बाइबल का दृष्टिकोण
क्या “नया नियम” सामी-विरोधी है?
एक अमरीकी सुसमाचारक ने एक बार कहा: “संस्थागत गिरजे ने अपने अधिकांश इतिहास के दौरान पाप किया है और इसे न्याय के समय काफ़ी बातों के लिए, ख़ासकर यहूदी लोगों के विरुद्ध सामी-विरोध का अभ्यास करने के लिए उत्तर देना है।”
सामी-विरोध का इतना लम्बा और घिनौना इतिहास क्यों रहा है, जो २०वीं शताब्दी में भी बना हुआ है? कुछ लोग मसीही यूनानी शास्त्रों, अर्थात् तथाकथित नए नियम पर दोष लगाते हैं। उदाहरण के लिए, हार्वर्ड धर्मविज्ञान स्कूल के डीन, क्रिस्टर स्टेन्डॉल ने दावा किया: “यह बात कि . . . नए नियम के कथनों ने यहूदियों के विरुद्ध घृणा के लिए ‘ईश्वरीय’ स्वीकृति के रूप में कार्य किया है जाना-माना और सामान्य रूप से स्वीकृत तथ्य है।” जबकि यह सामान्य रूप से स्वीकृत हो सकता है, क्या यह वास्तव में सच है?
यीशु की मृत्यु के लिए किस पर दोष लगाया गया?
एक लेखांश जिसका उल्लेख अकसर “नए नियम” के सामी-विरोध के प्रमाण के रूप में किया जाता है, मत्ती २७:१५-२५ है। वहाँ हमें बताया जाता है कि यहूदियों की एक भीड़ ने माँग की कि रोमी हाकिम पुन्तियुस पीलातुस यीशु को स्तम्भ पर चढ़वाए, यहाँ तक कि वे चिल्लाकर कहने लगे: “इस का लोहू हम पर और हमारी सन्तान पर हो।” क्या वहाँ “नया नियम” यह सिखा रहा था कि सभी प्रथम-शताब्दी यहूदी यीशु की मृत्यु के लिए ज़िम्मेदार थे और कि यहूदियों को हमेशा के लिए मसीह-हत्यारों के तौर पर समझा जाना चाहिए?
सबसे पहले, अधिकांश यहूदियों ने यीशु की सेवकाई के दौरान उसके प्रति कैसी प्रतिक्रिया दिखाई? “नया नियम” प्रकट करता है कि यीशु यहूदी लोगों के बीच अत्यधिक लोकप्रिय था, ख़ासकर गलील में, जहाँ उसने अपनी अधिकांश सेवकाई की। (यूहन्ना ७:३१; ८:३०; १०:४२; ११:४५) उसके पकड़वाए जाने और हत्या के मात्र पाँच दिन पहले, एक यहूदी भीड़ ने मसीहा के रूप में यरूशलेम में उसका स्वागत किया।—मत्ती २१:६-११.
फिर, कौन यीशु को मरवाना चाहते थे? “नया नियम” नोट करता है कि यीशु मुख्य याजकों और अनेक फरीसियों और सदूकियों में अलोकप्रिय था क्योंकि उसने उनके पाखण्ड का पर्दाफ़ाश किया। (मत्ती २१:३३-४६; २३:१-३६)a महायाजक काइफा यीशु का एक प्रमुख विरोधी था। जब यीशु ने मंदिर से लेनदेन करनेवालों को भगाया तो निःसंदेह उसे व्यक्तिगत आर्थिक नुकसान हुआ था। (मरकुस ११:१५-१८) इसके अतिरिक्त, काइफा को डर था कि यहूदी लोगों के बीच यीशु की लोकप्रियता आख़िरकार रोमी हस्तक्षेप और उसकी व्यक्तिगत शक्ति खोने की ओर ले जाएगी। (यूहन्ना ११:४५-५३) अतः, मुख्य याजकों और अन्य धार्मिक नेताओं ने यीशु की मृत्यु का षड्यंत्र रचा और उसे मृत्यु दण्ड के लिए रोमी न्यायालय के हाथ सौंप दिया। (मत्ती २७:१, २; मरकुस १५:१; लूका २२:६६–२३:१) कितना व्यंग्यात्मक है कि यहूदी जनता के बीच यीशु की लोकप्रियता उसकी मृत्यु की ओर ले गई!
यीशु की लोकप्रियता को देखते हुए, एक यहूदी भीड़ किस प्रकार उसकी मृत्यु के लिए हल्ला मचा सकती थी? क्योंकि यीशु के अधिकांश समर्थक गलीली थे, यह संभव है कि वह भीड़ जो उसकी मृत्यु चाहते थे मुख्यतः यहूदावासी थे। स्वभाव से गलीली लोग स्नेही, नम्र और स्पष्टवादी होने की ओर प्रवृत्त थे, जबकि यहूदावासी, ख़ासकर यरूशलेम में, घमंडी, अमीर, और अति शिक्षित होने की ओर प्रवृत्त थे। महत्त्वपूर्णता से, मत्ती प्रकट करता है कि भीड़ को “महायाजकों और पुरनियों” ने भड़काया। (मत्ती २७:२०) उन्होंने भीड़ से क्या झूठ बोला होगा जिससे कि वे इस तरह उत्तेजित हुए? क्या यह वही झूठ था जो उन्होंने पहले भी यीशु के मुकदमें के समय प्रस्तुत किया था और जो यीशु के मृत्यु दण्ड के समय दोहराया गया था, अर्थात्, कि यीशु ने कहा कि वह मंदिर का नाश कर देगा?—मरकुस १४:५७, ५८; १५:२९.b
सामुदायिक उत्तरदायित्व
यदि यह यहूदी भीड़ सम्पूर्ण यहूदी लोग नहीं थे, तो जब प्रेरित पतरस कुछ ५० दिन बाद, अठवारों के पर्ब्ब के लिए यरूशलेम में एकत्रित एक बड़ी भीड़ से बात कर रहा था, उसने क्यों कहा: “तुम ने अधर्मियों के हाथ से [यीशु को] स्तम्भ पर चढ़वाकर मार डाला”? (प्रेरितों २:२२, २३, NW) निश्चित ही पतरस जानता था कि उनमें से अधिकांश लोगों का उन घटनाओं से कोई सम्बन्ध नहीं था जो यीशु के मृत्यु दण्ड की ओर ले गईं। तो, पतरस का क्या अर्थ था?
शास्त्रवचनों के अनुसार, एक प्रायश्चितहीन हत्या का दोष न सिर्फ़ हत्यारे पर आता था बल्कि उस समुदाय पर भी जो उसे न्याय के सामने लाने में असफल रहा। (व्यवस्थाविवरण २१:१-९) उदाहरण के लिए, एक बार बिन्यामीन के सम्पूर्ण गोत्र को उनके बीच हत्यारों के एक दल को सज़ा न देने के लिए रक्तदोषी ठहराया गया। जबकि गोत्र के अधिकांश लोग उस हत्या में सीधे तौर पर सम्मिलित नहीं थे, उस अपराध को बरदाश्त करने के द्वारा, वे उसे अनदेखा कर रहे थे और इस प्रकार कुछ हद तक ज़िम्मेदार थे। (न्यायियों २०:८-४८) वस्तुतः, यह नोट किया गया है कि “मौन रहना स्वीकृति का लक्षण है।”
समान तरीक़े से, प्रथम-शताब्दी यहूदी राष्ट्र ने अपने रक्तदोषी नेताओं के अपराध में मौन स्वीकृति दी। मुख्य याजकों और फरीसियों के हिंसक कार्यों को बरदाश्त करने के द्वारा, सम्पूर्ण राष्ट्र पर उत्तरदायित्व आया। इसमें कोई संदेह नहीं कि इसीलिए पतरस ने यहूदी श्रोतागण से पश्चाताप दिखाने को कहा।c
मसीहा के रूप में यीशु को इस प्रकार अस्वीकार करने के परिणाम क्या हुए? यीशु ने यरूशलेम के नगर को कहा: “तुम्हारा घर [मंदिर] तुम्हारे लिये उजाड़ छोड़ा जाता है।” (मत्ती २३:३७, ३८) जी हाँ, परमेश्वर ने अपनी सुरक्षा हटा ली, और बाद में रोमी सेना ने यरूशलेम को उसके मंदिर समेत नाश कर दिया। जिस प्रकार एक आदमी का परिवार परिणामों को महसूस करेगा यदि वह अपनी सारी सम्पत्ति उड़ा दे, उसी प्रकार ईश्वरीय सुरक्षा की कमी न सिर्फ़ उन्होंने महसूस की जिन्होंने यीशु की मृत्यु की माँग की थी बल्कि उनके परिवारों ने भी की। इस अर्थ में यीशु का ख़ून उन पर और उनके बच्चों पर भी आया।—मत्ती २७:२५.
लेकिन, “नए नियम” में कुछ भी इस बात का दावा नहीं करता कि यहूदियों की आनेवाली पीढ़ियों पर यीशु की मृत्यु का ख़ास दोष होगा। इसके विपरीत, उनके पूर्वज इब्राहीम के प्रति अपने प्रेम के कारण, परमेश्वर ने यहूदियों को ख़ास लिहाज़ दिखाया, मसीही बनने के लिए उन्हें पहला अवसर दिया। (प्रेरितों ३:२५, २६; १३:४६; रोमियों १:१६; ११:२८) जब आख़िरकार यह अवसर ग़ैर-यहूदियों को प्रदान किया गया, परमेश्वर ने राष्ट्रीय उद्गम के आधार पर किसी भी व्यक्ति के साथ व्यवहार करना बंद कर दिया। पतरस ने कहा: “अब मुझे निश्चय हुआ, कि परमेश्वर किसी का पक्ष नहीं करता, बरन हर जाति में जो उस से डरता और धर्म के काम करता है, वह उसे भाता है।” (प्रेरितों १०:३४, ३५) बाद में प्रेरित पौलुस ने लिखा: “यहूदियों और यूनानियों में कुछ भेद नहीं।” (रोमियों १०:१२) तब परमेश्वर के सम्मुख यहूदियों की स्थिति ग़ैर-यहूदियों के समान थी, और यही बात आज भी सच है।—यहेजकेल १८:२० से तुलना कीजिए.
मसीहीजगत में सामी-विरोध क्यों?
इसलिए यह देखा जा सकता है कि “नया नियम” सामी-विरोधी नहीं है। इसके बजाय, “नए नियम” में एक ऐसे मनुष्य की शिक्षाएँ अभिलिखित हैं जो एक यहूदी के तौर पर जिया और मरा और जिसने अपने यहूदी अनुयायियों को मूसा की व्यवस्था के आदर्शों का आदर करना सिखाया। (मत्ती ५:१७-१९) लेकिन यदि “नया नियम” दोषी नहीं है, तो मसीहीजगत में इतना दीर्घस्थायी सामी-विरोध क्यों हुआ है?
स्वयं मसीहियत दोषी नहीं है। उसी प्रकार जैसे यहूदा के समय में झूठे मसीही “परमेश्वर के अनुग्रह को लुचपन में बदल” रहे थे, पूरे इतिहास के दौरान तथाकथित मसीहियों ने मसीह के नाम को धर्मांधता और पक्षपात की कीचड़ में घसीटा है। (यहूदा ४) अतः, मसीहीजगत में सामी-विरोध उन लोगों के स्वार्थी पक्षपात के कारण हुआ है जो मात्र नाम के मसीही रहे हैं।
रूचि की बात है कि, स्वयं यीशु ने पूर्वबताया कि कुछ लोग उसके नाम से हर प्रकार के शक्तिशाली कार्य करने का दावा करेंगे लेकिन वास्तव में ‘कुकर्म करनेवाले’ होंगे—उसके मित्र नहीं! (मत्ती ७:२१-२३) इनमें से अनेकों ने “नए नियम” को अपनी घृणा और पक्षपात के लिए सफ़ाई के तौर पर प्रयोग करने की कोशिश की है, लेकिन तर्कसंगत लोग उस खोखले ढोंग के आर-पार देख सकते हैं।
झूठे मसीहियों को अपने सामी-विरोध के लिए परमेश्वर को उत्तर देना होगा। लेकिन जिस तरह जाली पैसे का होना यह नहीं सिद्ध करता कि असली पैसा नहीं है, नक़ली मसीहियों का होना किसी भी तरह इस तथ्य को कम नहीं करता कि वास्तव में, सच्चे मसीही हैं, ऐसे लोग जो अपने प्रेम के लिए जाने जाते हैं, न कि अपने पक्षपात के लिए। क्यों न अपने नज़दीक के यहोवा के गवाहों के राज्यगृह में ऐसे लोगों से परिचित होएँ?
a प्रथम-शताब्दी यहूदी इतिहासकार जोसफ़ बेन मथाअस् (फ़्लेवियस् जोसीफस्) रिकार्ड करता है कि इस युग तक, इस्राएल के महायाजक रोम के कर्त्ताओं द्वारा प्रायः साल में एक बार नियुक्त और पदच्युत किए जाते थे। इस वातावरण में, महा याजकपद एक भृतिक पद में विकृत हो गया जिसने समाज के सबसे बुरे तत्त्वों को आकर्षित किया। बाबूली तालमुद (The Babylonian Talmud) में इनमें से कुछ महायाजकों की नैतिक ज़्यादतियों के बारे में लिखा गया है। (पेसाहिम ५७क) इसी प्रकार तालमुद पाखण्ड की ओर फरीसियों की प्रवृत्ति को भी नोट करता है। (सोताह २२ख)
b यीशु ने वास्तव में अपने विरोधियों से कहा: “इस मंदिर को ढा दो, और मैं उसे तीन दिन में खड़ा कर दूंगा।” (यूहन्ना २:१९-२२) लेकिन जैसे यूहन्ना दिखाता है, यीशु यरूशलेम में मंदिर का नहीं, बल्कि “अपनी देह के मंदिर” का ज़िक्र कर रहा था। अतः यीशु अपनी प्रत्याशित मृत्यु और पुनरुत्थान की तुलना एक इमारत के गिराए जाने और पुनर्निर्माण से कर रहा था।—मत्ती १६:२१ से तुलना कीजिए.
c ऐसा ही उत्तरदायित्व आधुनिक समय में भी नोट किया गया है। नात्सी जर्मनी के सभी नागरिक नृशंसता में सीधे रूप से सम्मिलित नहीं थे। फिर भी, जर्मनी ने सामुदायिक ज़िम्मेदारी को स्वीकार किया और स्वेच्छा से नात्सी सताहट के शिकारों की क्षतिपूर्ति करने का चुनाव किया।
[पेज 29 पर बड़े अक्षरों में लेख की खास बात]
मसीहीजगत में सामी-विरोध का अभ्यास उन लोगों द्वारा किया जाता है जो मात्र नाम के मसीही हैं
[पेज 27 पर तसवीर]
न यीशु ने और न ही उसके चेलों ने सामी-विरोध को बढ़ावा दिया