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    युवाओं के प्रश्‍न—व्यावहारिक उत्तर
सजग होइए!–1998
g98 3/8 पेज 28-29

विश्‍व-दर्शन

हैज़े की वापसी

सौ साल से भी ज़्यादा समय तक नदारद रहने के बाद, हैज़ा दक्षिण अमरीका में एकाएक लौट आया है। “१९९१ से, वहाँ १४ लाख मरीज़ रिपोर्ट किये गये हैं, जिनमें से १०,००० की मौत हो गयी है,” लंदन का द टाइम्स रिपोर्ट करता है। स्वास्थ्य अधिकारियों को एक और चिंता यह थी कि १९९२ में भारत, बंग्लादेश, और आस-पास के देशों में हैज़े के जीवाणु की एक नयी नसल आ गयी है, जिसने अब तक २,००,००० लोगों को प्रभावित किया है। हैज़ा एक तीव्र अतिसार रोग है, और यदि पर्याप्त उपचार उपलब्ध न हो तो ७० प्रतिशत मरीज़ों की मौत हो जाती है। लेकिन इलाज से बेहतर है बचाव। पीने के पानी और दूध को उबालना, मक्खियों को दूर रखना, और कच्ची भोजन वस्तुओं को क्लोरीन के पानी में धोना मूल सुरक्षा उपाय हैं।

विश्‍व शांति के बारे में बात करना

स्टॉकहोम अंतर्राष्ट्रीय शांति अनुसंधान संस्थान की इयरबुक १९९७ के अनुसार, प्रतीत होता है कि क्षेत्रीय युद्ध, जिन्होंने एक समय शीत युद्ध में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी, अब समाप्त हो गये हैं। १९८९ में, शीत युद्ध के अंतिम वर्ष, ३६ “प्रमुख सशस्त्र संघर्ष” हुए। यह संख्या १९९६ में गिरकर २७ हो गयी, और भारत तथा पाकिस्तान के बीच संघर्ष को छोड़, बाकी सभी आंतरिक, गृह युद्ध थे। इसके अलावा, मृत्यु संख्या के आधार पर, इनमें से अधिकतर संघर्षों की तीव्रता में कमी आयी या ये निम्न स्तर पर जारी रहे। “कोई अन्य पीढ़ी विश्‍व शांति के इतने निकट नहीं रही है,” दक्षिण अफ्रीका के अखबार, द स्टार ने निष्कर्ष निकाला। और टाइम पत्रिका कहती है: “अमरीकी प्रभुत्व . . . ने संसार को अमरीकी-शैली शांति दी है, अंतर्राष्ट्रीय अमन और चैन का ऐसा युग दिया है जो इस सदी में देखा नहीं गया, मानव इतिहास में शायद ही कभी देखा गया।”

आकाश से एकत्र करना

कुछ ऑस्ट्रेलियाई पशुपालक अपनी विशाल पशुशालाओं में पशुओं को एकत्र करने के लिए, अब अल्ट्रालाइट (बहुत हलका) कहलानेवाले धीमी-उड़ान विमानों का प्रयोग कर रहे हैं, ब्रिज़बन, ऑस्ट्रेलिया का अखबार द संडे मेल रिपोर्ट करता है। क्वीन्सलॆंड का एक पशुपालक कहता है कि उसके अल्ट्रालाइट के कारण हर बार जब वह अपनी भेड़ों को एकत्र करता है तब उसका इतना पैसा बचता है जितना कि उसे कई आदमियों को दो हफ्ते की मज़दूरी के रूप में देना पड़ता। “घोड़े की जगह मोटरसाइकिल ने ली, और अब मोटरसाइकिल की जगह ले रहा है अल्ट्रालाइट विमान,” उसने कहा। इन हलके विमानों में ज़बरदस्त टेप रिकॉर्डर लगे होते हैं जो कुत्तों के भौंकने की आवाज़वाले कॆसॆट बजाते हैं। इसे सुनने पर, “घबराये पशु सबसे करीब की पशुशाला की ओर भागते हैं,” लेख कहता है।

“मौत के सौदागर”

धनी पाश्‍चात्य देश विकासशील देशों के लिए रोगों की समस्या को “दोगुना” कर रहे हैं, विश्‍व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यू.एच.ओ.) की १९९७ की रिपोर्ट कहती है। जैसे लंदन के द डेली टॆलिग्राफ में रिपोर्ट किया गया, हृदय रोग, मस्तिष्क-आघात, मधुमेह, और अमुक कैंसर विकासशील राष्ट्रों में बहुत तेज़ी से बढ़ रहे हैं क्योंकि वे धूम्रपान करने, उच्च-कैलोरी और उच्च-वसा आहार लेने और कम शारीरिक मेहनत करने की पाश्‍चात्य जीवन-शैलियाँ अपना रहे हैं। हालाँकि विश्‍व स्तर पर लोग आज ज़्यादा लंबा जीवन जीते हैं, इसका ‘कोई लाभ नहीं, क्योंकि जीवन में कोई गुणवत्ता नहीं,’ डब्ल्यू.एच.ओ. का निदेशक, डॉ. पॉल क्लाइयूस कहता है। वह आगे कहता है: “जो कहते हैं कि हम असल में मौत के सौदागर हैं वह ठीक ही कहते हैं।” स्वास्थ्यकर जीवन-शैलियों को बढ़ावा देने के लिए डब्ल्यू.एच.ओ. एक बड़ा विश्‍वव्यापी अभियान चला रहा है। उसका कहना है कि ऐसा न करने पर “विश्‍वव्यापी स्तर पर पीड़ाओं का महासंकट” आ जाएगा।

स्तन कैंसर को शुरूआत में पहचान लेना

ब्राज़ील की स्त्रियों के बीच स्तन कैंसर सबसे सामान्य बीमारी है। औसतन प्रति १२ में से १ स्त्री इससे ग्रस्त होती है, ब्राज़ील की पत्रिका मॆडीसीना कोनसॆलयो फॆडराल रिपोर्ट करती है। इस पत्रिका का सुझाव है कि २५ साल से ऊपर की सभी स्त्रियों को नियमित रूप से स्वयं स्तन परीक्षण करना चाहिए। मॆडीसीना यह सिफारिश भी करती है कि स्त्रियों को ३५ से ४० की उम्र में पहली बार, ४० से ५० की उम्र में हर दूसरे साल, और उसके बाद हर साल मैमोग्राम करवाना चाहिए। हालाँकि जो स्त्रियाँ उच्च संतृप्त वसायुक्‍त आहार लेती हैं और जिनके परिवार में किसी को यह रोग था, उनको ज़्यादा खतरा है, लेकिन स्तन कैंसर की ७० प्रतिशत मरीज़ किसी भी उच्च-जोखिम वर्ग में नहीं आतीं। यह तथ्य, मॆडीसीना कहती है, “स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि शुरूआत में ही पहचान कर लेने की नीति महत्त्वपूर्ण है।”—अप्रैल ८, १९९४ की सजग होइए! (अंग्रेज़ी) देखिए।

दुनिया के सबसे बूढ़े व्यक्‍ति की मृत्यु

गिनिस बुक ऑफ वर्ल्ड रिकाड्‌र्स के अनुसार दुनिया की सबसे बूढ़ी स्त्री ज़्हान ल्वीज़ कालमाँ थी। वह अगस्त ४, १९९७ में, १२२ साल की उम्र में मर गयी, फ्रांसीसी अखबार ल फीगारो रिपोर्ट करता है। ज़्हान का जन्म फरवरी २१, १८७५ में आरल, दक्षिणपूर्वी फ्रांस में हुआ था—बिजली के बल्ब, ग्रामोफोन, और कार के आविष्कार से पहले। उसका विवाह १८९६ में हुआ। उसकी एक बेटी थी जो उससे ६३ साल पहले मर गयी। उसका एक नाती था, जो १९६३ में मर गया। उसे याद था कि वह चित्रकार विनसॆंट वैन गो से १८८८ में मिली थी, जब वह एक किशोरी थी। वह कवि फ्रेडेरीक मिस्ट्राल की मित्र थी, जिसने १९०४ में नोबल पुरस्कार जीता। ज़्हान ने लंबी उम्र के राज़ के बारे में कई मज़ाकिया बातें कहीं। उसने हँसी, मेहनत, और “शुतुरमुर्ग का सा पेट” जैसी बातों का ज़िक्र किया।

दोभाषी बच्चे

जब बच्चा अपनी मातृ भाषा सीखता है, तब उसके बोलने की अधिकतर क्षमता मस्तिष्क के उस भाग में सीमित होती है जिसे वाक्‌प्रेरक केंद्र (ब्रोकास एरिया) कहते हैं। हाल ही में, न्यू यॉर्क में मॆमोरियल स्लोन-कॆटरिंग कैंसर सॆंटर के शोधकर्ताओं ने यह तय करने के लिए क्रियागत चुंबकीय अनुकंपन प्रतिबिंब (एम.आर.आई.) का प्रयोग किया कि जब दोभाषी लोग दो में से एक भाषा बोलते हैं तब मस्तिष्क का कौन-सा हिस्सा सक्रिय होता है। उन्होंने पाया कि जब एक व्यक्‍ति बचपन में दो भाषाओं को साथ-साथ सीखता है, तब दोनों ही वाक्‌प्रेरक केंद्र के एक ही हिस्से में जमा होती हैं। लेकिन, तरुणावस्था या उसके बाद दूसरी भाषा सीखने पर ऐसा प्रतीत होता है कि यह पहली भाषा के पास के भाग में स्थित होती है, उसी भाग में मिलजुल नहीं जाती। लंदन के द टाइम्स अखबार ने टिप्पणी की: “ऐसा लगता है मानो पहली भाषा सीखने से वाक्‌प्रेरक केंद्र में सर्किट लग गये हैं, सो दूसरी भाषा को कहीं और रखना पड़ेगा।” शोधकर्ताओं को लगता है कि इससे शायद यह समझने में मदद मिले कि बड़े होकर दूसरी भाषा सीखना ज़्यादा मुश्‍किल क्यों होता है।

बच्चों की परवरिश को लेकर चीनियों की चिंताएँ

सामाजिक विज्ञान की चीनी अकादमी के मार्गदर्शन में हाल ही में माता-पिता और बच्चों के बीच के संबंधों पर एक व्यापक अध्ययन किया गया, चाइना टुडे रिपोर्ट करता है। शोध ने प्रकट किया कि अनेक माता-पिता आज बच्चों की परवरिश के बारे में चिंतित हैं। चाइना टुडे के अनुसार, “कुछ लोग पूरी तरह इस उलझन में फँसे हैं कि उनके बच्चों को क्या सिखाया जाना चाहिए—पारंपरिक चीनी नैतिकता जैसे ईमानदारी, मर्यादा, धीरज और विचारशीलता, या स्पर्धा की आधुनिक नीतियाँ?” लगभग ६० प्रतिशत माता-पिता बच्चों पर टी.वी. के नकारात्मक प्रभावों के बारे में चिंता करते हैं। समाचार शोधकर्ता बु वे ने माता-पिताओं को सलाह दी कि बच्चे की उम्र और व्यक्‍तित्व के हिसाब से इस पर नियंत्रण रखें कि वह कौन-से कार्यक्रम देखता है, बच्चे के साथ कार्यक्रमों को देखें और उनकी चर्चा करें, और टी.वी. को बच्चे का बहुत ज़्यादा समय न लेने दें।

अभी-भी पहले नंबर पर

“किसी दूसरी पुस्तक की तुलना में बाइबल की अभी-भी अधिक प्रतियाँ छापी जा रही हैं,” ई.एन.आई. बुलॆटिन रिपोर्ट करता है। चीन, अमरीका, और ब्राज़ील में बाइबल का सबसे अधिक वितरण हो रहा है। युनाइटॆड बाइबल सोसाइटीज़ (यू.बी.एस.) की एक रिपोर्ट के अनुसार, १९९६ में संपूर्ण बाइबल की १.९४ करोड़ प्रतियाँ वितरित की गयीं। यह एक नया रिकॉर्ड था और १९९५ की तुलना में ९.१ प्रतिशत की वृद्धि थी। “संसार के अमुक भागों में वितरण में आश्‍चर्यजनक वृद्धि” के बावजूद, यू.बी.एस. के प्रकाशन सेवा प्रबंधक, जॉन बॉल ने कहा, “यदि हमें हर व्यक्‍ति को शास्त्र सुलभ कराना है तो और भी बहुत काम बाकी है।”

शार्क मछली का सबसे बड़ा दुश्‍मन?

आम तौर पर शार्क मछलियाँ मनुष्यों में डर उत्पन्‍न करती हैं। लेकिन लगता है कि शार्क मछलियों को मनुष्यों से डरने का ज़्यादा प्रबल कारण है। शार्क के हमलों के फलस्वरूप साल में “सौ से भी कम” लोग मरते हैं, जबकि हर साल मछुवारे लगभग १०,००,००,००० शार्क मछलियों को मारते हैं, फ्रांसीसी अखबार ल मॉन्ड रिपोर्ट करता है। इस तथ्य से अनेक समुद्री जीवविज्ञानी चिंतित हैं। उन्हें डर है कि यदि यह विनाश जारी रहा तो महासागरों का प्राकृतिक संतुलन बिगड़ सकता है। शार्क मछलियाँ समुद्री आबादी को नियंत्रित रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। चूँकि शार्क मछलियों को लैंगिक प्रौढ़ता तक पहुँचने में काफी समय लगता है और लंबी गर्भावस्था के बाद उनके कुछ ही बच्चे होते हैं, ज़रूरत से ज़्यादा मछुवाही करने से शार्क मछलियों की कुछ प्रजातियों के लुप्त होने का खतरा है। समुद्री विशेषज्ञ खासकर “पंख-कटाई” व्यवहार के कारण बहुत दुःखी हैं। इसमें भोजन के लिए शार्क के पंख काट दिये जाते हैं और उसे मरने के लिए वापस समुद्र में फेंक दिया जाता है।

बेरोज़गारी का तनाव

बेरोज़गारी के भावात्मक और सामाजिक तनाव व्यक्‍ति के स्वास्थ्य पर प्रभाव डाल सकते हैं, जर्मन अखबार सूटडॉइचे ट्‌साइटुंग में उल्लिखित अध्ययन बताते हैं। कहा जाता है कि ऐसे तनाव से शरीर का प्रतिरक्षा तंत्र कमज़ोर पड़ जाता है। नौकरीपेशा लोगों की तुलना में बेरोज़गार लोगों को उच्च रक्‍तचाप होने और दिल का दौरा पड़ने की संभावना भी ज़्यादा होती है। “नौकरीपेशा लोगों की तुलना में लंबे अरसे से बेरोज़गार लोगों को जो तनाव झेलना पड़ता है वह बदतर है और उसके दुष्प्रभाव अधिक हैं,” हैनोवर यूनिवर्सिटी, जर्मनी का प्रोफॆसर टोमास कीज़लबाख कहता है। “लगभग सभी बेरोज़गार लोग किसी-न-किसी तरह के अवसादक विकारों से पीड़ित होते हैं।” कहा जाता है कि यूरोपीय संघ में बेरोज़गारों की संख्या डॆनमार्क, फ़िनलॆंड और स्वीडन को मिलाकर, उनकी कुल जनसंख्या के बराबर है।

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