनका प्यार कम होगा क्योंकि आपने उन्हें प्यार से वह करने के लिए उकसाया है जो सही है।—भज. 141:5.

अकसर उपदेश देने से पहले कुछ खास बातों के लिए उनकी सच्ची तारीफ करना अच्छा होगा। अपने भाई-बहनों के उन भले कामों के बारे में सोचिए जिनसे यहोवा बहुत खुश होता है। जैसे, उनका विश्‍वास जो कामों से दिखायी देता है, वह प्यार जो उनको कड़ी मेहनत करने के लिए उकसाता है, और मुश्‍किल हालात में उनका धीरज। (1 थिस्स. 1:2-8; 2 थिस्स. 1:3-5) भाइयों की इन अच्छाइयों को सराहने से, वे महसूस कर पाएँगे कि आप उनकी कदर करते हैं, उनके हालात को समझते हैं। इसका नतीजा यह होगा कि उनका मन आपकी गुज़ारिश को सुनने के लिए तैयार होगा।

‘सब प्रकार की सहनशीलता के साथ।’ हमें ‘सब प्रकार की सहनशीलता के साथ’ दूसरों को उकसाना चाहिए। (2 तीमु. 4:2) इसके लिए क्या ज़रूरी है? सहनशीलता का मतलब है, अन्याय झेलते वक्‍त या गुस्सा दिलाए जाते वक्‍त सब्र रखना। एक सहनशील इंसान, यह उम्मीद कभी नहीं छोड़ता कि सुननेवाले उसकी बात पर ज़रूर अमल करेंगे। इस भावना के साथ उकसाने से आपके सुननेवाले कभी-भी यह नहीं सोचेंगे कि आप उनके बारे में ऐसा सोचते हैं कि वे कभी कुछ अच्छा नहीं कर सकते। अगर आप भाई-बहनों के बारे में यह भरोसा ज़ाहिर करेंगे कि वे यहोवा की सेवा में अपना भरसक करना चाहते हैं, तो आप सही काम करने की उनकी इच्छा को और मज़बूत करेंगे।—इब्रा. 6:9.

“खरी शिक्षा से उपदेश दे।” एक प्राचीन “खरी शिक्षा से [कैसे] उपदेश” दे सकता है? ‘सिखाने की कला में विश्‍वासयोग्य वचन को दृढ़ता से थामे रहने’ के ज़रिए वह ऐसा कर सकता है। (तीतु. 1:9, NW) अपनी खुद की राय बताने के बजाय, परमेश्‍वर के वचन के आधार पर उनसे ज़ोरदार अपील कीजिए। आपको क्या कहना चाहिए, यह तय करने के लिए बाइबल की मदद लीजिए। उन्हें यह बताइए कि चर्चा किए जा रहे विषय पर बाइबल में दी गयी सलाह को मानने के क्या-क्या फायदे हैं। परमेश्‍वर के वचन के मुताबिक न चलने से आज और भविष्य में क्या अंजाम भुगतने पड़ सकते हैं, यह अपने मन में अच्छी तरह बिठा लीजिए और इनके बारे में बताकर अपने सुननेवालों को यकीन दिलाइए कि सही कदम उठाना क्यों ज़रूरी है।

अपने सुननेवालों को यह साफ-साफ बताना मत भूलिए कि उन्हें क्या करना चाहिए और कैसे करना चाहिए। यह उनको स्पष्ट बताइए कि आप जो तर्क दे रहे हैं, वह पूरी तरह बाइबल से है। अगर बाइबल किसी फैसले के बारे में कुछ हद तक छूट देती है, तो बताइए कि वह किस हद तक छूट देती है। आखिर में, एक बार और सुननेवालों को उकसाइए ताकि सीखी हुई बातों पर अमल करने का उनका इरादा और भी मज़बूत हो।

‘निर्भीकता से बोलकर।’ दूसरों को असरदार तरीके से उपदेश देने के लिए, ‘निर्भीकता से बोलने’ की ज़रूरत है। (1 तीमु. 3:13, नयी हिन्दी बाइबिल) एक इंसान निर्भीक होकर या बेझिझक कब बोल पाता है? जब वह खुद उन “भले कामों का नमूना” हो, जिनके लिए वह अपने भाइयों को उकसा रहा है। (तीतु. 2:6, 7; 1 पत. 5:3) अच्छी मिसाल रखने से वह जिनको प्रेरित करता है, उन्हें यह एहसास होगा कि वक्‍ता उनसे कुछ ऐसा काम करने की उम्मीद नहीं रखता, जो वह खुद नहीं करता। वे देख सकते हैं कि उसके विश्‍वास की मिसाल पर चलना मुमकिन है, ठीक जैसे वह मसीह की मिसाल पर चलने की कोशिश करता है।—1 कुरि. 11:1; फिलि. 3:17.

परमेश्‍वर के वचन के आधार पर और प्यार की भावना से दूसरों को उपदेश देने से काफी अच्छे नतीजे निकलते हैं। जिन लोगों को दूसरों को उकसाने और समझाने-बुझाने की ज़िम्मेदारी सौंपी गयी है, उन्हें यह काम बढ़िया तरीके से करने के लिए मेहनत करनी चाहिए।—रोमि. 12:8.

यह कैसे करें

  • प्यार और सहनशीलता के साथ, और पूरे उत्साह से बात कीजिए।

  • परमेश्‍वर के वचन के आधार पर ही समझाइए।

  • एक अच्छी मिसाल रखकर अपने उपदेश को पुख्ता कीजिए।

अभ्यास: फिलेमोन को लिखी प्रेरित पौलुस की पत्री पढ़िए। इन बातों को देखने की कोशिश कीजिए: (1) दिल से सराहना, (2) जिस आधार पर पौलुस ने उनेसिमुस की तरफ से बिनती की, (3) फिलेमोन को लौटकर आनेवाले अपने सेवक के साथ किस तरह पेश आना चाहिए, इस बात का यकीन दिलाने के लिए उसने जो दलील दी, और (4) पौलुस का यह भरोसा कि फिलेमोन सही काम करेगा। इस बारे में सोचिए कि आप भी इसी आदर्श पर चलकर कैसे दूसरों को उकसा सकते हैं।

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