वाहनों के बग़ैर एक संसार?
क्या आप मोटर गाड़ियों के बग़ैर एक संसार की कल्पना कर सकते हैं? अथवा क्या आप एक ऐसे आविष्कार का नाम बता सकते हैं जिसने गत शताब्दी में लोगों की जीवन-शैली और बरताव को इतने मूलभूत रूप से बदला है जितना कि वाहनों ने बदला है? वाहनों के बग़ैर कोई मोटल नहीं होते, कोई ड्राइव-इन रॆस्तराँ नहीं होते, और ना ही कोई ड्राइव-इन थिएटर होते। इससे भी महत्त्वपूर्ण, बसों, टैक्सियों, कारों, या ट्रकों के बग़ैर आप काम पर कैसे जाते? स्कूल कैसे जाते? किसान और निर्माता बाज़ार में अपना माल कैसे लाते?
“हर छः अमरीकी व्यवसायों में से एक व्यवसाय मोटर गाड़ियों के निर्माण, वितरण, सफ़ाई और मरम्मत, या इस्तेमाल पर निर्भर करता है,” द न्यू एन्साइक्लोपीडिया ब्रिटानिका नोट करती है, और आगे कहती है: “वाहन कम्पनियों की बिक्री और रसीद देश के थोक व्यापार के पाँचवें हिस्से से तथा उसके खुदरे व्यापार के एक चौथाई से भी अधिक को सूचित करता है। अन्य देशों में ये समानुपात थोड़े-बहुत कम हैं, परन्तु जापान तथा पश्चिमी यूरोप के देश इस अमरीकी स्तर की ओर तेज़ी से बढ़ रहे हैं।”
तथापि, कुछ लोग कहते हैं कि मोटर गाड़ियों के बग़ैर एक संसार एक बेहतर जगह होगी। ये लोग ऐसा मूलतः दो कारणों से कहते हैं।
विश्वव्यापी ट्रैफिक जैम
यदि आपने गाड़ी पार्क करने के लिए जगह की तलाश में सड़कों की खाक छान मारी है, तो फिर यह बात बताने के लिए आपको किसी और की ज़रूरत नहीं है कि हालाँकि गाड़ियाँ लाभदायी होती हैं, एक भीड़-भाड़वाले इलाक़े में कई गाड़ियाँ होना लाभदायी नहीं है। अथवा यदि आप कभी एक भयंकर ट्रैफिक जाम में फँस गए हैं, तो आप जानते हैं कि एक गाड़ी में फँस जाना कितना निराशाजनक है, जो चलने के लिए बनायी गयी है लेकिन जो रुकने पर मज़बूर की गयी है।
सन् १९५० में, केवल अमरीका वह देश था जिसमें हर ४ लोगों के लिए १ कार थी। सन् १९७४ तक बॆलजियम, फ्रांस, जर्मनी, ग्रेट ब्रिटेन, इटली, नॆदरलैंडस्, और स्वीडन उस स्तर तक पहुँच गए थे। परन्तु उस समय तक अमरीकी संख्या बढ़कर लगभग हर २ व्यक्तियों के लिए १ कार हो गयी थी। अब जर्मनी और लक्ज़मबर्ग में हर २ निवासियों के लिए क़रीब १ मोटर गाड़ी है। बॆलजियम, फ्रांस, ग्रेट ब्रिटेन, इटली, और नॆदरलैंडस् ज़्यादा दूर नहीं हैं।
अधिकांश बड़े शहर—चाहे वे संसार में कहीं भी क्यों न हों—गाड़ी खड़ी करने की विशाल जगहों में पतित हो रहे हैं। उदाहरणार्थ, भारत में सन् १९४७ में स्वतंत्रता के समय, इसकी राजधानी नई दिल्ली में ११,००० कारें और ट्रक थे। १९९३ तक यह संख्या २२,००,००० से ऊपर चली गयी! एक अति-विशाल वृद्धि—परन्तु टाईम पत्रिका के अनुसार, “एक ऐसी संख्या जिसकी इस शताब्दी के अन्त तक दुगना होने की अपेक्षा है।”
इस बीच, पूर्वी यूरोप में, पश्चिमी यूरोप के मुक़ाबले प्रतिव्यक्ति केवल एक चौथाई गाड़ियों के साथ, कुछ ४० करोड़ संभाव्य ग्राहक हैं। कुछ सालों में ही चीन, जो अब तक अपनी ४० करोड़ साइकिलों के लिए मशहूर है, की स्थिति बदल चुकी होगी। जैसे १९९४ में रिपोर्ट किया गया, “सरकार वाहनों के उत्पादन में तेज़ वृद्धि के लिए योजनाएँ बना रही है,” जो वर्ष में १३ लाख कारों से बढ़कर इस सदी के अन्त तक ३० लाख हो जाएगी।
प्रदूषण का ख़तरा
“ब्रिटेन में ताज़ा हवा ख़त्म हो गयी है,” अक्तूबर २८, १९९४ के द डेली टॆलिग्राफ़ (अंग्रेज़ी) ने कहा। यह सम्भवतः अतिशयोक्तिपूर्ण है परन्तु तिस पर भी, यह चिन्ता करवाने के लिए बिलकुल सच है। युनिवर्सिटी ऑफ़ ईस्ट ऐंग्लिया के आचार्य स्ट्यूअर्ट पेंकॆट ने आगाह किया: “मोटर कारें हमारे प्राकृतिक वायुमण्डल के रसायन को बदल रही हैं।”
पुस्तक इस ग्रह को बचाने के लिए ५००० दिन (अंग्रेज़ी) कहती है कि कार्बन मोनोक्साइड प्रदूषण का अधिक गाढ़ापन “शरीर को ऑक्सीजन से वंचित करता है, अवबोधन और सोच-विचार को हानि पहुँचाता है, प्रतिवर्त क्रिया को धीमा कर देता है और निद्रालुता का कारण बनता है।” और विश्व स्वास्थ्य संगठन कहता है: “यूरोप और उत्तर अमरीका के शहरवासियों में से क़रीब आधे जन कार्बन मोनोक्साइड की अस्वीकार्य रूप से उच्च मात्रा के सामने खुले हैं।”
यह अनुमान लगाया जाता है कि कुछ जगहों में वाहनों का उत्सर्जन कई लोगों की जान लेता है—इसके अतिरिक्त कि इससे अरबों डॉलर का पर्यावरण-सम्बन्धी नुक़सान होता है। जुलाई १९९५ के एक टॆलिविज़न समाचार रिपोर्ट ने कहा कि प्रति वर्ष कुछ ११,००० ब्रिटेनवासी कार से उत्पन्न वायु प्रदूषण से मरते हैं।
वर्ष १९९५ में बर्लिन में संयुक्त राष्ट्र हवामान सम्मेलन हुआ था। ११६ देशों के प्रतिनिधि सहमत हुए कि कुछ करने की ज़रूरत है। परन्तु अनेक लोगों को निराशा हुई जब विशिष्ट लक्ष्य रखने और निश्चित नियम स्थापित करने या सुस्पष्ट कार्यक्रमों की रूपरेखा बनाने का कार्य स्थगित किया गया।
पुस्तक इस ग्रह को बचाने के लिए ५००० दिन ने १९९० में जो कहा, उसके प्रकाश में प्रगति की यह कमी की सम्भवतः अपेक्षा की जानी थी। “आधुनिक औद्योगिक समाज में राजनैतिक और आर्थिक शक्ति का स्वरूप,” इसने कहा, “यह निर्धारित करता है कि पर्यावरण-सम्बन्धी विनाश का सामना करने के लिए क़दम केवल तब स्वीकार्य होते हैं जब वे अर्थ-व्यवस्था के प्रचालन में दख़ल नहीं देते।”
अतः, टाइम ने हाल ही में “उस सम्भावना” के प्रति आगाह किया “कि वायुमण्डल में कार्बन डाइऑक्साइड और अन्य ग्रीन-हाऊस गैसों का जमाव धीरे-धीरे भूमण्डल को गर्म करेगा। अनेक वैज्ञानिकों के अनुसार, इसका परिणाम सूखा, हिमच्छदों का पिघलना, बढ़ता हुआ समुद्र-तल, तटीय बाढ़, अधिक प्रचंड तूफ़ान और अन्य मौसमी विपत्तियाँ हो सकता है।”
प्रदूषण की समस्या की गंभीरता कुछ किए जाने की माँग करती है। लेकिन क्या?