जॉर्जिया
“परमेश्वर के लिए सबकुछ मुमकिन है”
नातेला ग्रीगोरीयादीस
जन्म 1960
बपतिस्मा 1987
परिचय नातेला बपतिस्मा लेने के कुछ ही समय बाद से छिपकर प्रकाशन छापने में मदद देने लगी, क्योंकि वह एक तजुरबेकार सेल्स मैनेजर थी और खास लोगों से उसकी पहचान थी।
सन् 1985 के बाद के सालों में सिर्फ प्रहरीदुर्ग अध्ययन चलानेवाले भाई के पास उस पत्रिका की एक कॉपी होती थी और वह भी ज़्यादातर हाथ से लिखी हुई होती थी। मैंने एक प्राचीन गेनादी गुदाद्ज़े से बात की और सुझाव दिया कि हमें खुद पत्रिकाएँ छापने की कोशिश करनी चाहिए।
उस समय तक हमारे भाई घर पर बनायी गयी एक मशीन से थोड़े-थोड़े प्रकाशन छापते थे। नियमित तौर पर पत्रिकाएँ छापने के लिए उन्हें और भी अच्छी मशीन, टाइपराइटर, तजुरबेकार टाइपिस्ट और लगातार स्टेंसिल पेपर की ज़रूरत थी। लेकिन छपाई के सारे उपकरणों और कागज़ की सप्लाई के लिए सरकार की मंज़ूरी लेनी पड़ती थी और इस पर खास सुरक्षा विभाग का नियंत्रण होता था।
मैं एक आदमी को जानती थी जो हमें ऐसे पुराने टाइपराइटर दिला सकता था जो अब सरकार के नियंत्रण में नहीं थे। उसके ज़रिए मैंने एक टाइपराइटर हासिल की। मेरी बहन एक टाइपिस्ट थी इसलिए वह भी इस काम में मदद दे पायी। भाइयों ने कॉपियाँ बनाने की एक नयी मशीन तैयार की और स्टेंसिल खरीदने की एक जगह का पता लगाया। सारा इंतज़ाम हो गया और जल्द ही जॉर्जियाई भाषा में प्रहरीदुर्ग की पहली कॉपी छापी गयी।
मगर तभी एक नयी समस्या खड़ी हुई। एक दिन गेनादी ने मुझसे कहा, “हमें स्टेंसिल खरीदने के लिए किसी और जगह का पता लगाना होगा।” उसने एक सरकारी दफ्तर में स्टेंसिल का ढेर देखा था, मगर वह खरीद नहीं पाया क्योंकि पुलिस की नज़र उस पर थी। अब हम स्टेंसिल कैसे खरीद पाते? मैं बार-बार कहती रही, “यह नामुमकिन है!” मगर गेनादी ने ज़ोर देकर कहा, “यह मत कहो, ‘नामुमकिन है।’ ‘परमेश्वर के लिए सबकुछ मुमकिन है’!”—मत्ती 19:26.
अगले दिन जब मैं डर-डरकर उस सरकारी दफ्तर की तरफ जा रही थी तो गेनादी की बात पर सोचती रही। आगे जो हुआ उसके पीछे यहोवा का हाथ था। मैं एक ऐसी टाइपिस्ट से मिली जिसने मुझसे अच्छी तरह बात की और वह मेरी गुज़ारिश दफ्तर के बड़े अधिकारी के पास पहुँचाने को राज़ी हो गयी। वह अधिकारी उसका पति था! जल्द ही मैं उसी दफ्तर से नियमित तौर पर स्टेंसिल खरीदने लगी। उसके बाद फिर कभी हमें स्टेंसिल खरीदने में कोई समस्या नहीं हुई।