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  • सभोपदेशक 8
  • पवित्र शास्त्र का नयी दुनिया अनुवाद

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सभोपदेशक का सारांश

      • पापी इंसानों का राज (1-17)

        • राजा का हुक्म मान (2-4)

        • इंसान हुक्म चलाकर दुख लाया है (9)

        • जब सज़ा जल्दी नहीं मिलती (11)

        • खाओ-पीओ और खुशियाँ मनाओ (15)

सभोपदेशक 8:1

फुटनोट

  • *

    या “किसी बात का मतलब।”

सभोपदेशक 8:2

संबंधित आयतें

  • +नीत 24:21, 22; रोम 13:1; तीत 3:1; 1पत 2:13
  • +2शम 5:3

सभोपदेशक 8:3

संबंधित आयतें

  • +सभ 10:4
  • +1रा 1:5, 7; नीत 20:2

इंडैक्स

  • खोजबीन गाइड

    प्रहरीदुर्ग,

    11/1/2006, पेज 10

सभोपदेशक 8:4

संबंधित आयतें

  • +1रा 2:24, 25

सभोपदेशक 8:5

संबंधित आयतें

  • +रोम 13:5; 1पत 3:13
  • +1शम 24:12, 13; 26:8-10; भज 37:7

सभोपदेशक 8:6

संबंधित आयतें

  • +सभ 3:17

सभोपदेशक 8:8

फुटनोट

  • *

    या शायद, “उसे नहीं बचा सकती।”

संबंधित आयतें

  • +भज 89:48

इंडैक्स

  • खोजबीन गाइड

    प्रहरीदुर्ग,

    12/1/1987, पेज 29-30

सभोपदेशक 8:9

फुटनोट

  • *

    शा., “सूरज के नीचे।”

  • *

    या “नुकसान।”

संबंधित आयतें

  • +निर्ग 1:13, 14; मी 7:3

इंडैक्स

  • खोजबीन गाइड

    खुशी से जीएँ हमेशा के लिए!, पाठ 31

    सजग होइए!,

    अंक 3 2017, पेज 6

    प्रहरीदुर्ग,

    1/1/2002, पेज 5

सभोपदेशक 8:10

संबंधित आयतें

  • +नीत 10:7

सभोपदेशक 8:11

संबंधित आयतें

  • +भज 10:4, 6
  • +1शम 2:22, 23

इंडैक्स

  • खोजबीन गाइड

    प्रहरीदुर्ग,

    1/1/2011, पेज 4

सभोपदेशक 8:12

संबंधित आयतें

  • +भज 34:9; 103:13; 112:1; यश 3:10; 2पत 2:9

इंडैक्स

  • खोजबीन गाइड

    प्रहरीदुर्ग,

    2/15/1997, पेज 17-18

सभोपदेशक 8:13

संबंधित आयतें

  • +भज 37:10; यश 57:21
  • +अय 24:24

इंडैक्स

  • खोजबीन गाइड

    प्रहरीदुर्ग,

    2/15/1997, पेज 17-18

सभोपदेशक 8:14

फुटनोट

  • *

    या “निराश कर देनेवाली।”

संबंधित आयतें

  • +सभ 7:15
  • +भज 37:7; 73:12

सभोपदेशक 8:15

फुटनोट

  • *

    शा., “सूरज के नीचे।”

संबंधित आयतें

  • +भज 100:2
  • +सभ 2:24; 3:12, 13

इंडैक्स

  • खोजबीन गाइड

    खुशी से जीएँ हमेशा के लिए!, पाठ 44

    प्रहरीदुर्ग,

    10/1/1996, पेज 14

सभोपदेशक 8:16

फुटनोट

  • *

    या शायद, “मैंने देखा, लोग न दिन में सोते हैं न रात में।”

संबंधित आयतें

  • +सभ 1:13; 7:25

इंडैक्स

  • खोजबीन गाइड

    प्रहरीदुर्ग,

    11/1/2006, पेज 11

सभोपदेशक 8:17

फुटनोट

  • *

    शा., “सूरज के नीचे।”

संबंधित आयतें

  • +सभ 3:11; रोम 11:33
  • +अय 28:12; सभ 7:24; 11:5

इंडैक्स

  • खोजबीन गाइड

    प्रहरीदुर्ग,

    11/1/2006, पेज 11

दूसरें अनुवाद

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दूसरी

सभो. 8:2नीत 24:21, 22; रोम 13:1; तीत 3:1; 1पत 2:13
सभो. 8:22शम 5:3
सभो. 8:3सभ 10:4
सभो. 8:31रा 1:5, 7; नीत 20:2
सभो. 8:41रा 2:24, 25
सभो. 8:5रोम 13:5; 1पत 3:13
सभो. 8:51शम 24:12, 13; 26:8-10; भज 37:7
सभो. 8:6सभ 3:17
सभो. 8:8भज 89:48
सभो. 8:9निर्ग 1:13, 14; मी 7:3
सभो. 8:10नीत 10:7
सभो. 8:11भज 10:4, 6
सभो. 8:111शम 2:22, 23
सभो. 8:12भज 34:9; 103:13; 112:1; यश 3:10; 2पत 2:9
सभो. 8:13भज 37:10; यश 57:21
सभो. 8:13अय 24:24
सभो. 8:14सभ 7:15
सभो. 8:14भज 37:7; 73:12
सभो. 8:15भज 100:2
सभो. 8:15सभ 2:24; 3:12, 13
सभो. 8:16सभ 1:13; 7:25
सभो. 8:17सभ 3:11; रोम 11:33
सभो. 8:17अय 28:12; सभ 7:24; 11:5
  • पवित्र शास्त्र का नयी दुनिया अनुवाद
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पवित्र शास्त्र का नयी दुनिया अनुवाद
सभोपदेशक 8:1-17

सभोपदेशक

8 कौन है जो बुद्धिमान इंसान जैसा है? कौन है जो समस्या का हल* जानता है? बुद्धि के कारण इंसान का चेहरा चमक उठता है और उसके चेहरे पर कठोरता की जगह खुशी छा जाती है।

2 मैं कहता हूँ, “राजा का हुक्म मान+ क्योंकि तूने परमेश्‍वर के सामने शपथ खायी थी।+ 3 उतावली में आकर तू राजा के सामने से चले न जाना,+ न किसी बुरे काम में उलझना।+ राजा जो चाहता है वह करता है। 4 उसकी बात पत्थर की लकीर है।+ कौन उससे कह सकता है, ‘यह तू क्या कर रहा है?’”

5 जो आज्ञा मानता है उसके साथ कुछ बुरा नहीं होगा।+ और बुद्धिमान का मन जानता है कि किसी चीज़ को करने का सही वक्‍त और तरीका क्या है।+ 6 क्योंकि इंसान की ज़िंदगी में बहुत-से दुख हैं और उनसे निपटने का एक सही वक्‍त और तरीका होता है।+ 7 अगर कोई नहीं जानता कि आगे क्या घटेगा, तो कौन बता सकता है वह कैसे घटेगा?

8 जैसे एक इंसान का अपनी जीवन-शक्‍ति पर कोई बस नहीं, वैसे ही मौत के दिन पर उसका कोई बस नहीं।+ जिस तरह युद्ध के समय सैनिक को अपनी सेवा से मुक्‍ति नहीं मिलती, उसी तरह दुष्ट की दुष्टता उसे मुक्‍ति नहीं देती।*

9 यह सब मैंने देखा है। मैंने दुनिया में* होनेवाले सब कामों पर ध्यान दिया और देखा कि इस दौरान इंसान, इंसान पर हुक्म चलाकर सिर्फ तकलीफें* लाया है।+ 10 मैंने उन दुष्टों को दफन होते देखा है जो पवित्र जगह में आया-जाया करते थे। और जिस शहर में उन्होंने बुरे काम किए थे, वहाँ के लोगों की यादों से वे जल्द मिट गए।+ यह भी व्यर्थ है।

11 जब बुरे कामों की सज़ा जल्दी नहीं मिलती,+ तो इंसान का मन बुराई करने के लिए और भी ढीठ बन जाता है।+ 12 चाहे पापी 100 बार पाप करके बहुत दिनों तक जीए, पर मैं जानता हूँ कि आखिर में सच्चे परमेश्‍वर का डर माननेवाले का ही भला होता है क्योंकि उसमें परमेश्‍वर के लिए सच्ची श्रद्धा है।+ 13 लेकिन दुष्ट का भला नहीं होगा,+ न ही वह अपनी ज़िंदगी के दिन बढ़ा पाएगा जो छाया के समान बीत जाते हैं।+ क्योंकि वह परमेश्‍वर का डर नहीं मानता।

14 एक और बात है जो मैंने धरती पर होते देखी और जो एकदम व्यर्थ* है: नेक लोगों के साथ ऐसा बरताव किया जाता है मानो उन्होंने दुष्ट काम किए हों+ और दुष्टों के साथ ऐसा बरताव किया जाता है मानो उन्होंने नेक काम किए हों।+ मेरा मानना है कि यह भी व्यर्थ है।

15 इसलिए मैं कहता हूँ, खुशियाँ मनाओ+ क्योंकि दुनिया में* इंसान के लिए इससे अच्छा और कुछ नहीं कि वह खाए-पीए और खुशी मनाए। सच्चे परमेश्‍वर ने सूरज के नीचे उसे जो ज़िंदगी दी है उसमें खुशियाँ मनाने के साथ-साथ वह कड़ी मेहनत भी करे।+

16 मैंने मन में ठाना था कि मैं बुद्धि हासिल करूँगा और दुनिया में होनेवाले हर काम को देखूँगा।+ इसके लिए मैं दिन-रात जागता रहा।* 17 जब मैंने सच्चे परमेश्‍वर के सब कामों पर गौर किया, तो मैं जान गया कि इंसान दुनिया में* होनेवाले कामों को पूरी तरह नहीं समझ सकता।+ वह चाहे जितनी भी कोशिश करे, इन्हें नहीं जान सकता। वह अपने आपको कितना ही बुद्धिमान बताए, वह इन्हें सही मायने में नहीं समझ सकता।+

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