तनाव का मुकाबला करने में अपने बच्चों की सहायता कीजिए
“जब बात करने की ज़रूरत होती है तब कई बच्चों को—शारीरिक और भावात्मक रूप से—घर पर कोई नहीं मिलता।”—हताशा—परिवारों को क्या जानना चाहिए।
परिवार को उचित रूप से भावात्मक प्रयोगशाला कहा गया है। यह एक अनुसंधान केन्द्र है जहाँ एक बच्चा अपने विश्वासों का परीक्षण करता है, परिणामों को देखता है, और जीवन के बारे में निश्चित निष्कर्ष निकालना शुरू करता है। किस तरह माता-पिता निश्चित कर सकते हैं कि उनके बच्चे ऐसे महत्त्वपूर्ण प्रयोग को तनावपूर्ण वातावरण के बजाय एक स्वस्थ वातावरण में संचालित कर रहे हैं?
सुनिए
संकट में बच्चा पुस्तक माता-पिताओं से आग्रह करती है: “बातचीत को जारी रखिए।” माता-पिता और बच्चे के बीच एक जीवन-रेखा की तरह, बातचीत विशेषकर तब महत्त्वपूर्ण होती है जब परिवार में किसी प्रकार की अभिघातज घटना हुई हो। क्योंकि बच्चा चुप है, यह मान न लीजिए कि वह उस अभिघातज घटना की हानिकारक प्रतिक्रिया का अनुभव नहीं कर रहा है या कि समंजित हो रहा है। हो सकता है कि वह केवल चिंता को दबा रहा है और चुपचाप बरदाश्त कर रहा है, जैसे एक सात-वर्षीय लड़की ने किया, जिसका वज़न अपने माता-पिता के अलग होने के बाद के छः महीनों में १५ किलो बढ़ गया।
शब्द “बातचीत” सूचित करता है कि दो या ज़्यादा वक्ता शामिल हैं। इस प्रकार, माता-पिता को सारी बातचीत नहीं करनी चाहिए। रिक और सू ने परामर्श लिया जब उनका छः वर्षीय बेटा घर में अनियंत्रित ढीठ बरताव करने लगा। पूरे परिवार से मिलने के बाद, परामर्शदाता ने कुछ देखा। उसने कहा, “माता-पिता लंबे और अकसर अत्यधिक स्पष्टीकरणों से प्रत्येक बात पर बुद्धिपूर्वक तर्क करते थे। इसके अतिरिक्त, माता-पिता वार्तालाप पर एकाधिकार स्थापित करने के लिए प्रवृत्त थे, और मैं बच्चों को अधीर होते हुए देख रहा था।” बच्चे को अपने आप को व्यक्त करने देना लाभदायक है। (अय्यूब ३२:२० से तुलना कीजिए.) यदि समस्याएँ उत्पन्न होने पर वह बातचीत द्वारा उनको ज़ाहिर नहीं कर सकता, तो वह उन्हें बाद में बरताव द्वारा ज़ाहिर करेगा।—नीतिवचन १८:१ से तुलना कीजिए.
जब अनुशासन की ज़रूरत है तब बातचीत महत्त्वपूर्ण है। दंड के बारे में बच्चा कैसा महसूस करता है? क्या वह समझता है कि यह क्यों दिया जा रहा है? सिर्फ़ बताने के बजाय कि उसे कैसा महसूस करना चाहिए, पता लगाइए कि उसके हृदय में क्या है। उसके साथ तर्क कीजिए ताकि उसे सही निष्कर्ष तक पहुँचने के लिए निर्देशित किया जा सके। इलेन फ़ैंटल शिमबर्ग लिखती है, “आप ध्यानपूर्वक विचार करने योग्य सलाह दीजिए, लेकिन अपने बच्चे को उस पर मनन करने दीजिए।”
भावनाओं को स्वीकार कीजिए
कुछ माता-पिता ऐसे कथनों से बातचीत पर रोक लगा देते हैं: “अपना रोना बंद करो।” “तुम्हें ऐसा महसूस नहीं करना चाहिए।” “यह इतना बुरा नहीं है जितना तुम सोचते हो।” बच्चे की भावनाओं को स्वीकार करना कहीं ज़्यादा बेहतर है। “मैं समझता हूँ कि तुम कुछ बात से उदास हो।” “तुम सचमुच परेशान लग रहे हो।” “मैं जानता हूँ कि तुम्हें निराशा हुई होगी।” यह बातचीत को जारी रखेगा।
कैसे बोलना ताकि बच्चे सुनें और कैसे सुनना ताकि बच्चे बोलें (How to Talk so Kids Will Listen & Listen so Kids Will Talk) पुस्तक इस संदर्भ में एक तर्कसंगत टिप्पणी करती है: “जितना ज़्यादा आप बच्चे की दुःखी भावनाओं को दूर धकेलने का प्रयास करते हैं, उतना ज़्यादा वह उनमें उलझ जाता है। जितनी ज़्यादा आसानी से आप नकारात्मक भावनाओं को स्वीकार कर सकते हैं, बच्चों के लिए उनसे छुटकारा पाना उतना ही आसान है। मेरे अनुमान से आप यह कह सकते हैं कि यदि आप एक आनन्दित परिवार चाहते हैं, तो आपको ढेर सारे दुःख की अभिव्यक्ति को अनुमति देने के लिए तैयार रहना चाहिए।”—सभोपदेशक ७:३ से तुलना कीजिए.
समानुभूति दिखाइए
मेरी सूज़न मिलर लिखती है, “क्योंकि अधिकांश वयस्क लोग बच्चे की दुनिया को अपने विचारों के दायरे से देखते हैं, उनके लिए अपने जीवन के सिवाय किसी और के जीवन का तनावपूर्ण होने की कल्पना करना कठिन है।”
जी हाँ, माता-पिता आसानी से उन पीड़ाओं और चिन्ताओं को भूल जाते हैं जो उन्होंने बड़े होते समय स्वयं अनुभव किए थे। इसीलिए, वे अकसर उन तनावों को न्यूनतम समझते हैं जो उनके बच्चे महसूस करते हैं। माता-पिताओं को इस बात को याद रखना चाहिए कि एक पालतू जानवर की मृत्यु का सामना करना, एक दोस्त की मौत का सामना करना, एक नए पड़ोस में जाना, कैसा लगता था। उन्हें अपने बचपन की आशंकाओं को, यहाँ तक कि अयुक्त आशंकाओं को भी, याद करना चाहिए। याद करना समानुभूति की कुँजी है।
सही उदाहरण रखिए
आपका बच्चा तनाव से कैसे निपटता है ज़्यादातर इस बात पर निर्भर करता है कि आप एक जनक के तौर पर इससे कैसे निपटते हैं। क्या आप हिंसा का सहारा लेकर तनाव को कम करने का प्रयास करते हैं? तब चकित न होइए अगर आपका बच्चा उसी तरीक़े से अपनी चिन्ता को कार्य द्वारा दिखाता है। जब आप गहन रूप से परेशान हैं क्या आप चुपचाप सहन करते हैं? तब आप अपने बच्चे से स्पष्ट और विश्वस्त होने की माँग कैसे कर सकते हैं? क्या आपके परिवार में तनावपूर्ण भावनाएँ इस क़दर छिपी हुई हैं कि स्वीकृत करके सुलझाने के बजाय उनका इनकार किया जाता है? फिर आप अपने बच्चे पर इसके सम्भव शारीरिक और भावात्मक बुरे परिणाम से चौंकिए मत, क्योंकि चिन्ता को दबाने का कोई भी प्रयास सामान्यता सिर्फ़ उसकी अभिव्यक्ति को और गंभीर बनाता है।
तनाव-भरी दुनिया में बच्चों को बड़ा करना माता-पिताओं के लिए विशेष चुनौतियाँ प्रस्तुत करता है। बाइबल के अध्ययन ने कई लोगों को इन चुनौतियों का सामना करने में मदद की है। यही हम अपेक्षा कर सकते हैं, क्योंकि बाइबल का रचनाकार पारिवारिक जीवन का भी प्रारंभकर्ता है। यीशु मसीह ने कहा, “परमेश्वर की बुद्धि अपने परिणामों द्वारा सही प्रमाणित होती है।” (मत्ती ११:१९, द न्यू इंग्लिश बाइबल) बाइबल सिद्धांतों को अभ्यास में लाने के द्वारा, माता-पिता पाएँगे कि शास्त्रवचन “उपदेश, और समझाने, और सुधारने, और धर्म की शिक्षा के लिये लाभदायक” है।—२ तीमुथियुस ३:१६.
[पेज 10 पर तसवीर]
हितकर संचार तनाव कम करता है
[पेज 11 पर तसवीर]
लड़का दूध गिराता है, बड़ा भाई उसका मज़ाक उड़ाता है, लेकिन पिता समझदारी से उसे दिलासा देता है