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आज दुनिया के आदर्श कैसे हैं?

अप्रैल, 1999 की बात है। अमरीका के कोलोराडो राज्य में डैनवर शहर के पास, सुबह के वक्‍त लंबे काले कोट पहने दो लड़के लिट्टलटन के हाई स्कूल में घुस गए और दनादन गोलियाँ बरसानी शुरू कर दीं। उन्होंने कई बम भी फेंके। इस हादसे में 12 छात्र और एक टीचर मारा गया और 20 से ज़्यादा लोग ज़ख्मी हो गए। इसके बाद इन कातिलों ने खुद को गोली मारकर अपनी जान ले ली। इनकी उम्र सिर्फ 17 और 18 साल थी और बाद में मालूम पड़ा कि स्कूल के कुछ लोगों से सख्त नफरत होने की वज़ह से इन लड़कों ने ऐसा किया था।

अफसोस की बात है कि हिंसा की ऐसी वारदातें इक्का-दुक्का जगह नहीं बल्कि पूरी दुनिया में हो रही हैं। शायद ही कोई दिन ऐसा जाता है जब अखबार, रेडियो या टेलीविज़न पर हिंसा की वारदात की कोई खबर ना हो। अमरीका के शिक्षा विभाग के मुताबिक, सन्‌ 1997 के दौरान स्कूलों में हिंसा की करीब 11,000 वारदातें हुईं जिनमें हथियारों का इस्तेमाल किया गया। सन्‌ 1997 के दौरान, जर्मनी के हैम्बर्ग शहर में हिंसा की वारदातें 10 प्रतिशत बढ़ गईं। इनमें गिरफ्तार होनेवालों में से 44 प्रतिशत की उम्र 21 से कम थी।

हिंसा के अलावा, आज दुनिया भर में फैले भ्रष्टाचार को ही ले लीजिए। इसमें सबसे पहले मंत्री और सरकारी अफसरों का नाम लिया जाता है। मिसाल के तौर पर यूरोपियन यूनियन (EU) के सरकारी अफसरों को ही लीजिए। सन्‌ 1997 में EU में भ्रष्टाचार की वज़ह से यूरोप के देशों को करीब 1.4 अरब डॉलर का नुकसान उठाना पड़ा। EU के अफसरों पर भ्रष्टाचार के आरोपों में छोटी-मोटी रिश्‍वत लेने के मामलों से लेकर बड़ी-बड़ी सब्सिडी देने के लिए मोटी रिश्‍वत लेने के आरोप भी शामिल थे। इसके अलावा हथियारों और ड्रग्स की तस्करी करनेवाले माफिया के लोगों ने भी इन अफसरों का मुँह बंद करने के लिए बड़ी रिश्‍वत दी थी। भ्रष्टाचार की वज़ह से, सन्‌ 1999 में पूरी EU कमीशन को ही इस्तीफा देना पड़ा।

लेकिन भ्रष्टाचार सिर्फ सरकारी अफसरों में ही नहीं है, यह आम लोगों में भी फैलता जा रहा है। यूरोप में बहुत-सी कंपनियाँ और कारोबार रजिस्टर्ड नहीं हैं, ना ही ये सरकार को टैक्स भरते हैं। ऐसे ही रूस में हर दूसरा धँधा गैर-कानूनी तरीके से चल रहा है। इसी तरह, अमरीका में कंपनियों को हर साल 400 अरब डॉलर का नुकसान उठाना पड़ता है क्योंकि उनके बहुत से कर्मचारी चोर हैं।

चालचलन के मामले में भी आज इंसान हद से ज़्यादा गिर गया है। आज छोटे बच्चों को भी वासना का शिकार बनाया जा रहा है। इंटरनॆट पर बच्चों की नंगी तस्वीरें दिखाई जाती हैं। ‘बच्चों की रक्षा कीजिए’ संस्था के मुताबिक सन्‌ 1997 में इंटरनॆट पर ऐसी तस्वीरें दिखानेवाली सैकड़ों वॆब साइट मौजूद थीं और हर दिन बड़ी तादाद में और वॆब साइट शामिल कर दी जाती हैं। ये वॆब साइट ऐसे देशों में तैयार की जाती हैं जहाँ सरकार इस घिनौने काम को रोकने में नाकाम है।

क्या पुराने ज़माने में हालात बेहतर थे?

लोग यह सब देखकर इतने परेशान हो गए हैं कि वे पुराने वक्‍त को याद करके आहें भरते हैं। वे कहते हैं कि ‘हमारे बाप-दादाओं का ज़माना कितना अच्छा था, उस वक्‍त लोगों में कितना प्यार था।’ वे शायद कहते हों ‘हमारे बुज़ुर्ग बताते थे कि उस वक्‍त कितने चैन की ज़िंदगी थी, हर आदमी ईमानदार था और हर कोई शरीफ इंसान की इज़्ज़त करता था। लोग मेहनती थे, बुरे वक्‍त में एक-दूसरे की मदद करते थे, परिवार में सब एकसाथ मिलकर रहते थे और माँ-बाप अपनी औलाद को बहुत प्यार करते थे। बच्चे भी खेती-बाड़ी करने या कारोबार चलाने में अपने पिता का हाथ बटाँते थे।’

तो इससे यह सवाल पैदा होता है: क्या आज के मुकाबले बीते ज़माने के लोगों में ऊँचे आदर्श थे? या क्या हम बीते ज़माने को इतना अच्छा समझते हैं कि हमें उस ज़माने की बुराइयाँ नज़र ही नहीं आतीं? आइये देखें कि इतिहासकार और समाज का अध्ययन करनेवाले इन सवालों का जवाब किस तरह देते हैं।

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“ऊँचे आदर्श”

“ऊँचे आदर्शों” से हमारा मतलब है अच्छा चालचलन, ईमानदारी, सच्चाई जैसे गुण। ऊँचे आदर्शों पर चलने का मतलब यह भी है, बदचलनी, व्यभिचार और दूसरे गंदे कामों से दूर रहना।

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