4 तुम सब यह संदेश सुनो, जो गरीबों को रौंदते हो,
देश के दीन जनों का नाश करते हो,+
5 जो कहते हो, ‘नए चाँद का त्योहार कब खत्म होगा+ ताकि हम अनाज बेच सकें?
सब्त का दिन+ कब बीतेगा ताकि हम अनाज बेच सकें?
फिर हम एपा की नाप छोटी कर सकेंगे,
शेकेल का वज़न बढ़ा सकेंगे
और तराज़ू में दंडी मारेंगे।+
6 फिर हम चाँदी से ज़रूरतमंदों को खरीद सकेंगे,
एक जोड़ी जूती के दाम पर गरीब को खरीद सकेंगे+
और अनाज की फटकन बेच सकेंगे।’