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  • सजग होइए!–1997
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सजग होइए!–1997
g97 2/8 पेज 30

विश्‍व-दर्शन

प्रसन्‍नचित्त रहिए —और ज़्यादा स्वस्थ रहिए!

“हास्य द्वारा, लोग ज़्यादा सहनशील बनते हैं, निराशाओं का सामना अच्छी तरह करते हैं, और शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य बनाए रखते हैं,” साउँ पाउलू विश्‍वविद्यालय की प्रोफ़ॆसर सूली दामर्जयान कहती है। ब्रज़िल के समाचार-पत्र ओ एस्तादो दॆ साँउ पाउलू (पुर्तगाली) की एक रिपोर्ट के अनुसार, लिखने और पढ़ने की तरह, अच्छा हास्य सीखा जा सकता है। स्पष्ट है, इसके लिए एक चिड़चिड़े व्यक्‍ति के सोच-विचार में परिवर्तन की आवश्‍यकता है। मनोविज्ञान की प्रोफ़ॆसर, राकॆल रोड्रीगीस करबाउई समझाती है: “अगर एक व्यक्‍ति सोचता है कि वह केवल तब मुस्कुरा सकता है जब संसार न्यायपूर्ण होगा, तो वह सदा सनकी ही रहेगा। आख़िरकार, अन्याय हर जगह होते हैं।” बहुत ज़्यादा व्यस्त होने पर भी, अच्छे स्वभाव के लोग अपने सामाजिक सम्पर्कों का आनन्द उठाते हैं, रिपोर्ट कहती है। वे ऐसी छोटी बातों को महत्त्वपूर्ण समझते हैं जैसे कि “छोटी-सी बातचीत, एक चॉकलेट, या पाँच मिनट के लिए अच्छा संगीत।” लेकिन, दामर्जयान सचेत करती है: “एक व्यक्‍ति को छिछोरेपन और अश्‍लीलता तथा अच्छे हास्य के बीच फ़र्क समझना चाहिए।”

बच्चों की पसन्द और नापसन्द

बच्चों को किस बात में सबसे कम मज़ा आता है? इटली के मिलन विश्‍वविद्यालय के प्रोफ़ॆसर गूस्तावो प्येत्रोपॉली शारमेट द्वारा ६- से ११-वर्षीय बच्चों के एक अध्ययन में, अधिकांश बच्चों ने कहा: “घर बैठकर टीवी देखना,” या “होमवर्क करने के लिए मम्मी के साथ घर पर रहना।” जो बात उन्हें सबसे अप्रिय लगती है, समाचार-पत्र ला रेपूबब्लिका कहता है, वह है “नियुक्‍त समय पर पहुँचना,” अर्थात्‌ नृत्य, अंग्रेज़ी, पियानो, इत्यादि सीखने के लिए अलग-अलग जगहों पर भागदौड़ करना। साथ ही, “अकेले रहना” भी सामान्यतः नापसन्द किया जाता है। दूसरी ओर, ४९ प्रतिशत लड़के चाहते हैं कि माता-पिता “बच्चों को घर से बाहर खेलने दें,” वहीं लड़कियाँ चाहती हैं कि माता-पिता “अपने बच्चों के साथ खेलकर मज़ा करें।” असल में, वे कहती हैं: ‘जब मम्मी मेरे साथ खेलती हैं, तो उन्हें सचमुच खेलना चाहिए। आप बता सकते हैं कि उन्हें मज़ा नहीं आ रहा, और जब उन्हें ही मज़ा नहीं आता तो मुझे कैसे आएगा।’

अपना चुनाव कीजिए

“क्या आपके नए साल की शुरूआत बुरी थी?” न्यू साइन्टिस्ट (अंग्रेज़ी) पत्रिका के एक लेख ने सवाल किया। “चिन्ता मत कीजिए, संसार-भर में कम-से-कम १४ अन्य नव-वर्ष हैं जिनमें से आप चुनाव कर सकते हैं।” असल में, केवल वे देश जिन्होंने ग्रेगोरियन कैलॆन्डर को अपनाया है जनवरी १ को साल का पहला दिन मानते हैं। वह जूलीयस सीज़र था, जिसने सा.यु.पू. ४६ में यह निर्णय किया कि कैलॆन्डर वर्ष जनवरी १ को शुरू होगा, और यह जारी रखा गया जब पोप ग्रेगरी ने १५८२ में इस कैलॆन्डर में सुधार किया। जैसे-जैसे भिन्‍न संस्कृतियों ने अपनी कैलॆन्डर-व्यवस्थाएँ विकसित कीं, तो कम-से-कम २६ भिन्‍न नव-वर्ष निकल आए। जो आज तक रहे हैं उनमें से चीनी व्यवस्था सबसे पुरानी है। उनके लिए इस साल के फरवरी ७ के दिन नव-वर्ष शुरू होता है। यहूदी नव-वर्ष अक्‍तूबर २ के दिन होता है। मुस्लिम कैलॆन्डर, जो पूरी तरह चन्द्र कैलॆन्डर है, उसकी भी अपनी तारीख़ होगी—मई ८.

“चीन का वृद्ध होता जनसमुदाय”

“चीन का वृद्ध होता जनसमुदाय लगातार बढ़ रहा है,” पत्रिका चाइना टुडे (अंग्रेज़ी) रिपोर्ट करती है। “१९९४ के अन्त तक चीन में ६० से ज़्यादा उम्र के ११,६९,७०,००० वृद्ध नागरिक थे, १९९० से १४.१६ प्रतिशत वृद्धि।” देश की क़रीब १० प्रतिशत जनसंख्या ६० से ज़्यादा उम्र के लोगों की है, और वृद्ध जनसमुदाय उस गति से बढ़ता रहा है जो कुल जनसंख्या के बढ़ने की गति से क़रीब तीन गुना ज़्यादा है। उनकी देखभाल कैसे की जा रही है? जबकि वेतन, पेन्शन, सामाजिक बीमा, और राहत-भत्ते से अनेकों की ज़रूरतों की देखरेख की जाती है, चीन के ५७ प्रतिशत से ज़्यादा वृद्ध नागरिकों का भरण-पोषण उनके बच्चों या उनके अन्य सगे-सम्बन्धियों द्वारा किया जाता है। “चूँकि चीन में पारिवारिक सम्बन्ध तुलनात्मक रूप से स्थिर हैं, और चीन में बड़े-बूढ़ों का आदर करने और उनकी देखभाल करने का अच्छा रिवाज़ है, अधिकांश वृद्ध नागरिक अपने सगे-सम्बन्धियों के साथ रहते हैं और वे उनकी देखभाल अच्छी तरह करते हैं,” चाइना टुडे कहती है। “चीन के केवल ७ प्रतिशत वृद्ध लोग अकेले रहते हैं।”

बाल श्रम —एक बढ़ती समस्या

अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन द्वारा हाल की एक रिपोर्ट के अनुसार, संसार के १० से १४ की उम्र के १३ प्रतिशत बच्चे—कुछ ७.३ करोड़ बच्चे—काम करने के लिए मजबूर किए जाते हैं। रिपोर्ट ने आगे कहा कि अगर दस से कम उम्र के बच्चों और दिन-भर घरेलू काम-काज कर रही लड़कियों के आँकड़े उपलब्ध होते, तो संसार के बाल-श्रम बल की संख्या संभवतः दसियों करोड़ तक जाएगी। हालाँकि जनीवा-स्थित संगठन, बाल श्रम का ८० सालों से विरोध करने की कोशिश करता रहा है, इस समस्या की वृद्धि और फैलाव जारी रहा है, विशेषकर अफ्रीका और लातिन अमरीका में। जहाँ कठोर परिश्रम और काम करने की जोखिम-भरी परिस्थितियाँ इन करोड़ों बच्चों के हिस्से में आती हैं, वहीं वेश्‍यावृत्ति को एक ख़ास समस्या बताया गया था। कुछ देशों में “वयस्क लैंगिक उद्देश्‍यों के लिए बच्चों के प्रयोग को [एचआइवी] संक्रमण को रोकने का सबसे अच्छा साधन समझते हैं,” रिपोर्ट कहती है। पैरिस की इंटरनैश्‍नल हॆरल्ड ट्रिब्यून (अंग्रेज़ी) ने कहा कि इस संगठन ने “सरकारी अधिकारियों पर दोष लगाया है जिन्होंने . . . इस समस्या को नज़रअंदाज़ किया था।”

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