क्या आपको नक़ली दाँत की ज़रूरत है?
नक़ली दाँत, अक़सर मज़ाक का निशाना, उन बहुत से लोगों के लिए मज़ाक नहीं हैं जो इन्हें लगाते हैं। यदि आपके सभी असली दाँत अच्छी हालत में हैं, तो नक़ली दाँत का प्रश्न आपको शायद महत्त्वपूर्ण न लगे। लेकिन यदि आपको इस समस्या का सामना न भी करना पड़े, तो भी इस लेख में जो कहा गया है, आपको मज़बूत और स्वस्थ दाँतों की आशिष की क़दर करने में मदद कर सकता है और उन्हें इसी हालत में रखने के लिए आपको दृढ़ निश्चयी बना सकता है—कम से कम जिस हद तक आप पर निर्भर है।
परन्तु बहुत से लोग जो सोचते थे कि वे अपने दाँतों की देखभाल बड़े ध्यानपूर्वक करते थे, क्यों एक दिन पाते हैं कि उनके दाँत हिलने शुरू हो गए हैं? किसी भी दन्तचिकित्सक से पूछ लीजिए। एक बार लोग ३० साल की उम्र पार कर लेते हैं, तो दाँत गिरने का सबसे बड़ा कारण है, अस्वस्थ मसूड़े (दाँतों के आस-पास होनेवाला रोग). लेकिन, एक व्यक्ति दुर्घटना या दाँत सड़ने के कारण भी दाँत खो सकता है।
लेकिन क्या आपको सचमुच नक़ली दाँत की ज़रूरत है यदि आपके कुछ या सभी दाँत गिर गए हैं?a ऐसा क्यों लगता है कि कुछ लोग उनके बिना ही काम चला लेते हैं? क्या नक़ली दाँत बेकार का एक व्यापारिक उत्पादन है जो चालाकी से जनता के ऊपर थोपा गया है?
नक़ली दाँत क्यों?
इन प्रश्नों का उत्तर देने के लिए, आइए हमारे दाँतों के कार्यों को देखें। वे हमारे रूप पर असर डालने के अलावा कई काम करते हैं। जब हम अपना भोजन चबाते हैं, तो इसके बारीक टुकड़े हो जाते हैं ताकि पाचक रस बारीक टुकड़ों के साथ मिल सकें, और इस कारण शरीर पोषाहारों को सोख सकता है। लेकिन यदि हमारे कुछ ही दाँत हैं या बिलकुल ही नहीं हैं, तो हमारा भोजन ठीक तरह से नहीं पिसेगा। बहुत मज़बूत मसूड़ों का हड्डीवाला ऊपरी भाग भी इसे ठीक तरह नहीं पीस पाएगा। इसी कारण पोपले लोगों को, जो कॉफी, चाय, या किसी दूसरे पेय से भोजन को घोंटने की कोशिश करते हैं, शायद पाचन की समस्याएँ हों। कुछ ही दाँत कम होने पर भी आहार सीमित हो जाता है क्योंकि आम तौर पर वे लोग अक़सर सख़्त या रेशेदार भोजन नहीं लेते हैं जिसमें चबाने की ज़्यादा ज़रूरत होती है।
दाँत बात करने में भी हमारी मदद करते हैं, एक ऐसा फ़ायदा जिसके बारे में हम शायद ही कभी सोचते हैं जब तक कि इनमें से कुछ गिर न जाएँ। समझने के लिए अत्यावश्यक वाग्ध्वनि उत्पन्न करने के लिए वे जीभ और होठों की सहायता करते हैं। उदाहरण के लिए, दाँतों के बिना व्यंजन विराम जैसी वाग्ध्वनियाँ ठीक तरह नहीं निकल सकतीं। संभव है आपने इस बात पर ध्यान दिया होगा यदि आपने कभी किसी पोपले व्यक्ति को बात करते सुना है। अतः, नक़ली दाँत लगाकर एक व्यक्ति को अपनी जीभ को उनके अनुकूल अभ्यस्त करना पड़ता है ताकि फिर से सही वाग्ध्वनि उत्पन्न कर सके। हालाँकि इसमें कुछ समय लग सकता है, परिणाम अक़सर दाँतों के न होने से तो बेहतर ही होते हैं।
जब एक व्यक्ति के नक़ली दाँत होते हैं तो गाने या किसी प्रकार के वाद्य बजाने के बारे में क्या? नक़ली दाँत को विभिन्न तरीक़ों से संशोधित करके ये क्रियाएँ आम तौर पर प्रभावकारी रूप से पूरी की जा सकती हैं। गायकों, कुछ अभिनेताओं, सुषिर वाद्य बजानेवालों, मंत्रियों, और कुछ छायाचित्रकारों के मॉडलों को दाँतों के बिना अपना काम करना यदि असम्भव नहीं तो बहुत मुश्किल ज़रूर लगेगा।
दाँतों के न होने से व्यक्तिगत रूप पर भी असर पड़ता है। मुँह के आसपास नरम ऊतक सिकुड़ जाते हैं और नाक तथा ठुड्डी के पास आ जाने से एक व्यक्ति अपनी उम्र से ज़्यादा बूढ़ा लगने लगता है। इससे एक व्यक्ति के आत्म-विश्वास पर असर पड़ सकता है और कुछ लोगों के लिए तो मनोवैज्ञानिक परेशानी भी उत्पन्न कर सकता है।
एक दाँत के गिरने से दन्त्य मेहराब ढह सकता है। रोमी मेहराब के पत्थरों के समान, हमारे दाँत परस्पर निर्भर हैं। अतः, एक “पड़ोसी” के न रहने से दूसरे दाँत घिसक जाएँगे। इसकी वजह से बचे हुए दाँतों के बीच जगह बन जाती है और भोजन के कण मसूड़ों के आसपास फँस सकते हैं, और इससे अक़सर मसूड़ों में सूजन हो जाती है। दाँतों का घिसकना दाँतों की सिधाई को भी बिगाड़ सकता है, जिससे चबाने की समस्याएँ हो जाती हैं।
असली और नक़ली दाँतों में अन्तर
असली और नक़ली दाँतों में मुख्य अन्तर यह है कि असली दाँत जबड़ों की हड्डी में मज़बूती से जमे होते हैं। यह उनके लिए ज़्यादा प्रभावकारी रूप से हमारे भोजन को चीरना, फाड़ना, और बहुत बारीक टुकड़ों में पीसना सम्भव बनाता है। पीसने और कतरने की प्रबल क्रिया के साथ निचले दाँत ऊपर के दाँतों के आड़े चलते हैं।
दूसरी ओर, नक़ली दाँतों का पूरा सेट, सिर्फ़ मसूड़ों या उनके हड्डीवाले ऊपरी भागों पर टिका होता है। वे अपनी जगह पर सिर्फ़ जीभ, गालों, और चिपकाव से उत्पन्न हल्के ज़ोर से ही टिके रहते हैं। क्योंकि नक़ली दाँत असली दाँतों की तरह बँधे हुए नहीं होते, वे आसानी से निकल सकते हैं।
अतः, नक़ली दाँत की प्रभावकारिता हर व्यक्ति के लिए अलग-अलग होती है। किसी भी नक़ली दाँत में असली दाँतों की निपुणता नहीं होती है। जबड़ों का आकार और माप, ऊतक के प्रकार, और यहाँ तक कि लगानेवाले व्यक्ति की मानसिक मनोवृत्ति, और साथ ही उनको इस्तेमाल करना सीखने की क्षमता, ये सभी इस बात को निर्धारित करनेवाले तत्त्व हैं कि नक़ली दाँत कितने प्रभावकारी हैं। उनकी सबसे बड़ी कमी है कि उनमें स्थिरता नहीं होती। फिर भी, जहाँ तक बाह्याकृति का सवाल है, नक़ली दाँत ऐसे बनाए जा सकते हैं कि उनमें और असली दाँत में कोई फ़रक न दिखाई दे।
दुःख की बात यह है कि कभी-कभी नक़ली दाँत लगाने के बाद ही एक व्यक्ति असली दाँतों की बुद्धि, डिज़ाइन और उनकी व्यावहारिकता को समझता है। इन्सान असली दाँत की कमज़ोर नकल कर सकता है लेकिन उस हद तक अद्भुत निपुणता कभी-भी नहीं प्राप्त कर सकता।
आपकी स्थिति शायद आपके लिए इस बात पर गंभीर विचार करना ज़रूरी बनाए कि क्या आपको नक़ली दाँत, पूरे या आंशिक सेट की ज़रूरत है। निःसंदेह, फ़ैसला आपको ही करना है, लेकिन उनके लाभों पर विचार करना बुद्धिमत्ता की बात प्रतीत होती है। वे आपको पाचन की सम्भव समस्याओं से बचने में, पर्याप्त पोषाहारों को लेने में, और आपकी बोलने की योग्यता बेहतर बनाने में मदद कर सकते हैं। और वे सचमुच व्यक्तिगत रूप को बेहतर बना सकते हैं।
बेशक, जबकि नक़ली दाँत लगानेवाले अक़सर असली दाँत खो देने का शोक करते हैं, नक़ली दाँतों के विकास ने संसार भर में लाखों लोगों को कुछ हद तक व्यक्तिगत सन्तोष पाने और तन्दरुस्ती की भावना रखने में योगदान दिया है।
[फुटनोट]
a इस लेख में “नक़ली दाँत” शब्द का प्रयोग ख़ास आर्डर देकर बनवाये गए उपकरणों के लिए किया गया है जो गिरे हुए दाँतों के बदले में इस्तेमाल किए जाते हैं। यदि सारे असली दाँत गिर गए हैं, तो नक़ली दाँत का पूरा सेट ज़रूरी होता है। लेकिन, यदि कुछ दाँत बाकी हैं, तो आंशिक नक़ली दाँत इस्तेमाल किए जा सकते हैं। यह लेख नक़ली दाँत के पूरे सेट और निराकरणीय आंशिक नक़ली दाँत पर संकेंद्रित है।
[पेज 11 पर बक्स]
अपने दंत-चिकित्सा के खर्च में कटौती करना
एक दंत चिकित्सक या एक दंत संशोधक के पास जाने से अक़सर काफ़ी बड़ा खर्चा आता है। फिर भी, जो खोज की गई हैं शायद उनसे आपको अपने बच्चों की मदद करने में प्रोत्साहन मिले।
द न्यू यॉर्क टाइमस् (The New York Times) रिपोर्ट करता है, “अमरीकन लोगों में विस्थापित दाँतों और विरूपित जबड़ों की अत्यधिक घटनाओं का कारण हमारा नरम भोजन हो सकता है।” मत यह है कि ऐसा आहार जिसमें ज़ोर लगाकर चबाना पड़ता है, उससे “जबड़ों का सही विकास होता है (जिसके कारण दाँतों के लिए काफ़ी जगह बनती है), स्थायी दाँत ठीक से निकलते हैं और चेहरे और मुँह का विकास ठीक रीति से होता है।”
वैज्ञानिकों ने बन्दरों को सख़्त और नरम आहार खिलाकर इस मत की पुष्टि करने की कोशिश की। परिणाम? जो सख़्त आहार पर थे उनमें “दंत संशोधन अपसामान्यताएँ” कम थीं। इसलिए यह हो सकता है कि ऐसा आहार जिसमें आपके बच्चे को ज़ोर लगाकर चबाना पड़े आपके दाँतों के खर्च में कटौती करने का एक तरीक़ा साबित हो। ऐसा करने का एक और तरीक़ा है अपने बच्चों में नियमित रूप से दाँत माँजने और फ़्लॉस करने की आदत डालना।
[पेज 12 पर तसवीर]
हमारे दाँत परस्पर निर्भर हैं। उन्हें अपनी जगह में रहने के लिए मदद करने को “पड़ोसियों” के न होने से, दाँत जल्द घिसक जाते हैं और दूसरे दाँतों पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं