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विश्‍व दर्शन

रेडियोधर्मी जवाहरात

बैंगकॉक में एक सौदागर को बेचे गये जवाहरात ने अंतर्राष्ट्रीय व्यापार बाज़ार में खलबली मचा दी जब पता चला कि वे रेडियोधर्मी हैं। साहाबूदीन नीज़ाबूदीन तजरबाकार जौहरी है और फायदे का सौदा ताड़ लेता है। सो जब इंडोनीशिया के सौदागर ने उसे ५० कैट्‌स-आई बाज़ार-भाव से कहीं कम दाम पर पेश किये तो उसने लपककर सौदा कर लिया। “हर [मनका] बेशकीमती चॉकलेटी रंग की थी, जिसके बीच में खास सतरंगी धारी थी जिसमें बिल्ली की चीरदार पुतली की झलक थी,” एशियावीक रिपोर्ट करती है। लेकिन, असल में जवाहरात की चमक का ज़रिया कुछ और ही था। उनका रंग निखारने के लिए उन्हें किरणित किया गया था ताकि उनकी कीमत बढ़ जाए। हांग-कांग के एक ज़ेवरात मेले में एक और पत्थर मिला जो एशियाई विकिरण सुरक्षा सीमा से २५ गुना ऊपर था। “अब तक यह समस्या केवल कैट्‌स-आई क्रिसोबॆरिल के साथ उठी है,” पत्रिका कहती है।

पढ़ने की आदत

ब्राज़ीलवासी साल में औसतन २.३ पुस्तकें पढ़ते हैं, ज़्हॉर्नल डा टार्डा रिपोर्ट करता है। स्कूल छोड़ने के बाद, अधिकतर ब्राज़ीलवासियों का पुस्तकों से कोई संपर्क नहीं रहता। संस्कृति मंत्रालय का सचिव, ओट्टाव्यानो डी फ्योरे कहता है, ‘असल समस्या यह है कि ब्राज़ील में पढ़ी जानेवाली ६० प्रतिशत पुस्तकें स्कूल में बच्चों की पाठ्य-पुस्तकें हैं। बाकी की ४० प्रतिशत में से अधिकतर धार्मिक और विशेष-अध्ययन पुस्तकें, लैंगिक-विषय पुस्तकें या स्वयं-सीखिए पुस्तकें हैं,’ अखबार कहता है। पढ़ने की आदत के बारे में डी फ्योरे कहता है: “बच्चे परिवार में, स्कूल में और टीवी के पास इकट्ठा होते हैं। यदि परिवार में किसी को पढ़ना नहीं पसंद, तो वहाँ उनको कभी कोई प्रोत्साहन नहीं मिलेगा।” वह आगे कहता है: “जहाँ तक टीवी की बात है, पढ़ने का प्रोत्साहन देना प्रमुख चैनलों की आखिरी चिंता है।”

सफर में बिताए साल

इटली के मुख्य नगरों के निवासी अपने घर से काम पर या स्कूल आने-जाने में बहुत समय बिताते हैं। कितना समय? इटली के एक पर्यावरण संघ, लेगामब्यॆन्टे के अनुसार, नेपल्ज़ के नागरिक हर दिन १४० मिनट सफर करते हैं। ७४ वर्ष की औसत आयु मानें तो एक नेपल्ज़वासी अपने जीवन के ७.२ साल सफर करते-करते बरबाद कर देगा। एक रोमवासी, जो हर दिन १३५ मिनट सफर करता है, ६.९ साल बरबाद कर देगा। दूसरे नगरों में भी स्थिति लगभग इतनी ही बुरी है। बलोन्या के लोगों के ५.९ साल और मिलन के लोगों के ५.३ साल बरबाद हो जाएँगे, अखबार ला रेपूबलीका रिपोर्ट करता है।

गरीबी और पर्यावरण

आर्थिक विकास के बावजूद संसार भर में १.३ अरब से ज़्यादा लोग अभी भी प्रति दिन ८० रुपये से कम में गुज़ारा कर रहे हैं। यूएन की एक रिपोर्ट बताती है कि गरीबी हटने का नाम नहीं लेती बल्कि और भी बढ़ती जा रही है। आज एक अरब से ज़्यादा लोग उससे कम कमाते हैं जितना कि लोग २०, ३० या ४० साल पहले कमाते थे। बदले में, यह पर्यावरण के विनाश में योग देता है क्योंकि “गरीबी माँग करती है कि प्राकृतिक संसाधनों का तात्कालिक उपयोग किया जाए जो दीर्घकालिक संरक्षण के किसी भी प्रयास को निष्फल करता है,” यूनॆस्को सोर्सॆस पत्रिका कहती है। “वर्तमान दरों पर, करिबियन के जंगल ५० साल से पहले पूरी तरह गायब हो जाएँगे . . . राष्ट्रीय स्तर पर स्थिति और भी बदतर है: फिलीपींस के जंगल ३० साल, अफगानिस्तान के १६ साल और लॆबनान के १५ साल में खत्म हो जाएँगे।”

घूसखोरी खत्म करने की कोशिश

चीन में इसे ह्वेलू कहते हैं; केन्या में कीटू कीडॉन्गो। मॆक्सिको में यह ऊना मॉर्डीडा कहलाती है; रूस में फ्स्याटका; और मध्य पूर्व में बक्शीश। अनेक राष्ट्रों में घूसखोरी जीने का एक तरीका है और कभी-कभी तो यह सौदा करने, अमुक चीज़ें हासिल करने, यहाँ तक कि न्याय पाने का एकमात्र तरीका होती है। लेकिन हाल में ३४ राष्ट्रों ने एक संधि पर हस्ताक्षर किये हैं कि अंतर्राष्ट्रीय व्यापार लेन-देन में घूसखोरी खत्म की जाए। इनमें आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन के २९ सदस्यों के साथ-साथ अर्जेंटीना, चिली, ब्राज़ील, बल्गारिया और स्लोवाकिया भी हैं। विश्‍व के प्रमुख आर्थिक संगठन—विश्‍व बैंक और अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय कोष—भी सरकारी भ्रष्टाचार के विरुद्ध कदम उठा रहे हैं। ये कदम तब उठाए गये जब विश्‍व बैंक के एक सर्वेक्षण ने दिखाया कि ६९ देशों में ४० प्रतिशत व्यवसाय घूस दे रहे थे। ये दो संगठन अब उन देशों में आर्थिक मदद बंद करने की अनुमति देते हैं जो भ्रष्टाचार को अनदेखा करते हैं।

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