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  • पवित्र शास्त्र का नयी दुनिया अनुवाद

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यूहन्‍ना का सारांश

      • लाज़र की मौत (1-16)

      • मरियम और मारथा को यीशु दिलासा देता है (17-37)

      • यीशु, लाज़र को ज़िंदा करता है (38-44)

      • यीशु को मार डालने की साज़िश (45-57)

यूहन्‍ना 11:1

संबंधित आयतें

  • +लूक 10:38

यूहन्‍ना 11:2

संबंधित आयतें

  • +मत 26:6, 7; मर 14:3; यूह 12:3

यूहन्‍ना 11:3

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  • खोजबीन गाइड

    प्रहरीदुर्ग (अध्ययन),

    4/2023, पेज 10

    यीशु—राह, पेज 210

    विश्‍वास की मिसाल, पेज 176

    प्रहरीदुर्ग,

    10/1/2011, पेज 25-26

    12/1/1991, पेज 4-5

यूहन्‍ना 11:4

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  • +यूह 9:1-3

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  • खोजबीन गाइड

    प्रहरीदुर्ग,

    9/15/2013, पेज 32

    9/15/2000, पेज 14-15

यूहन्‍ना 11:5

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  • खोजबीन गाइड

    प्रहरीदुर्ग,

    10/15/2015, पेज 18-19

यूहन्‍ना 11:6

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  • खोजबीन गाइड

    प्रहरीदुर्ग,

    9/15/2013, पेज 32

    1/1/2008, पेज 31

    9/15/2000, पेज 14-15

यूहन्‍ना 11:8

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  • +यूह 1:38
  • +यूह 8:59; 10:31

यूहन्‍ना 11:9

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  • +यूह 9:4; 12:35

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  • खोजबीन गाइड

    यीशु—राह, पेज 210-211

यूहन्‍ना 11:11

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  • +भज 13:3; मत 9:24; प्रेष 7:59, 60; 1कुर 15:6

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    सिखाती है, पेज 63-64

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    1/15/2002, पेज 6

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यूहन्‍ना 11:12

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    खुशी से जीएँ हमेशा के लिए!, पाठ 29

यूहन्‍ना 11:13

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    खुशी से जीएँ हमेशा के लिए!, पाठ 29

यूहन्‍ना 11:16

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  • +यूह 11:8

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यूहन्‍ना 11:17

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  • *

    या “स्मारक कब्र।”

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    1/1/2008, पेज 31

यूहन्‍ना 11:18

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  • *

    शा., “करीब 15 स्तादियौन।” अति. ख14 देखें।

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यूहन्‍ना 11:20

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    विश्‍वास की मिसाल, पेज 176-177

    प्रहरीदुर्ग,

    10/1/2011, पेज 26

यूहन्‍ना 11:21

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    प्रहरीदुर्ग (अध्ययन),

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    यीशु—राह, पेज 212

    विश्‍वास की मिसाल, पेज 177

    प्रहरीदुर्ग,

    10/1/2011, पेज 26

यूहन्‍ना 11:22

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    यीशु—राह, पेज 212

यूहन्‍ना 11:23

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    यीशु—राह, पेज 212

यूहन्‍ना 11:24

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  • +यश 26:19; यूह 5:28, 29; प्रेष 24:15; इब्र 11:35; प्रक 20:12

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    प्रहरीदुर्ग (अध्ययन),

    12/2017, पेज 3-7

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    4/1/2014, पेज 7

    10/1/2011, पेज 26

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    7/1/1990, पेज 4, 6-7

    विश्‍वास की मिसाल, पेज 177-178

    महान शिक्षक, पेज 188

    सर्वदा जीवित रहिए, पेज 166-168

यूहन्‍ना 11:25

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  • +यूह 14:6

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यूहन्‍ना 11:26

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    यीशु—राह, पेज 212

    प्रहरीदुर्ग,

    4/15/2005, पेज 5

    2/15/1995, पेज 16-17

यूहन्‍ना 11:27

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    विश्‍वास की मिसाल, पेज 172, 178

    प्रहरीदुर्ग,

    10/1/2011, पेज 23, 26

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  • +मत 23:8; यूह 13:13

यूहन्‍ना 11:31

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  • *

    या “स्मारक कब्र।”

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यूहन्‍ना 11:33

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    जब कोई मर जाए, पेज 29-30

यूहन्‍ना 11:37

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  • +यूह 9:6, 7

यूहन्‍ना 11:38

फुटनोट

  • *

    या “स्मारक कब्र।”

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यूहन्‍ना 11:39

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यूहन्‍ना 11:47

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यूहन्‍ना 11:48

फुटनोट

  • *

    यानी मंदिर।

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    प्रहरीदुर्ग,

    1/15/2006, पेज 11-12

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  • +मत 26:3; लूक 3:2; प्रेष 4:5, 6

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    यीशु—राह, पेज 215

यूहन्‍ना 11:50

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    प्रहरीदुर्ग,

    1/15/2006, पेज 12

यूहन्‍ना 11:51

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    प्रहरीदुर्ग,

    1/15/2006, पेज 12

यूहन्‍ना 11:52

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    प्रहरीदुर्ग,

    1/15/2006, पेज 12

यूहन्‍ना 11:54

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  • +2शम 13:23; 2इत 13:19

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यूहन्‍ना 11:55

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  • +निर्ग 12:14; व्य 16:1; यूह 2:13; 5:1; 6:4; 12:1

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यूहन्‍ना 11:56

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यूहन्‍ना 11:57

फुटनोट

  • *

    या “गिरफ्तार कर।”

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दूसरी

यूह. 11:1लूक 10:38
यूह. 11:2मत 26:6, 7; मर 14:3; यूह 12:3
यूह. 11:4यूह 9:1-3
यूह. 11:8यूह 1:38
यूह. 11:8यूह 8:59; 10:31
यूह. 11:9यूह 9:4; 12:35
यूह. 11:11भज 13:3; मत 9:24; प्रेष 7:59, 60; 1कुर 15:6
यूह. 11:14सभ 9:5
यूह. 11:16यूह 11:8
यूह. 11:20लूक 10:38, 39
यूह. 11:24यश 26:19; यूह 5:28, 29; प्रेष 24:15; इब्र 11:35; प्रक 20:12
यूह. 11:25यूह 14:6
यूह. 11:26यूह 8:51
यूह. 11:28मत 23:8; यूह 13:13
यूह. 11:31यूह 11:17
यूह. 11:35लूक 19:41; इब्र 4:15
यूह. 11:37यूह 9:6, 7
यूह. 11:40यूह 9:1-3
यूह. 11:41मत 14:19; मर 7:34, 35
यूह. 11:42यूह 12:28-30; 17:8
यूह. 11:43लूक 7:12, 14
यूह. 11:45यूह 2:23; 10:42; 12:10, 11
यूह. 11:47यूह 12:37; प्रेष 4:15, 16
यूह. 11:49मत 26:3; लूक 3:2; प्रेष 4:5, 6
यूह. 11:542शम 13:23; 2इत 13:19
यूह. 11:55निर्ग 12:14; व्य 16:1; यूह 2:13; 5:1; 6:4; 12:1
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पवित्र शास्त्र का नयी दुनिया अनुवाद
यूहन्‍ना 11:1-57

यूहन्‍ना के मुताबिक खुशखबरी

11 बैतनियाह गाँव में लाज़र नाम का एक आदमी बीमार था। उसकी बहनें, मारथा और मरियम भी इसी गाँव में रहती थीं।+ 2 दरअसल यह वह मरियम थी जिसने प्रभु पर खुशबूदार तेल उँडेला था और उसके पैरों को अपने बालों से पोंछा था।+ बीमार लाज़र इसी मरियम का भाई था। 3 इसलिए लाज़र की बहनों ने यीशु के पास खबर भेजी, “प्रभु, देख! तेरा वह दोस्त बीमार है जिससे तू बहुत प्यार करता है।” 4 मगर जब यीशु ने यह सुना तो कहा, “इस बीमारी का अंजाम मौत नहीं बल्कि इससे परमेश्‍वर की महिमा होगी+ ताकि इसके ज़रिए परमेश्‍वर के बेटे की महिमा हो सके।”

5 यीशु, मारथा और उसकी बहन और लाज़र से बहुत प्यार करता था। 6 मगर जब उसने सुना कि लाज़र बीमार है, तो वह जिस जगह रुका था वहाँ दो दिन और रुक गया। 7 इसके बाद उसने चेलों से कहा, “चलो हम फिर से यहूदिया चलें।” 8 तब चेलों ने उससे कहा, “गुरु,+ अभी कुछ ही वक्‍त पहले यहूदिया के लोग तुझे पत्थरों से मार डालना चाहते थे,+ क्या तू फिर वहीं जाना चाहता है?” 9 यीशु ने जवाब दिया, “क्या दिन की रौशनी 12 घंटे नहीं होती?+ अगर कोई दिन की रौशनी में चलता है, तो वह किसी चीज़ से ठोकर नहीं खाता क्योंकि वह इस दुनिया की रौशनी देखता है। 10 लेकिन अगर कोई रात में चलता है, तो वह ठोकर खाता है क्योंकि उसमें रौशनी नहीं है।”

11 ये बातें कहने के बाद यीशु ने उनसे कहा, “हमारा दोस्त लाज़र सो गया है,+ लेकिन मैं उसे जगाने वहाँ जा रहा हूँ।” 12 चेलों ने उससे कहा, “प्रभु, अगर वह सो गया है, तो ठीक हो जाएगा।” 13 दरअसल यीशु कह रहा था कि लाज़र मर गया है, मगर चेलों ने समझा कि यीशु सचमुच की नींद की बात कर रहा है। 14 इसलिए यीशु ने उन्हें साफ-साफ बताया, “लाज़र मर चुका है+ 15 और मैं तुम्हारी वजह से खुश हूँ कि मैं वहाँ नहीं था ताकि तुम यकीन करो। मगर अब चलो, हम उसके पास चलते हैं।” 16 इसलिए थोमा ने जो जुड़वाँ कहलाता था, बाकी चेलों से कहा, “चलो हम भी उसके साथ चलें ताकि उसके साथ अपनी जान दें।”+

17 जब यीशु बैतनियाह पहुँचा, तो उसे पता चला कि लाज़र को कब्र* में रखे चार दिन हो गए हैं। 18 बैतनियाह, यरूशलेम के पास, करीब तीन किलोमीटर* की दूरी पर था। 19 बहुत-से यहूदी, मारथा और मरियम को उनके भाई की मौत पर दिलासा देने आए थे। 20 जब मारथा ने सुना कि यीशु आ रहा है, तो वह उससे मिलने गयी। मगर मरियम+ घर में बैठी रही। 21 मारथा ने यीशु से कहा, “प्रभु, अगर तू यहाँ होता तो मेरा भाई न मरता। 22 मगर मैं अब भी जानती हूँ कि तू परमेश्‍वर से जो कुछ माँगेगा, वह तुझे दे देगा।” 23 यीशु ने उससे कहा, “तेरा भाई ज़िंदा हो जाएगा।” 24 मारथा ने उससे कहा, “मैं जानती हूँ कि आखिरी दिन जब मरे हुओं को ज़िंदा किया जाएगा,+ तब वह ज़िंदा हो जाएगा।” 25 यीशु ने उससे कहा, “मरे हुओं को ज़िंदा करनेवाला और उन्हें जीवन देनेवाला मैं ही हूँ।+ जो मुझ पर विश्‍वास करता है वह चाहे मर भी जाए, तो भी ज़िंदा किया जाएगा। 26 और हर कोई जो ज़िंदा है और मुझ पर विश्‍वास करता है, वह कभी नहीं मरेगा।+ क्या तू इस पर यकीन करती है?” 27 उसने कहा, “हाँ प्रभु, मुझे यकीन है कि तू परमेश्‍वर का बेटा मसीह है, जिसे दुनिया में आना था।” 28 यह कहने के बाद वह चली गयी और उसने जाकर अपनी बहन मरियम से अकेले में कहा, “गुरु+ आ चुका है और तुझे बुला रहा है।” 29 जब मरियम ने यह सुना तो वह फौरन उठी और उससे मिलने निकल पड़ी।

30 यीशु अब तक गाँव के अंदर नहीं आया था। वह अब भी वहीं था जहाँ मारथा उससे मिली थी। 31 जब उन यहूदियों ने, जो घर में मरियम को दिलासा दे रहे थे, देखा कि वह उठकर जल्दी से बाहर निकल गयी है, तो वे भी उसके पीछे-पीछे गए क्योंकि उन्हें लगा कि वह कब्र*+ पर रोने जा रही है। 32 जब मरियम उस जगह आयी जहाँ यीशु था और उसकी नज़र यीशु पर पड़ी, तो वह यह कहते हुए उसके पैरों पर गिर पड़ी, “प्रभु, अगर तू यहाँ होता तो मेरा भाई न मरता।” 33 जब यीशु ने उसे और उसके साथ आए यहूदियों को रोते देखा, तो उसने गहरी आह भरी और उसका दिल भर आया। 34 उसने कहा, “तुमने उसे कहाँ रखा है?” उन्होंने कहा, “प्रभु, आ और आकर देख ले।” 35 यीशु के आँसू बहने लगे।+ 36 यह देखकर यहूदियों ने कहा, “देखो, यह उससे कितना प्यार करता था!” 37 मगर कुछ ने कहा, “जब इस आदमी ने अंधे की आँखें खोल दीं,+ तो इसकी जान क्यों नहीं बचा सका?”

38 यीशु ने फिर से गहरी आह भरी और कब्र* के पास आया। यह असल में एक गुफा थी और इसके मुँह पर एक पत्थर रखा हुआ था। 39 यीशु ने कहा, “पत्थर को हटाओ।” तब मारथा ने जो मरे हुए आदमी की बहन थी, उससे कहा, “प्रभु अब तक तो उसमें से बदबू आती होगी, उसे मरे चार दिन हो चुके हैं।” 40 यीशु ने उससे कहा, “क्या मैंने तुझसे नहीं कहा था कि अगर तू विश्‍वास करेगी, तो परमेश्‍वर की महिमा देखेगी?”+ 41 तब उन्होंने पत्थर हटा दिया। फिर यीशु ने आँखें उठाकर स्वर्ग की तरफ देखा+ और कहा, “पिता, मैं तेरा धन्यवाद करता हूँ कि तूने मेरी सुनी है। 42 मैं जानता था कि तू हमेशा मेरी सुनता है। लेकिन यहाँ खड़ी भीड़ की वजह से मैंने ऐसा कहा ताकि ये यकीन कर सकें कि तूने ही मुझे भेजा है।”+ 43 जब वह ये बातें कह चुका, तो उसने ज़ोर से पुकारा, “लाज़र, बाहर आ जा!”+ 44 तब वह जो मर चुका था बाहर निकल आया। उसके हाथ-पैर कफन की पट्टियों में लिपटे हुए थे और उसका चेहरा कपड़े से लिपटा हुआ था। यीशु ने उनसे कहा, “इसे खोल दो और जाने दो।”

45 इसलिए बहुत-से यहूदियों ने जो मरियम के पास आए थे और जिन्होंने यीशु का यह काम देखा, उस पर विश्‍वास किया।+ 46 मगर कुछ लोगों ने जाकर फरीसियों को बता दिया कि यीशु ने क्या किया है। 47 तब प्रधान याजक और फरीसियों ने महासभा को इकट्ठा किया और कहा, “हम क्या करें, यह आदमी तो बहुत-से चमत्कार कर रहा है?+ 48 अगर हम इसे यूँ ही छोड़ दें, तो सब लोग इस पर विश्‍वास करने लगेंगे और रोमी आकर हमसे हमारी जगह* और राष्ट्र दोनों छीन लेंगे।” 49 मगर उनमें से कैफा+ नाम के आदमी ने, जो उस साल का महायाजक था, उनसे कहा, “तुम कुछ नहीं जानते 50 और यह नहीं सोचते कि यह तुम्हारे ही फायदे के लिए है कि एक आदमी सब लोगों की खातिर मरे, बजाय इसके कि सारा राष्ट्र नाश किया जाए।” 51 उसने यह बात अपनी तरफ से नहीं कही थी, बल्कि उस साल का महायाजक होने की वजह से उसने यह भविष्यवाणी की कि यीशु पूरे राष्ट्र के लिए अपनी जान देनेवाला है 52 और न सिर्फ उस राष्ट्र के लिए, बल्कि इसलिए भी कि परमेश्‍वर के उन सभी बच्चों को इकट्ठा करके एक करे, जो यहाँ-वहाँ तितर-बितर हैं। 53 इसलिए उस दिन से वे यीशु को मार डालने की साज़िश करने लगे।

54 इस वजह से यीशु इसके बाद खुल्लम-खुल्ला यहूदियों के बीच नहीं घूमा, बल्कि वह इलाका छोड़कर वीराने के पास एप्रैम+ नाम के शहर चला गया और वहीं अपने चेलों के साथ रहा। 55 यहूदियों का फसह का त्योहार+ पास था और बहुत-से लोग गाँव और देहातों से निकलकर यरूशलेम गए ताकि फसह से पहले खुद को कानून के मुताबिक शुद्ध कर सकें। 56 वहाँ वे यीशु को ढूँढ़ने लगे और मंदिर में खड़े होकर आपस में कहने लगे, “तुम्हें क्या लगता है, क्या वह त्योहार के लिए आएगा ही नहीं?” 57 प्रधान याजकों और फरीसियों ने हुक्म दिया हुआ था कि अगर किसी को पता चले कि वह कहाँ है, तो वह आकर उन्हें बताए ताकि वे उसे पकड़* सकें।

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