यहोवा से डरो और उनके पवित्र नाम की महिमा करो
“हे प्रभु यहोवा, कौन तुम से न डरेगा? और तेरे नाम की महिमा न करेगा, क्योंकि केवल तू ही वफ़ादार है?”—प्रकाशितवाक्य १५:४, N.W.
१, २. (अ) १९९१ के दौरान यहोवा ने ‘आकाश के झरोखों को खोलकर अपरम्पार आशिष की वर्षा’ किस तरह की? (ब) जीवन के कौन-कौनसे अनुभवों से एक विश्वसनीय मिशनरी “यहोवा का भय मानो,” यह सलाह देने के लिए प्रोत्साहित हुआ? (और १९९१ यिअरबुक, पृष्ठ १८७-९ भी देखें।)
यहोवा ने ‘आकाश के झरोखों को खोलकर अपरम्पार आशिष की वर्षा की है।’ वे शब्द हाल के समय में यहोवा के गवाहों पर बार-बार लागू हो सकते हैं। (मलाकी ३:१०) मिसाल के तौर पर, दुनिया भर आयोजित किए गए ख़ास सम्मेलनों में—दक्षिण अमेरिका में साओ पॉलो (अगस्त १७-१९, १९९०) और ब्यूएनोज़ आइरेज़ से लेकर पूरब में मनिला, टाइपे, और बॅन्गकॉक और पूर्वी यूरोप में बुडापेस्ट, प्राग और ज़ाग्रेब (अगस्त १६-१८, १९९१) तक—बाहर से आए हुए गवाहों और स्थानीय रूप से सम्मेलन में उपस्थित होनेवाले लोगों का उत्साह मसीही भाईचारे में अत्याधिक मात्रा में दर्शाया गया।
२ विदेश से आए हुए सम्मेलन प्रतिनिधियों को उन जगहों में रहनेवाले दीर्घ समय से विश्वस्त गवाहों को मिलना कैसे आनन्द की बात थी! उदाहरण के लिए, बॅन्गकॉक में, फ्रॅन्क ड्यूअर ने—जो उस समय थाइलैंड में एकमात्र राज्य प्रचारक था—अपने ५८ साल की मिशनरी सेवा के बारे में बताया। उसकी गतिविधियाँ पैसिफिक द्वीपों से लेकर दक्षिण पूर्व एशिया तक, और चीन में भी, फैली हुई थीं। उस ने जहाज़ के टूटने, जंगलों में जंगली जानवरों, उष्णकटिबन्धी रोगों, और जापानी युद्ध-नेताओं की क्रूर हुक़ूमत के ख़तरों का सामना किया था। जब उस से पूछा गया कि वे सम्मेलन प्रतिनिधियों को क्या सलाह देगा, उसका जवाब सरल था: “यहोवा से डरो!”
३. हमें ईश्वरीय भय क्यों दर्शाना चाहिए?
३ “यहोवा से डरो!” हम सब के लिए वह हितकर भय विकसित करना कितना महत्त्वपूर्ण है! “बुद्धि का मूल यहोवा का भय है।” (भजन १११:१०) यह भय यहोवा का कोई विकृत डर नहीं। उलटा, यह उनकी विस्मयकारी शान और ईश्वरीय गुणों के लिए एक गहरा आदर है, जो उस अन्तदृष्टि पर आधारित है जो हम परमेश्वर के वचन के अभ्यास के ज़रिए प्राप्त करते हैं। प्रकाशितवाक्य १५:३, ४ में, मूसा और मेम्ने के गीत में यह घोषित किया गया है: “हे प्रभु यहोवा, कौन तुझ से न डरेगा? और तेरे नाम की महिमा न करेगा, क्योंकि केवल तू ही वफ़ादार है?” [N.W.] अपने उपासकों के प्रति वफ़ादारी दिखाकर, यहोवा के पास “जो यहोवा का भय मानते और उसके नाम का सम्मान करते” हैं, “उनके स्मरण के निमित्त उसके सामने एक पुस्तक लिखी” गयी है। उन्हें अनन्त जीवन से प्रतिफलित किया जाता है।—मलाकी ३:१६; प्रकाशितवाक्य २०:१२, १५.
ईश्वरीय भय की जीत होती है
४. कौनसे प्राचीन छुड़ाई से हमें यहोवा का भय मानने के लिए प्रोत्साहित होना चाहिए?
४ जब इस्राएल की जाति फिरौन के मिस्र देश में से निकल आयी, मूसा ने स्पष्ट रूप से दिखाया कि वह सिर्फ़ यहोवा का ही भय मानता था। कुछ देर बाद, इस्राएली लोग लाल सागर और मिस्र की ताक़तवर फ़ौज के बीच फँस गए। वे क्या कर सकते थे? “मूसा ने लोगों से कहा, ‘डरो मत, खड़े खड़े वह उद्धार का काम देखो, जो यहोवा आज तुम्हारे लिए करेगा; क्योंकि जिन मिस्रियों को तुम आज देखते हो, उनको फिर कभी न देखोगे। यहोवा आप ही तुम्हारे लिए लड़ेगा, इसलिए तुम चुपचाप रहो।’” चमत्कारिक रूप से, यहोवा ने पानी के दो भाग किए। इस्राएली लोग समुद्रतल पर से गुज़र गए। फिर पानी नीचे आ गिरा। फ़िरौन की सेना मिटा दी गयी। यहोवा ने उस ईश्वर का भय माननेवाली जाति को बचा लिया, और उसी समय ईश्वर का निरादर करनेवाले मिस्र पर न्यायदण्ड पूरा किया। उसी तरह, आज वह शैतान की दुनिया से अपने ईश्वर का भय माननेवाले गवाहों को छुड़ाने में वफ़ादारी प्रदर्शित करेंगे।—निर्गमन १४:१३, १४; रोमियों १५:४.
५, ६. यहोशू के समय में हुई कौनसी घटनाओं से हमें दिखायी देता है कि हमें मनुष्यों का नहीं, यहोवा का भय मानना चाहिए?
५ मिस्र से निर्गमन करने के बाद, मूसा ने १२ जासूसों को प्रतिज्ञात देश में भेज दिया। विशालकाय बाशिन्दों को देखकर दस जासूस आतंकित हुए और इस्राएल द्वारा उस देश में प्रवेश मना करने की कोशिश की। लेकिन अन्य दो, यहोशू और कालिब, ने बताया: “[यह] अत्यन्त उत्तम देश है। यदि यहोवा हम से प्रसन्न हो, तो हम को उस देश में, जिस में दूध और मधु की धाराएँ बहती हैं, पहुँचाकर उसे हमें दे देगा। केवल इतना करो कि तुम यहोवा के विरुद्ध बलवा न करो; और न तो उस देश के लोगों से डरो, क्योंकि वे हमारी रोटी ठहरेंगे; छाया उनके ऊपर से हट गई है, और यहोवा हमारे संग है; उन से न डरो।”—गिनती १४:७-९.
६ परन्तु, वे इस्राएली मनुष्य के भय के सामने झुक गए। इसके परिणामस्वरूप, वे प्रतिज्ञात देश कभी नहीं पहुँचे। लेकिन यहोशू और कालिब, और उनके साथ इस्राएलियों की नयी पीढ़ी को, उस उत्तम देश में प्रवेश करने और, उसके अँगूर और ज़ैतून के बाग़ों की खेती करने का ख़ास अनुग्रह प्राप्त हुआ। इस्राएल के एकत्रित लोगों से संबोधित अपनी आख़री बातचीत में, यहोशू ने यह सलाह दी: “यहोवा का भय मानकर उसकी सेवा खराई और सच्चाई से करो।” और यहोशू ने आगे कहा: “मैं तो अपने घराने समेत यहोवा ही की सेवा करूँगा।” (यहोशू २४:१४, १५) जैसे हम परमेश्वर की धार्मिक नयी दुनिया में प्रवेश करने के लिए तैयारी करते हैं, ये शब्द परिवार के प्रधानों और बाक़ी सारे लोगों को यहोवा का भय मानने के लिए कितने प्रोत्साहक हैं!
७. दाऊद ने परमेश्वर के भय के महत्त्व पर किस तरह ज़ोर दिया?
७ चरवाहे दाऊद ने भी यहोवा का उल्लेखनीय भय दर्शाया, जब उस ने परमेश्वर के नाम से गोलियात को चुनौती दी। (१ शमूएल १७:४५, ४७) अपनी मृत्युशय्या पर से, दाऊद यह कह सका: “यहोवा का आत्मा मुझ में होकर बोला, और उसी का वचन मेरे मुँह में आया। इस्राएल के परमेश्वर ने कहा है, इस्राएल की चट्टान ने मुझ से बातें की है, कि मनुष्यों में प्रभुता करनेवाला एक धर्मी होगा, जो परमेश्वर का भय मानता हुआ प्रभुता करेगा। वह मानो भोर का प्रकाश होगा जब सूर्य निकलता है, ऐसा भोर जिस में बादल न हों।” (२ शमूएल २३:२-४) इस दुनिया के शासकों के बीच परमेश्वर का यह भय सुस्पष्ट रूप से विद्यमान नहीं रहा है, और इसके परिणाम कितने दुःखद हैं! सब कुछ कितना अलग होगा जब “दाऊद का सन्तान” यीशु, यहोवा का भय मानकर इस पृथ्वी पर हुक़ूमत करेगा।—मत्ती २१:९.
यहोवा के भय में क़दम उठाना
८. यहूदा यहोशापात के अधीन क्यों समृद्ध हुआ, और इस से आज हमारे लिए क्या सूचित होता है?
८ दाऊद की मृत्यु के तक़रीबन सौ साल बाद, यहोशापात यहूदा में राजा बन गया। एक बार फिर यह एक ऐसा राजा था जो यहोवा का भय मानकर सेवा करता था। उसने यहूदा में ईश्वरशासित व्यवस्था को फिर से स्थापित किया, देश भर में न्यायियों को नियुक्त किया, और उन्हें ये आदेश दिए: “तुम जो न्याय करोगे, वह मनुष्य के लिए नहीं, यहोवा के लिए करोगे; और वह न्याय करते समय तुम्हारे साथ रहेगा। अब यहोवा का भय तुम में बना रहे; चौकसी से काम करना क्योंकि हमारे परमेश्वर यहोवा में कुछ कुटिलता नहीं है; और न वह किसी का पक्ष करता और न घूस लेता है।” . . . यहोवा का भय मानकर, सच्चाई और निष्कपट (पूरे, N.W.) मन से ऐसा करना।” (२ इतिहास १९:६-९) इस प्रकार, यहोवा के भय में चलकर यहूदा समृद्ध हुआ, उसी तरह जैसे परमेश्वर के लोग आज संवेदनशील अध्यक्षों की सेवा से लाभ प्राप्त करते हैं।
९, १०. यहोशापात को किस तरह यहोवा के भय में विजय प्राप्त हुआ?
९ परन्तु, यहूदा के दुश्मन थे। इन्होंने परमेश्वर की जाति को मिटा देने का संकल्प किया। अम्मोन, मोआब और सेइर के पहाड़ी देश की संयुक्त सेना यहूदा के इलाके में बड़ी संख्या में आकर यरूशलेम को संकट में डाला। यह एक शक्तिशाली सेना थी। यहोशापात ने प्रार्थना के ज़रिए यहोवा की सहायता माँगी, “और सब यहूदी अपने अपने बालबच्चों, स्त्रियों और पुत्रों समेत यहोवा के सम्मुख खड़े रहे।” फिर, उस प्रार्थना के उत्तर में, यहोवा की आत्मा लेवीय यहजीएल में समायी, जिस ने कहा: “यहोवा तुम से यों कहता है, तुम इस बड़ी भीड़ से मत डरो और तुम्हारा मन कच्चा न हो; क्योंकि युद्ध तुम्हारा नहीं, परमेश्वर का है। कल उनका सामना करने को जाना। . . . इस लड़ाई में तुम्हें लड़ना न होगा; हे यहूदा, और हे यरूशलेम, ठहरे रहना, और खड़े रहकर यहोवा की ओर से अपना बचाव देखना। मत डरो, और तुम्हारा मन कच्चा न हो; कल उनका सामना करने को चलना और यहोवा तुम्हारे साथ रहेगा।”—२ इतिहास २०:५-१७.
१० अगली सुबह, यहूदा के मनुष्य जल्दी उठे। जैसे वे आज्ञाकारी रूप से दुश्मन को मिलने निकल गए, यहोशापात ने खड़ा होकर कहा: “हे यहूदा और यरूशलेम के निवासियो, मेरी सुनो! अपने परमेश्वर यहोवा पर विश्वास रखो, कि तुम स्थिर रह सको; उसके नबियों पर भरोसा रखो, और यों सफ़ल हो जाओ।” [N.W.] हथियारबन्द आदमियों के आगे-आगे चलते हुए, यहोवा के गायकों ने समूहगान में यूँ गाया: “यहोवा का धन्यवाद करो, क्योंकि उसकी करुणा सदा की है।” यहोवा ने उस प्रेममय करुणा को इस तरह व्यक्त किया कि उन्होंने दुश्मनों के वर्गों को ऐसे विभ्रान्त कर दिया कि उन्होंने एक दूसरे को नष्ट कर दिया। जब यहूदा के मनुष्य जंगल की चौकी पर पहुँच गए, तब दुश्मनों की सिर्फ़ लाशें ही लाशें दिखायी दीं।—२ इतिहास २०:२०-२४.
११. भय के सम्बन्ध में, अन्यजातियाँ परमेश्वर के लोगों से किस तरह अलग हैं?
११ जब पड़ोसी जातियों ने इस चमत्कारिक छुड़ाई के बारे में सुना, तब उन पर “परमेश्वर का डर” छा गया। दूसरी ओर, जिस जाति ने यहोवा का भय मानकर आज्ञापालन किया, उसे “चारो ओर से विश्राम” मिला।” (२ इतिहास २०:२९, ३०) उसी तरह, जब यहोवा आरमागेडोन में न्याय करेंगे, जातियों पर “परमेश्वर” और उनके न्याय करनेवाले पुत्र, यीशु मसीह, “का डर” छा जाएगा, और वे ईश्वरीय ग़ुस्से के बड़े दिन में खड़ा रहने न पाएँगे।—प्रकाशितवाक्य ६:१५-१७.
१२. प्राचीन समय में यहोवा का भय रखने से किस तरह प्रतिफल प्राप्त हुआ है?
१२ यहोवा के प्रति हितकर भय दिखाने से बहुत प्रतिफल मिलते हैं। नूह ने “भक्ति के साथ अपने घराने के बचाव के लिए जहाज़ बनाया।” (इब्रानियों ११:७) और जहाँ तक पहली-सदी के मसीहियों का सवाल था, यह लिपिबद्ध किया गया है कि, उत्पीड़न के एक काल के बाद, कलीसिया “को चैन मिला, और उसकी उन्नति होती गई; और वह प्रभु के भय और पवित्र आत्मा की शान्ति में चलती और बढ़ती जाती थी”—तक़रीबन उसी तरह जैसे आज पूर्वी यूरोप में हो रहा है।—प्रेरितों ९:३१.
भलाई से प्रेम करो, बुराई से घृणा
१३. हम केवल किस तरह यहोवा की आशिष का अनुभव कर सकते हैं?
१३ यहोवा सम्पूर्ण रूप से भले हैं। इसलिए, “यहोवा का भय मानना बुराई से बैर रखना है।” (नीतिवचन ८:१३) यीशु के बारे में लिखा गया है: “तू ने धर्म से प्रेम और अधर्म से बैर रखा; इस कारण परमेश्वर तेरे परमेश्वर ने तेरे साथियों से बढ़कर हर्षरूपी तेल से तुझे अभिषेक किया।” (इब्रानियों १:९) अगर हम, यीशु की तरह, यहोवा की आशिष चाहते हैं, तो हमें शैतान की अभिमानी दुनिया की बुराई, अनैतिकता, हिंसा, और लोभ से घृणा करनी चाहिए। (नीतिवचन ६:१६-१९ से तुलना करें।) हमें उन बातों से प्रेम करना चाहिए जिन से यहोवा प्रेम करते हैं और उनसे घृणा करनी चाहिए जिन से यहोवा घृणा करते हैं। हमें ऐसा कुछ भी करने से डरना चाहिए जिस से यहोवा अप्रसन्न हों। “यहोवा के भय मानने के द्वारा मनुष्य बुराई करने से बच जाते हैं।”—नीतिवचन १६:६.
१४. यीशु किस तरह हमें एक आदर्श देता है?
१४ यीशु हमारे लिए ऐसा आदर्श छोड़ गया कि हम उसके पदचिह्नों पर निकट रूप से चलें। “वह गाली सुनकर गाली नहीं देता था, और दुख उठाकर किसी को भी धमकी नहीं देता था, पर अपने आप को सच्चे न्यायी के हाथ में सौंपता था।” (१ पतरस २:२१-२३) यहोवा के भय से हम भी उन सारी निन्दाओं, हँसी-ठट्ठा और उत्पीड़न को सह सकेंगे जो शैतान की दुनिया हम पर बरसाती है।
१५. शरीर को घात करनेवालों से डरने के बजाय, हमें यहोवा से क्यों डरना चाहिए?
१५ मत्ती १०:२८ में, यीशु हमें समझाता है: “उन से मत डरो जो शरीर को घात करते हैं, पर प्राण को घात नहीं कर सकते, पर उस व्यक्ति से डरो, जो प्राण और शरीर दोनों को गेहेन्ना में नाश कर सकते हैं।” (N.W.) अगर यहोवा से डरनेवाला कोई व्यक्ति दुश्मन द्वारा मार डाला भी जाए, तो मृत्यु के बन्धन सिर्फ़ क्षणिक ही हैं। (होशे १३:१४) पुनरुत्थित किए जाने पर, वह व्यक्ति कह सकेगा: “हे मृत्यु तेरी जय कहाँ रही? हे मृत्यु तेरा डंक कहाँ रहा?”—१ कुरिन्थियों १५:५५.
१६. यीशु ने किस तरह यहोवा का भय दर्शाकर उनकी महिमा की?
१६ यीशु खुद उन सब के लिए एक बढ़िया मिसाल पेश करता है, जो यहोवा के धर्म से प्रीति रखते हैं और बुराई से घृणा करते हैं। यहोवा के प्रति उसका भय अपने शिष्यों से हुई अपनी आख़री बातचीत में प्रतिबिंबित है, जो कि यूहन्ना १६:३३ में पायी जाती है: “मैं ने ये बातें तुम से इसलिए कही हैं, कि तुम्हें मुझ में शान्ति मिले; संसार में तुम्हें क्लेश होता है, परन्तु ढाढ़स बाँधो, मैं ने संसार को जीत लिया है।” यूहन्ना के वृत्तान्त में आगे कहा गया है: “यीशु ने ये बातें कहीं और अपनी आँखें आकाश की ओर उठाकर कहा, ‘हे पिता, वह घड़ी आ पहुँची, अपने पुत्र की महिमा कर, कि पुत्र भी तेरी महिमा करे। . . . मैं ने तेरा नाम उन मनुष्यों पर प्रगट किया जिन्हें तू ने जगत में से मुझे दिया।’”—यूहन्ना १७:१-६.
यहोवा का भय मान और उनकी स्तुति करो
१७. हम किन रीतियों से यीशु की मिसाल का अनुकरण कर सकते हैं?
१७ क्या हम आज यीशु की साहसी मिसाल का अनुकरण कर सकते हैं? निश्चय ही हम यहोवा के भय में ऐसा कर सकते हैं! यीशु ने हमें यहोवा के प्रतापी नाम और गुणों के बारे में बता दिया है। हमारे सर्वश्रेष्ठ प्रभु के तौर से यहोवा का भय मानते हुए, हम उन्हें बाक़ी सारे देवताओं से ऊँचा करते हैं, जिन में ईसाईजगत् का बेनाम, रहस्यात्मक त्रियेक शामिल है। यीशु ने नश्वर इंसान के भय के फँदे में फँसना अस्वीकार करके यहोवा की सेवा एक हितकर भय के साथ की। “उस ने अपनी देह में रहने के दिनों में ऊँचे शब्द से पुकार पुकारकर, और आँसू बहा बहाकर उस से जो उस को मृत्यु से बचा सकता था, प्रार्थनाएँ और बिनतियाँ की और उसके ईश्वरीय भय के कारण उस की सुनी गयी।” यीशु की तरह, हम भी यहोवा का भय मानें जैसे-जैसे हम दुख उठाकर आज्ञापालन सीखें—और अनन्त उद्धार को हमेशा अपने लक्ष्य के तौर से रखें।—इब्रानियों ५:७-९, N.W.
१८. हम किस तरह ईश्वरीय भय सहित परमेश्वर की पवित्र सेवा कर सकते हैं?
१८ इब्रानी मसीहियों के नाम उस चिट्ठी के बादवाले हिस्से में, पौलुस अभिषिक्त मसीहियों को प्रोत्साहित करता है: “इस कारण हम इस राज्य को पाकर जो हिलने का नहीं, उस अनुग्रह को हाथ से न जाने दें, जिस के द्वारा हम ईश्वरीय भय और श्रद्धा सहित, परमेश्वर की ऐसी पवित्र सेवा कर सकते हैं जिस से वह प्रसन्न होता है।” आज, “बड़ी भीड़” उस पवित्र सेवा में हिस्सा लेती है। और इस में क्या शामिल है? अपने बेटे, यीशु मसीह, की क़ुरबानी देने में यहोवा की अनर्जित कृपा के विषय पर विचार-विमर्श करने के बाद, पौलुस कहता है: “हम उसके द्वारा स्तुतिरूपी बलिदान, अर्थात् उन होठों का फल जो उसके नाम का अंगीकार करते हैं, परमेश्वर के लिए सर्वदा चढ़ाया करें।” (इब्रानियों १२:२८; १३:१२, १५, N.W.) यहोवा की अनर्जित कृपा के लिए क़दरदानी दिखाकर, हमें उनकी पवित्र सेवा में संभवतः हर घंटा लगाने की इच्छा होनी चाहिए। शेष अभिषिक्त मसीहियों के वफ़ादार साथियों के तौर से, आज बड़ी भीड़ उस सेवा के मुख्य हिस्से को पूरा कर रहे हैं। ये लोग परमेश्वर और मसीह को उद्धार का श्रेय देते हैं, जैसे वे परमेश्वर के सिंहासन के सामने प्रतीकात्मक रूप से खड़ा रहकर “दिन रात उस की सेवा करते हैं।”—प्रकाशितवाक्य ७:९, १०, १५.
अनन्त काल तक यहोवा की महिमा करो
१९, २०. “यहोवा के दिन” में कौनसे दो क़िस्म के भय ज़ाहिर होंगे?
१९ यहोवा के सत्य प्रमाणित होने का शानदार दिन जल्द ही निकट आता है! “‘देखो, वह धधकते भट्ठे का सा दिन आता है, जब सब अभिमानी और सब दुराचारी लोग अनाज की खूँटी बन जाएँगे; और उस आनेवाले दिन में वे ऐसे भस्म हो जाएँगे कि उनका पता तक न रहेगा,’ सेनाओं के यहोवा का यही वचन है।” वह अनर्थकर समय ‘यहोवा का बड़ा और भयानक दिन’ है। (मलाकी ४:१, ५) यह बुरे लोगों के दिलों में ‘घबराहट’ पैदा करेगा, और ये लोग “किसी रीति न बचेंगे।”—यिर्मयाह ८:१५; १ थिस्सलुनीकियों ५:३.
२० बहरहाल, यहोवा के लोग एक अलग ही क़िस्म के भय से प्रेरित होते हैं। उस स्वर्गदूत ने, जिसे “सनातन सुसमाचार” सौंपा गया है, उन्हें एक बड़ी आवाज़ से बुलाया है, यह कहते हुए: “परमेश्वर से डरो; और उस की महिमा करो; क्योंकि उसके न्याय करने का समय आ पहुँचा है।” (प्रकाशितवाक्य १४:६, ७) जब हार-मागेडोन की जलाने वाली गरमी शैतान की दुनिया को भस्म कर देगी, तब उस न्याय के कारण हम श्रद्धायुक्त विस्मय में रहेंगे। यहोवा के प्रति हितकर भय अमिट रूप से हमारे दिलों पर अंकित होगा। ऐसा हो कि उस समय हमें ‘बचाए गए लोगों’ के बीच पाए जाने का अनुग्रह प्राप्त हो, ‘जिन्होंने यहोवा का नाम लिया है’!—योएल २:३१, ३२; रोमियों १०:१३.
२१. यहोवा का भय मानने से कौनसी आशिषें प्राप्त होंगी?
२१ चमत्कारिक आशिषें प्राप्त होंगी, जिन में अनन्त काल में बढ़नेवाले “जीवन के वर्ष” भी शामिल होंगे! (नीतिवचन ९:११; भजन ३७:९-११, २९) इसलिए, चाहे हमारी आशा राज्य को विरासत में पाने की है या पृथ्वी पर उसके क्षेत्र में सेवा करने की है, आइए हम अब ईश्वरीय भय और श्रद्धा सहित परमेश्वर की पवित्र सेवा करते रहें। हम उनके पवित्र नाम की महिमा करते रहें। और इसका धन्य अंजाम क्या होगा? सदा के लिए आभार की भावना कि हम ने यहोवा का भय हमेशा मानने की बुद्धिमान सलाह पर अमल किया!
आप किस तरह जवाब देंगे?
▫ “यहोवा का भय” का मतलब क्या है?
▫ परमेश्वर के भय से उनके प्राचीन लोगों को किस तरह लाभ हुआ?
▫ यीशु ईश्वरीय भय का कौनसा आदर्श हमारे लिए छोड़ गया?
▫ हम यहोवा का भय मानकर किस तरह ख़राई बनाए रख सकते हैं?
[पेज 20 पर बड़े अक्षरों में लेख की खास बात]
अनन्त काल में बढ़नेवाले जीवन के वर्ष यहोवा का भय माननेवालों का प्रतिफल होगा
[पेज 16 पर तसवीरें]
प्रकाशितवाक्य की किताब में, यीशु के भाई “मूसा का गीत” गाते हुए दिखायी देते हैं, एक ऐसा गीत जिस में यहोवा की स्तुति होती है
[पेज 18 पर तसवीरें]
यहोशापात की सेना यहोवा के भय में विजय प्राप्त करती है