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  • पवित्र शास्त्र का नयी दुनिया अनुवाद

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सभोपदेशक का सारांश

      • अच्छा नाम और मौत का दिन (1-4)

      • बुद्धिमान की फटकार (5-7)

      • शुरूआत से अंत अच्छा (8-10)

      • बुद्धि के फायदे (11, 12)

      • अच्छे और बुरे दिन (13-15)

      • हद-से-ज़्यादा कुछ मत कर (16-22)

      • उपदेशक नतीजे पर पहुँचता है (23-29)

सभोपदेशक 7:1

संबंधित आयतें

  • +नीत 10:7; 22:1; यश 56:5; लूक 10:20

इंडैक्स

  • खोजबीन गाइड

    प्यार के लायक, पेज 177-178

    प्रहरीदुर्ग,

    4/15/2008, पेज 25

    8/15/2003, पेज 3

    11/15/1998, पेज 32

    4/15/1997, पेज 27

    2/15/1997, पेज 12-13

    दानिय्येल की भविष्यवाणी, पेज 313

सभोपदेशक 7:2

संबंधित आयतें

  • +यश 5:11, 12

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  • खोजबीन गाइड

    प्रहरीदुर्ग,

    6/1/2002, पेज 4

सभोपदेशक 7:3

संबंधित आयतें

  • +भज 119:71; लूक 6:21
  • +2कुर 7:10; इब्र 12:11

सभोपदेशक 7:4

संबंधित आयतें

  • +1शम 25:36; नीत 21:17

इंडैक्स

  • खोजबीन गाइड

    प्रहरीदुर्ग,

    4/15/2008, पेज 22

सभोपदेशक 7:5

संबंधित आयतें

  • +भज 141:5; नीत 15:31

सभोपदेशक 7:6

संबंधित आयतें

  • +सभ 2:2

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  • खोजबीन गाइड

    प्रहरीदुर्ग,

    11/1/2006, पेज 10

    3/15/1996, पेज 4

सभोपदेशक 7:7

संबंधित आयतें

  • +निर्ग 23:8; व्य 16:19; 1शम 8:1-3; नीत 17:23

इंडैक्स

  • खोजबीन गाइड

    प्रहरीदुर्ग,

    1/1/2011, पेज 4

    10/1/1992, पेज 3-4

सभोपदेशक 7:8

संबंधित आयतें

  • +नीत 13:10; याकू 5:10; 1पत 5:5

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  • खोजबीन गाइड

    प्रहरीदुर्ग,

    9/1/2000, पेज 4

    6/15/1995, पेज 10-11

सभोपदेशक 7:9

फुटनोट

  • *

    शा., “बुरा मानना मूर्ख के सीने में रहता है।” या शायद, “बुरा मानना मूर्खों की निशानी है।”

संबंधित आयतें

  • +नीत 16:32; याकू 1:19
  • +उत 4:5; एस 5:9; नीत 14:17, 29; 29:11

इंडैक्स

  • खोजबीन गाइड

    प्रहरीदुर्ग,

    8/1/2005, पेज 13-15

    6/1/1992, पेज 24

    सबके लिए किताब, पेज 25-26

सभोपदेशक 7:10

संबंधित आयतें

  • +लूक 9:62

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    प्रहरीदुर्ग (अध्ययन),

    11/2020, पेज 25

    प्रहरीदुर्ग,

    3/15/2012, पेज 26-27

    12/1/2002, पेज 32

    सजग होइए!,

    1/8/1997, पेज 21

सभोपदेशक 7:11

फुटनोट

  • *

    यानी जो ज़िंदा हैं।

इंडैक्स

  • खोजबीन गाइड

    प्रहरीदुर्ग,

    9/1/2004, पेज 28

सभोपदेशक 7:12

संबंधित आयतें

  • +नीत 10:15
  • +नीत 4:5, 6
  • +नीत 3:13, 18; 8:35; 9:11

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    खुशी से जीएँ हमेशा के लिए!, पाठ 37

    सजग होइए!,

    7/2007, पेज 20-21

    10/8/1997, पेज 12

    प्रहरीदुर्ग,

    9/1/2004, पेज 28

    8/1/2003, पेज 5

    5/15/1998, पेज 6

    12/1/1987, पेज 29-30

सभोपदेशक 7:13

संबंधित आयतें

  • +अय 9:12; यश 14:27

इंडैक्स

  • खोजबीन गाइड

    प्रहरीदुर्ग,

    5/1/1999, पेज 29

सभोपदेशक 7:14

फुटनोट

  • *

    या “दुख।”

संबंधित आयतें

  • +याकू 5:13
  • +अय 2:10; यश 45:7
  • +नीत 27:1; सभ 9:11; याकू 4:13, 14

इंडैक्स

  • खोजबीन गाइड

    प्रहरीदुर्ग,

    5/1/1999, पेज 29

सभोपदेशक 7:15

फुटनोट

  • *

    या “व्यर्थ।”

संबंधित आयतें

  • +भज 39:5
  • +उत 4:8; 1शम 22:18
  • +अय 21:7; भज 73:12

सभोपदेशक 7:16

संबंधित आयतें

  • +यश 65:5; मत 6:1; रोम 10:3; 14:10
  • +नीत 3:7; रोम 12:3
  • +नीत 16:18

इंडैक्स

  • खोजबीन गाइड

    खुशी से जीएँ हमेशा के लिए!, पाठ 35

    प्रहरीदुर्ग,

    10/15/2010, पेज 9

    8/1/1998, पेज 11

    10/15/1995, पेज 31

सभोपदेशक 7:17

संबंधित आयतें

  • +भज 14:1; नीत 14:9
  • +भज 55:23; नीत 10:27

सभोपदेशक 7:18

फुटनोट

  • *

    यानी आय. 16 में दी चेतावनी।

  • *

    यानी आय. 17 में दी चेतावनी।

संबंधित आयतें

  • +फिल 4:5

सभोपदेशक 7:19

संबंधित आयतें

  • +नीत 21:22; 24:5

इंडैक्स

  • खोजबीन गाइड

    प्रहरीदुर्ग,

    11/1/2006, पेज 10

सभोपदेशक 7:20

संबंधित आयतें

  • +2इत 6:36; भज 51:5; रोम 3:23; 1यूह 1:8

सभोपदेशक 7:21

फुटनोट

  • *

    शा., “तुझे शाप देते।”

संबंधित आयतें

  • +1शम 24:9

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    खुशी से जीएँ हमेशा के लिए!, पाठ 51

    सजग होइए!,

    1/8/2002, पेज 14

सभोपदेशक 7:22

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  • +याकू 3:2, 8, 9

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  • खोजबीन गाइड

    खुशी से जीएँ हमेशा के लिए!, पाठ 51

    सजग होइए!,

    1/8/2002, पेज 14

सभोपदेशक 7:24

संबंधित आयतें

  • +भज 36:6; 139:6; यश 55:9; रोम 11:33

सभोपदेशक 7:25

संबंधित आयतें

  • +सभ 1:17; 2:12

सभोपदेशक 7:26

संबंधित आयतें

  • +उत 39:7-9
  • +नीत 5:3, 14; 7:22, 23; 22:14

सभोपदेशक 7:27

संबंधित आयतें

  • +सभ 1:1

सभोपदेशक 7:28

इंडैक्स

  • खोजबीन गाइड

    प्रहरीदुर्ग,

    1/15/2015, पेज 28-29

    12/1/1987, पेज 29

सभोपदेशक 7:29

संबंधित आयतें

  • +उत 1:26, 31
  • +उत 3:6; 6:12; व्य 32:5

इंडैक्स

  • खोजबीन गाइड

    प्रहरीदुर्ग,

    5/1/1999, पेज 28-29

दूसरें अनुवाद

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दूसरी

सभो. 7:1नीत 10:7; 22:1; यश 56:5; लूक 10:20
सभो. 7:2यश 5:11, 12
सभो. 7:3भज 119:71; लूक 6:21
सभो. 7:32कुर 7:10; इब्र 12:11
सभो. 7:41शम 25:36; नीत 21:17
सभो. 7:5भज 141:5; नीत 15:31
सभो. 7:6सभ 2:2
सभो. 7:7निर्ग 23:8; व्य 16:19; 1शम 8:1-3; नीत 17:23
सभो. 7:8नीत 13:10; याकू 5:10; 1पत 5:5
सभो. 7:9नीत 16:32; याकू 1:19
सभो. 7:9उत 4:5; एस 5:9; नीत 14:17, 29; 29:11
सभो. 7:10लूक 9:62
सभो. 7:12नीत 10:15
सभो. 7:12नीत 4:5, 6
सभो. 7:12नीत 3:13, 18; 8:35; 9:11
सभो. 7:13अय 9:12; यश 14:27
सभो. 7:14याकू 5:13
सभो. 7:14अय 2:10; यश 45:7
सभो. 7:14नीत 27:1; सभ 9:11; याकू 4:13, 14
सभो. 7:15भज 39:5
सभो. 7:15उत 4:8; 1शम 22:18
सभो. 7:15अय 21:7; भज 73:12
सभो. 7:16यश 65:5; मत 6:1; रोम 10:3; 14:10
सभो. 7:16नीत 3:7; रोम 12:3
सभो. 7:16नीत 16:18
सभो. 7:17भज 14:1; नीत 14:9
सभो. 7:17भज 55:23; नीत 10:27
सभो. 7:18फिल 4:5
सभो. 7:19नीत 21:22; 24:5
सभो. 7:202इत 6:36; भज 51:5; रोम 3:23; 1यूह 1:8
सभो. 7:211शम 24:9
सभो. 7:22याकू 3:2, 8, 9
सभो. 7:24भज 36:6; 139:6; यश 55:9; रोम 11:33
सभो. 7:25सभ 1:17; 2:12
सभो. 7:26उत 39:7-9
सभो. 7:26नीत 5:3, 14; 7:22, 23; 22:14
सभो. 7:27सभ 1:1
सभो. 7:29उत 1:26, 31
सभो. 7:29उत 3:6; 6:12; व्य 32:5
  • पवित्र शास्त्र का नयी दुनिया अनुवाद
  • अध्ययन बाइबल (nwtsty) में पढ़िए
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पवित्र शास्त्र का नयी दुनिया अनुवाद
सभोपदेशक 7:1-29

सभोपदेशक

7 एक अच्छा नाम बढ़िया तेल से भी अच्छा है+ और मौत का दिन जन्म के दिन से बेहतर है। 2 दावतवाले घर में जाने से अच्छा है मातमवाले घर में जाना।+ क्योंकि मौत हर इंसान का अंत है और ज़िंदा लोगों को यह बात याद रखनी चाहिए। 3 हँसने से अच्छा है दुख मनाना+ क्योंकि चेहरे की उदासी मन को सुधारती है।+ 4 बुद्धिमान का मन मातमवाले घर में लगा रहता है, मगर मूर्ख का मन मौज-मस्तीवाले घर में लगा रहता है।+

5 मूर्ख के गीत सुनने से अच्छा है बुद्धिमान की फटकार सुनना।+ 6 जैसे हाँडी के नीचे जलते काँटों का चटकना, वैसे ही मूर्ख का हँसना होता है।+ यह भी व्यर्थ है। 7 ज़ुल्म, बुद्धिमान इंसान को बावला कर देता है और रिश्‍वत, मन को भ्रष्ट कर देती है।+

8 किसी बात का अंत उसकी शुरूआत से अच्छा होता है। सब्र से काम लेना घमंड करने से अच्छा है।+ 9 किसी बात का जल्दी बुरा मत मान+ क्योंकि मूर्ख ही जल्दी बुरा मानता है।*+

10 यह मत कहना, “इन दिनों से अच्छे तो बीते हुए दिन थे।” क्योंकि ऐसा कहकर तू बुद्धिमानी से काम नहीं ले रहा।+

11 बुद्धि के साथ-साथ विरासत मिलना अच्छी बात है। बुद्धि उन सभी को फायदा पहुँचाती है जो दिन की रौशनी देखते हैं।* 12 क्योंकि जिस तरह पैसा हिफाज़त करता है,+ उसी तरह बुद्धि भी कई चीज़ों से हिफाज़त करती है।+ मगर ज्ञान और बुद्धि इस मायने में बढ़कर हैं कि वे अपने मालिक की जान बचाते हैं।+

13 सच्चे परमेश्‍वर के काम पर ध्यान दे। क्योंकि जिन चीज़ों को परमेश्‍वर ने टेढ़ा किया है उन्हें कौन सीधा कर सकता है?+ 14 जब दिन अच्छा बीते तो तू भी अच्छाई कर।+ लेकिन मुसीबत* के दिन यह समझ ले कि परमेश्‍वर ने अच्छे और बुरे दोनों दिनों को रहने दिया है+ ताकि इंसान कभी न जान सके कि आनेवाले दिनों में क्या होनेवाला है।+

15 मैंने अपनी छोटी-सी* ज़िंदगी+ में सबकुछ देखा है। नेक इंसान नेकी करके भी मिट जाता है,+ जबकि दुष्ट बुरा करके भी लंबी उम्र जीता है।+

16 खुद को दूसरों से नेक मत समझ,+ न ही अपने को बड़ा बुद्धिमान दिखा।+ तू क्यों खुद पर विनाश लाना चाहता है?+ 17 न बहुत ज़्यादा बुराई कर, न ही मूर्ख बन।+ आखिर तू वक्‍त से पहले क्यों मरना चाहता है?+ 18 तेरे लिए अच्छा है कि तू पहली चेतावनी* को पकड़े रहे और दूसरी* को भी हाथ से जाने न दे+ क्योंकि परमेश्‍वर का डर माननेवाला दोनों को मानेगा।

19 बुद्धि एक समझदार इंसान को ताकतवर बनाती है, शहर के दस बलवान आदमियों से भी ताकतवर।+ 20 धरती पर ऐसा कोई नेक इंसान नहीं, जो हमेशा अच्छे काम करता है और कभी पाप नहीं करता।+

21 लोगों की हर बात दिल पर मत ले,+ वरना तू अपने नौकर को तेरी बुराई करते* सुनेगा 22 क्योंकि तेरा दिल अच्छी तरह जानता है कि तूने भी न जाने कितनी बार दूसरों को बुरा-भला कहा है।+

23 मैंने इन सारी बातों को बुद्धि से परखा। मैंने कहा, “मैं बुद्धिमान बनूँगा,” लेकिन यह मेरी पहुँच से बाहर है। 24 जो कुछ हुआ है उसे समझना मेरे बस में नहीं। ये बातें बहुत गहरी हैं, कौन इन्हें समझ सकता है?+ 25 मैंने बुद्धि की खोज करने और उसे जानने-परखने में अपना मन लगाया। मैं जानना चाहता था कि जो कुछ होता है वह क्यों होता है। मैं समझना चाहता था कि आखिर मूर्खता बुरी क्यों है और पागलपन मूर्खता क्यों है।+ 26 तब मैंने जाना कि एक ऐसी औरत है जो मौत से भी ज़्यादा दुख देती है। वह शिकारी के जाल के समान है, उसका दिल मछली पकड़नेवाले बड़े जाल जैसा है और उसके हाथ बेड़ियों की तरह हैं। ऐसी औरत से बचनेवाला, सच्चे परमेश्‍वर को खुश करता है।+ लेकिन जो उसके जाल में फँस जाता है, वह पाप कर बैठता है।+

27 उपदेशक+ कहता है, “देख, मैंने यह पाया। मैंने एक-के-बाद-एक कई चीज़ों की छानबीन की कि किसी नतीजे पर पहुँचूँ, 28 मगर बहुत खोज करने के बाद भी मैं किसी नतीजे पर नहीं पहुँच पाया। मुझे 1,000 लोगों में सिर्फ एक सीधा-सच्चा आदमी मिला, लेकिन उनमें एक भी सीधी-सच्ची औरत नहीं मिली। 29 मैंने सिर्फ यही पाया: सच्चे परमेश्‍वर ने इंसान को सीधा बनाया था,+ लेकिन वह अपनी सोच के मुताबिक चलने लगा।”+

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