याकूब की चिट्ठी
1 याकूब जो परमेश्वर का और प्रभु यीशु मसीह का दास है, उन बारह गोत्रों को नमस्कार कहता है, जो चारों तरफ तित्तर-बित्तर होकर रहते हैं।
2 मेरे भाइयो, जब तरह-तरह की परीक्षाओं से तुम्हारा सामना हो तो इसे पूरी खुशी की बात समझो, 3 क्योंकि तुम जानते हो कि तुम्हारे परखे हुए विश्वास का यह खरापन धीरज पैदा करने का काम करता है। 4 मगर धीरज को अपना काम पूरा करने दो, ताकि तुम परिपूर्ण और सब बातों में हर तरह से सिद्ध पाए जाओ और तुम में किसी भी तरह की कमी न हो।
5 इसलिए अगर तुम में से किसी को बुद्धि की कमी हो तो वह परमेश्वर से माँगता रहे क्योंकि परमेश्वर अपने सभी माँगनेवालों को उदारता से और बिना डाँटे-फटकारे बुद्धि देता है और माँगनेवाले को यह दी जाएगी। 6 लेकिन वह विश्वास के साथ माँगता रहे, और ज़रा भी शक न करे, क्योंकि जो शक करता है वह समुद्र की लहरों की तरह होता है जो हवा से यहाँ-वहाँ उछलती रहती हैं। 7 दरअसल ऐसा इंसान यह उम्मीद न करे कि वह यहोवा* से कुछ भी पाएगा। 8 वह इंसान अपने फैसलों में दुचित्ता और सारी बातों में डाँवाडोल है।
9 जो भाई गरीब है वह अपने ऊँचे किए जाने पर खुशी मनाए, 10 और जो अमीर है वह अपने दीन किए जाने पर खुशी मनाए, क्योंकि वह ऐसे मिट जाएगा जैसे मैदान में उगनेवाला फूल। 11 जैसे सूरज के चढ़ने पर उसकी तपती धूप से घास-पत्ते मुरझा जाते हैं और उनका फूल सूखकर गिर जाता है और उसकी खूबसूरती मिट जाती है, ठीक वैसे ही एक अमीर आदमी भी अपनी ज़िंदगी की भाग-दौड़ में मिट जाएगा।
12 सुखी है वह इंसान जो परीक्षा में धीरज धरे रहता है, क्योंकि परीक्षा में खरा उतरने पर वह जीवन का ताज पाएगा जिसका वादा यहोवा ने उनसे किया है जो उससे लगातार प्यार करते हैं। 13 जब किसी की परीक्षा हो रही हो तो वह यह न कहे: “परमेश्वर मेरी परीक्षा ले रहा है।” क्योंकि न तो बुरी बातों से परमेश्वर को परीक्षा में डाला जा सकता है, न ही वह खुद बुरी बातों से किसी की परीक्षा लेता है। 14 लेकिन हर कोई अपनी ही इच्छाओं से खिंचकर परीक्षाओं के जाल में फँसता है। 15 फिर इच्छा गर्भवती होती है और पाप को जन्म देती है, और जब पाप कर लिया जाता है तो यह मौत लाता है।
16 मेरे प्यारे भाइयो, धोखा न खाओ। 17 हरेक अच्छा तोहफा और हरेक उत्तम देन ऊपर से मिलती है, क्योंकि यह आकाश की ज्योतियों* के पिता की तरफ से आती है। उस पिता में कभी कोई बदलाव नहीं होता, न ही कुछ घट-बढ़ होती है, जैसे रौशनी के घटने-बढ़ने से छाया घटती-बढ़ती है। 18 क्योंकि उसकी यह मरज़ी थी इसलिए उसने सच्चाई के वचन से हमें पैदा किया ताकि हम उसकी सृष्टि में से चुने गए पहले फल हों।
19 मेरे प्यारे भाइयो, यह बात जान लो। हर इंसान सुनने में फुर्ती करे, बोलने में सब्र करे, और क्रोध करने में धीमा हो। 20 इसलिए कि इंसान के क्रोध करने का नतीजा वह नेकी नहीं होता जिसकी माँग परमेश्वर करता है। 21 तो फिर हर तरह की अशुद्धता और उस बेकार चीज़, यानी बुराई को उतार फेंको और अपने अंदर उस वचन के बोए जाने को कोमलता से स्वीकार करो, जो तुम्हारी ज़िंदगियों को बचा सकता है।
22 लेकिन वचन पर चलनेवाले बनो, न कि सिर्फ सुननेवाले जो झूठी दलीलों से खुद को धोखा देते हैं। 23 क्योंकि जो कोई वचन को सुनता है मगर उस पर चलता नहीं, वह उस इंसान के जैसा है जो आइने में अपना असली चेहरा देखता है। 24 वह अपनी सूरत देखता है और चला जाता है, और फौरन भूल जाता है कि वह किस किस्म का इंसान है। 25 मगर जो इंसान आज़ादी दिलानेवाले सिद्ध कानून की बहुत करीब से जाँच करता है और इसमें खोजबीन करता रहता है, वह ऐसा करने से खुशी पाएगा क्योंकि वह सुनकर भूलता नहीं मगर वचन पर चलनेवाला बनता है।
26 अगर कोई आदमी खुद को परमेश्वर की उपासना करनेवाला समझता है, मगर अपनी ज़ुबान पर लगाम नहीं लगाता बल्कि अपने दिल को धोखे में रखता है, उस इंसान का उपासना करना बेकार है। 27 हमारे परमेश्वर और पिता की नज़र में शुद्ध और निष्कलंक उपासना यह है: अनाथों और विधवाओं की उनकी मुसीबतों में देखभाल की जाए और खुद को दुनिया से बेदाग रखा जाए।
2 मेरे भाइयो, क्या तुम हमारे महिमा से भरपूर प्रभु यीशु मसीह पर विश्वास दिखाने के साथ-साथ भेदभाव भी कर रहे हो? 2 अगर कोई इंसान तुम्हारी सभा में सोने की अंगूठियाँ और शानदार कपड़े पहनकर आता है और एक गरीब आदमी मैले-कुचैले कपड़ों में आता है, 3 तो तुम शानदार कपड़े पहननेवाले को तो अच्छी नज़र से देखते हो और उससे यह कहते हो: “इस बढ़िया जगह पर बैठ” मगर गरीब से यह कहते हो: “तू खड़ा रह,” या “यहाँ ज़मीन पर मेरे पाँव की चौकी के पास बैठ,” 4 तो क्या तुम्हारे बीच ऊँच-नीच का भेदभाव नहीं और क्या तुम ऐसे न्यायी न ठहरे जो दुष्टता से फैसले करते हैं?
5 मेरे प्यारे भाइयो, सुनो। क्या परमेश्वर ने ऐसों को नहीं चुना जो दुनिया में गरीब हैं ताकि वे विश्वास में धनी और उस राज के वारिस बनें, जिसका वादा उसने उनसे किया है जो उससे प्यार करते हैं? 6 लेकिन तुमने गरीब इंसान को बेइज़्ज़त किया है। क्या अमीर तुम पर अत्याचार नहीं करते और तुम्हें घसीटकर अदालतों में नहीं ले जाते? 7 क्या वे उस बढ़िया नाम की निंदा नहीं करते, जिस नाम से तुम बुलाए गए हो? 8 अब अगर तुम शास्त्रवचन के मुताबिक इस शाही नियम का पालन करते हो: “तुझे अपने पड़ोसी से वैसे ही प्यार करना है जैसे तू खुद से करता है,” तो तुम बहुत अच्छा काम कर रहे हो। 9 लेकिन अगर तुम भेदभाव दिखाना जारी रखते हो, तो तुम पाप कर रहे हो और यह नियम तुम्हें गुनहगार ठहराता है।
10 क्योंकि जो कोई मूसा के सारे कानून का पालन करता है, मगर सिर्फ एक ही आज्ञा को तोड़ता है, तो वह सारे कानून को तोड़ने का कसूरवार ठहरता है। 11 क्योंकि जिस परमेश्वर ने यह कहा: “तू शादी के बाहर यौन-संबंध न रखना,” उसी ने यह भी कहा: “तू खून न करना।” इसलिए अगर तू ने शादी के बाहर यौन-संबंध नहीं रखे, मगर तू ने खून किया, तो तू कानून को तोड़ने का गुनहगार ठहरा। 12 तुम उन लोगों की तरह बोलो और उन लोगों की तरह काम करते रहो, जिनका न्याय आज़ाद लोगों के कानून के मुताबिक होनेवाला है। 13 क्योंकि जो दया नहीं दिखाता उसका न्याय भी बिना दया दिखाए किया जाएगा। दया, दंड पर जीत हासिल करती है।
14 मेरे भाइयो, अगर कोई कहे कि मैं परमेश्वर में विश्वास करता हूँ तो ऐसे विश्वास का क्या फायदा अगर वह उसके मुताबिक अच्छे काम नहीं करता? क्या ऐसा विश्वास उसे उद्धार दिला सकता है? 15 अगर किसी भाई या बहन के पास कपड़े न हों और उसके पास दो वक्त की रोटी भी न हो, 16 और तुममें से कोई उससे यह कहे: “ठीक-ठाक रहो, अच्छा खाओ और अच्छा पहनो,” मगर तुम उसे तन ढकने के लिए कपड़ा और पेट भरने के लिए कुछ न दो, तो इसका क्या फायदा? 17 उसी तरह, जिस विश्वास के साथ काम न हों, ऐसा विश्वास मरा हुआ है।
18 मगर इसके बावजूद कोई तुमसे कह सकता है: “तुम सिर्फ विश्वास करते हो, मगर मैं काम भी करता हूँ। अपना विश्वास बिना काम के तो दिखा, और मैं अपना विश्वास अपने कामों से दिखाऊँगा।” 19 क्या तू विश्वास करता है कि परमेश्वर एक ही है? तू बहुत अच्छा करता है। दुष्ट स्वर्गदूत भी यह मानते हैं और थर-थर काँपते हैं। 20 लेकिन अरे खोखले इंसान, क्या तू इस बात को नहीं मानना चाहता कि कामों के बिना विश्वास बेजान है? 21 क्या हमारे पिता अब्राहम को, उसके कामों की वजह से नेक नहीं ठहराया गया था, जब उसने अपने बेटे इसहाक को वेदी पर चढ़ाया? 22 तुम देख सकते हो कि उसका विश्वास उसके कामों के साथ-साथ सक्रिय था और उसके कामों से उसका विश्वास परिपूर्ण किया गया 23 और यह शास्त्रवचन पूरा हुआ जो कहता है: “अब्राहम ने यहोवा पर विश्वास किया और यह उसके लिए नेकी गिना गया” और वह “यहोवा का मित्र” कहलाया।
24 तो तुम देखते हो कि एक इंसान सिर्फ विश्वास से नहीं बल्कि कामों से नेक ठहराया जाता है। 25 इसी तरह, क्या राहाब नाम की वेश्या कामों से नेक नहीं ठहरायी गयी, जब उसने दूतों को अपने घर में ठहराकर उनका सत्कार किया और फिर उन्हें दूसरे रास्ते से भेज दिया? 26 वाकई, जैसे जान के बिना शरीर मुरदा होता है, वैसे ही कामों के बिना विश्वास मरा हुआ है।
3 मेरे भाइयो, हम में से बहुत लोग शिक्षक न बनें, क्योंकि हम जानते हैं कि हम और भी कठोर दंड पाएँगे। 2 इसलिए कि हम सब कई बार गलती करते हैं।* अगर कोई बोलने में गलती नहीं करता, तो वह सिद्ध इंसान है और अपने पूरे शरीर को भी काबू में रख सकता है।* 3 हम घोड़े के मुँह में लगाम लगाते हैं ताकि वह हमारा कहना माने और इससे हम उसके पूरे शरीर को भी काबू में कर पाते हैं। 4 ध्यान दो! पानी के जहाज़ भी हालाँकि इतने बड़े होते हैं और तेज़ हवाओं से चलाए जाते हैं, फिर भी एक छोटी-सी पतवार के ज़रिए नाविक अपनी मरज़ी के मुताबिक जहाँ चाहे वहाँ उन्हें ले जा सकता है।
5 उसी तरह, जीभ भी हमारे शरीर का एक छोटा-सा अंग है फिर भी यह बड़ी-बड़ी डींगें मारती है। देखो! पूरे जंगल में आग लगाने के लिए बस एक छोटी-सी चिंगारी काफी होती है। 6 जीभ भी एक आग है। यह हमारे शरीर के अंगों में बुराई की एक दुनिया है, क्योंकि यह पूरे शरीर को कलंकित कर देती है और इंसान की पूरी ज़िंदगी में* आग लगा देती है और यह गेहन्ना* की आग की तरह भस्म कर देती है। 7 हर तरह के जंगली जानवर, पक्षी, रेंगनेवाले जीव-जंतु और समुद्री जीवों को तो पालतू बनाया जा सकता है और इंसान ने उन्हें काबू में कर पालतू बनाया भी है, 8 मगर जीभ को कोई भी इंसान काबू में नहीं कर सकता। यह ऐसी खतरनाक और बेकाबू चीज़ है जो जानलेवा ज़हर से भरी है। 9 इसी से हम अपने पिता यहोवा का गुणगान करते हैं, और इसी से इंसानों को बद्-दुआ देते हैं जिन्हें “परमेश्वर की छवि में” बनाया गया है। 10 एक ही मुँह से गुणगान और बद्-दुआ दोनों निकलते हैं।
भाइयो, ऐसा होते रहना सही नहीं है। 11 ऐसा नहीं हो सकता कि एक ही सोते से मीठा पानी भी निकले और खारा पानी भी। क्या ऐसा होता है? 12 मेरे भाइयो, क्या अंजीर के पेड़ से जैतून पैदा होते हैं या अंगूर की डाली से अंजीर पैदा होते हैं? नहीं। उसी तरह, खारे पानी के सोते से मीठा पानी नहीं निकल सकता।
13 तुम में बुद्धिमान और समझदार कौन है? जो ऐसा हो, वह इस बात को अपने बढ़िया चालचलन के कामों से उस कोमलता के साथ दिखाए जो बुद्धि से पैदा होती है। 14 लेकिन अगर तुम्हारे दिलों में ज़बरदस्त ईर्ष्या और झगड़े की भावना हो, तो शेखी न मारो और सच्चाई के खिलाफ झूठ मत बोलो। 15 यह बुद्धि वह नहीं जो स्वर्ग से मिलती है, बल्कि यह दुनियावी, शारीरिक और शैतानी है। 16 इसलिए कि जहाँ ईर्ष्या और झगड़े होते हैं, वहाँ गड़बड़ी और हर तरह की बुराई होती है।
17 लेकिन जो बुद्धि स्वर्ग से मिलती है, वह सबसे पहले तो पवित्र, फिर शांति कायम करनेवाली, लिहाज़ दिखानेवाली, आज्ञा मानने के लिए तैयार, दया और अच्छे कामों से भरपूर होती है। यह भेदभाव नहीं करती और न ही कपटी होती है। 18 जो शांति कायम करनेवाले हैं, वे शांति के हालात में बीज बोते हैं और नेकी के फल काटते हैं।
4 तुम्हारे बीच लड़ाइयाँ और झगड़े कहाँ से आए? क्या इनकी जड़ तुम्हारे ही अंदर नहीं? क्या ये शरीर का सुख पाने की तुम्हारी ज़बरदस्त लालसाओं की वजह से नहीं, जो तुम्हारे अंगों में लगातार युद्ध करती रहती हैं? 2 तुम चाहते तो हो, फिर भी तुम्हें मिलता नहीं। तुम खून करते और लालच करते हो, और फिर भी हासिल नहीं कर पाते। तुम लड़ाइयाँ और युद्ध करते रहते हो। तुम्हारे पास इसलिए नहीं है, क्योंकि तुम माँगते नहीं। 3 तुम माँगते तो हो, और फिर भी नहीं पाते, क्योंकि तुम गलत इरादे से माँगते हो ताकि तुम इसे शरीर का सुख पाने की लालसाओं पर उड़ा दो।
4 अरे बदचलनी करनेवालियो,* क्या तुम नहीं जानतीं कि दुनिया के साथ दोस्ती करने का मतलब परमेश्वर से दुश्मनी करना है? इसलिए, जो कोई इस दुनिया का दोस्त बनना चाहता है वह खुद को परमेश्वर का दुश्मन बनाता है। 5 या क्या तुम्हें लगता है कि शास्त्रवचन बिना वजह ही कहता है: “ईर्ष्या करने की जो फितरत हमारे अंदर समायी हुई है, वह लगातार अलग-अलग बातों की चाह करती रहती है”? 6 मगर, परमेश्वर जो महा-कृपा हमें देता है वह हमारी इस फितरत से कहीं महान है। इसलिए यह वचन कहता है: “परमेश्वर घमंडियों का सामना करता है, मगर नम्र लोगों को अपनी महा-कृपा देता है।”
7 इसलिए, खुद को परमेश्वर के अधीन करो, मगर शैतान* का सामना करो और वह तुम्हारे पास से भाग जाएगा। 8 परमेश्वर के करीब आओ और वह तुम्हारे करीब आएगा। अरे पापियो, अपने हाथ धोओ, अरे दुचित्ते लोगो, अपने दिलों को शुद्ध करो। 9 अपनी दुर्दशा पर मातम करो और रोओ। तुम्हारी हँसी मातम में और तुम्हारी खुशी उदासी में बदल जाए। 10 यहोवा की नज़रों में खुद को नम्र करो और वह तुम्हें ऊँचा करेगा।
11 भाइयो, एक-दूसरे के खिलाफ बोलना बंद करो। जो कोई किसी भाई के खिलाफ बोलता है या उस पर दोष लगाता है वह परमेश्वर के कानून के खिलाफ बोलता है और उस कानून पर दोष लगाता है। अगर तू कानून पर दोष लगाता है, तो तू उस पर चलनेवाला नहीं बल्कि उसका न्यायी ठहरा। 12 कानून देनेवाला और न्यायी तो एक ही है, जो बचा भी सकता है और नाश भी कर सकता है। मगर तू कौन होता है जो अपने संगी पर दोष लगाता है?
13 सुनो, तुम जो कहते हो: “आज या कल हम इस या उस शहर में जाएँगे और वहाँ एक साल बिताएँगे और व्यापार करेंगे और खूब पैसा कमाएँगे,” 14 जबकि तुम नहीं जानते कि कल तुम्हारे जीवन का क्या होगा। क्योंकि तुम उस धुंध की तरह हो जो थोड़ी देर दिखायी देती है और फिर गायब हो जाती है। 15 इसके बजाय, तुम्हें यह कहना चाहिए: “अगर यहोवा की मरज़ी हो, तो हम कल का दिन देखेंगे और यह काम या वह काम करेंगे।” 16 मगर तुम अपनी बड़ी-बड़ी डींगों पर घमंड करते हो। ऐसा हर तरह का घमंड दुष्टता है। 17 इसलिए, अगर एक इंसान सही काम करना जानता है और फिर भी नहीं करता, तो यह उसके लिए पाप है।
5 अरे धनवानो, सुनो, तुम पर जो मुसीबतें आनेवाली हैं उनकी वजह से दहाड़ें मार-मारकर रोओ। 2 तुम्हारी धन-दौलत सड़ गयी है और तुम्हारे कपड़े कीड़े खा गए हैं। 3 तुम्हारे सोने और चाँदी में ज़ंग लग गया है, और उनका ज़ंग तुम्हारे खिलाफ गवाही देगा और तुम्हारा माँस खा जाएगा। तुमने आखिरी दिनों के लिए जो जमा किया है वह असल में आग है। 4 देखो! जिन मज़दूरों ने तुम्हारे खेतों में कटाई की तुमने उनकी मज़दूरी मार ली है। उनकी वही मज़दूरी तुम्हारे खिलाफ चिल्ला रही है और मदद के लिए उनकी यह पुकार सेनाओं के यहोवा के कानों तक जा पहुँची है। 5 तुम इस धरती पर ऐशो-आराम में जीते रहे और शरीर के सुख भोगने में लगे रहे। तुम्हारे दिल उन जानवरों की तरह मोटे हो गए हैं, जिन्हें काटने से पहले खिला-खिलाकर मोटा-ताज़ा किया जाता है। 6 तुमने उस नेक जन को दोषी ठहराकर मार डाला। क्या वह तुम्हारा विरोध नहीं कर रहा?
7 इसलिए भाइयो, हमारे प्रभु की मौजूदगी तक सब्र दिखाओ। ध्यान दो! एक किसान ज़मीन की कीमती पैदावार पाने के लिए इंतज़ार करता रहता है और शुरू की बारिश और बाद की बारिश* होने तक सब्र दिखाता है। 8 तुम भी सब्र दिखाओ। अपने दिलों को मज़बूत करो, क्योंकि प्रभु की मौजूदगी का वक्त पास आ गया है।
9 भाइयो, तुम एक-दूसरे के खिलाफ गहरी आहें मत भरो, ताकि तुम दोषी न ठहरो। देखो! हम सबका न्यायी दरवाज़े तक आ पहुँचा है। 10 भाइयो, यहोवा के नाम से वचन सुनानेवाले भविष्यवक्ताओं ने जिस तरह बुराई सही और सब्र दिखाया, उसे अपने लिए एक नमूना मानकर चलो। 11 देखो! हम उन लोगों को सुखी कहते हैं जिन्होंने धीरज धरा है। तुमने अय्यूब के धीरज के बारे में सुना है और यह भी कि यहोवा ने उसे आखिर में इसका क्या फल दिया, जिससे तुम देख सकते हो कि यहोवा गहरी करुणा दिखाता है और दयालु परमेश्वर है।
12 खासकर, मेरे भाइयो, कसमें खाना बंद करो। चाहे कोई भी बात क्यों न हो, न तो स्वर्ग की, न ही धरती की कसम खाना, न ही किसी और तरह की। इसके बजाय, तुम्हारी ‘हाँ’ का मतलब हाँ हो और ‘नहीं’ का मतलब नहीं, ताकि तुम सज़ा के लायक न ठहरो।
13 क्या तुम्हारे बीच कोई दुःख झेल रहा है? तो वह प्रार्थना में लगा रहे। क्या किसी का मन खुश है? वह परमेश्वर की तारीफ में भजन गाए। 14 क्या कोई तुम्हारे बीच बीमार है? तो वह मंडली* के प्राचीनों को बुलाए और वे उसके लिए प्रार्थना करें और यहोवा के नाम से उस बीमार पर तेल मलें।* 15 और विश्वास से की गयी प्रार्थना उस बीमार को अच्छा कर देगी और यहोवा उसे उठाकर खड़ा कर देगा। और अगर उसने पाप भी किए हों, तो वे माफ किए जाएँगे।
16 इसलिए तुम एक-दूसरे के सामने खुलकर अपने पाप मान लो और एक-दूसरे के लिए प्रार्थना करो, ताकि तुम अच्छे हो जाओ। जब नेक इंसान प्रार्थना में मिन्नतें करता है और जब ये प्रार्थनाएँ सुनी जाती हैं, तो उनका ज़बरदस्त असर हो सकता है। 17 एलिय्याह भी हमारे जैसी भावनाएँ रखनेवाला इंसान था, और फिर भी जब उसने प्रार्थना में बिनती की कि बारिश न हो, तो देश पर साढ़े तीन साल तक बारिश नहीं हुई। 18 और जब उसने फिर प्रार्थना की, तो आकाश से बारिश हुई और धरती ने अपनी पैदावार दी।
19 मेरे भाइयो, तुममें से अगर कोई सच्चाई के रास्ते से भटक जाए और कोई उस भटके हुए को वापस ले आए, 20 तो यह जान लो कि ऐसा इंसान जो एक भटके हुए पापी को गलत रास्ते से वापस ले आता है वह उसके जीवन को मौत से बचाता है और उसके ढेर सारे पापों को ढक देता है।
याकू 1:7 यह उन 237 जगहों में से एक जगह है, जहाँ परमेश्वर का नाम, ‘यहोवा’ इस अनुवाद के मुख्य पाठ में पाया जाता है। अतिरिक्त लेख 2 देखें।
याकू 1:17 या, सूरज, चाँद और तारे हैं।
याकू 3:2 शाब्दिक, “ठोकर खाते हैं” यानी चूक जाते हैं।
याकू 3:2 शाब्दिक, “लगाम लगा सकता है।”
याकू 3:6 शाब्दिक, “जीवन के पहिए में।”
याकू 3:6 यरूशलेम के बाहर कूड़ा-करकट जलाने की जगह। अतिरिक्त लेख 9 देखें।
याकू 4:4 शाब्दिक, “शादी के बाहर यौन-संबंध रखनेवालियों।”
याकू 4:7 शाब्दिक, “इब्लीस।” यूनानी में “दियाबोलोस,” जिसका मतलब है “निंदा करनेवाला।”
याकू 5:7 शुरू की बारिश अक्टूबर में और बाद की बारिश अप्रैल में होती थी।
याकू 5:14 मत्ती 16:18 दूसरा फुटनोट देखें।
याकू 5:14 ज़ाहिर तौर पर, यहाँ परमेश्वर का वचन इस्तेमाल करने का ज़िक्र है।