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  • बाइबल के समय में युवा सेवक
  • प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1991
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  • दाऊद, योशिय्याह, और यिर्मयाह
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    प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1991
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    प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—2005
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    प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1995
और देखिए
प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1991
w91 9/1 पेज 4-7

बाइबल के समय में युवा सेवक

बाइबल कई बढ़िया युवा लोगों के बारे में बताती है जिन्होंने परमेश्‍वर के प्रति अपनी सेवा को संजीदगी से लिया और जिन्हें ऐसा करने की वजह से बहुत सारे आशीर्वाद दिए गए। चाहे हम जवान हों या बूढ़े हो गए हों और हमारे बाल पक गए हों, इन बढ़िया बाइबलीय मिसालों से बड़ा प्रोत्साहन मिल सकता है।

यूसुफ सिर्फ़ १७ साल का था जब उसे मिस्र में एक ग़ुलाम के तौर से बेचा गया। वहाँ, अपने परिवार से बहुत दूर और उन लोगों की नज़रों से दूर, जो उसे जानते थे, यूसुफ ने अपनी ख़राई साबित की। जब पोतीपर की पत्नी ने यूसुफ का शील भंग करने की कोशिश की, उसने कहा: “सो भला, मैं ऐसी बड़ी दुष्टता करके परमेश्‍वर का अपराधी क्योंकर बनूँ?” उस समय के सबसे शक्‍तिशाली राजा, महान्‌ फिरौन के सामने भी, यूसुफ ने फिरौन के सपनों के अर्थ के लिए परमेश्‍वर को श्रेय देने का मौक़ा लिया। उसे प्रचुर मात्रा में आशीर्वाद दिया गया। परमेश्‍वर ने उसे दोनों, मिस्रियों और अपने परिवार को अकाल के कारण उत्पन्‍न मृत्यु से बचाने और अपने पिता, याकूब, तथा उसके घराने को मिस्र ले आने के लिए इस्तेमाल किया।—उत्पत्ति ३७:२; ३९:७-९; ४१:१५, १६, ३२.

मूसा और अन्य, जो युवावस्था में विश्‍वसनीय थे

फिरौन की बेटी ने मूसा को अपने बेटे के तौर से अपना लिया था, लेकिन मूसा के माता-पिता उसे सच्चे परमेश्‍वर के बारे में सिखा सके थे। बाइबल कहती है कि जब मूसा सयाना हो गया, उसने “फिरौन की बेटी का पुत्र कहलाने से इन्कार किया। इसलिए कि उसे पाप में थोड़े दिन के सुख भोगने से परमेश्‍वर के लोगों के साथ दुख भोगना और उत्तम लगा।” परमेश्‍वर ने मूसा को मिस्र से बाहर लाने, सीनाई में व्यवस्था प्राप्त करने, और बाइबल का एक मुख्य अंश लिखने के लिए इस्तेमाल किया। आपकी उम्र चाहे जो हो, क्या आप मूसा की तरह परमेश्‍वर की सेवा करने के लिए एक संकल्प विकसित कर रहे हैं?—इब्रानियों ११:२३-२९; निर्गमन २:१-१०.

धर्मशास्त्र हमें ‘बालकों’ के बारे में बताते हैं, जो जाति के बाक़ी लोगों के साथ सुनते थे, जब परमेश्‍वर की व्यवस्था इस्राएल को पढ़कर सुनाई जाती थी। (व्यवस्थाविवरण ३१:१०-१३) नहेमायाह के दिनों में “जितने सुनकर समझ सकते थे,” वे सब व्यवस्था को सुनने के लिए “भोर से दोपहर तक” खड़े रहे। (नहेमायाह ८:१-८) अगर नन्हे बच्चों ने सब कुछ नहीं समझा, तब भी वे यह समझ सकते थे कि उन्हें यहोवा परमेश्‍वर से प्रेम करना था, उनकी उपासना करनी थी और उनका आज्ञापालन करना था। आपकी उम्र चाहे जो हो, क्या आप ने सम्मेलनों और सभाओं में ध्यान से सुना है, जहाँ परमेश्‍वर के वचन पर चर्चा की गयी है? क्या आपने उन नन्हे इस्राएलियों के जैसे, उनकी आज्ञाओं का पालन करने का महत्त्व सीखा है?

दाऊद, योशिय्याह, और यिर्मयाह

परमेश्‍वर ने आठ भाइयों में से सबसे छोटे, दाऊद को एक ख़ास सेवा के लिए चुना और उसके बारे में कहा: “मुझे एक मनुष्य यिशै का पुत्र दाऊद, मेरे मन के अनुसार मिल गया है, वही मेरी सारी इच्छा पूरी करेगा।” परमेश्‍वर ने उसे अपनी प्रजा की ‘चरवाही करने’ के लिए चुना, और कई सालों तक यहोवा के लिए अपना प्रेम साबित करते हुए, दाऊद ने वह सेवा पूरा की। उसने भजन संहिता के ७० से ज़्यादा भजन लिखे और यीशु मसीह का एक पूर्वज बन गया। आप चाहे जवान हों या बूढ़े, क्या आप दाऊद की तरह, परमेश्‍वर के मार्गों की क़दर करते हैं, और उन बातों को पूरा करते हैं जिनकी वह इच्छा करते हैं?—प्रेरितों के काम १३:२२; भजन ७८:७०, ७१; १ शमूएल १६:१०, ११; लूका ३:२३, ३१.

योशिय्याह सिर्फ़ आठ साल की उम्र में राजा बन गया। तक़रीबन १५ साल की उम्र में, जब “वह लड़का ही था,” वह “अपने मूलपुरुष दाऊद के परमेश्‍वर की खोज करने लगा।” २० साल पूरा करने से पहले ही, योशिय्याह ने झूठी उपासना के खिलाफ एक अभियान चलाया। बाद में, उसने मंदिर की मरम्मत करवायी, और उसने देश में सच्ची उपासना को पुनःस्थापित किया। हम पढ़ते हैं: “उसके जीवन भर उन्हों ने अपने पूर्वजों के परमेश्‍वर यहोवा के पीछे चलना न छोड़ा।” हम सब योशिय्याह के जैसे बन तो नहीं सकते, लेकिन हमारी उम्र चाहे जो हो, हम परमेश्‍वर की सेवा ज़रूर कर सकते हैं और झूठी उपासना के ख़िलाफ़ दृढ़ खड़ा रह सकते हैं।—२ इतिहास ३४:३, ८, ३३.

सर्वशक्‍तिमान परमेश्‍वर ने यिर्मयाह से कहा: “गर्भ में रचने से पहले ही मैं ने तुझ पर चित्त लगाया, और उत्पन्‍न होने से पहले ही मैं ने तुझे अभिषेक किया; मैं ने तुझे जातियों का भविष्यवक्‍ता ठहराया।” यिर्मयाह ने एतराज़ किया कि वह एक भविष्यवक्‍ता बनने के लिए तो बहुत ही छोटा था: “हाय, प्रभु यहोवा! देख, मैं तो बोलना ही नहीं जानता, क्योंकि मैं लड़का ही हूँ।” यहोवा ने जवाब दिया: “मत कह कि मैं लड़का हूँ, क्योंकि जिस किसी के पास मैं तुझे भेजूँ वहाँ तू जाएगा, और जो कुछ मैं तुझे आज्ञा दूँ वही तू कहेगा।” ४० से ज़्यादा सालों तक यिर्मयाह ने वही किया, और जब वह रुकना चाहता था, तब भी वह रुक न सका। परमेश्‍वर का वचन “मानो [उसकी] हड्डियों में धधकती हुई आग” बनी। उसे बस बोलना ही पड़ा! आपकी उम्र चाहे जो भी हो, क्या आप उस क़िस्म का विश्‍वास विकसित कर रहे हैं, जो यिर्मयाह को था, और परमेश्‍वर की सेवा में उसी रीति से आगे बढ़ रहे हैं, जैसे वह बढ़ा?—यिर्मयाह १:४-८; २०:९.

दानिय्येल, यीशु, और तीमुथियुस

क्या आपने दानिय्येल के बारे में नहीं सुना? वह २० साल से काफ़ी कम उम्र का रहा होगा जब उसे दूसरे “जवानों” के साथ, क़ैदियों के तौर से बाबेलोन के राजा, शक्‍तिशाली नबूकदनेस्सर, के दरबार में ले जाया गया। दानिय्येल की जवानी के बावजूद, वह परमेश्‍वर का आज्ञापालन करने के लिए कृतसंकल्प था। दानिय्येल और उसके साथियों ने ऐसे भोजन से अपवित्र होना अस्वीकार किया, जो शायद परमेश्‍वर की व्यवस्था को तोड़ता था या जो मूर्तिपूजक विधियों द्वारा दूषित किया गया था। ८० से ज़्यादा सालों तक, दानिय्येल कभी नहीं डगमगाया, और अपनी ख़राई को इस हद तक बनाए रखा कि उसने परमेश्‍वर से प्रार्थना करना बन्द कर देना अस्वीकार किया, हालाँकि इसके परिणामस्वरूप उसे सिंहों के सामने फेंक दिया जाता। क्या आप परमेश्‍वर के लिए अपनी सेवा और अपनी प्रार्थना को उतना गंभीर मानते हैं? आपको मानना चाहिए।—दानिय्येल १:३, ४, ८; ६:१०, १६, २२.

१२ साल की उम्र में, यीशु यरूशलेम के मंदिर में धार्मिक उपदेशकों के बीच बैठे, “उनकी सुनते और उन से प्रश्‍न करते हुए पाया” गया। “और जितने [नन्हे यीशु] की सुन रहे थे, वे सब उस की समझ और उसके उत्तरों से चकित थे।” क्या मंदिर में बड़े-बूढ़ों के एक धर्मशास्त्रीय विचार-विमर्श में आप की दिलचस्पी उतनी ही रही होगी, जितना कि यीशु की थी? क्या आपकी समझ और आपके जवाबों से दूसरे लोगों ने ताज्जुब किया होता? आज, कई जवान गवाहों को, जो अभ्यास करते, ध्यान से सुनते, और मसीही सभाओं में हिस्सा लेते हैं, एक ऐसा धर्मशास्त्रीय ज्ञान है जिससे बड़े-बूढ़े चकित होते हैं।—लूका २:४२, ४६, ४७.

क्या आप तीमुथियुस के जैसे हैं, जिसे बचपन में ही “पवित्र शास्त्र” सिखाए गए थे? जब वह एक नौजवान था, तीमुथियुस कम से कम दो मण्डलियों के “भाइयों में सुनाम था।” प्रेरित पौलुस ने उसे अपने साथ सफ़र करने के लिए चुना, सिर्फ़ एक हमाल बनने के लिए नहीं, परन्तु दूसरों को सिखाने में पौलुस की मदद करने के लिए। क्या आपको ऐसे ख़ास अनुग्रहों के लिए चुना जाएगा? क्या आपकी गतिविधियाँ न सिर्फ़ आप ही की मण्डली में, बल्कि दूसरी मण्डलियों में “सुनाम” हैं?—२ तीमुथियुस ३:१५; प्रेरितों के काम १६:१-४.

आप को किस प्रकार का भविष्य चाहिए?

क्या आज के युवा लोगों के लिए यूसुफ, मूसा, दाऊद और अन्यों के जैसे विश्‍वसनीय होना संभव है? जी हाँ, है। यह सच है कि अनेक युवजन सिर्फ़ मौज करने में दिलचस्पी रखते हैं। लेकिन अन्य युवजन परमेश्‍वर से परिचित होकर और अपने लिए उनकी इच्छा मालूम करके, अपनी युवावस्था को अक्लमन्दी से इस्तेमाल कर रहे हैं। ये लोग बाइबल की भविष्यवाणी पूरा करते हैं: “तेरी प्रजा के लोग तेरे पराक्रम के दिन स्वेच्छाबलि बनते हैं, तेरे जवान लोग . . . ओस के समान तेरे पास हैं।”—भजन ११०:३.

ऐसे बढ़िया युवा लोग अपनी उम्र के हिसाब से कहीं ज़्यादा अक्लमन्दी दिखाते हैं, चूँकि परमेश्‍वर उन्हें अपनी मौजूदा ज़िन्दगी सफ़ल बनाने की मदद कर सकते हैं और साथ ही आनेवाली नयी दुनिया में एक शानदार भविष्य दे सकते हैं। (१ तीमुथियुस ४:८) फिर भी, आजकल का युवा व्यक्‍ति उन युवा व्यक्‍तियों के विश्‍वास के जैसा विश्‍वास कैसे विकसित कर सकता है, जिनका ज़िक्र बाइबल में किया गया है? अगर आप जानना चाहेंगे, तो हम आपको इस पत्रिका के पृष्ठ २७ से शुरु होनेवाले लेख को पढ़ने का निवेदन करते हैं, जिसका शीर्षक है “यहोवा की सेवा में आनन्दित युवजन।”

[पेज 5 पर तसवीरें]

युवा मूसा मिस्र की दौलत से बहक नहीं गया

युवा दाऊद यहोवा के मन के अनुसार था

[पेज 6 पर तसवीरें]

हालाँकि यिर्मयाह को लगा कि वह सिर्फ़ ‘लड़का ही था,’ फिर भी उसने साहस से एक अलोकप्रिय संदेश का प्रचार किया

१२ साल की उम्र में, यीशु ने परमेश्‍वर के वचन के बारे में अपनी समझ से अपने बड़े-बूढ़ों को चकित किया

[पेज 7 पर तसवीरें]

इस्राएल में छोटे बच्चे भी सुनते रहे, जब परमेश्‍वर की व्यवस्था को पढ़कर सुनाया जाता था। क्या आप ऐसा करते हैं?

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