पौधों की प्रजातियाँ लुप्त हो रही हैं—क्यों?
चीन में १९४९ में गेहूँ की करीब १०,००० किस्में उगायी जाती थीं। लेकिन दशक १९७० तक बस १,००० किस्में उगायी जा रही थीं। कहा जाता है कि अमरीका में १८०४ से १९०४ के बीच सेब की ७,०९८ किस्में उगायी जाती थीं, उनमें से ८६ प्रतिशत अब लुप्त हो गयी हैं। साथ ही, खाद्य और कृषि के लिए दुनिया में पौधा आनुवंशिकी संपदा की दशा पर रिपोर्ट (अंग्रेज़ी) कहती है, “९५ प्रतिशत बंदगोभी, ९१ प्रतिशत मकई, ९४ प्रतिशत मटर और ८१ प्रतिशत टमाटर की किस्में प्रत्यक्षतः लुप्त हो गयी हैं।” इसी तरह के आँकड़े दुनिया भर में रिपोर्ट किये जा रहे हैं। अचानक यह गिरावट क्यों? कुछ लोगों का कहना है कि एक मुख्य कारण है आधुनिक व्यावसायिक कृषि का फैलाव और इस कारण छोटे पैमाने पर घरेलू खेती का खत्म होना, जिसके कारण फसलों की पारंपरिक, बहुत-ही असमान किस्में लुप्त हो गयीं।
पौधा प्रजातियों के लुप्त होने से फसलों का बरबाद होना ज़्यादा आसान हो जाता है। उदाहरण के लिए, १८४५-४९ में आयरलॆंड में आये आलू के महा अकाल पर विचार कीजिए। उस समय करीब ७,५०,००० लोग भुखमरी से मर गये जब एक पौधा बीमारी के कारण आलू की अधिकतर फसल नष्ट हो गयी। इस त्रासदी का जैविक कारण? “आनुवंशिक एकसमानता,” संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट कहती है।
दशक १९७० से १९८० के बीच दुनिया भर में १,००० से ज़्यादा जीन बैंक बनाये गये ताकि पौधा आनुवंशिक संपदा को इकट्ठा किया जाए और सुरक्षित रखा जाए। लेकिन इनमें से कई जीन बैंक तेज़ी से नष्ट हो रहे हैं और कुछ तो बंद हो चुके हैं। कहा जाता है कि अब करीब ३० देशों में ही ऐसी सुविधाएँ हैं जो लंबे अरसे तक पौधा बीजों को सुरक्षित रखने के लिए उपयुक्त हैं।
बाइबल प्रतिज्ञा करती है कि मसीह के राज्य शासन में, यहोवा “सब देशों के लोगों के लिये ऐसी जेवनार करेगा जिस में भांति भांति का चिकना भोजन और निथरा हुआ दाखमधु होगा।” (यशायाह २५:६) हम कितने शुक्रगुज़ार हो सकते हैं कि यहोवा परमेश्वर जो “सब प्राणियों को आहार देता है” और आनुवंशिक विविधता का रचयिता है, वही मनुष्य की भोजन-संबंधी हर ज़रूरत को पूरा करेगा!—भजन १३६:२५; उत्पत्ति १:२९.