वॉचटावर ऑनलाइन लाइब्रेरी
वॉचटावर
ऑनलाइन लाइब्रेरी
हिंदी
  • बाइबल
  • प्रकाशन
  • सभाएँ
  • g98 12/8 पेज 10-13
  • पुल—कैसी होती ज़िंदगी उनके बिना?

इस भाग के लिए कोई वीडियो नहीं है।

माफ कीजिए, वीडियो डाउनलोड नहीं हो पा रहा है।

  • पुल—कैसी होती ज़िंदगी उनके बिना?
  • सजग होइए!–1998
  • उपशीर्षक
  • मिलते-जुलते लेख
  • पुराने ज़माने के पुल
  • पुल और हमारी बदलती ज़रूरतें
  • अलग-अलग तरह के पुल
  • टावर ब्रिज जहाँ से लंदन का रास्ता खुलता है
    सजग होइए!–2007
  • वास्को दा गामा के नाम का पुल
    सजग होइए!–1998
  • एक पुल जिसे कई बार बनाया गया
    सजग होइए!–2008
  • छोटा द्वीप बना व्यस्त हवाई अड्डा
    सजग होइए!–1998
और देखिए
सजग होइए!–1998
g98 12/8 पेज 10-13

पुल—कैसी होती ज़िंदगी उनके बिना?

“काबिल-ए-तारीफ है वो पुल, जिस पर पड़े तेरे कदम।”—१९वीं सदी का अंग्रेज़ नाटककार, जॉर्ज कोलमन।

क्या आपको याद है पिछली बार कब आपने कोई ब्रिज पार किया था? क्या आपने कभी उस पर ध्यान भी दिया? लाखों-करोड़ों लोग हर रोज़ ब्रिज पार करते हैं। हम तो उस पर ध्यान भी नहीं देते। हम बस अपनी मस्ती में ब्रिज पार कर जाते हैं, या उसके नीचे से गुज़र जाते हैं। मगर क्या आपने कभी रुककर सोचा है कि अगर ब्रिज न होते तो क्या होता?

कुदरत में ऐसी कई नदियाँ हैं, घाटियाँ हैं, दर्रे हैं जिन्हें पार करना लगभग नामुमकिन है। मगर ब्रिज की बदौलत, हज़ारों सालों से इंसान और जानवर उनको पार करते आ रहे हैं। और यह तो अंदाज़ा भी नहीं लगाया जा सकता कि अगर काइरो, लंदन, मॉस्को, न्यू यॉर्क, सिड्‌नी इत्यादि जैसे शहरों में ब्रिज नहीं होते, तो वो शहर आज कैसे होते। वाकई, ब्रिज का, या पुलों का बहुत ही पुराना इतिहास है।

पुराने ज़माने के पुल

आज से करीब २,५०० साल पहले की बात है। बाबुल की महारानी नाइटोक्रिस ने इफ्रात नदी पर एक ब्रिज बनाया था। क्यों? यूनानी इतिहासकार हेरोडोटस इसका जवाब देता है: “[बाबुल] का देश एक नदी की वज़ह से दो अलग-अलग भागों में बँटा हुआ था। पुराने राजा-महाराजाओं के राज में, अगर किसी को इस भाग से उस भाग में जाना होता था, तो उसे नाव से जाना पड़ता था; और मुझे लगता है नाव से सफर करना बहुत ही मुश्‍किल रहा होगा।” ब्रिज बनाने के लिए नाइटोक्रिस ने लकड़ियों, ईंटों, चट्टानों, लोहे, और सीसे का इस्तेमाल किया, और पुराने ज़माने में दुनिया भर में मशहूर नदी पर पुल बनवाया।

कभी-कभी तो पुल की वज़ह से दुनिया का इतिहास बदल गया है। जब पर्शिया के राजा महान दारा ने अपनी फौज के साथ सीथियंस पर हमला बोलने के लिए कूच किया, तो वह एशिया से यूरोप जाने के लिए सबसे छोटा रास्ता लेना चाहता था। सो इसका मतलब यह था कि ६,००,००० लोगों की अपनी सेना को बॉस्पोरस खाड़ी पार कराना। नाव से वह स्ट्रेट पार करना खतरे से खाली नहीं था क्योंकि घना कोहरा छाया हुआ था, और नदी की लहरें भी कम कहर नहीं ढा रही थीं। सो दारा ने सभी नावों को एकसाथ बाँध दिया और ३,००० फीट लंबा, पानी पर तैरनेवाला एक पुल तैयार हो गया। आज आपको उतनी मेहनत नहीं करनी पड़ेगी जितनी दारा ने खाड़ी पार करने के लिए की थी। आप वहाँ आराम से अपनी गाड़ी में बैठकर, इस्तानबुल, टर्की के बॉस्पोरस पुलों से वही दूरी दो मिनट के अंदर तय कर सकते हैं।

अगर आप एक बाइबल विद्यार्थी हैं, तो आपको वह घटना याद होगी जब दुनिया का इतिहास बदल गया था क्योंकि वहाँ पुल नहीं था। याद कीजिए जब बाबुल के राजा नबूकदनेस्सर ने सूर के द्वीप को घेर लिया था तब क्या हुआ था। १३ साल तक उसने शहर पर कब्ज़ा करने की कोशिश की। मगर वह कब्ज़ा कर नहीं सका। इसकी एक वज़ह यह भी थी कि उस देश को सूर द्वीप से जोड़नेवाला कोई पुल नहीं था। (यहेजकेल २९:१७-२०) उस शहर पर अगले तीन सौ साल तक कब्ज़ा नहीं किया गया था। मगर आखिर में सिकंदर महान ने समुद्र में पत्थर-मिट्टी डालकर उस द्वीप तक एक रास्ता बनाया।

पहली सदी में तो रोम तक जाने के लिए कई सड़कें थीं, मगर अपने साम्राज्य को एकजुट रखने के लिए रोमियों को पुलों की भी ज़रूरत पड़ी। रोम के इंजिनियरों ने चट्टानों का इस्तेमाल करके मेहराबदार (आर्क) पुल बनाए। इन चट्टानों का वज़न तकरीबन आठ टन तक था। और ये पुल इतनी कुशलता के साथ बनाए गए थे कि उनमें से कुछ पुल आज भी, यानी दो हज़ार साल बाद भी मौजूद हैं। उनके जलमार्ग और बाँध भी असल में पुल ही थे।

मध्य युग के दौरान पुलों का इस्तेमाल सुरक्षा के लिए बड़ी-बड़ी दीवारों के तौर पर भी किया जाता था। सा.यु. ९४४ में, सैक्सन लोगों ने लंदन की थेम्स नदी पर लकड़ी का पुल बनाया ताकि डैनिश लोगों के हमले को रोक सकें। करीब तीन सौ साल बाद इस लकड़ी के पुल की जगह ओल्ड लंडन ब्रिज बनाया गया, जिसका नाम इतिहास में और स्कूल में बच्चों की कविताओं में बार-बार आता है।

जब रानी एलिज़ाबॆथ I इंग्लैंड की रानी बनीं, तब ओल्ड लंडन ब्रिज चट्टानों से बनी सिर्फ एक दीवार नहीं थी। उसी पुल पर इमारतें बन गयी थीं। मेन फ्लोर पर दुकानें थीं। और ऊपर? वहाँ पर अमीर सौदागर और राज दरबार के सदस्य भी रहा करते थे। लंडन ब्रिज लंदन के जन-जीवन का एक अहम हिस्सा बन चुका था। वहाँ दुकानों और मकानों से जो किराया वसूल किया जाता था, उसे उस पुल की देखभाल करने में इस्तेमाल किया जाता था। और हाँ, लंदन ब्रिज से जाने का टैक्स लगता था!

जबकि यूरोप के लोग लकड़ी और पत्थर के पुल बनाने में मशगूल थे, दक्षिण अमरीका के इंका लोग रस्सों से पुल बना रहे थे। इन पुलों की एक जानी-मानी मिसाल है सैन लुईस रे का पुल जो पेरू में आपूरीमाक नदी पर बनाया गया था। इंका लोग पौधों के रेशों को जोड़कर, उन्हें एक-दूसरे के साथ गूँथकर मोटे-मोटे रस्से बनाते थे जो मनुष्य के शरीर जितने मोटे होते थे। फिर इन रस्सों को पत्थर के खंभों से बाँधकर नदी के इस पार से उस पार तक खींचा जाता था। फिर दोनों तरफ रस्सों को अच्छी तरह बाँध लेने के बाद लकड़ी के तख्ते बिछाए जाते थे जिससे चलने के लिए रास्ता बन जाता था। उस पुल की देखभाल करनेवाले लोग वहाँ पर हर दो साल में रस्से बदलते थे। उस पुल को इतनी अच्छी तरह बनाया गया और उसकी देखभाल की गयी थी कि यह पाँच सौ साल तक टिका रहा!

पुल और हमारी बदलती ज़रूरतें

पुलों को भूकंपों, तेज़ हवाओं, और तापमान के बदलावों में भी टिका रहना चाहिए। और जैसे हम देख चुके हैं, अभी तक पुल बनाने के लिए इंजिनियर लकड़ियों, ईंटों या पत्थरों का ही इस्तेमाल करते थे। मगर जब १९वीं सदी के आखिर में गाड़ियाँ इस्तेमाल होने लगीं, तब मौजूदा पुलों को सुधारने और बड़ा करने की ज़रूरत पड़ी, ताकि वे ज़्यादा गाड़ियों का भार उठा सकें।

और जब स्टीम इंजनवाली रेलगाड़ी बनी, तब पुल बनाने और उनकी रचना करने में काफी तेज़ी और सुधार आया। रेलगाड़ी के लिए जो रास्ता सबसे सुविधाजनक था, उस रास्ते में अकसर बड़ी-बड़ी घाटियाँ या गहरी खाइयाँ पड़ती थीं। क्या एक ऐसा पुल बनाया जा सकता था जो उस खाई को पाटता और मालगाड़ी के बढ़ते जा रहे डिब्बों का वज़न उठा सकता था? तब उस समय के लिए कास्ट लोहे से पुल बनने लगे। १९वीं सदी का सबसे मशहूर पुल नॉर्थ वेल्स की मनाई खाड़ी पर बना सस्पेंशन (झूला) पुल था। इस पुल की रचना स्कॉटलैंड के इंजीनियर थॉमस टॆलफर्ड ने की थी और यह १८२६ में बनकर तैयार हो गया था। इसकी लंबाई ५७९ फीट थी और अब भी इसका इस्तेमाल हो रहा है! मगर कास्ट लोहा नाज़ुक साबित हुआ और पुल का टूटना एक आम बात बन गयी। फिर १८वीं सदी के आखिर में इस्पात (स्टील) बनने लगा। इस धातु में ऐसे गुण थे जो ज़्यादा लंबे और सुरक्षित पुल बनाने के लिए अच्छे थे।

अलग-अलग तरह के पुल

सात खास किस्म के पुल होते हैं। (ऊपर बक्स देखिए।) यहाँ हम दो तरह के पुलों की चर्चा करेंगे।

कैंटिलिवर पुल के लिए दो बड़े-बड़े टावर होते हैं, जो नदी की दोनों तरफ होते हैं। हर टावर में बीम्स फँसाकर, थोड़ा-थोड़ा आगे बढ़ाया जाता है। ठीक जैसे स्विमिंग पूल में डाइविंग बोर्ड को किनारे में फँसाया जाता है। फिर पुल को पूरा करने के लिए, उन बीम्स को बीच में रिजिड स्पैन से जोड़ा जाता है।

जहाँ नदियाँ बहुत ज़ोर से बहती हैं, या जहाँ नदी का तल बहुत ही नरम होता है, वहाँ अक्सर कैंटिलिवर पुल बनाए जाते हैं क्योंकि पुल को सहारा देने के लिए नदी के बीच में ही खंभा बनाने की ज़रूरत नहीं पड़ती। क्योंकि ये कैंटिलिवर पुल बहुत ही मज़बूत होते हैं, इसलिए ट्रेन जैसे भारी गाड़ियों के लिए ये पुल बहुत अच्छे साबित होते हैं।

शायद आपने सरकस में कलाबाज़ों को तनी हुई रस्सी पर चलते हुए देखा होगा। आपको यह जानकर ताज्जुब होगा कि वो असल में एक पुल पर चल रहा है—एक संस्पेंशन पुल पर! आजकल कुछ सस्पेंशन पुलों में और उस तनी हुई रस्सी में, जिस पर कलाबाज़ चलता है, ज़्यादा फर्क नहीं होता। सस्पेंशन पुल में एक केबल होता है जो दोनों तरफ से बंधा और कसा हुआ होता है, और जिसमें एक टोकरा-सा लटका हुआ होता है। पैसेंजर उस बास्केट में बैठकर किसी रस्सी वगैरह के बल से बास्केट को आगे की ओर धकेलता रहता है और पुल पार करता है। दुनिया भर में लोग हमेशा रस्सी के पुल भी काफी इस्तेमाल करते हैं।

बेशक, आप तो रस्सी से बने पुल पर गाड़ी चलाने के बारे में खयालों में भी नहीं सोचेंगे। वैसे, लोहे की चेन और स्टील के बने केबल जब से बनने लगे हैं, तब से बड़े-बड़े सस्पेंशन ब्रिज भी बनने लगे हैं जिन पर से भारी ट्रैफिक भी आ-जा सकती है। आजकल के सस्पेंशन पुलों की पूरी लंबाई ४,००० फीट, या उससे ज़्यादा होती है। अकसर, किसी सस्पेंशन पुल में स्टील के बने दो खंभे होते हैं। दोनों ही टावर के लिए सहारा होते हैं। ये स्टील के केबल हज़ारों वायर से बने होते हैं। इन केबलों को टावर से और नीचे के पुल से जोड़ा जाता है। यही केबल ट्रैफिक का और पुल का पूरा भार उठाते हैं। अगर इनका ठीक से निर्माण किया जाए, तो ये सस्पेंशन पुल दुनिया में सबसे सुरक्षित पुल साबित होते हैं।

सो पिछली बार तो आप ने पुल पर इतना ध्यान नहीं दिया हो। लेकिन, अगर आप आइंदा किसी पुल को पार करें, तो अपने आप से पूछिए: ‘मुझे इस पुल के बारे में क्या मालूम है? इसे कब बनाया गया?’ उसे ध्यान से देखिए। क्या वो कैंटिलिवर है, सस्पेंशन है, या किसी और तरह का पुल है? इसी खास डिज़ाइन को क्यों चुना गया?

और फिर, जब आप पुल पार कर रहे हों, तो ज़रा नीचे नज़र डालिए और सोचिए, ‘अगर ये पुल न होता तो क्या होता?’

[पेज 12 पर बक्स/तसवीर]

ब्रिज के डिज़ाइन

१. गर्डर पुल: अकसर इन्हें हाइवे के लिए इस्तेमाल किया जाता है। ये गर्डर खंभों पर टिके होते हैं। इनकी लंबाई १,००० फीट तक हो सकती है।

२. ट्रस ब्रिज: इन्हें तिकोन जैसी कैंचियों के सहारे टेका जाता है। अकसर इन पुलों को रेलमार्ग के लिए इस्तेमाल किया जाता है। इन्हें खाइयाँ, नदियाँ, या दूसरी बाधाओं को पार करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है।

३. मेहराबदार (आर्क) पुल: ऐसे पुल मेहराबों से बने होते हैं। यह एक सबसे पुराने किस्म का पुल है। रोम के लोग अपने जलमार्ग और बाँधों में ऐसे मेहराब इस्तेमाल करते थे। इन्हें बंद करने के लिए मेहराबों में डाट का पत्थर लगा रहता था। इनमें से कई आज तक सही-सलामत हैं।

४. केबल-स्टेएड ब्रिज: ये दिखने में सस्पेंशन ब्रिज की तरह ही होते हैं। फर्क सिर्फ इतना होता है कि इनमें केबल सीधे टावर से जुड़े हुए होते हैं।

५. मुवेबल ब्रिज: इन्हें ऊपर उठाया जा सकता है या जहाज़ को पार होने के लिए किसी भी तरफ घुमाया जा सकता है। लंदन का टावर ब्रिज इसकी अच्छी मिसाल है।

६. कैंटिलिवर ब्रिज: इनकी चर्चा हमारे लेख में की गयी है।

७. सस्पेंशन ब्रिज: इनकी चर्चा हमारे लेख में की गयी है।—वर्ल्ड बुक एन्साइक्लोपीडिया, १९९४.

[पेज 13 पर चार्ट]

कुछ मशहूर पुल

सस्पेंशन

स्टोरबेल्ट डॆनमार्क ५,३२० फीट

ब्रुकलिन अमरीका १,५९५ फीट

गोल्डन गेट अमरीका ४,२०० फीट

जीयाँग्यिन याँग्ट्‌ज़े चीन ४,५४४ फीट

कैंटिलिवर

फोर्थ (दो स्पैन) स्कॉटलैंड दोनों १,७१० फीट

क्विबॆक कनाडा १,८०० फीट

हावड़ा भारत १,५०० फीट

स्टील आर्क

सिडनी हार्बर ऑस्ट्रेलिया १,६५० फीट

बर्चीनफ ज़िंबाबवे १,०८० फीट

केबल-स्टेएड

पों दे नोरमान्दी फ्रांस २,८०८ फीट

स्कारंसॆने नॉर्वे १,७३९ फीट

[पेज 10 पर तसवीर]

अल्मारीया, स्पेन में पुराने ज़माने के मेहराबदार पुल के ऊपर आज का गर्डर पुल

[पेज 13 पर तसवीर]

ब्रुकलिन ब्रिज, न्यू यॉर्क, अमरीका (सस्पेंशन)

[पेज 13 पर तसवीर]

टावर ब्रिज, लंदन, इंग्लैंड (मुवेबल)

[पेज 13 पर तसवीर]

सिडनी हार्बर ब्रिज, ऑस्ट्रेलिया (मेहराबदार)

[पेज 13 पर तसवीर]

सेतु ओहाशी, जापान (केबल-स्टेएड)

    हिंदी साहित्य (1972-2025)
    लॉग-आउट
    लॉग-इन
    • हिंदी
    • दूसरों को भेजें
    • पसंदीदा सेटिंग्स
    • Copyright © 2025 Watch Tower Bible and Tract Society of Pennsylvania
    • इस्तेमाल की शर्तें
    • गोपनीयता नीति
    • गोपनीयता सेटिंग्स
    • JW.ORG
    • लॉग-इन
    दूसरों को भेजें