इब्रानियों के नाम
1 परमेश्वर ने गुज़रे ज़मानों में, अलग-अलग मौकों पर अलग-अलग तरीकों से भविष्यवक्ताओं के ज़रिए हमारे बापदादों से बात की थी। 2 मगर अब इन दिनों के आखिर में उसने हमसे अपने बेटे के ज़रिए बात की है, जिसे उसने सब चीज़ों का वारिस ठहराया और जिसके ज़रिए उसने दुनिया की व्यवस्थाएँ* बनायीं। 3 इस बेटे में परमेश्वर की महिमा झलकती है और वह परमेश्वर की हू-ब-हू छवि है। वह अपने शक्तिशाली वचन से सब चीज़ों को संभालता है। और हमारे पापों को धोने के बाद वह ऊँचे पर महामहिम की दायीं तरफ जा बैठा है। 4 इस तरह वह स्वर्गदूतों से भी श्रेष्ठ बन गया है। यहाँ तक कि वह ऐसे नाम का वारिस बन गया है जो उनके नाम से कहीं श्रेष्ठ है।
5 मिसाल के लिए, परमेश्वर ने कब किसी स्वर्गदूत से यह कहा: “तू मेरा बेटा है, आज मैं तेरा पिता बना हूँ”? और फिर यह कि “मैं खुद उसका पिता बनूँगा और वह मेरा बेटा बनेगा”? 6 मगर उस वक्त के बारे में जब वह अपने पहलौठे को दोबारा इस धरती पर लाएगा, वह कहता है: “परमेश्वर के सारे स्वर्गदूत उसके आगे झुककर प्रणाम करें।”
7 साथ ही, वह स्वर्गदूतों के बारे में यह कहता है: “वह अपने स्वर्गदूतों को ताकतवर शक्तियाँ और जन-सेवा करनेवाले स्वर्गदूतों को आग की ज्वाला बनाता है।” 8 मगर अपने बेटे के बारे में वह यह कहता है: “परमेश्वर हमेशा-हमेशा के लिए तेरी राजगद्दी है और तेरे राज का राजदंड सीधाई का राजदंड है। 9 तू ने सच्चाई से प्यार किया और दुराचार से नफरत की। इसी वजह से परमेश्वर ने, हाँ, तेरे परमेश्वर ने तेरे साथियों* से कहीं बढ़कर हर्ष के तेल से तेरा अभिषेक किया।” 10 और यह: “हे प्रभु, तू ने शुरूआत में पृथ्वी की नींव डाली और आकाश तेरे हाथ की रचना है। 11 वे तो नाश हो जाएँगे, मगर तू हमेशा तक कायम रहेगा। एक कपड़े की तरह वे सब पुराने हो जाएँगे, 12 और तू उन्हें ऐसे लपेटकर रख देगा जैसे एक चोगे को, हाँ, एक कपड़े को लपेटकर रख दिया जाता है। वे बदल दिए जाएँगे, मगर तू जैसे का तैसा बना रहता है और तेरी उम्र के साल कभी खत्म न होंगे।”
13 मगर उसने कब किसी स्वर्गदूत के बारे में यह कहा: “मेरी दायीं तरफ बैठ, जब तक कि मैं तेरे दुश्मनों को तेरे पाँवों की चौकी न बना दूँ”? 14 क्या ये सब जन-सेवा करनेवाले स्वर्गदूत नहीं, जिन्हें उनकी सेवा के लिए भेजा जाता है जो उद्धार पाएँगे?
2 इसी वजह से, हमने जो बातें सुनी हैं, उन पर और भी ज़्यादा ध्यान देना ज़रूरी है, ताकि हम कभी-भी बहकर विश्वास से धीरे-धीरे दूर न चले जाएँ। 2 जो वचन स्वर्गदूतों के ज़रिए कहा गया था, अगर वह इतना अटल साबित हुआ और उस वचन के खिलाफ किए गए हर पाप की और आज्ञा तोड़ने की न्याय के मुताबिक सज़ा मिली, 3 तो हम उस उद्धार के बारे में, जो इतना महान है, लापरवाही बरतकर कैसे बच सकेंगे? यह उद्धार इसलिए महान है क्योंकि इसके बारे में सबसे पहले हमारे प्रभु ने बताया था। और फिर, इसके सच होने की बात को उन लोगों ने हमारे लिए पुख्ता किया जिन्होंने उससे सुना था। 4 साथ ही, परमेश्वर ने भी अपनी मरज़ी के मुताबिक, चमत्कारों, आश्चर्य के कामों और तरह-तरह के शक्तिशाली कामों के ज़रिए और पवित्र शक्ति के वरदान देकर इसकी गवाही दी है।
5 परमेश्वर ने आनेवाली उस दुनिया को, जिसके बारे में हम बता रहे हैं, स्वर्गदूतों के अधीन नहीं किया। 6 मगर किसी गवाह ने इस बात का सबूत देते हुए कहीं यह लिखा है: “इंसान क्या है कि तू उसके बारे में सोचे, या इंसान का बेटा क्या है कि तू उसकी परवाह करे? 7 तू ने उसे स्वर्गदूतों से कुछ कमतर बनाया। और उसे महिमा और आदर का ताज पहनाया और अपने हाथ की रचनाओं पर उसे अधिकार दिया। 8 तू ने सबकुछ उसके पाँवों तले कर दिया।” परमेश्वर ने सबकुछ उसके अधीन कर दिया और ऐसा कुछ भी न रख छोड़ा जो उसके अधीन न किया हो। हालाँकि अब तक हम सबकुछ उसके अधीन नहीं देखते, 9 मगर हम यीशु को देखते हैं जिसे स्वर्गदूतों से थोड़ा कमतर बनाया गया। और मौत सहने की वजह से उसे महिमा और आदर का ताज पहनाया गया, ताकि परमेश्वर की महा-कृपा से वह हर इंसान के लिए मौत का स्वाद चख सके।
10 सबकुछ परमेश्वर की खातिर और उसी के ज़रिए वजूद में है। इसलिए यह सही था कि वह बहुत सारे बेटों को महिमा में लाने के लिए, उनके उद्धार के खास नुमाइंदे को दुःख सहने के ज़रिए सिद्ध बनाए। 11 इसलिए कि पवित्र करनेवाला और जो पवित्र किए जा रहे हैं, सब एक ही पिता से हैं और इस वजह से वह उन्हें “भाई” पुकारने में शर्मिंदा महसूस नहीं करता, 12 जैसा वह कहता है: “मैं अपने भाइयों में तेरे नाम का ऐलान करूँगा और मंडली* के बीच मैं गीत गाकर तेरा गुणगान करूँगा।” 13 और फिर यह: “मैं उस पर भरोसा रखूँगा।” और यह भी: “देखो! मैं और ये बच्चे जिन्हें यहोवा* ने मुझे दिया है।”
14 इसलिए, जैसे “बच्चे” हाड़-माँस* के बने हैं, वह भी हाड़-माँस का बना, ताकि अपनी मौत के ज़रिए उसे यानी शैतान* को मिटा दे, जिसके पास मौत देने का ज़रिया है, 15 और उन सभी को आज़ाद करे जो मौत के डर से पूरी ज़िंदगी गुलामी में पड़े थे। 16 वह असल में स्वर्गदूतों की नहीं बल्कि अब्राहम के वंश की मदद कर रहा है। 17 इसी वजह से उसके लिए ज़रूरी था कि वह हर मायने में अपने “भाइयों” जैसा बने, ताकि वह परमेश्वर की सेवा से जुड़ी बातों में एक दयालु और विश्वासयोग्य महायाजक बन सके और लोगों के पापों के लिए प्रायश्चित्त का बलिदान चढ़ाए जिससे परमेश्वर के साथ उनकी सुलह हो। 18 क्योंकि उसने खुद उस वक्त जब उसकी परीक्षा ली जा रही थी, दुःख उठाया, इसलिए अब वह उनकी मदद करने के काबिल है जिनकी परीक्षा ली जा रही है।
3 इसलिए, पवित्र भाइयो, तुम जो स्वर्ग के बुलावे में हिस्सेदार हो, उस प्रेषित* और महायाजक यीशु पर ध्यान दो, जिस पर हम अपने विश्वास का ऐलान करते हैं। 2 वह उस परमेश्वर का विश्वासयोग्य रहा जिसने उसे प्रेषित और महायाजक ठहराया, जैसे मूसा भी परमेश्वर के सारे घराने में विश्वासयोग्य था। 3 जैसे घर से ज़्यादा उसके बनानेवाले को आदर दिया जाता है, वैसे ही यीशु को मूसा से ज़्यादा महिमा के लायक समझा गया। 4 बेशक, हर घर का कोई न कोई बनानेवाला होता है, मगर जिसने सबकुछ बनाया वह परमेश्वर है। 5 मूसा तो परमेश्वर के सारे घराने में एक सेवक के नाते विश्वासयोग्य रहा। उसकी यह सेवा उन बातों की गवाही थी जिनके बारे में बाद में बताया जाना था। 6 मगर मसीह तो बेटा है, जो परमेश्वर के घराने पर अधिकारी के नाते विश्वासयोग्य रहा। और परमेश्वर का घराना हम हैं, बशर्ते हम बेझिझक बोलने की हिम्मत और अपनी आशा पर गर्व को आखिर तक मज़बूती से थामे रहें।
7 इसी वजह से, पवित्र शक्ति कहती है: “आज अगर तुम उसकी आवाज़ सुनो, 8 तो तुम अपने दिलों को कठोर न कर लेना। जैसे तुम्हारे बापदादों ने उस मौके पर किया था जब उन्होंने मुझे ज़बरदस्त क्रोध दिलाया था, जैसे उस दिन वीराने में मेरी परीक्षा ली थी, 9 जहाँ उन्होंने मेरी परीक्षा लेकर मुझे चुनौती दी थी, इसके बावजूद कि उन्होंने चालीस साल तक मेरे काम देखे थे। 10 इसी वजह से मुझे इस पीढ़ी से घिन होने लगी और मैंने कहा, ‘इनके दिल हमेशा मुझसे दूर हो जाते हैं, और इन्होंने मेरी राहों को नहीं पहचाना।’ 11 इस वजह से मैंने क्रोध में आकर यह शपथ खायी, ‘वे मेरे विश्राम में दाखिल न होंगे।’ ”
12 भाइयो, खबरदार रहो, कहीं जीवित परमेश्वर से दूर जाने की वजह से तुममें से किसी का दिल कठोर होकर ऐसा दुष्ट न हो जाए जिसमें विश्वास न हो। 13 मगर हर दिन, जब तक कि यह समय “आज” का दिन कहलाता है, तुम एक-दूसरे को सीख देकर उकसाते रहो ताकि तुम में से कोई भी पाप की भरमाने की ताकत की वजह से कठोर न हो जाए। 14 इसलिए कि हम सही मायनों में मसीह के साझेदार तभी बनते हैं जब हम उस भरोसे को आखिर तक मज़बूती से थामे रहते हैं जो हमारे अंदर शुरू में था। 15 जैसा कि कहा भी गया है: “आज अगर तुम उसकी आवाज़ सुनो, तो तुम अपने दिलों को कठोर न कर लेना। जैसे तुम्हारे बापदादों ने उस मौके पर किया था जब उन्होंने मुझे ज़बरदस्त क्रोध दिलाया था।”
16 वे कौन थे जिन्होंने यह सुनकर भी परमेश्वर को ज़बरदस्त क्रोध दिलाया था? क्या ये सब वही न थे जो मूसा के अधीन मिस्र से बाहर निकले थे? 17 और चालीस साल के दौरान वे कौन थे जिनसे परमेश्वर को घिन होने लगी? क्या ये वही नहीं थे जिन्होंने पाप किया, जिनकी लाशें वीराने में बिछ गयीं? 18 और उसने किससे यह शपथ खायी कि वे उसके विश्राम में दाखिल न होंगे? क्या उनसे नहीं जिन्होंने उसकी आज्ञाओं के खिलाफ काम किया था? 19 तो फिर, हम देखते हैं कि वे इसलिए विश्राम में दाखिल न हो सके क्योंकि उनमें विश्वास नहीं था।
4 इसलिए, जबकि परमेश्वर के विश्राम में दाखिल होने का वादा अब तक है, तो आओ हम इस बात का ध्यान रखें कि हममें से कोई भी इस विश्राम में दाखिल होने के अयोग्य न ठहरे। 2 इसलिए कि हमें भी खुशखबरी सुनायी गयी है, ठीक जैसे उन्हें सुनायी गयी थी। मगर जो वचन उन्होंने सुना उसका उन्हें कुछ फायदा नहीं हुआ, क्योंकि उन्होंने उनकी तरह विश्वास नहीं दिखाया जिन्होंने सुना और विश्वास दिखाया था। 3 लेकिन हमने विश्वास दिखाया है और इसलिए उस विश्राम में दाखिल होते हैं। हालाँकि दुनिया की शुरूआत होने पर परमेश्वर के काम खत्म हो चुके थे और उसने विश्राम किया और दूसरों को भी अपने विश्राम में दाखिल होने का न्यौता दिया, फिर भी उसने एक बार कहा है: “इस वजह से मैंने क्रोध में आकर यह शपथ खायी, ‘वे मेरे विश्राम में दाखिल न होंगे।’ ” 4 एक जगह उसने सातवें दिन के बारे में यह कहा है: “और परमेश्वर ने सातवें दिन अपने सब कामों से विश्राम किया।” 5 और फिर उसने यह कहा: “वे मेरे विश्राम में दाखिल न होंगे।”
6 तो फिर कुछ लोगों का इस विश्राम में दाखिल होना बाकी है। और जिन लोगों को पहले खुशखबरी सुनायी गयी थी, वे आज्ञा न मानने की वजह से उसमें दाखिल नहीं हुए। 7 इसलिए वह फिर से बहुत दिनों बाद, दाऊद के भजन में किसी खास दिन के बारे में बताते हुए इसे “आज का दिन” कहता है, ठीक जैसा ऊपर कहा गया है: “आज अगर तुम उसकी आवाज़ सुनो, तो तुम अपने दिलों को कठोर न कर लेना।” 8 इसलिए कि अगर यहोशू उन्हें विश्राम की जगह में ले जा चुका होता, तो परमेश्वर बाद में एक और दिन की बात न करता। 9 तो ज़ाहिर है कि परमेश्वर के लोगों के लिए सब्त का विश्राम बाकी है। 10 क्योंकि जो इंसान परमेश्वर के विश्राम में दाखिल हुआ है, उसने भी अपने कामों से विश्राम किया है, ठीक जैसे परमेश्वर ने किया था।
11 इसलिए आओ हम उस विश्राम में दाखिल होने के लिए अपना भरसक करें, कहीं ऐसा न हो कि हममें से कोई पाप करने लगे और आज्ञा न मानने के उनके ढर्रे में पड़ जाए। 12 इसलिए कि परमेश्वर का वचन जीवित है और ज़बरदस्त ताकत रखता है और दोनों तरफ तेज़ धार रखनेवाली तलवार से भी ज़्यादा धारदार है। यह इंसान के बाहरी रूप* को उसके अंदर के इंसान* से अलग करता है, और हड्डियों* को गूदे तक आर-पार चीरकर अलग कर देता है और दिल के विचारों और इरादों को जाँच सकता है। 13 और सृष्टि में ऐसी एक भी चीज़ नहीं जो परमेश्वर की नज़र से छिपी हुई हो। हाँ, हमें जिसे हिसाब देना है उसकी आँखों के सामने सारी चीज़ें खुली और बेपरदा हैं।
14 इसलिए, यह देखते हुए कि हमारा ऐसा महान महायाजक है, यानी परमेश्वर का बेटा यीशु जो स्वर्ग में दाखिल हुआ है, आओ हम उस पर अपने विश्वास का ऐलान करते रहें। 15 क्योंकि हमारा महायाजक ऐसा नहीं जो हमारी कमज़ोरियों में हमसे हमदर्दी न रख सके। मगर वह ऐसा है जिसकी हमारी तरह सब बातों में परीक्षा हुई, फिर भी वह निष्पाप निकला। 16 इसलिए आओ हम परमेश्वर की महा-कृपा की राजगद्दी के सामने, बेझिझक बोलने की हिम्मत के साथ जाएँ, ताकि हम सही वक्त पर मदद पाने के लिए उसकी दया और महा-कृपा हासिल कर सकें।
5 हरेक महायाजक इंसानों में से लिया जाता है और उसे इंसानों की खातिर परमेश्वर की सेवा में ठहराया जाता है, ताकि वह भेंट और पापों के प्रायश्चित्त के लिए बलिदान चढ़ाया करे। 2 वह उन लोगों के साथ दया से पेश आने के काबिल होता है जो अनजाने में गलतियाँ करते हैं, क्योंकि वह खुद भी अपनी कमज़ोरियों से घिरा होता है। 3 और इस वजह से उसे अपने पापों के लिए भी चढ़ावा चढ़ाना ज़रूरी होता है, ठीक जैसे वह दूसरों के पापों के लिए चढ़ाता है।
4 और कोई भी आदमी आदर का यह पद अपने आप नहीं ले लेता मगर यह उसे तभी मिलता है जब वह परमेश्वर की तरफ से ठहराया गया हो, ठीक जैसे हारून भी ठहराया गया था। 5 इसी तरह, मसीह ने भी खुद महायाजक का पद लेकर अपनी महिमा नहीं की, बल्कि उसे यह महिमा उसी ने दी जिसने उसके बारे में यह कहा: “तू मेरा बेटा है; आज मैं तेरा पिता बना हूँ।” 6 इसी तरह, एक और जगह पर वह कहता है: “तू मेल्कीसेदेक की तरह हमेशा-हमेशा के लिए एक याजक है।”
7 जब मसीह इस धरती पर था, उस दौरान उसने ऊँची आवाज़ में पुकार-पुकारकर और आँसू बहा-बहाकर उससे गिड़गिड़ाकर मिन्नतें और बिनतियाँ कीं जो उसे मौत से बचा सकता था। और उसकी सुनी गयी क्योंकि वह परमेश्वर का डर मानता था। 8 परमेश्वर का बेटा होते हुए भी उसने दुःख सह-सहकर आज्ञा माननी सीखी। 9 और परिपूर्ण किए जाने के बाद, उसे उन सबको हमेशा का उद्धार दिलाने की ज़िम्मेदारी दी गयी जो उसकी आज्ञा मानते हैं। 10 क्योंकि परमेश्वर ने उसे खास तौर से मेल्कीसेदेक की तरह महायाजक होने के लिए ठहराया था।
11 हमारे पास उसके बारे में कहने के लिए बहुत कुछ है मगर तुम्हें यह सब समझाना मुश्किल है, क्योंकि तुम्हारी सोचने-समझने की शक्ति मंद पड़ गयी है।* 12 दरअसल, वक्त के हिसाब से तो तुम्हें दूसरों को सिखाने के काबिल बन जाना चाहिए था, मगर अब यह ज़रूरी हो गया है कि कोई तुम्हें परमेश्वर के पवित्र वचनों की बुनियादी बातें शुरूआत से सिखाए और तुम उनकी तरह बन गए हो जिन्हें ठोस आहार नहीं बल्कि सिर्फ दूध चाहिए। 13 इसलिए कि हर कोई जो दूध पीता है वह सच्चाई के वचन से अनजान है, क्योंकि वह अभी तक बच्चा है। 14 मगर ठोस आहार तो बड़ों के लिए है, जो अपनी सोचने-समझने की शक्ति का इस्तेमाल करते-करते, सही-गलत में फर्क करने के लिए इसे प्रशिक्षित कर लेते हैं।
6 इसी वजह से, अब जबकि हम मसीह के बारे में बुनियादी शिक्षाओं को पीछे छोड़ चुके हैं, तो आओ हम पूरा ज़ोर लगाकर प्रौढ़ता के लक्ष्य तक बढ़ते जाएँ। हम फिर नए सिरे से बुनियाद न डालें, यानी हम फिर से वही बातें न सीखने लगें जिनसे हमने शुरूआत की थी। जैसे मुरदा कामों से पश्चाताप करने, परमेश्वर पर विश्वास करने, 2 अलग-अलग किस्म के बपतिस्मों, हाथ रखने, मरे हुओं के जी उठने और हमेशा तक कायम रहनेवाले न्यायदंड की शिक्षा। 3 और अगर परमेश्वर इजाज़त दे, तो हम ज़रूर प्रौढ़ता के लक्ष्य तक बढ़ते जाएँगे।
4 क्योंकि जो लोग एक बार ज्ञान की रौशनी हासिल कर चुके हैं और जिन्होंने स्वर्ग से मिलनेवाले मुफ्त वरदान का स्वाद लिया है और जो पवित्र शक्ति के भागीदार बने, 5 और जिन्होंने परमेश्वर के बढ़िया वचन का और आनेवाले ज़माने* की शक्तिशाली चीज़ों का स्वाद लिया, 6 मगर अब गिर गए हैं और दूर जा चुके हैं, उन्हें फिर से पश्चाताप करने के लिए लौटा लाना नामुमकिन है। क्योंकि वे खुद ही परमेश्वर के बेटे को एक बार फिर सूली पर चढ़ाते हैं और लोगों के सामने उसे शर्मिंदा करते हैं। 7 जैसे वह ज़मीन जो उस पर बार-बार पड़नेवाली बारिश का पानी पीती है और फिर अपने जोतने-बोनेवालों के खाने के लिए साग-सब्ज़ी उपजाती है, वह बदले में परमेश्वर से आशीष पाती है। 8 लेकिन अगर वह काँटे और कंटीली झाड़ियाँ उगाए, तो उसे बेकार छोड़ दिया जाता है और वह शाप पाने के लायक होती है। और आखिर में उसे जला दिया जाता है।
9 हालाँकि हम इस तरह बात कर रहे हैं, लेकिन प्यारे भाइयो, जहाँ तक तुम्हारी बात है, हमें यकीन है कि तुम ज़्यादा अच्छी हालत में हो। और उन बातों को थामे हुए हो जिनसे उद्धार हासिल होता है। 10 क्योंकि परमेश्वर अन्यायी नहीं कि तुम्हारे काम और उस प्यार को भूल जाए जो तुमने उसके नाम के लिए दिखाया है। यानी कैसे तुमने पवित्र जनों की सेवा की है और अब भी कर रहे हो। 11 मगर हम चाहते हैं कि तुममें से हरेक जन इसी तरह मेहनत करता रहे ताकि आखिर तक अपनी आशा के पूरा होने का पक्का भरोसा हासिल कर सके। 12 जिससे कि तुम आलसी न हो जाओ, मगर उन लोगों की मिसाल पर चलो जो विश्वास और सब्र रखने की वजह से वादों के वारिस बनते हैं।
13 जब परमेश्वर ने अब्राहम से वादा किया, तो उसने खुद अपनी शपथ खायी, क्योंकि परमेश्वर से बड़ा कोई और नहीं जिसकी वह शपथ खाता। 14 उसने कहा: “मैं यकीनन तुझे आशीष दूँगा और तुझे कई गुना बढ़ाऊँगा।” 15 इस तरह जब अब्राहम ने सब्र रखा, तो यह वादा हासिल किया। 16 इंसान अपने से किसी बड़े की शपथ खाते हैं और उनकी शपथ हर विवाद का अंत होती है, क्योंकि यह शपथ उनके लिए कानूनी गारंटी ठहरती है। 17 इसी तरह जब परमेश्वर ने वादे के वारिसों पर और भी पक्के तौर पर यह ज़ाहिर करना चाहा कि उसकी मरज़ी कितनी अटल है, तो उसने शपथ खाते हुए अपने वादे को पुख्ता किया, 18 ताकि इन दो अटल बातों के ज़रिए जिनके बारे में परमेश्वर का झूठ बोलना नामुमकिन है हमें यानी हम जो भागकर परमेश्वर की शरण में आए हैं, ऐसा ज़बरदस्त हौसला मिले कि हम उस आशा पर पकड़ हासिल कर सकें जो हमारे सामने रखी है। 19 यह आशा हमारी ज़िंदगी के लिए एक लंगर है, जो पक्की और मज़बूत है। और यह आशा हमें परदे के उस पार ले जाती है, 20 जहाँ हमारा अगुवा यीशु, हमारी खातिर दाखिल हो चुका है और जो मेल्कीसेदेक की तरह हमेशा के लिए महायाजक बन गया है।
7 यह मेल्कीसेदेक जो शालेम का राजा और परमप्रधान परमेश्वर का याजक था, अब्राहम से उस वक्त मिला जब वह राजाओं को मारकर लौट रहा था और उसने अब्राहम को आशीष दी। 2 और अब्राहम ने उसे सब चीज़ों का दसवाँ हिस्सा दिया। यह मेल्कीसेदेक अपने नाम के मतलब के मुताबिक पहले तो “खरा राजा” है और फिर शालेम का राजा यानी “शांति का राजा” भी है। 3 उसका न तो कोई पिता, न कोई माँ, न ही कोई वंशावली है। उसके दिनों की न तो कोई शुरूआत है, न ही उसके जीवन का अंत, बल्कि उसे परमेश्वर के बेटे जैसा ठहराया गया है। इसलिए वह सदा के लिए एक याजक बना रहता है।
4 तो फिर तुम ध्यान दो कि यह आदमी कितना महान था, जिसे कुलपिता अब्राहम ने अपनी लूट की सबसे बढ़िया चीज़ों का दसवाँ हिस्सा दिया। 5 सच है कि लेवी के बेटों में से जो अपना याजकपद पाते हैं, उन्हें मूसा के कानून के मुताबिक यह आज्ञा मिली है कि वे लोगों से यानी अपने भाइयों से दसवाँ हिस्सा इकट्ठा करें, हालाँकि इनके ये भाई अब्राहम के वंशज* हैं। 6 मगर मेल्कीसेदेक जो लेवी के वंश का नहीं था, उसने अब्राहम से, जिससे वादे किए गए थे, दसवाँ हिस्सा लिया और उसे आशीष दी। 7 अब इसमें तो कोई दो राय नहीं कि छोटा, बड़े से आशीष पाता है। 8 और पहले मामले में यानी लेवियों के मामले में जो दसवाँ हिस्सा पाते हैं वे मरनेवाले इंसान हैं। मगर इस दूसरे के मामले में शास्त्र में यह गवाही दी गयी है कि वह हमेशा ज़िंदा रहता है। 9 और इजाज़त हो तो मैं कह सकता हूँ कि अब्राहम के ज़रिए लेवी ने भी, जो लोगों से दसवाँ हिस्सा पाता है, खुद इस आदमी को दसवाँ हिस्सा दिया, 10 क्योंकि उस वक्त वह अपने पुरखे अब्राहम के शरीर* में था जब मेल्कीसेदेक अब्राहम से मिला था।
11 तो फिर अगर लेवियों के याजकपद के ज़रिए वाकई परिपूर्णता हासिल होती, (जो कानून लोगों को दिया गया था, उसका एक पहलू याजकपद था) तो क्या ज़रूरत थी कि एक और याजक मेल्कीसेदेक की तरह खड़ा हो, और जो हारून के जैसा याजक न कहलाए? 12 अब जबकि याजकपद बदला जा रहा है तो कानून को भी बदलना ज़रूरी हो जाता है। 13 इसलिए कि जिस आदमी के बारे में ये बातें कही गयी हैं, वह दूसरे गोत्र का है, जिसका कोई भी आदमी कभी-भी वेदी पर सेवा के लिए नहीं चुना गया था। 14 अब यह तो बिलकुल साफ है कि हमारा प्रभु यहूदा के गोत्र से निकला था, जिसमें से याजकों के होने के बारे में मूसा ने कोई ज़िक्र नहीं किया था।
15 तो इस तरह यह बात हमारे लिए और भी साफ हो जाती है कि मेल्कीसेदेक के जैसा एक और याजक खड़ा होता है। 16 यह याजक शारीरिक बातों के आधार पर दिए कानून के किसी नियम के मुताबिक नहीं, बल्कि उस शक्ति के मुताबिक याजक है जिससे वह अविनाशी जीवन पाता है। 17 क्योंकि एक शास्त्रवचन में यह कहा गया है: “तू मेल्कीसेदेक की तरह हमेशा-हमेशा के लिए एक याजक है।”
18 तो फिर, पिछले कानून को इसलिए रद्द किया गया क्योंकि यह कमज़ोर और बेअसर है। 19 इसलिए कि मूसा के कानून ने कुछ भी परिपूर्ण नहीं किया, बल्कि ऐसा एक बेहतर आशा को ले आने से मुमकिन हुआ, जिसके ज़रिए हम परमेश्वर के करीब आ रहे हैं। 20 साथ ही, जैसे यह बात शपथ के बिना नहीं थी, 21 (क्योंकि ऐसे आदमी भी हैं जो बिना शपथ के याजक बने हैं, मगर एक याजक ऐसा है जिसे परमेश्वर ने शपथ के साथ याजक ठहराया और उसके बारे में यह कहा: “यहोवा ने शपथ खायी है (और वह अपनी बात से पीछे नहीं हटेगा), ‘तू हमेशा-हमेशा के लिए एक याजक है।’ ”) 22 उसी के मुताबिक यीशु एक बेहतर करार की ज़मानत ठहरा है। 23 इसके अलावा, पहले एक-के-बाद-एक कइयों को याजक बनाया जाता था क्योंकि मौत उन्हें नहीं रहने देती थी। 24 मगर अब क्योंकि यह याजक हमेशा तक ज़िंदा रहता है तो उसका याजकपद भी हमेशा तक बना रहता है और उसकी जगह कोई और नहीं लेता। 25 इसलिए जो उसके ज़रिए परमेश्वर के पास आते हैं, वह उनका पूरी तरह उद्धार करने के काबिल है। क्योंकि वह उनकी खातिर परमेश्वर से बिनती करने के लिए हमेशा ज़िंदा है।
26 ऐसा ही महायाजक हमारी ज़रूरत को पूरा करने के लिए सही था, जो वफादार, निर्दोष, बेदाग हो, पापियों जैसा न हो और जिसे स्वर्ग से भी ऊँचा किया गया हो। 27 उसे उन महायाजकों की तरह हर दिन बलिदान चढ़ाने की ज़रूरत नहीं, जो पहले अपने पापों के लिए और फिर लोगों के पापों के लिए बलिदान चढ़ाते हैं: (उसने एक ही बार अपने आप को बलिदान चढ़ाकर यह काम हमेशा-हमेशा के लिए पूरा कर दिया है।) 28 मूसा का कानून जिन आदमियों को महायाजक ठहराता है उनमें कमज़ोरियाँ होती हैं। मगर शपथ का यह वचन, जो कानून के बाद आया था, एक बेटे को महायाजक ठहराता है जिसे हमेशा-हमेशा के लिए परिपूर्ण किया गया है।
8 अब तक जिन बातों की चर्चा की जा रही है, उनका खास मुद्दा यह है: हमारा महायाजक ऐसा है, और वह स्वर्ग में महामहिम की राजगद्दी की दायीं तरफ जा बैठा है। 2 वह एक ऐसी पवित्र जगह का और सच्चे निवास-स्थान का जन-सेवक बना जिसे किसी इंसान ने नहीं बल्कि यहोवा ने खड़ा किया है। 3 हर महायाजक को भेंट और बलिदान दोनों चढ़ाने के लिए ठहराया जाता है। इसलिए यह ज़रूरी था कि इस महायाजक के पास भी चढ़ाने के लिए कुछ हो। 4 अगर वह धरती पर होता, तो वह याजक न होता। क्योंकि यहाँ पहले ही याजक मौजूद हैं जो मूसा के कानून के मुताबिक भेंट चढ़ाया करते हैं। 5 मगर धरती के याजक जो पवित्र सेवा करते हैं, वह स्वर्ग की चीज़ों का मात्र नमूना और उनकी छाया है। ठीक जैसे मूसा को उस वक्त बताया गया था जब वह उस तंबू को तैयार करने पर था जिसके बारे में परमेश्वर ने उसे यह आज्ञा दी थी: “देख, तुझे पहाड़ पर जो दिखाया गया था, उसी के नमूने पर सबकुछ बनाना।” 6 मगर अब यीशु को इससे भी श्रेष्ठ जन-सेवा के लिए ठहराया गया है। क्योंकि वह जिस करार का बिचवई बना है, वह पहले करार से भी श्रेष्ठ है, जो बेहतर वादों के आधार पर कानूनी माँगों के मुताबिक किया गया है।
7 अगर पहले करार में कोई कमी न होती, तो दूसरे को लाने की गुंजाइश न रहती, 8 इसलिए कि परमेश्वर लोगों को यह कहकर दोषी ठहराता है: “यहोवा कहता है, ‘देखो! वे दिन आ रहे हैं जब मैं इस्राएल के घराने से और यहूदा के घराने से एक नया करार करूँगा। 9 यह उस करार जैसा न होगा जो मैंने उनके बापदादों से उस वक्त किया था जब मैं उनका हाथ पकड़कर उन्हें मिस्र देश से बाहर निकाल लाया था।’ यहोवा कहता है, ‘क्योंकि वे मेरे करार पर बने न रहे, इसलिए मैंने उनकी परवाह करना छोड़ दिया।’ ”
10 “यहोवा कहता है, ‘उन दिनों के बाद मैं इस्राएल के घराने से जो करार करूँगा वह यह है: मैं अपने कानून उनके मन में डालूँगा और इन्हें उनके दिलों पर लिखूँगा। और मैं उनका परमेश्वर बनूँगा और वे मेरे लोग बनेंगे।
11 उनमें से कोई भी अपने देशवासी को और अपने भाई को यह कहकर नहीं सिखाएगा: “यहोवा को जानो!” क्योंकि उनमें छोटे से लेकर बड़े तक सबके सब मुझे जानेंगे। 12 मैं उन्हें दया दिखाते हुए उनके बुरे काम माफ करूँगा और उनके पापों को फिर कभी याद न करूँगा।’ ”
13 इस तरह उसने “नए करार” की बात कहकर पहले करार को रद्द कर दिया है। और जो रद्द कर दिया गया है और पुराना होता जा रहा है, वह अब मिट जाने पर है।
9 तो फिर, उस पहले करार में पवित्र सेवा के नियम हुआ करते थे और धरती पर उपासना के लिए एक पवित्र निवास-स्थान भी था। 2 इस निवास-स्थान में जो पहला भाग बनाया गया था, उसमें दीपदान, मेज़ और चढ़ावे की रोटियाँ रखी गयी थीं। और यह भाग “पवित्र” कहलाता है। 3 मगर दूसरे परदे के पीछे “परम-पवित्र” कहलानेवाला भाग था। 4 इस भाग में सोने की एक धूपदानी और करार का वह संदूक था जो सोने से मढ़ा हुआ था। इस संदूक के अंदर सोने का वह मर्तबान था जिसमें मन्ना था और हारून की वह छड़ी थी जिसमें कलियाँ निकल आयी थीं और करार की पटियाँ थीं। 5 इस संदूक के ऊपर शानदार करूब* बने थे, जो प्रायश्चित्त के ढक्कन पर छाया किए हुए थे। मगर अभी इन सब चीज़ों के बारे में एक-एक कर ब्यौरा नहीं दिया जा सकता।*
6 जब ये सारी चीज़ें इस तरह बनायी जा चुकी थीं, तो याजक पवित्र सेवा के काम करने के लिए पहले भाग में बार-बार दाखिल हुआ करते थे। 7 मगर उस दूसरे भाग में सिर्फ महायाजक दाखिल होता था और वह भी साल में सिर्फ एक बार। लेकिन वह उस लहू के बिना नहीं जाता था, जो वह खुद अपने पापों के लिए और लोगों के उन पापों के लिए जो अनजाने में किए गए थे, चढ़ाता था। 8 इस तरह, पवित्र शक्ति यह साफ दिखाती है कि पवित्र भाग* के लिए तब तक रास्ता नहीं खोला गया जब तक पहला निवास-स्थान* खड़ा रहा। 9 यही निवास-स्थान इस तय वक्त के लिए, जो अभी चल रहा है, एक नमूना है। और अब तक इस इंतज़ाम में भेंट और बलिदान दोनों चढ़ाए जाते रहे हैं। मगर ये बलिदान और भेंट परमेश्वर की सेवा करनेवाले इंसान को पूरी तरह से शुद्ध ज़मीर नहीं दे सकते। 10 मगर ये भेंट और बलिदान सिर्फ खान-पान और शुद्धिकरण की अलग-अलग विधियों* के बारे में हैं। ये शारीरिक बातों के बारे में मूसा के कानून की माँगें थीं। और ये तब तक के लिए लागू की गयी थीं जब तक कि सब बातों के सुधार का वक्त न आ जाता।
11 लेकिन जब मसीह महायाजक बनकर आया और हमारे लिए वे बढ़िया आशीषें लाया जो अभी हमें मिल रही हैं, तो वह और भी श्रेष्ठ और परिपूर्ण निवास-स्थान में दाखिल हुआ, जो इंसान के हाथ का बनाया नहीं है यानी इस धरती की सृष्टि का हिस्सा नहीं है। 12 तब वह बकरों और जवान बैलों का लहू लेकर नहीं बल्कि खुद अपना लहू लेकर, हमेशा-हमेशा के लिए एक ही बार परम-पवित्र में दाखिल हुआ और हमारे लिए, सदा तक कायम रहनेवाला छुटकारा हासिल किया। 13 अगर बकरों और बैलों का लहू और कलोर की राख का छिड़कना, दूषित लोगों को इस हद तक पवित्र करता है कि वे परमेश्वर की नज़र में शारीरिक रूप से शुद्ध होते हैं, 14 तो फिर मसीह का लहू, जिसने सदा तक कायम रहनेवाली पवित्र शक्ति के ज़रिए खुद को परमेश्वर के सामने निष्कलंक चढ़ाया, हमारे ज़मीर को मुरदा कामों से कितना ज़्यादा शुद्ध कर सकता है ताकि हम जीवित परमेश्वर की पवित्र सेवा कर सकें!
15 इसी वजह से वह एक नए करार का बिचवई है, ताकि जो बुलाए गए हैं वे सदा तक कायम रहनेवाली विरासत का वादा पा सकें। यह सब उसकी मौत की वजह से मुमकिन हुआ है, और यही उन्हें फिरौती देकर पहले करार के तहत किए गए पापों से छुटकारा दिलाती है। 16 इसलिए कि जहाँ कोई करार किया जाता है, वहाँ करार करनेवाले इंसान की मौत होना एक माँग है। 17 इसलिए कि एक करार, मौत पर ही कारगर होता है क्योंकि जब तक करार करनेवाला इंसान ज़िंदा है, तब तक यह लागू नहीं होता। 18 इसी वजह से, पहला करार भी लहू के आधार पर ही जारी किया गया था। 19 जब मूसा ने सब लोगों के सामने कानून की हर आज्ञा पढ़कर सुनायी, तब उसने जवान बैलों और बकरों के लहू के साथ पानी लिया और सुर्ख लाल ऊन और जूफा से करार की किताब पर और सब लोगों पर इन्हें छिड़का, 20 और कहा: “यह उस करार का लहू है जिसे पूरा करने की ज़िम्मेदारी परमेश्वर ने तुम सब पर डाली है।” 21 और उसने निवास-स्थान और जन-सेवा में इस्तेमाल होनेवाले सभी बर्तनों पर भी इसी तरह लहू छिड़का। 22 हाँ, मूसा के कानून के मुताबिक करीब-करीब सारी चीज़ें लहू से शुद्ध की जाती हैं। और जब तक लहू नहीं बहाया जाता, माफी नहीं मिलती।
23 इसलिए, यह ज़रूरी था कि स्वर्ग की चीज़ों के ये नमूने जानवरों के लहू से शुद्ध किए जाएँ, मगर स्वर्ग की चीज़ें ऐसे बलिदानों से शुद्ध की जाएँ जो जानवरों के बलिदानों से कहीं बढ़कर हों। 24 इसलिए कि मसीह, इंसान के हाथ के बनाए किसी परम-पवित्र में दाखिल नहीं हुआ जो असल की बस एक नकल है। बल्कि वह स्वर्ग ही में दाखिल हुआ ताकि हमारे लिए अब परमेश्वर के सामने हाज़िर हो। 25 न ही मसीह को अपने आपको बार-बार बलि चढ़ाना है, जैसे महायाजक साल-दर-साल जानवरों का लहू लेकर परम-पवित्र में दाखिल होता है, मगर अपना लहू लेकर नहीं। 26 अगर मसीह को बार-बार अपना बलिदान चढ़ाना होता, तो उसे दुनिया की शुरूआत से बार-बार दुःख उठाना पड़ता। मगर अब उसने दुनिया की व्यवस्थाओं के आखिरी वक्त में एक ही बार हमेशा के लिए खुद को ज़ाहिर किया है ताकि अपने बलिदान से पाप को मिटा दे। 27 और जैसा इंसानों के लिए एक बार मरना तय है मगर इसके बाद न्याय होगा, 28 उसी तरह, मसीह भी बहुतों का पाप उठाने के लिए एक ही बार हमेशा के लिए बलिदान किया गया। और जब वह दूसरी बार आएगा, तो पाप मिटाने के लिए नहीं आएगा बल्कि उन लोगों पर ज़ाहिर होगा जो अपने उद्धार के लिए बड़ी बेताबी से उसका इंतज़ार कर रहे हैं।
10 मूसा का कानून आनेवाली अच्छी बातों की महज़ छाया है, मगर उनका असली रूप नहीं। इसलिए याजक लगातार साल-दर-साल जो एक ही तरह के बलिदान चढ़ाते हैं, उनसे वे परमेश्वर की उपासना करनेवालों को कभी परिपूर्ण नहीं बना सकते। 2 अगर ऐसा होता तो क्या बलिदानों का चढ़ाना बंद न हो जाता? क्योंकि बलिदान लानेवाले* एक ही बार हमेशा के लिए शुद्ध हो गए होते और फिर उन्हें अपने पापी होने का एहसास नहीं रहता।* 3 इसके बजाय, इन बलिदानों से लोगों को साल-दर-साल उनके पापों की याद दिलायी जाती है। 4 क्योंकि यह मुमकिन नहीं कि बैलों और बकरों का लहू पापों को मिटा सके।
5 यही वजह है कि जब मसीह दुनिया में आया तो उसने कहा: “ ‘बलिदान और चढ़ावा तू ने नहीं चाहा, मगर तू ने मेरे लिए एक शरीर तैयार किया। 6 तू ने होम-बलियाँ* और पाप-बलियाँ न चाहीं।’ 7 तब मैंने कहा, ‘हे परमेश्वर, देख! मैं तेरी मरज़ी पूरी करने आया हूँ, (ठीक जैसे शास्त्र में* मेरे बारे में लिखा है।)’ ” 8 पहले यह कहने के बाद: “तू ने बलिदान और चढ़ावे और होम-बलियाँ और पाप-बलियाँ न चाहीं”—जो मूसा के कानून के मुताबिक चढ़ायी जाती हैं— 9 वह फिर यह कहता है: “देख! मैं तेरी मरज़ी पूरी करने आया हूँ।” वह पहले इंतज़ाम को खत्म कर देता है ताकि दूसरा इंतज़ाम शुरू करे। 10 जिस “मरज़ी” के बारे में उसने कहा, उसी से और यीशु मसीह के एक ही बार हमेशा के लिए चढ़ाए गए शरीर के ज़रिए हमें पवित्र किया गया है।
11 इसके अलावा, हर याजक लोगों की खातिर सेवा करने के लिए रोज़-ब-रोज़ अपनी जगह पर खड़ा होता है और बार-बार एक ही तरह के बलिदान चढ़ाता है, क्योंकि ये बलिदान कभी-भी पापों को पूरी तरह मिटा नहीं सकते। 12 मगर इस इंसान ने पापों के लिए एक ही बलिदान सदा के लिए चढ़ा दिया और परमेश्वर की दायीं तरफ जा बैठा। 13 तब से वह उस वक्त का इंतज़ार कर रहा है जब उसके दुश्मनों को उसके पाँवों की चौकी बना दिया जाएगा। 14 उसने एक ही बलिदान चढ़ाकर जो पवित्र किए जा रहे हैं उन्हें सदा के लिए परिपूर्ण कर दिया है। 15 और परमेश्वर की पवित्र शक्ति भी हमें इस बात के सच होने की गवाही देती है, क्योंकि यह पहले कहती है: 16 “यहोवा कहता है, ‘उन दिनों के बाद मैं उनके साथ एक करार करूँगा। मैं अपने कानून उनके दिल में डालूँगा और उनके मन पर इन्हें लिखूँगा।’ ” 17 फिर वह कहती है: “मैं उनके पापों को और उनके बुरे कामों को फिर कभी याद न करूँगा।” 18 जब इन पापों की माफी दी गयी है, तो अब इसके बाद पाप के लिए किसी बलिदान की ज़रूरत नहीं रही।
19 इसलिए भाइयो, क्योंकि हमें यीशु के लहू के ज़रिए परम-पवित्र में प्रवेश पाने का साहस मिला है 20 जिसमें दाखिल होने के लिए उसने हमारे लिए एक नया और जीवित रास्ता खोला है जो परदे से पार होकर जाता है और यह परदा उसका शरीर है, 21 और जबकि हमारे पास ऐसा महान याजक है जो परमेश्वर के घराने पर अधिकारी है, 22 तो आओ हम विश्वास से पैदा होनेवाले पक्के यकीन के साथ सच्चे दिल से परमेश्वर के पास जाएँ। क्योंकि हमारे दिलों पर छिड़काव कर हमारे दुष्ट ज़मीर को शुद्ध किया गया है और हमारे शरीर को शुद्ध पानी से नहलाया गया है। 23 आओ हम बिना डगमगाए अपनी आशा का सब लोगों के सामने ऐलान करते रहें, क्योंकि जिसने वादा किया है वह विश्वासयोग्य है। 24 और आओ हम प्यार और बढ़िया कामों में उकसाने के लिए एक-दूसरे में गहरी दिलचस्पी लें, 25 और एक-दूसरे के साथ इकट्ठा होना न छोड़ें, जैसा कुछ लोगों का दस्तूर है। बल्कि एक-दूसरे की हिम्मत बंधाएँ, और जैसे-जैसे तुम उस दिन को नज़दीक आता देखो, यह और भी ज़्यादा किया करो।
26 एक बार सच्चाई का सही ज्ञान पाने के बाद अगर हम जानबूझकर पाप करते रहते हैं तो हमारे पापों के लिए कोई बलिदान नहीं बचता। 27 मगर न्यायदंड का एक भयानक इंतज़ार और परमेश्वर के क्रोध की ज्वाला बाकी रह जाती है जो विरोध करनेवालों को भस्म कर देगी। 28 कोई भी इंसान जिसने मूसा का कानून तोड़ा है उसे दो या तीन लोगों की गवाही पर बिना दया के मार डाला जाता है। 29 तो सोचो कि वह इंसान और भी कितने भारी दंड के लायक समझा जाएगा जो परमेश्वर के बेटे को रौंदता है और करार के उस लहू को मामूली समझता है जिसके ज़रिए उसे पवित्र किया गया था, और जिसने परमेश्वर की महा-कृपा की तौहीन करते हुए उसे क्रोध दिलाया है! 30 क्योंकि हम उसे जानते हैं जिसने यह कहा है: “बदला देना मेरा काम है, मैं ही बदला चुकाऊँगा” और यह भी कि “यहोवा अपने लोगों का न्याय करेगा।” 31 जीवित परमेश्वर के हाथों में पड़ना भयानक बात है।
32 मगर तुम उन बीते दिनों को याद करते रहो जब तुमने ज्ञान की रौशनी पाने के बाद दुःख-तकलीफों को सहने में कड़ा संघर्ष करते हुए धीरज धरा था। 33 कभी तुम्हारा मज़ाक उड़ाने और तुम्हें क्लेश देने के लिए तुम्हारा तमाशा बनाया गया और कभी तुम ये सब सहनेवालों के साथ भागीदार बने थे। 34 इसलिए कि तुमने उन लोगों को हमदर्दी दिखायी जो कैद में थे और जब तुम्हारी संपत्ति लूटी जा रही थी तो तुमने खुशी से यह सह लिया, क्योंकि तुम जानते हो कि तुम्हारे पास इससे भी बेहतर और कायम रहनेवाली संपत्ति है।
35 इसलिए, हिम्मत के साथ बेझिझक बोलना मत छोड़ो, क्योंकि इसके लिए बड़ा इनाम दिया जाएगा। 36 तुम्हें धीरज धरने की ज़रूरत है, ताकि परमेश्वर की मरज़ी पूरी करने के बाद तुम वह पा सको जिसका वादा परमेश्वर ने किया है। 37 बस अब “थोड़ा ही वक्त” बाकी रह गया है, और “वह जो आनेवाला है वह आएगा और देर न करेगा।” 38 “मगर मेरा नेक जन अपने विश्वास से ज़िंदा रहेगा,” और “अगर वह पीछे हट जाता है, तो मेरा मन उससे खुश नहीं होगा।” 39 हम पीछे हटकर नाश होनेवालों में से नहीं, बल्कि उनमें से हैं जो विश्वास रखते हैं ताकि अपना जीवन बचा सकें।
11 विश्वास, आशा की हुई चीज़ों का पूरे भरोसे के साथ इंतज़ार करना है और उन असलियतों का साफ सबूत है, जो अभी दिखायी नहीं देतीं। 2 क्योंकि इसी विश्वास की वजह से पुराने वक्त के लोगों ने अपने बारे में गवाही पायी कि परमेश्वर उनसे खुश है।
3 विश्वास ही से हम यह समझ पाते हैं कि परमेश्वर के वचन से दुनिया की व्यवस्थाएँ ठहरायी गयीं, इसलिए जो दिखायी दे रहा है वह उन चीज़ों से आया है जो दिखायी नहीं देतीं।
4 विश्वास ही से हाबिल ने परमेश्वर को ऐसा बलिदान चढ़ाया जो कैन के बलिदान से श्रेष्ठ था। और इसी विश्वास की वजह से उसे यह गवाही दी गयी कि वह परमेश्वर की नज़र में नेक था। परमेश्वर ने उसकी भेंट के बारे में गवाही दी कि उसने उसे मंज़ूर किया है। हालाँकि हाबिल मर चुका है फिर भी इसी विश्वास की वजह से वह आज भी बोलता है।
5 विश्वास ही से हनोक को हटा दिया गया ताकि वह मौत को आता न देखे। और वह कहीं नहीं पाया गया क्योंकि परमेश्वर ने उसे हटा लिया था। मगर हटा दिए जाने से पहले उसे यह गवाही दी गयी कि उसने परमेश्वर को खुश किया है। 6 विश्वास के बिना परमेश्वर को खुश करना नामुमकिन है, इसलिए कि जो उसके पास आता है उसका यह यकीन करना ज़रूरी है कि परमेश्वर सचमुच है और वह उन लोगों को इनाम देता है जो पूरी लगन से उसकी खोज करते हैं।
7 विश्वास ही से नूह ने, परमेश्वर की तरफ से उन चीज़ों के बारे में चेतावनी पाने के बाद जो उस वक्त तक दिखायी नहीं दे रही थीं, परमेश्वर का डर मानते हुए अपने परिवार को बचाने के लिए एक जहाज़* बनाया। इसी विश्वास की वजह से उसने उस वक्त की दुनिया को सज़ा के लायक ठहराया और उस नेकी का वारिस बना जो विश्वास की वजह से है।
8 विश्वास ही से अब्राहम ने, जब उसे बुलाया गया, आज्ञा मानी और उस जगह के लिए निकल पड़ा जो उसे विरासत में मिलनेवाली थी। हालाँकि वह नहीं जानता था कि वह कहाँ जा रहा है फिर भी वह गया। 9 विश्वास की वजह से वह वादा किए गए देश में ऐसे रहा जैसे एक पराए देश में रह रहा हो। और वह इसहाक और याकूब के साथ तंबुओं में रहा जो उसके साथ उसी वादे के वारिस थे। 10 इसलिए कि वह एक ऐसे शहर के इंतज़ार में था, जो सच्ची बुनियाद पर खड़ा है, जिसका निर्माण करनेवाला और रचनेवाला परमेश्वर है।
11 विश्वास ही से सारा ने गर्भधारण करने की शक्ति पायी, हालाँकि उसकी बच्चे पैदा करने की उम्र बीत चुकी थी, क्योंकि जिसने वादा किया था उसे उसने विश्वासयोग्य माना था। 12 इसलिए उस एक आदमी से जो मानो बेजान था, आसमान के तारों और समुद्र किनारे की रेत के कणों जैसी अनगिनत संतानें पैदा हुईं।
13 ये सभी विश्वास रखते हुए मर गए, हालाँकि जिन बातों का उनसे वादा किया गया था, वे उनके दिनों में पूरी नहीं हुईं। फिर भी, उन्होंने वादा की गयी बातों को दूर ही से देखा और उनसे खुशी पायी। और सब लोगों के सामने यह ऐलान किया कि वे उस देश में अजनबी और मुसाफिर हैं। 14 इसलिए कि जो इस तरह की बातें कहते हैं वे ज़ाहिर करते हैं कि वे पूरी लगन से उस जगह की खोज में हैं जो उनकी अपनी होगी। 15 और अगर वे उस देश को याद करते रहते जहाँ से वे निकले थे, तो उनके पास वहाँ लौट जाने का मौका था। 16 मगर अब वे एक बढ़िया जगह पाने की कोशिश में आगे बढ़ रहे हैं, जिसका नाता स्वर्ग से है। इसलिए परमेश्वर उनका परमेश्वर कहलाए जाने से शर्मिंदा नहीं होता। यहाँ तक कि उसने उनके लिए एक शहर तैयार किया है।
17 विश्वास ही से अब्राहम ने, जब उसकी परीक्षा ली गयी थी, इसहाक को मानो बलि चढ़ा ही दिया था। और यह आदमी, जिसने खुशी-खुशी वादों को स्वीकार किया था, अपने इकलौते बेटे को बलि चढ़ाने ही वाला था, 18 हालाँकि उससे यह कहा गया था: “जो ‘तेरा वंश’ कहलाएगा, वह इसहाक से होगा।” 19 उसने यह इसलिए किया क्योंकि वह मानता था कि परमेश्वर उसके बेटे को मरे हुओं में से भी जी उठाने के काबिल है। और वाकई उसने अपने बेटे को मौत के मुँह से वापस पाया। और यह आनेवाली बातों की एक मिसाल बना।
20 विश्वास ही से इसहाक ने आनेवाली बातों के बारे में याकूब और एसाव को आशीष दी।
21 विश्वास ही से याकूब ने, जब वह मरने पर था, यूसुफ के दोनों बेटों को आशीष दी और अपनी लाठी के सिरे का सहारा लेकर परमेश्वर की उपासना की।
22 विश्वास ही से यूसुफ ने, जब वह मरने पर था, इस्राएल के बेटों के मिस्र से निकलने की बात कही और उसकी हड्डियाँ वहाँ से ले जाने की आज्ञा दी।
23 विश्वास ही से मूसा के माता-पिता ने उसके पैदा होने के बाद तीन महीने तक उसे छिपाए रखा। क्योंकि उन्होंने देखा कि बच्चा बहुत सुंदर है और वे राजा के हुक्म से न डरे। 24 विश्वास ही से मूसा ने, बड़ा होने पर फिरौन की बेटी का बेटा कहलाने से इनकार कर दिया। 25 और पाप का चंद दिनों का सुख भोगने के बजाय, उसने परमेश्वर के लोगों के साथ ज़ुल्म सहने का चुनाव किया। 26 उसने समझा कि परमेश्वर का अभिषिक्त जन* होने के नाते निंदा सहना, मिस्र के खज़ानों से कहीं बड़ी दौलत है, क्योंकि वह अपनी नज़र इनाम पाने पर लगाए हुए था। 27 विश्वास ही से उसने मिस्र छोड़ दिया मगर राजा के क्रोध के डर से नहीं, क्योंकि वह उस अदृश्य परमेश्वर को मानो देखता हुआ डटा रहा। 28 विश्वास ही से मूसा ने फसह का त्योहार मनाया और दरवाज़े की चौखटों पर लहू छिड़का ताकि नाश करनेवाला उनके पहलौठों को हाथ न लगाए।
29 विश्वास ही से वे लाल सागर के बीच से ऐसे गुज़रे जैसे सूखी ज़मीन पर चल रहे हों। मगर जब मिस्रियों ने इससे गुज़रने की जुर्रत की, तो सागर ने उन्हें निगल लिया।
30 विश्वास ही से जब इस्राएलियों ने सात दिन तक यरीहो शहर की दीवारों के चक्कर काटे तब वे ढह गयीं। 31 विश्वास की वजह से ही राहाब नाम की वेश्या आज्ञा न माननेवालों के साथ नाश नहीं हुई, क्योंकि उसने जासूसों का शांति से सत्कार किया था।
32 और किस-किसका नाम गिनवाऊँ? अगर मैं गिदोन, बाराक, शिमशोन, यिप्तह, दाविद, साथ ही शमूएल और दूसरे भविष्यवक्ताओं के बारे में बताऊँ तो समय कम पड़ जाएगा। 33 इन लोगों ने विश्वास ही से उनके खिलाफ लड़नेवाली हुकूमतों को हराया, परमेश्वर के स्तरों के मुताबिक नेक काम किए, वादे हासिल किए, शेरों का मुँह बंद किया, 34 धधकती आग को ठंडा किया, तलवार की धार से बच निकले, उन्हें कमज़ोर हालत से शक्तिशाली किया गया, उन्होंने युद्ध में वीरता हासिल की और विदेशी फौजों को खदेड़ा। 35 स्त्रियों ने उन अपनों को वापस पाया जो मर चुके थे। और दूसरे ऐसे थे जिन्हें यातनाएँ दे-देकर मार डाला गया क्योंकि वे किसी तरह की फिरौती देकर इन यातनाओं से छुटकारा नहीं पाना चाहते थे ताकि वे एक बेहतर पुनरुत्थान* पा सकें। 36 हाँ, कितने ऐसे थे जिनकी खिल्ली उड़ायी गयी और जिन्हें कोड़े लगाए गए। इतना ही नहीं, उन्हें ज़ंजीरों में बाँधा गया और कैद में डाला गया और इस तरह वे आज़माए गए। 37 उन पर पत्थरवाह किया गया, उनके विश्वास की आज़माइश हुई, उन्हें आरे से चीरा गया और तलवार से कत्ल किया गया। वे भेड़ों और बकरों की खाल पहने भागे फिरे। वे तंगी, मुसीबतें और बदसलूकी सहते रहे, 38 और यह दुनिया उनके लायक न थी। वे रेगिस्तानों, पहाड़ों, गुफाओं और धरती की माँदों में भटकते रहे।
39 इन सभी ने, हालाँकि अपने विश्वास के ज़रिए अपने बारे में गवाही पायी थी, फिर भी उन्होंने वादा पूरा होते हुए नहीं देखा। 40 क्योंकि परमेश्वर हमें इससे बेहतर कुछ देना चाहता था ताकि वे हमसे अलग परिपूर्ण न बनाए जाएँ।
12 तो फिर, जब गवाहों का ऐसा घना बादल हमें घेरे हुए है, तो आओ हम हरेक बोझ को और उस पाप को जो आसानी से हमें उलझाकर फँसा सकता है, उतार फेंकें और उस दौड़ में जिसमें हमें दौड़ना है धीरज से दौड़ते रहें, 2 और यीशु पर नज़र टिकाए रहें जो हमारे विश्वास का खास नुमाइंदा और इसे परिपूर्ण करनेवाला है। उसने उस खुशी के लिए जो उसके सामने थी, यातना की सूली* पर मौत सह ली और शर्मिंदगी की ज़रा भी परवाह न की और अब वह परमेश्वर की राजगद्दी की दायीं तरफ बैठ गया है। 3 हाँ, उसी पर ध्यान दो और गौर करो, जिसने पापियों के मुँह से ऐसी बुरी-बुरी बातें सहीं जिनसे वे खुद ही दोषी ठहरे, ताकि तुम थककर हार न मानो।
4 उस पाप के खिलाफ संघर्ष करते रहने में तुम्हें कभी इस हद तक मुकाबला नहीं करना पड़ा कि तुम्हारा खून बहा हो। 5 मगर तुम इस नसीहत को, जिसमें तुम्हें बेटे पुकारा गया है, पूरी तरह से भूल गए हो: “मेरे बेटे, यहोवा से मिलनेवाले अनुशासन को हल्की बात न समझ, और जब वह तुझे सुधारे, तो हिम्मत न हार, 6 इसलिए कि यहोवा जिससे प्यार करता है उसे अनुशासन देता है। दरअसल, वह जिसे अपना बेटा मानकर अपनाता है उसे कोड़े भी लगाता है।”
7 तुम यह सब अनुशासन पाने के लिए सह रहे हो। परमेश्वर तुम्हें अपने बेटे मानकर तुम्हारे साथ पेश आ रहा है। क्योंकि ऐसा कौन-सा बेटा है जिसे पिता अनुशासन नहीं देता? 8 लेकिन अगर तुमने वह अनुशासन नहीं पाया जो सब ने पाया है, तो तुम असल में बेटे नहीं बल्कि नाजायज़ औलाद हो। 9 यही नहीं, हमारे ऐसे शारीरिक पिता थे जो हमें अनुशासन दिया करते थे और हम उनका आदर करते थे। तो क्या हमें जीते रहने के लिए खुद को अपने उस पिता के और भी ज़्यादा अधीन नहीं करना चाहिए, जिसने हमें अपनी पवित्र शक्ति से ठहराकर जीवन दिया है? 10 शारीरिक पिताओं ने तो कुछ दिनों के लिए जैसा उन्हें ठीक लगा वैसा अनुशासन दिया। लेकिन परमेश्वर हमारे ही फायदे के लिए हमें अनुशासन देता है ताकि हम उसकी पवित्रता में भागीदार बनें। 11 सच है, किसी भी तरह का अनुशासन अभी के लिए सुखद नहीं लगता बल्कि दुःखदायी लगता है। फिर भी जो लोग इससे प्रशिक्षण पाते हैं, उनके लिए आगे चलकर यह शांति का फल पैदा करता है यानी वे परमेश्वर के स्तरों के मुताबिक सही काम करते हैं।
12 इसलिए ढीले हाथों और कमज़ोर घुटनों को मज़बूत करो। 13 और अपने कदमों के लिए सीधा रास्ता बनाते रहो, ताकि जो अंग कमज़ोर* है वह जोड़ से उखड़ न जाए, बल्कि स्वस्थ हो जाए। 14 सब लोगों के साथ शांति बनाए रखने में लगे रहो और उस पवित्रता को हासिल करने में लगे रहो जिसके बिना कोई भी इंसान प्रभु को नहीं देखेगा। 15 साथ ही, कड़ी नज़र रखो कि तुममें से किसी से परमेश्वर की महा-कृपा छीन न ली जाए, और तुम्हारे बीच ऐसी कोई ज़हरीली जड़ न पैदा हो जो मुसीबत बन जाए और जिससे बहुत-से दूषित हो जाएँ, 16 कि तुम्हारे बीच कोई व्यभिचारी न हो, न ही कोई एसाव जैसा हो जिसने पवित्र चीज़ों की कदर नहीं की और एक वक्त के खाने के बदले अपने पहलौठे होने का हक दे दिया। 17 तुम जानते हो कि बाद में जब उसने विरासत में आशीष पानी चाही, तो उसे ठुकरा दिया गया। हालाँकि उसने आंसू बहा-बहाकर अपने पिता का फैसला बदलवाने की जी-जान से कोशिश की, फिर भी वह इसे बदल न सका।
18 इसलिए कि तुम उस पहाड़ के पास नहीं आए जिसे छूआ जा सकता था और जो आग की लपटों से जल रहा था और न ही तुम काले बादल और घोर अंधकार और आंधी के पास आए हो। 19 न ही तुम तुरही की तेज़ आवाज़ या किसी के बोलने की आवाज़ सुन रहे हो, जिस आवाज़ को सुनने पर लोगों ने यह बिनती की थी कि उन्हें और वचन न सुनाए जाएँ। 20 क्योंकि वे इस आज्ञा से बहुत डर गए थे: “अगर कोई जानवर इस पहाड़ को छूए, तो उसे पत्थरवाह कर मार डाला जाए।” 21 और-तो-और, यह नज़ारा इतना भयानक था कि मूसा ने कहा: “मैं डर के मारे थरथर काँप रहा हूँ।” 22 इसके बजाय तुम सिय्योन पहाड़ के पास और जीवित परमेश्वर की नगरी, स्वर्गीय यरूशलेम के पास, हज़ारों-हज़ार स्वर्गदूतों 23 और उनकी आम सभा में और परमेश्वर के पहलौठों की सभा* में आए हो, जिनके नाम स्वर्ग में लिखे गए हैं। और उस परमेश्वर के पास आए हो जो सबका न्यायी है और पवित्र शक्ति से पैदा हुए उन नेक जनों के पास आए हो जिन्हें परिपूर्ण किया गया है। 24 और नए करार के बिचवई यीशु और उस लहू के पास आए हो जो उसने हम पर छिड़का है और जो हाबिल के लहू से कहीं श्रेष्ठ तरीके से बोलता है।
25 सावधान रहो कि तुम उसकी अनसुनी न करो जो तुमसे बोल रहा है। इसलिए कि जब वे लोग उसकी अनसुनी करने पर न बच सके जो उन्हें धरती पर परमेश्वर की चेतावनी दे रहा था, तो सोचो कि हम उससे मुँह मोड़ने पर कैसे बच सकेंगे जो हमसे स्वर्ग से बात करता है! 26 गुज़रे वक्त में तो उसकी आवाज़ से धरती काँप उठी थी, मगर अब उसने यह कहते हुए वादा किया है: “मैं एक बार फिर न सिर्फ धरती को बल्कि स्वर्ग को भी हिला दूँगा।” 27 उसका यह कहना कि “एक बार फिर” यह दिखाता है कि हिलायी जानेवाली चीज़ें नाश हो जाएँगी। यानी वे चीज़ें जो परमेश्वर ने नहीं बनायी हैं ताकि वे चीज़ें जिन्हें हिलाया नहीं जाता हमेशा तक कायम रहें। 28 तो यह देखते हुए कि हमें ऐसा राज मिलनेवाला है जिसे हिलाया नहीं जा सकता, आओ हम परमेश्वर की महा-कृपा से फायदा पाते रहें, जिसके ज़रिए हम परमेश्वर के लिए भय और श्रद्धा के साथ उसकी पवित्र सेवा करते रहें। 29 इसलिए कि हमारा परमेश्वर वह आग भी है जो पूरी तरह भस्म कर देती है।
13 भाइयों की तरह एक-दूसरे से प्यार करते रहो। 2 मेहमान-नवाज़ी करना मत भूलो, क्योंकि इसके ज़रिए कुछ लोगों ने अनजाने में ही स्वर्गदूतों का सत्कार किया था। 3 जो कैद में हैं उन्हें याद रखो, मानो तुम खुद भी उनके साथ कैद में हो। और जिनके साथ बुरा सलूक किया जाता है उन्हें भी याद रखो, इसलिए कि तुम खुद भी इस धरती पर जी रहे हो। 4 शादी सब लोगों के बीच आदर की बात हो और शादी की सेज दूषित न की जाए। क्योंकि परमेश्वर व्यभिचारियों और शादी के बाहर यौन-संबंध रखनेवालों को सज़ा देगा। 5 तुम्हारे जीने के तरीके में पैसे का प्यार न हो, और जो कुछ तुम्हारे पास है उसी में संतोष करो। क्योंकि परमेश्वर ने कहा है: “मैं तुझे कभी न छोड़ूंगा, न ही कभी त्यागूंगा।” 6 इसलिए हम पूरी हिम्मत रखें और यह कहें: “यहोवा मेरा मददगार है, मैं न डरूँगा। इंसान मेरा क्या बिगाड़ सकता है?”
7 जो तुम्हारे बीच अगुवाई करते हैं और जिन्होंने तुम्हें परमेश्वर का वचन सुनाया है, उन्हें याद रखो और बड़े ध्यान से उनके चालचलन के नतीजे पर गौर करते हुए उनके विश्वास की मिसाल पर चलो।
8 यीशु मसीह कल, आज और हमेशा तक एक जैसा है।
9 तरह-तरह की परायी शिक्षाओं से गुमराह न होना। क्योंकि परमेश्वर की महा-कृपा से दिल का मज़बूत किया जाना अच्छा है, न कि खान-पान के नियमों को मानने से। जो इन्हें मानने में लगे रहते हैं उन्हें कोई फायदा नहीं होता।
10 हमारी एक ऐसी वेदी है, जिससे निवास-स्थान में पवित्र सेवा करनेवालों को खाने का कोई अधिकार नहीं। 11 क्योंकि महायाजक जिन जानवरों का लहू पापों के प्रायश्चित्त के लिए परम-पवित्र में ले जाता है, उनका शरीर तंबुओं की छावनी के बाहर जलाया जाता है। 12 इसलिए, यीशु ने भी शहर के फाटक के बाहर दुःख उठाया, ताकि वह अपने लहू से लोगों को पवित्र कर सके। 13 इसलिए, आओ हम भी उस बदनामी को अपने ऊपर लिए हुए जो उसने सही थी, उसके पास तंबुओं की छावनी के बाहर जाएँ। 14 क्योंकि यहाँ हमारा ऐसा शहर नहीं जो हमेशा तक रहे, बल्कि हम उस शहर का बेताबी से इंतज़ार कर रहे हैं जो आनेवाला है। 15 आओ हम यीशु के ज़रिए परमेश्वर को गुणगान का बलिदान हमेशा चढ़ाएँ, यानी अपने होठों का फल जो उसके नाम का सरेआम ऐलान करते हैं। 16 इतना ही नहीं, भलाई करना और अपनी चीज़ों से दूसरों की मदद करना न भूलो, क्योंकि परमेश्वर ऐसे बलिदानों से बहुत खुश होता है।
17 तुम्हारे बीच जो अगुवाई करते हैं उनकी आज्ञा मानो और उनके अधीन रहो, क्योंकि वे यह जानते हुए तुम्हारी निगरानी करते हैं कि उन्हें इसका हिसाब देना होगा, ताकि वे यह काम खुशी से करें न कि आहें भरते हुए, क्योंकि ऐसे में तुम्हारा ही नुकसान होगा।
18 हमारे लिए प्रार्थना करते रहो, क्योंकि हमें यकीन है कि हमारा ज़मीर साफ है, इसलिए कि हम सब बातों में ईमानदारी से काम करना चाहते हैं। 19 मगर मैं तुम्हें खास तौर पर इसलिए भी प्रार्थना करने के लिए उकसाता हूँ, ताकि मैं और भी जल्दी तुम्हारे पास आ सकूँ।
20 हमारी दुआ है कि शांति का परमेश्वर, जिसने हमारे महान चरवाहे और हमारे प्रभु यीशु को हमेशा तक कायम रहनेवाले करार के लहू के साथ मरे हुओं में से जी उठाया, 21 वही तुम्हें उसकी मरज़ी पूरी करने के लिए हर अच्छी चीज़ देकर तैयार करे, और यीशु मसीह के ज़रिए हमारे अंदर वह सब काम करे जो परमेश्वर को भाता है। उसी की महिमा हमेशा-हमेशा तक होती रहे। आमीन।
22 भाइयो, मैं तुम्हें उकसाता हूँ कि हौसला बढ़ानेवाले मेरे इन वचनों को तुम सब्र के साथ सुन लो। क्योंकि मैंने तुम्हें थोड़े ही शब्दों में यह चिट्ठी लिखी है। 23 तुम्हें यह मालूम हो कि हमारे भाई तीमुथियुस को रिहा कर दिया गया है। अगर वह जल्दी आ गया तो मैं उसके साथ आकर तुमसे मिलूँगा।
24 जो तुम्हारे बीच अगुवाई कर रहे हैं उनके साथ-साथ सभी पवित्र जनों को मेरा नमस्कार कहना। इटली में रहनेवाले तुम्हें नमस्कार भेजते हैं।
25 तुम सब पर प्रभु की महा-कृपा होती रहे।
इब्रा 1:2 या, “विश्व की सारी चीज़ें।”
इब्रा 1:9 यानी दाविद के वंश के बाकी राजाओं से।
इब्रा 2:12 मत्ती 16:18 दूसरा फुटनोट देखें।
इब्रा 2:13 यह उन 237 जगहों में से एक जगह है, जहाँ परमेश्वर का नाम, ‘यहोवा’ इस अनुवाद के मुख्य पाठ में पाया जाता है। अतिरिक्त लेख 2 देखें।
इब्रा 2:14 शाब्दिक, “माँस और लहू।”
इब्रा 2:14 यूनानी में “दियाबोलोस,” जिसका मतलब है “निंदा करनेवाला।”
इब्रा 3:1 या, “भेजा गया।” यूनानी में “अपोस्टोलोस।”
इब्रा 4:12 यूनानी, “प्सीकी।”
इब्रा 4:12 यूनानी, “नफ्मा।”
इब्रा 4:12 शाब्दिक, “जोड़ों।”
इब्रा 5:11 या, “तुम्हें कम सुनायी देने लगा है।”
इब्रा 6:5 या, “दुनिया की व्यवस्था।”
इब्रा 7:5 शाब्दिक, “उसकी जाँघों में से निकले हैं।”
इब्रा 7:10 शाब्दिक, “की जाँघों।”
इब्रा 9:5 करूब, ऊँचा ओहदा रखनेवाले स्वर्गदूत हैं।
इब्रा 9:5 शाब्दिक, “यह वक्त नहीं कि इन चीज़ों के बारे में पूरा ब्यौरा दिया जाए।”
इब्रा 9:8 यहाँ जिस पवित्र भाग का ज़िक्र है वह स्वर्ग में है।
इब्रा 9:8 यहाँ जिस निवास-स्थान का ज़िक्र है वह धरती पर था।
इब्रा 9:10 शाब्दिक, “तरह-तरह के बपतिस्मों।”
इब्रा 10:2 शाब्दिक, “पवित्र सेवा करनेवाले।”
इब्रा 10:2 या, “उनका ज़मीर पापों की वजह से उन्हें फिर दोषी नहीं ठहराता।”
इब्रा 10:6 ये बलिदान आग में पूरी तरह होम या भस्म किए जाते थे।
इब्रा 10:7 शाब्दिक, “शास्त्र के खर्रे में।”
इब्रा 11:7 मत्ती 24:38 फुटनोट देखें।
इब्रा 11:26 यूनानी में, “मसीह।”
इब्रा 11:35 यानी, मरे हुओं में से जी उठना।
इब्रा 12:2 अतिरिक्त लेख 6 देखें
इब्रा 12:13 शाब्दिक, “लंगड़ा।”
इब्रा 12:23 शाब्दिक, “मंडली।”