एक “अपधर्मी” पर मुक़दमा और उसका वध
इटली में सजग होइए! संवाददाता द्वारा
उस मनहूस अदालत में एक तरफ़ है न्यायाधीशों की भव्य, प्रभावशाली पीठ। बीच में अध्यक्ष का आसन है जिस पर काले कपड़े की छतरी लगी हुई है, उसके ऊपर लकड़ी की एक बड़ी सलीब है जो पूरे कक्ष पर छायी हुई है। उसके सामने है, कटघरा।
घिनौने कैथोलिक धर्माधिकरण की अदालतों का वर्णन अकसर इस प्रकार किया जाता था। अभागे प्रतिवादियों पर लगाया गया भीषण आरोप था “अपधर्म,” एक ऐसा शब्द जिससे यातना और काठ पर जलाकर किए गए वध के दृश्य आँखों के सामने आते हैं। धर्माधिकरण, अंग्रेज़ी में इन्क्वीज़िशन (जो लैटिन क्रिया इन्क्वीरो, “पूछताछ करना” से आता है), एक ख़ास धर्म-संबंधी कचहरी थी जो अपधर्म, अर्थात् रूढ़िवादी रोमन कैथोलिक शिक्षा से असंगत विचारों या धर्मसिद्धांतों को जड़ से उखाड़ने के लिए बनायी गयी थी।
कैथोलिक सूत्र बताते हैं कि उसे कई चरणों में स्थापित किया गया था। पोप लूशीअस तीसरे ने ११८४ में वॆरोना धर्मसभा में धर्माधिकरण को स्थापित किया, और उसके संगठन और कार्यविधियों को दूसरे पोपों ने निखारा—यदि उस भयावह संस्थान का वर्णन करने के लिए ऐसे शब्द का प्रयोग किया जा सकता भी है। १३वीं शताब्दी में, पोप ग्रॆगरी नौवें ने यूरोप के विभिन्न भागों में धर्माधिकरण कचहरियाँ स्थापित कीं।
सत्ताधारी फ़र्डॆनॆन्ड और इज़ाबॆला के अनुरोध पर पोप सिकटॆस चौथे ने एक धर्मादेश जारी करके १४७८ में कुख्यात स्पैनिश धर्माधिकरण स्थापित कराया। इसे मरानो, अर्थात् उन यहूदियों से निपटने के लिए बनाया गया था जो सताहट से बचने के लिए कैथोलिक बनने का दिखावा करते थे; यह मरिस्को, अर्थात् सताहट से बचने के उद्देश्य से ही कैथोलिक बने मुसलमानों, और स्पैनिश अपधर्मियों से भी निपटने के लिए स्थापित किया गया था। अपनी धर्मांधता के कारण स्पेन का पहला मुख्य धर्मपरीक्षक तोमास दे तोरकेमादा, जो एक डॉमिनिकी पादरी था, धर्माधिकरण के सबसे घिनौने रूप की पहचान बन गया।
वर्ष १५४२ में, पोप पॉल तीसरे ने रोमी धर्माधिकरण स्थापित किया, जिसके अधिकार-क्षेत्र में पूरा कैथोलिक जगत आता था। उसने छः कार्डिनलों की एक केंद्रीय अदालत बनायी जिसे पवित्र रोमी और सर्वसार्विक धर्माधिकरण की कलीसिया कहा गया। यह एक ऐसा धर्म निकाय था जो बना “आतंक की सरकार जिसने समस्त रोम को भय से भर दिया।” (दीत्स्यॉनार्यो एनचीक्लोपॆडीको ईताल्यानो) अपधर्मियों की हत्या से उन देशों में आतंक की लहर दौड़ गई जहाँ कैथोलिक शासन का दबदबा था।
मुक़दमा और एउतो-द-फे
इतिहास साबित करता है कि जिन पर अपधर्म का आरोप था उनके मुँह से पाप-स्वीकृति कराने के लिए धर्मपरीक्षक उन्हें यातनाएँ देते थे। धर्माधिकरण के दोष को कम दिखाने के प्रयास में, कैथोलिक टीकाकारों ने लिखा है कि उस समय, सांसारिक कचहरियों में भी यातना एक सामान्य बात थी। लेकिन क्या यह बात उन धर्मसेवकों द्वारा यातना दिए जाने को उचित ठहराती है जो मसीह के प्रतिनिधि होने का दावा करते थे? क्या उन्हें वैसी करुणा नहीं दिखानी चाहिए थी जैसी मसीह ने अपने शत्रुओं के लिए दिखायी? इसे निष्पक्ष रूप से देखने के लिए, हम एक सरल-से प्रश्न पर विचार कर सकते हैं: क्या मसीह यीशु उन लोगों को यातना देता जो उसकी शिक्षाओं पर उससे असहमत होते? यीशु ने कहा: “अपने शत्रुओं से प्रेम रखो; जो तुम से बैर करें, उन का भला करो।”—लूका ६:२७.
धर्माधिकरण ने अभियुक्त को न्याय की गारंटी नहीं दी। वास्तव में, धर्मपरीक्षक के पास असीम अधिकार थे। “व्यक्ति को अपने सामने बुलवाने के लिए संदेह, आरोप, यहाँ तक कि अफ़वाह भर धर्मपरीक्षक के लिए काफ़ी थी।” (एनचिक्लोपॆडीआ काटोलीका) कानून इतिहासकार, ईटालो मीरॉय दावे से कहता है कि स्वयं कैथोलिक धर्मतंत्र ने ही रोमियों द्वारा स्थापित की गयी प्राचीन अभियोग पद्धति छोड़कर, न्याय की धर्माधिकरण पद्धति की कल्पना की और उसे अपनाया। रोमी कानून की माँग थी कि दोष लगानेवाला अपने आरोप को साबित करे। यदि कोई संदेह होता, तो किसी निर्दोष को दोषी ठहराने की ग़लती करने से बेहतर था कि उसे छोड़ दिया जाए। कैथोलिक धर्मतंत्र ने इस मूल सिद्धांत के बदले यह विचार अपनाया कि दोष के पूर्वानुमान से संदेह उठता है, और यह प्रतिवादी का काम है कि अपने आपको निर्दोष साबित करे। अभियोगपक्ष के गवाहों (मुख़बिरों) के नाम गुप्त रखे जाते थे, और जब प्रतिवादी का वकील होता, और यदि वह कथित अपधर्मी का मुक़दमा सफलतापूर्वक लड़ता तो उसे बदनामी और अपनी नौकरी खोने का जोख़िम रहता। इसके फलस्वरूप, एनचिक्लोपॆडीआ काटोलीका स्वीकार करती है कि “अभियुक्त असल में निःसहाय थे। वकील दोषी को और कुछ नहीं बस पाप-स्वीकार करने की सलाह दे सकता था!”
मुक़दमा एउतो-द-फे में ख़त्म होता था, जो एक पुर्तगाली अभिव्यक्ति है जिसका अर्थ है “विश्वास की कृति।” वह क्या थी? उस युग की कलाकृतियाँ दिखाती हैं कि अभागे प्रतिवादी जिन पर अपधर्म का आरोप था, एक दारुण तमाशे का शिकार बनते थे। दीत्स्यॉनार्यो एक्लेसीआस्टीको एउतो-द-फे को इस प्रकार परिभाषित करती है, उनकी दोषसिद्धि के पढ़े जाने के बाद “दंडित और पश्चातापी अपधर्मियों द्वारा की गयी पवित्रीकरण की जन कृति।”
अपधर्मियों की दोषसिद्धि और वध को कुछ समय के लिए आगे बढ़ा दिया जाता था ताकि कई अपधर्मियों का एकसाथ साल में दो या अधिक बार एक भयावह तमाशा बनाया जाए। दर्शकों के सामने से अपधर्मियों का एक लंबा जलूस निकाला जाता था। दर्शक इसमें कुछ भय और कुछ परपीड़क-सम्मोहन के साथ भाग लेते थे। दोषसिद्ध अपधर्मियों को एक बड़े चौराहे के बीच में बने चबूतरे पर चढ़ाया जाता था, और ऊँचे स्वर में उनका दंड सुनाया जाता था। जो मतत्याग करते थे, अर्थात् अपधर्मी धर्मसिद्धांतों को त्याग देते थे, उनका धर्म-बहिष्करण टल जाता था और उन्हें तरह-तरह की सज़ाएँ सुनायी जाती थीं जिनमें उम्रक़ैद शामिल थी। जो मतत्याग नहीं करते थे परंतु आख़िरी घड़ी एक पादरी के समक्ष पाप-स्वीकार कर लेते थे उन्हें लोक अधिकारियों को सौंप दिया जाता था कि उनका गला घोंट दिया जाए, फाँसी दे दी जाए, या सिर काट दिया जाए, जिसके बाद उन्हें जला दिया जाता था। जो नहीं पछताते थे उन्हें ज़िन्दा जला दिया जाता था। असल वध किसी दूसरे समय, एक और बार लोगों के सामने तमाशे के बाद किया जाता था।
रोमी धर्माधिकरण का काम पूरी गोपनीयता के घेरे में होता था। आज भी, विद्वानों को इसके पुरालेखों से जानकारी लेने की अनुमति नहीं है। लेकिन, धैर्यपूर्ण छानबीन से रोमी कचहरियों के मुक़दमों के कई दस्तावेज़ मिले हैं। वे क्या दिखाते हैं?
एक पादरी पर मुक़दमा
पियॆत्रो कारनॆसॆक्की का जन्म १६वीं शताब्दी के आरंभ में फ़्लॉरॆन्स में हुआ। उसने पोप क्लॆमॆंट सातवें के भवन में अपने धार्मिक पेशे में तेज़ प्रगति की, और पोप ने उसे अपना निजी सचिव नियुक्त कर लिया। लेकिन, पोप की मृत्यु होने पर कारनॆसॆक्की का काम अचानक ठप्प हो गया। बाद में, वह कुलीनों और पादरियों से परिचित हुआ जिन्होंने, उसी की तरह, प्रोटॆस्टॆंट सुधार द्वारा सिखाए गए कई धर्मसिद्धांत स्वीकार किए। फलस्वरूप, उस पर तीन बार मुक़दमा चलाया गया। उसे मृत्युदंड मिला, और उसका सिर काटकर उसकी देह को जला दिया गया।
क़ैदख़ाने में कारनॆसॆक्की की क़ैद को टीकाकारों ने ज़िन्दा मौत कहा। उसका प्रतिरोध तोड़ने के लिए, उसे यातना दी गयी और भूखा मारा गया। सितंबर २१, १५६७ में, रोम के लगभग सभी कार्डिनलों की उपस्थिति में उसका भयानक एउतो-द-फे किया गया। कारनॆसॆक्की की सज़ा भीड़ के सामने उसे एक चबूतरे पर सुनायी गयी। यह परंपरागत कथन और दीवानी अदालत के सदस्यों से एक प्रार्थना के साथ समाप्त हुआ जिनके हाथ अब अपधर्मी को सौंपा जाना था। उनसे कहा गया कि ‘उसे बहुत कठोरता से सज़ा न दें और न बहुत लहू बहाएँ न ही उसकी जान लें।’ क्या यह घोर पाखण्ड नहीं था? धर्मपरीक्षक अपधर्मियों का सफ़ाया करना चाहते थे, लेकिन साथ ही वे ढोंग करके सरकारी अधिकारियों से दया दिखाने के लिए कहते थे, और इस प्रकार रक्तदोष का भार उन पर ढकेल देते थे और अपनी इज़्ज़त बचा लेते थे। कारनॆसॆक्की की सज़ा सुनायी जाने के बाद, उसे सैनबनीटो पहनाया गया। सैनबनीटो टाट का वस्त्र होता था जो या तो पीले रंग का होता था और उस पर लाल क्रूस बने होते थे जो कि पश्चातापी को पहनाया जाता था, या काले रंग का होता था जिस पर आग की लपटें और शैतान बने होते थे और यह पश्चाताप न करनेवाले के लिए होता था। दस दिन बाद वध किया जाता था।
इस व्यक्ति पर जो पहले एक पोप का सचिव था अपधर्म का आरोप क्यों लगाया गया? उसके मुक़दमे के विवरण, जो पिछली सदी के अंत में मिले, यह दिखाते हैं कि वह ३४ आरोपों का दोषी पाया गया और इतने ही धर्मसिद्धांतों को उसने अस्वीकार भी किया था। इनमें से कुछ शिक्षाएँ थीं शोधन-स्थान, पादरियों और ननों का कौमार्यव्रत, तत्त्वपरिवर्तन, दृढ़ीकरण-संस्कार, पाप-स्वीकार, कुछ चीज़ें खाने की मनाही, दंडमोचन, और “संतों” से प्रार्थनाएँ। आठवाँ आरोप ख़ासकर दिलचस्प है। (पृष्ठ २७ पर बक्स देखिए।) जो लोग विश्वास के आधार के रूप में केवल “पवित्र शास्त्र में अभिव्यक्त परमेश्वर के वचन” को ही स्वीकार करते थे उन्हें मृत्युदंड देने के द्वारा, धर्माधिकरण ने साफ़-साफ़ दिखाया कि कैथोलिक चर्च पवित्र बाइबल को एकमात्र उत्प्रेरित स्रोत नहीं समझता। अतः यह कोई आश्चर्य की बात नहीं कि गिरजे के अनेक धर्मसिद्धांत शास्त्र पर नहीं, वरन् गिरजे की परंपरा पर आधारित हैं।
एक युवा विद्यार्थी का वध
पोम्पॉन्यो आलजेरी की संक्षिप्त और मर्मस्पर्शी जीवन कथा जानी-मानी नहीं है, परंतु यह अतीत के अंधकार से उभरकर आयी है, जो कि कई विद्वानों की परिश्रमी ऐतिहासिक जाँच-पड़तालों की मदद से हो पाया है। उसका जन्म १५३१ में नेपल्स के निकट हुआ था। यूनिवर्सिटी ऑफ़ पैजॆवा में पढ़ते समय यूरोप के विभिन्न भागों से आए शिक्षकों और विद्यार्थियों के साथ संपर्क द्वारा, आलजेरी का परिचय तथाकथित अपधर्मियों और प्रोटॆस्टॆंट सुधार धर्मसिद्धांतों से हुआ। शास्त्र में उसकी दिलचस्पी बढ़ गयी।
वह यह विश्वास करने लगा कि केवल बाइबल उत्प्रेरित है, और इसके फलस्वरूप उसने कई कैथोलिक धर्मसिद्धांत अस्वीकार कर दिए, जैसे कि पाप-स्वीकार, दृढ़ीकरण-संस्कार, शोधन-स्थान, तत्त्वपरिवर्तन, और “संतों” की मध्यस्थता, साथ ही यह शिक्षा कि पोप मसीह का प्रतिनिधि है।
आलजेरी को गिरफ़्तार किया गया और पैजॆवा में धर्माधिकरण ने उस पर मुक़दमा चलाया। उसने अपने धर्मपरीक्षकों से कहा: “मैं स्वेच्छा से वापिस क़ैद में जा रहा हूँ, और यदि परमेश्वर की यही इच्छा है तो मृत्यु के लिए भी तैयार हूँ। अपने प्रताप के माध्यम से, परमेश्वर हरेक को और अधिक प्रकाश देगा। मैं हर यातना को ख़ुशी-ख़ुशी सहूँगा क्योंकि मसीह, उत्पीड़ित जनों का परिपूर्ण सांत्वनादाता, जो मेरा प्रकाश और सच्ची ज्योति है, हर अंधकार को दूर करने में समर्थ है।” उसके बाद, रोमी धर्माधिकरण ने उसका प्रत्यर्पण प्राप्त कर लिया और उसे मृत्युदंड सुना दिया।
आलजेरी अपनी मृत्यु के समय २५ साल का था। जिस दिन उसे रोम में मारा गया, उसने पाप-स्वीकार करने और मिस्सा लेने से इनकार कर दिया। उसके वध का माध्यम सामान्य से भी अधिक क्रूर था। उसे लकड़ियों के ढेर से नहीं जलाया गया। इसके बजाय, ज्वलनशील वस्तुओं—तेल, डामर, और राल—से भरा एक बड़ा हण्डा चबूतरे पर रखा गया जहाँ से भीड़ उसे अच्छी तरह देख सके। फिर उस युवक को बाँधकर उस हण्डे में डाल दिया गया और उसमें आग लगा दी गयी। वह धीरे-धीरे ज़िन्दा जल गया।
घोर दोष का एक और कारण
कारनॆसॆक्की, आलजेरी, और दूसरे लोगों को, जिन्हें धर्माधिकरण ने मार डाला था, शास्त्र की पूरी समझ नहीं थी। ज्ञान को आगे जाकर, इस रीति-व्यवस्था के “अन्त समय” में ‘बढ़ना’ था। फिर भी, वे परमेश्वर के वचन से जो भी थोड़ा-बहुत “सच्चा ज्ञान” (NW) प्राप्त कर सके थे उसके लिए वे मरने को तैयार थे।—दानिय्येल १२:४.
प्रोटॆस्टॆंट लोगों ने भी, जिनमें उनके कुछ सुधारक सम्मिलित थे, बाग़ियों को स्तंभ पर जला देने के द्वारा उनका सफ़ाया किया या सरकारी अधिकारियों की सहायता से कैथोलिकों को मरवाया। उदाहरण के लिए, जबकि कैल्विन को अपधर्मियों का सिर कटवाना ज़्यादा पसंद था, उसने माइकल सरविटस को ज़िन्दा जलवा दिया क्योंकि उसे त्रियेक-विरोधी अपधर्मी समझा गया।
यह सच्चाई कि कैथोलिक और प्रोटॆस्टॆंट भी अपधर्मियों को सताते और उनका वध करते थे, किसी हालत उन कार्यों को उचित नहीं ठहराती। लेकिन धार्मिक अगुवों की ज़िम्मेदारी और भी गंभीर है—क्योंकि उन्होंने इन हत्याओं को शास्त्रीय रूप से उचित ठहराने का दावा किया और फिर ऐसा ढोंग किया मानो स्वयं परमेश्वर ने ऐसे कार्य करने की आज्ञा दी थी। क्या यह परमेश्वर के नाम पर निंदा नहीं लाता? कई विद्वान दावे से कहते हैं कि विख्यात कैथोलिक “चर्च फ़ादर,” ऑगस्टीन वह पहला व्यक्ति था जिसने “धार्मिक” ज़बरदस्ती के सिद्धांत, अर्थात् अपधर्म से निपटने के लिए बल प्रयोग करने का समर्थन किया। इस अभ्यास को उचित ठहराने के लिए बाइबल का प्रयोग करने के प्रयास में, उसने लूका १४:१६-२४ में दी गयी यीशु की नीतिकथा से शब्द उद्धृत किए: “लोगों को बरबस ले ही आ।” स्पष्टतया, ऑगस्टीन द्वारा तोड़े-मरोड़े गए ये शब्द उदार पहुनाई को सूचित करते हैं, क्रूर ज़बरदस्ती को नहीं।
यह उल्लेखनीय है कि जब धर्माधिकरण सक्रिय था तब भी धार्मिक सहनशीलता के समर्थकों ने अपधर्मियों के सताए जाने का विरोध किया। उन्होंने गेहूँ और जंगली दानों की नीतिकथा का हवाला दिया। (मत्ती १३:२४-३०, ३६-४३) उनमें से एक था रॉटरडैम का डेसीडरयुस इरैसमस, जिसने कहा कि खेत का स्वामी, परमेश्वर चाहता है कि अपधर्मी, अर्थात् जंगली दानों के प्रति सहनशीलता दिखायी जाए। दूसरी ओर, मार्टीन लूथर ने किसान बाग़ियों के विरुद्ध हिंसा भड़कायी, और तक़रीबन १,००,००० जन मारे गए।
मसीहीजगत के धर्मों की घोर ज़िम्मेदारी को पहचानते हुए जिन्होंने तथाकथित अपधर्मियों की सताहट को बढ़ावा दिया, हमें क्या करने के लिए प्रेरित होना चाहिए? निश्चित ही हमें परमेश्वर के वचन के सच्चे ज्ञान की खोज करने के लिए उत्सुक होना चाहिए। यीशु ने कहा कि एक सच्चे मसीही की पहचान होगी परमेश्वर और पड़ोसी के प्रति उसका प्रेम—ऐसा प्रेम जो हिंसा की कोई गुंजाइश नहीं छोड़ेगा।—मत्ती २२:३७-४०; यूहन्ना १३:३४, ३५; १७:३.
[पेज 27 पर बक्स]
कारनॆसॆक्की पर लगे कुछ आरोप जिनका वह दोषी पाया गया
८.“[आपने दावा किया है] कि पवित्र शास्त्र में अभिव्यक्त परमेश्वर के वचन को छोड़ किसी दूसरी बात पर विश्वास नहीं किया जाना चाहिए।”
१२.“[आपने विश्वास किया है] कि सांस्कारिक पाप-स्वीकार डी यूरे डीवीनो [ईश्वरीय नियम के अनुसार] नहीं है, कि यह मसीह द्वारा स्थापित नहीं किया गया था न शास्त्र द्वारा प्रमाणित है, और कि स्वयं परमेश्वर के सम्मुख पाप-स्वीकरण को छोड़ किसी क़िस्म का पाप-स्वीकार ज़रूरी नहीं है।”
१५.“आपने शोधन-स्थान पर संदेह उठाया है।”
१६.“आपने मैकाबीस की पुस्तक को, जिसमें मृतकों के लिए प्रार्थनाएँ हैं, अप्रामाणिक माना है।”
[पेज 24 पर चित्र का श्रेय]
The Complete Encyclopedia of Illustration/J. G. Heck