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2 कुरिंथियों 1:1

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    2कुरिं 1:1 या, “भेजा गया।” यूनानी में “अपोस्टोलोस।”

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नयी दुनिया अनुवाद—मसीही यूनानी शास्त्र
2 कुरिंथियों 1:1-24

2 कुरिंथियों

1 मैं पौलुस, जो परमेश्‍वर की मरज़ी से मसीह यीशु का एक प्रेषित* हूँ, हमारे भाई तीमुथियुस के साथ, कुरिंथ में परमेश्‍वर की मंडली* को यह चिट्ठी लिख रहा हूँ। और यह चिट्ठी उन सभी पवित्र जनों के लिए भी है, जो सारे अखया में हैं।

2 तुम्हें परमेश्‍वर हमारे पिता की तरफ से और प्रभु यीशु मसीह की तरफ से महा-कृपा और शांति मिले।

3 हमारे प्रभु यीशु मसीह का परमेश्‍वर और पिता धन्य हो। वह कोमल दया का पिता है और हर तरह का दिलासा देनेवाला परमेश्‍वर है। 4 वह हमारी सब दुःख-तकलीफों में हमें दिलासा देता है ताकि हम, किसी भी तरह का दुःख झेलनेवाले लोगों को वही दिलासा दे सकें जो परमेश्‍वर हमें दे रहा है। 5 इसलिए कि जैसे मसीह की खातिर हम बहुत दुःख झेलते हैं, उसी तरह मसीह के ज़रिए हम बहुत दिलासा भी पाते हैं। 6 चाहे हम दुःख-तकलीफ में हैं, तो यह तुम्हारे दिलासे और उद्धार के लिए है। या, अगर हम दिलासा पा रहे हैं, तो यह भी तुम्हारे दिलासे के लिए है। यह दिलासा, वे सारे दुःख सहने में तुम्हारी मदद करने का काम करता है जिन्हें हम भी सहते हैं। 7 तुम्हारे बारे में हमारी आशा अटल है, क्योंकि हम जानते हैं कि जैसे तुम हमारे दुःखों में हिस्सेदार हो, वैसे ही तुम हमारे साथ दिलासा भी पाओगे।

8 भाइयो, हम नहीं चाहते कि तुम उस संकट से अनजान रहो जो एशिया* ज़िले में हम पर आ पड़ा था। हम पर ऐसी भारी मुसीबत आ पड़ी थी कि उसे सहना हमारे बस के बाहर था, यहाँ तक कि हमें अपने ज़िंदा बच पाने का बिलकुल भरोसा नहीं था। 9 दरअसल हमें महसूस होने लगा था कि हम पर सज़ा-ए-मौत का हुक्म हो चुका है। यह इसलिए हुआ कि हमारा भरोसा खुद पर न हो बल्कि उस परमेश्‍वर पर हो जो मरे हुओं को जी उठाता है। 10 उसने हमें मौत के बड़े खतरे से बचाया है और बचाएगा। हमारी यह आशा है कि वह हमें आगे भी बचाता रहेगा। 11 तुम भी प्रार्थना में हमारे लिए मिन्‍नतें करते हुए हमारी मदद कर सकते हो। तब बहुतों की प्रार्थनाओं की वजह से हम पर जो कृपा की जाएगी, उसके लिए हमारी खातिर बहुत-से लोग बदले में धन्यवाद दे सकेंगे।

12 हमारे गर्व करने की वजह यह है और हम साफ ज़मीर के साथ ऐसा कह सकते हैं कि हम दुनिया में और खासकर तुम्हारे बीच ऐसी पवित्रता और सीधाई से रहे हैं जो परमेश्‍वर सिखाता है। हम दुनियावी बुद्धि पर नहीं बल्कि परमेश्‍वर की महा-कृपा पर निर्भर रहे हैं। 13 दरअसल, हम उन बातों को छोड़ तुम्हें और कुछ नहीं लिख रहे जिन्हें तुम अच्छी तरह जानते हो या मानते भी हो, और आशा करता हूँ कि आखिर तक मानते भी रहोगे। 14 ठीक जैसे तुमने, कुछ हद तक यह बात मानी भी है कि हम तुम्हारे लिए गर्व करने की वजह हैं, वैसे ही तुम भी हमारे प्रभु यीशु के दिन में हमारे लिए गर्व करने की वजह ठहरोगे।

15 इस भरोसे के साथ मैंने पहले इरादा किया था कि तुम्हारे पास दूसरी बार आऊँ ताकि तुम्हें खुशी का एक और मौका मिले 16 और तुम्हारे यहाँ ठहरने के बाद मकिदुनिया जाऊँ, और फिर मकिदुनिया से लौटकर तुम्हारे पास आऊँ और तुम मुझे यहूदिया के सफर पर कुछ दूरी तक विदा करो। 17 जब मैंने यह इरादा किया तो क्या मैंने बिना सोचे-समझे ऐसा किया था या जब मैं कुछ इरादा करता हूँ तो क्या मैं शरीर की ख्वाहिश के मुताबिक चलता हूँ कि एक ही वक्‍त में पहले तो ‘हाँ, हाँ’ कहूँ, मगर फिर ‘न, न’? 18 मगर जैसे परमेश्‍वर पर भरोसा किया जा सकता है, वैसे ही इस बात का भी भरोसा किया जा सकता है कि जब हम तुमसे ‘हाँ’ कहते हैं, तो उसका मतलब ‘न’ नहीं होता। 19 इसलिए कि परमेश्‍वर का बेटा मसीह यीशु, जिसका हमने यानी, मैंने, सिलवानुस* और तीमुथियुस ने तुम्हारे बीच प्रचार किया था, वह ‘हाँ’ होने के साथ-साथ ‘न’ नहीं है, बल्कि उसके मामले में ‘हाँ’ का मतलब हमेशा ‘हाँ’ हुआ है। 20 इसलिए कि परमेश्‍वर के चाहे कितने ही वादे हों, वे सब उसी के ज़रिए ‘हाँ’ हुए हैं। इसलिए उसी के ज़रिए परमेश्‍वर से “आमीन” कहा जाता है, ताकि हम परमेश्‍वर को महिमा दे सकें। 21 मगर वह जो इस बात की गारंटी देता है कि तुम और हम मसीह के हैं और जिसने हमारा अभिषेक किया है, वह परमेश्‍वर है। 22 उसने हम पर अपनी मुहर भी लगायी है और जो आनेवाला है, उसका बयाना यानी पवित्र शक्‍ति दी है जो हमारे दिलों में है।

23 अगर मेरी बात सच नहीं तो परमेश्‍वर मेरे खिलाफ गवाह होगा कि मैं अब तक सिर्फ इसलिए कुरिंथ नहीं आया क्योंकि मैं तुम्हें और ज़्यादा दुःखी नहीं करना चाहता था। 24 यह बात नहीं कि हम तुम्हारे विश्‍वास के मालिक हैं, बल्कि हम तुम्हारी खुशी के लिए तुम्हारे सहकर्मी हैं, क्योंकि तुम अपने ही विश्‍वास की वजह से खड़े हो।

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