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  • यहोवा के दिन की आकांक्षा रखना

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  • यहोवा के दिन की आकांक्षा रखना
  • प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1992
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w92 8/1 पेज 8-12

यहोवा के दिन की आकांक्षा रखना

“निबटारे के तराई में यहोवा का दिन निकट है।”—योएल ३:१४.

१. आनेवाला पवित्र युद्ध, जिसकी घोषणा यहोवा ने की है, मानवजाति के “पवित्र” युद्धों से क्यों भिन्‍न होगा?

“जाति जाति में यह प्रचार करो, ‘युद्ध पवित्र करो!’” (योएल ३:९, फुटनोट) क्या इसका अर्थ है एक पवित्र युद्ध? जब क्रूसयुद्ध, धार्मिक युद्ध, और दो विश्‍व युद्धों की ओर दृष्टि करते हैं—जिन में मसीही जगत ने मुख्य भूमिका निभायी—तो हम शायद “पवित्र” युद्ध के विचार से ही थरथरा जाएँगे। परन्तु, योएल की भविष्यवाणी का पवित्र युद्ध राष्ट्रों के मध्य युद्ध नहीं है। ये भूमि और संपत्ति को हथियाने के लिए घृणापूर्ण संघर्ष नहीं है, जिसमें धर्म को आड़ बनाया जाता है। यह एक न्यायोचित युद्ध है। पृथ्वी को लोभ, झगड़े, भ्रष्टाचार व अत्याचार से मुक्‍त करने के लिए यह परमेश्‍वर का युद्ध है। यह संपूर्ण सृष्टि के ऊपर यहोवा की अधिकारपूर्ण प्रभुता को दोषमुक्‍त करेगा। यह युद्ध मसीह के राज्य के लिए मार्ग तैयार करके मानवजाति को हज़ार वर्ष के उस राज्य में प्रवेश कराएगा जिसके विषय में परमेश्‍वर के भविष्यवक्‍ताओं ने भविष्यवाणी की थी और जिस में विश्‍वव्यापी शान्ति, समृद्धि और आनन्द होगा।—भजन संहिता ३७:९-११; यशायाह ६५:१७, १८; प्रकाशितवाक्य २०:६.

२, ३. (क) योएल ३:१४ की भविष्यवाणी के अनुसार “यहोवा का दिन” क्या है? (ख) राष्ट्र उस दण्ड के योग्य क्यों होंगे, जो उन्हें उस दिन मिलेगा?

२ फिर, योएल ३:१४ में पूर्वबतलाया गया “यहोवा का दिन” क्या है? यहोवा ने स्वयं ही विस्मय से कहा है: “उस दिन के कारण हाय! क्योंकि यहोवा का दिन निकट है। वह सर्वशक्‍तिमान की ओर से सत्यानाश का दिन होकर आएगा।” किस अर्थ से यह एक सत्यानाश है? भविष्यवक्‍ता आगे व्याख्या करता है: “निबटारे की तराई में भीड़ की भीड़ है! क्योंकि निबटारे की तराई में यहोवा का दिन निकट है।” (योएल १:१५; ३:१४) यह वह दिन है जिस में यहोवा भक्‍तिहीन मानवजाति की उन भीड़ों पर अपना न्यायिक निर्णय देते हैं, जिन्होंने स्वर्ग और पृथ्वी पर उनकी अधिकारपूर्ण सार्वभौमिकता को अस्वीकार किया है। मानवजाति को अपने चुंगल में इतने समय से रखनेवाली शैतानी रीति-व्यवस्था को नाश करने के लिए यह यहोवा का निर्णय है।—यिर्मयाह १७:५-७; २५:३१-३३.

३ पृथ्वी की भ्रष्ट रीति-व्यवस्था को उस निर्णय का बेझिझक सामना करना होगा। परन्तु क्या यह विश्‍व व्यवस्था सचमुच इतनी बुरी है? इसके इतिहास पर एक दृष्टि काफ़ी होगी! यीशु ने मत्ती ७:१६ में एक सिद्धांत बताया: “उनके फलों से तुम उन्हें पहचान लोगे।” क्या संसार के बड़े-बड़े शहर, नशीले पदार्थों, अपराध, आतंकवाद, अनैतिकता, और प्रदूषण के गंदे तालाब नहीं बन गए हैं? अनेक देशों में हाल ही में पायी स्वतंत्रता को राजनीतिक उथल-पुथल, अकाल और ग़रीबी ने दबा दिया है। एक अरब से अधिक लोग भूख से पीड़ित हैं। इसके अतिरिक्‍त, एड्‌स की महामारी ने, जिसकी आग को नशीली दवाइयाँ और अनैतिक जीवन-शैली और भी भड़का रही है, पृथ्वी के अधिकांश भाग को काले बादलों से ढक दिया है। विशेषकर प्रथम विश्‍व युद्ध के समय से, जो १९१४ में भड़का था, विश्‍वव्यापी रूप से जीवन के हर एक पहलू में बिगाड़ आया है।—२ तीमुथियुस ३:१-५ से तुलना करें.

४. यहोवा राष्ट्रों के सम्मुख क्या चुनौती रखते हैं?

४ लेकिन, यहोवा सभी जातियों में से उन लोगों को इकट्ठा करते रहे हैं जो उसके निर्देशों को आनन्दपूर्वक स्वीकार करके उनके पथों पर चलते हैं। पृथ्वी भर के इन लोगों ने संसार की हिंसात्मक रीतियों को त्यागते हुए तलवारों को पीटकर हल के फाल बनाए हैं। (यशायाह २:२-४) हाँ, तलवारों को पीटकर हल के फाल बनाए हैं! परन्तु क्या यह यहोवा की पुकार के विपरित नहीं है, जिसकी घोषणा योएल ३:९, १० में की गई है? वहाँ हम ऐसा पढ़ते है: “जाति जाति में यह प्रचार करो, युद्ध को पवित्र करो (फुटनोट), अपने शूरवीरों को उभारो। सब योद्धा निकट आकर लड़ने को चढ़ें। अपने अपने हल के फालों को पीट कर तलवार, और अपनी अपनी हँसिया को पीटकर बर्छी बनाओ।” (तिरछा टाइप हमारा.) अहा, यहोवा यहाँ संसार के शासकों को चुनौती दे रहे हैं कि वे अपनी समस्त सैन्य शक्‍ति को अरमगिदोन में उसके विरुद्ध ले आएं। परन्तु वे सफल नहीं हो सकते! वे अवश्‍य ही पूर्णत: परास्त हो जाएंगे।—प्रकाशितवाक्य १६:१६.

५. जब “पृथ्वी की दाख लता” काटी जाएगी तब परिणाम क्या होगा?

५ सार्वभौम प्रभु यहोवा की अवज्ञा में, शक्‍तिशाली शासकों ने भयंकर शस्त्रागार बनाए हैं—परन्तु सब व्यर्थ है! योएल ३:१३ के अनुसार यहोवा यह आज्ञा देते हैं: “हँसुआ लगाओ, क्योंकि खेत पक गया है। आओ, दाख रौंदो, क्योंकि हौज़ भर गया है। रसकुंड उमंडने लगे, क्योंकि उनकी बुराई बहुत बड़ी है।” ये वचन प्रकाशितवाक्य १४:१८-२० से मेल खाते हैं, जहाँ अभिषिक्‍त मसीहा राजा, यीशु को “हँसुआ लगाकर पृथ्वी की दाख लता के गुच्छे काट” लेने की आज्ञा दी गयी है “क्योंकि उसकी दाख पक चुकी है।” राजा अपना तेज़ हँसुआ लगाकर अवज्ञाकारी जातियों को “परमेश्‍वर के प्रकोप के बड़े रस के कुंड में डाल” देता है। लाक्षणिक रूप से रस के कुंड में से उनका लोहू निकलकर घोड़ों की लगामों तक पहुँच जाता है, और १,६०० फ़र्लांग—तक़रीबन ३०० कि.मी. तक बह जाता है! यहोवा का निरादर करने वाली जातियों के लिए क्या ही भयानक भविष्य!

नियम का पालन करने वाले नागरिक

६. यहोवा के गवाह राष्ट्रों और उनके शासकों के प्रति कैसा दृष्टिकोण रखते है?

६ इसका अर्थ क्या यह होगा कि यहोवा के गवाह राष्ट्रों और उनके शासकों का अनादर करते हैं? नहीं, बिलकुल नहीं! वे तो उस भ्रष्टाचार के कारण दुःखी हैं, जिसे सब स्पष्ट रीति से देख सकते हैं, और वे यहोवा के तीव्र गति से आने वाले न्यायदंड की चेतावनी देते हैं। साथ ही साथ, वे पौलुस की रोमियों १३:१ में दी गई सलाह भी नम्रतापूर्वक मानते हैं, जहाँ लिखा है: “हर एक व्यक्‍ति प्रधान अधिकारियों के अधीन रहे।” इन मानव शासकों का वे उचित आदर तो करते हैं, परन्तु उपासना नहीं। नियम पालने वाले नागरिकों के रूप में, वे ईमानदारी, सत्यवादिता और स्वच्छता के बाइबल स्तरों का पालन करते हैं तथा ख़ुद अपने परिवारों में अच्छी नैतिकता सिखाते हैं। वे अन्य लोगों को यह सीखने में सहायता करते हैं कि वे भी इसे कैसे कर सकते हैं। वे सभी लोगों के साथ शान्तिपूर्वक रहते हैं, और न तो किसी प्रदर्शन और न ही राजनीतिक क्रांतियों में हिस्सा लेते हैं। जब यहोवा के गवाह सर्वोच्च अधिकारी, सार्वभौम प्रभु यहोवा, की इस पृथ्वी पर पूर्ण शान्ति और धार्मिकता की सरकार पुनःस्थापित करने की प्रतीक्षा करते हैं वे प्रधान अधिकारियों का आज्ञा पालन करने में आदर्श प्रस्तुत करना चाहते हैं।

उनके अपने निर्णय पर कार्यवाही

७, ८. (क) किस प्रकार राष्ट्रों को हिलाया जाएगा, और उन पर अंधकार छा जाएगा? (ख) योएल आज किन को चित्रित करता है, और सामान्य संसार के विपरीत वे लोग कैसी आशिष पाते हैं?

७ सजीव लाक्षणिक भाषा का प्रयोग करके, यहोवा अपना निर्णय निष्पन्‍न करने के विषय में आगे यह वर्णन देते हैं: “सूर्य और चन्द्रमा अपना अपना प्रकाश न देंगे, और न तारे चमकेंगे। और यहोवा सिय्योन से गरजेगा, और यरूशलेम से बड़ा शब्द सुनाएगा; और आकाश और पृथ्वी थरथराएंगे। परन्तु यहोवा अपनी प्रजा के लिए शरणस्थान और इस्राएलियों के लिए गढ़ ठहरेगा।” (योएल ३:१५, १६) यह आभासी उज्ज्वल और समृद्ध मानव दशा निराशाजनक, अनिष्टकारी बन जाएगी, और मानो एक बड़े भूकम्प से उजाड़ दिया जाकर, यह टूटती हुई विश्‍व-व्यवस्था का पूरा अस्तित्व ही मिटा दिया जाएगा।—हाग्गै २:२०-२२.

८ उस आनन्ददायक आश्‍वासन पर ध्यान दें कि यहोवा अपने लोगों के लिए शरणस्थान और गढ़ ठहरेंगे! ऐसा क्यों होगा? क्योंकि वे एक ही लोग हैं—एक अतंरराष्ट्रीय लोग—जिन्होंने यहोवा के इन वचनों को सुनकर प्रतिक्रिया दिखायी: “इस प्रकार तुम जानोगे कि मैं यहोवा . . . तुम्हारा परमेश्‍वर है।” (योएल ३:१७, NW) क्योंकि योएल के नाम का अर्थ है “यहोवा ही परमेश्‍वर है,” इस लिए वह उचित रूप से यहोवा के आधुनिक समय के अभिषिक्‍त गवाहों को चित्रित करता है, जो बड़े साहस के साथ यहोवा की सार्वभौमिकता की घोषणा कर रहे हैं। (मलाकी १:११ से तुलना करें.) योएल की भविष्यवाणी के आरंभिक शब्दों पर अगर ध्यान देंगे, हम जान लेंगे कि उसने परमेश्‍वर के लोगों के आज के गतिविधियों के विषय में कितने सजीव रूप से भविष्यवाणी की है।

टिड्डियों का एक दल

९, १०. (क) योएल के द्वारा किस विपत्ति की भविष्यवाणी की गई है? (ब) प्रकाशितवाक्य कैसे विपत्ति के बारे में योएल की भविष्यवाणी के शब्दों को गूंजता है, और इस विपत्ति का मसीही जगत पर क्या प्रभाव है?

९ आइए अब “यहोवा का वचन जो . . . योएल के पास पहुँचा” सुनें: “हे पुरनियो, सुनो, हे देश के सब रहने वालो कान लगाकर सुनो! क्या ऐसी बात तुम्हारे दिनों में, वा तुम्हारे पुरखाओं के दिनों में कभी हुई है? अपने लड़केबालों से इसका वर्णन करो, और वे अपने लड़केबालों से, और फिर उनके लड़केबाले आनेवाली पीढ़ी के लोगों से। जो कुछ गाजाम नाम टिड्डी से बचा; उसे अर्बे नाम टिड्डी ने खा लिया। और जो कुछ अर्बे नाम टिड्डी से बचा, उसे येलेक नाम टिड्डी ने खा लिया, और जो कुछ येलेक नाम टिड्डी से बचा, उसे हासील नाम टिड्डी ने खा लिया है।”—योएल १:१-४.

१० यह एक असाधारण अभियान है, जो सर्वदा स्मरण किया जाएगा। कीड़ों के, विशेषकर टिड्डियों के दल के दल पर दल आकर देश को उजाड़ देते हैं। इसका अर्थ क्या है? प्रकाशितवाक्य ९:१-१२ भी टिड्डियों के एक आक्रमण का वर्णन करता है, जिसे यहोवा की ओर से “एक राजा” की देखरेख में भेजा गया है “जो अथाह कुंड का स्वर्गदूत है,” जो यीशु मसीह के अलावा कोई और नहीं हे। उसके अबद्दोन (इब्रानी) और अपुल्लयोन (यूनानी) नामों का अर्थ “विनाश” और “विनाशक” है। ये टिड्डियाँ मसीहियों के अभिषिक्‍त शेष वर्ग को चित्रित करती है जो, अभी प्रभु के दिन में, जाकर झूठे धर्म का पूर्णतया पर्दाफ़ाश करके, और यहोवा का उससे पलटा लेने की घोषणा करने के द्वारा मसीही जगत की चराई की भूमि को उजाड़ देते हैं।

११. आधुनिक काल की टिड्डियों को मज़बूती कैसे मिल रही है, और उनके आक्रमण का निशाना विशेष रूप से कौन हैं?

११ जैसा प्रकाशितवाक्य ९:१३-२१ में सूचित किया गया है, टिड्डियों की महामारी के बाद घुड़सवारों की विशाल महामारी आती है। यह बात आज कितनी सत्य है, क्योंकि अभिषिक्‍त मसीही वर्ग के कुछ ही हज़ार लोगों को चालीस लाख से अधिक “अन्य भेड़ें” मज़बूती दे रही हैं, जो मिलकर ऐसे घुड़सवारों की सेना बनते हैं जिसका सामना नहीं किया जा सकता है! (यूहन्‍ना १०:१६) वे एकजुट होकर मसीही जगत के मूर्तिपूजक लोगों पर और उन पर भी जो ‘न तो उन की हत्याओं के लिए, और न ही उनके टोन्हा करने, न ही उनके व्यभिचार और न ही उनकी चोरियाँ करने का पश्‍चाताप करते हैं,’ यहोवा के डंकदार वाले न्यायदंड की घोषणा कर रहे हैं। दोनों प्रोटेस्टेन्ट और कैथोलिक पादरी वर्ग, जिन्होंने इस शताब्दी के ख़ूनी युद्धों का सक्रिय रूप से साथ दिया है, और साथ ही शिशुकामी पादरी और भ्रष्ट टी.वी. इंजील प्रचारक, उन लोगों में हैं जिनके विरोध में ये न्यायदंड के संदेश सुनाए जा रहे हैं।

१२. क्यों मसीही जगत के अगुआ न्यायदंड का संदेश पाने के हक़दार हैं, और शीघ्र ही उनका, और उनके साथ बड़ी बाबेलोन के सभी सदस्यों का क्या होने वाला है?

१२ ऐसे गिरे हुए पोशाकधारी पादरी “सज्जनों” के लिए, यहोवा का ठनठनाता हुआ संदेश है: “हे मतवालो, जाग उठो, और रोओ, और हे सब दाखमधु पीने वालो, नए दाखमधु के कारण हाय, हाय, करो; क्योंकि वह तुम को अब न मिलेगा।” (योएल १:५) इस बीसवीं शताब्दी में, मसीही जगत के धर्म ने परमेश्‍वर के वचन के स्वच्छ नैतिक सिद्धांतों के स्थान पर इस संसार का लुच्चपन अपना लिया है। संसार की रीतियों को अपना लेना झूठे धर्म और उसके अनुयायियों को मीठा लगा है, परन्तु आध्यात्मिक और शारीरिक रोगों की क्या ही कटनी उन्होंने काटी है! शीघ्र ही, जैसा प्रकाशितवाक्य १७:१६, १७ में वर्णन किया गया है, यह परमेश्‍वर की “मनसा” होगी कि राजनीतिक शक्‍तियाँ झूठे धर्म के समस्त विश्‍व साम्राज्य, बड़ी बाबेलोन, पर अचानक, हिंसात्मक आक्रमण करके उसे उजाड़ दें। जब वह देख लेगी कि उसके विरुद्ध यहोवा द्वारा लिया गया निर्णय पूरा किया जा रहा है, केवल तभी वह अपने मतवालेपन से “जागेगी।”

“एक बड़ी और सामर्थी जाति”

१३. टिड्डियों का दल मसीही जगत को किस प्रकार “बड़ी और सामर्थी जाति” प्रतीत होता है?

१३ यहोवा का भविष्यवक्‍ता आगे जाकर टिड्डियों के दल का वर्णन “एक बड़ी और सामर्थी जाति” के तौर से करता है, ओर ऐसा ही बड़ी बाबेलोन को भी प्रतीत होता है। (योएल २:२) उदाहरण के लिए, इसके पादरी गण इस सच्चाई पर विलाप करते हैं कि मसीही जगत के धर्म बौद्ध जापान देश में लोगों का धर्म-परिवर्तन करने में असमर्थ रहे हैं। फिर भी, आज १,६०,००० से अधिक जापानी यहोवा के गवाह उस देश पर छाए हुए हैं, तथा २,००,००० से अधिक घरों में बाइबल अध्ययनों का संचालन कर रहे हैं। इटली में १,८०,००० यहोवा के गवाहों की संख्या अब सिर्फ़ कैथोलिक लोगों की संख्या की तुलना में ही दूसरे स्थान पर मानी जाती है। इटली के रोमन कैथोलिक मोनसिनयर ने व्यर्थ में शोक व्यक्‍त किया कि यहोवा के गवाह चर्च से प्रतिवर्ष ‘कम से कम १०,००० वफादार कैथोलिक सदस्यों को’ ले रहे हैं।a यहोवा के गवाह ऐसे लोगों का स्वागत करने में प्रसन्‍न हैं।—यशायाह ६०:८, २२.

१४, १५. योएल ने टिड्डियों के दल का वर्णन किस प्रकार किया है, और आज उसकी पूर्ति कैसे हुई है?

१४ अभिषिक्‍त गवाहों के टिड्डियों के दल का वर्णन करते हुए, योएल २:७-९ कहता है: “वे शूरवीरों की नाईं दौड़ते, और योद्धाओं की भाँति दीवार पर चढ़ते हैं। और प्रत्येक अपने अपने मार्ग पर चलता है, और कोई अपनी पंक्‍ति से अलग न चलेगा। वे एक दूसरे को धक्का नहीं लगाते, वे अपनी अपनी राह पर चलते हैं; और अगर कुछेक शस्त्रों का निशाना बन जाएँ तब भी बाक़ी लोग अपनी पंक्‍ति नहीं तोड़ते। वे नगर में इधर-उधर दौड़ते, और शहरपनाह पर चढ़ते हैं; वे घरों में ऐसे घुसते हैं जैसे चोर खिड़कियों से घुसते हैं।”—NW.

१५ वाक़ई, अभिषिक्‍त “टिड्डियों” की सेना का क्या ही सजीव चित्रण, जिनके साथ अब चालीस लाख से अधिक सहकर्मी, यानी अन्य भेडें, मिल गई हैं! धार्मिक शत्रुता की कोई भी “दीवार” उन्हें रोक नहीं सकता। वे, साहस पूर्वक, “जहाँ तक पहुँचे हैं, उसी के अनुसार” सार्वजनिक गवाही देने तथा अन्य मसीही गतिविधियों में आगे बढ़ते जाते हैं। (फिलिप्पियों ३:१६ से तुलना करें.) विश्‍वास का समझौता करने के बजाय, वे मृत्यु का सामना करने के लिए तैयार रहे हैं, जैसा कि उन हज़ारों गवाहों ने किया, जो नाट्‌ज़ी जर्मनी के कैथोलिक हिटलर के नारे लगाने से इनकार करने के कारण उनके शस्त्रों का निशाना बन गए। मसीही जगत के “नगर” में टिड्डी के दलों ने अच्छी गवाही दी है, और जैसे-जैसे उन्होंने घर-घर की सेवकाई में अरबों की संख्या में बाइबल प्रकाशनों का वितरण किया है वैसे-वैसे उनके सामने आनेवाली सभी रुकावटों पर से चढ़कर वे ऐसे प्रवेश कर गए हैं, जैसे चोर घरों में घुस जाते हैं। यहोवा की इच्छा है कि यह गवाही दी जाए, और स्वर्ग और पृथ्वी की कोई भी ताक़त इसे रोक नहीं सकती।—यशायाह ५५:११.

“पवित्र आत्मा से भर गए”

१६, १७. (क) योएल २:२८, २९ की विशेष पूर्ति कब हुई? (ख) योएल की भविष्यवाणी के कौन से वचनों की पूर्ति संपूर्णतया प्रथम शताब्दी में नहीं हुई?

१६ यहोवा अपने गवाहों से कहते हैं: “तब तुम जानोगे कि मैं [आध्यात्मिक] इस्राएल के बीच में हूँ, और मैं, यहोवा, तुम्हारा परमेश्‍वर हूँ और कोई दूसरा नहीं है।” (योएल २:२७) उसके लोगों ने इस बहुमूल्य चीज़ को तब पहचाना जब यहोवा ने योएल २:२८, २९ के अपने इन वचनों की पूर्ति आरंभ की: “इन बातों के बाद मैं सब प्राणियों पर अपना आत्मा उण्डेलूंगा; तुम्हारे बेटे-बेटियाँ भविष्यवाणी करेंगी।” यह सा.यु. वर्ष ३३ के पिन्तेकुस्त के दिन घटित हुआ, जब यीशु के एकत्रित चेलों को अभिषिक्‍त किया गया “और वे सब पवित्र आत्मा से भर गए।” पवित्र आत्मा से सामर्थ्य पाकर, उन्होंने प्रचार किया, और उसी दिन “तीन हजार मनुष्यों के लगभग उन में मिल गए।”—प्ररितों २:४, १६, १७, ४१.

१७ आनन्द के उस अवसर पर, पतरस ने योएल २:३०-३२ को भी उद्धृत किया: “और में आकाश में और पृथ्वी पर चमत्कार, अर्थात्‌ लोहू और आग और धूएं के खम्भे दिखाऊंगा। यहोवा के उस बड़े और भयानक दिन के आने से पहिले सूर्य अन्धियारा होगा और चन्द्रमा रक्‍त सा हो जाएगा। उस समय जो कोई यहोवा से प्रार्थना करेगा, वह छुटकारा पाएगा।” उन वचनों की आंशिक पूर्ति सा.यु. वर्ष ७० में यरूशलेम के विनाश के समय हुई।

१८. योएल २:२८, २९ की महान पूर्ति कब आरंभ हुई?

१८ परन्तु योएल २:२८-३२ की बातें आने वाले समय पर भी लागू होती हैं। सच में, सितम्बर १९१९ से इस भविष्यवाणी की पूर्ति अद्‌भुत रीति से हो रही है। उस समय यहोवा के लोगों का एक स्मरणीय सम्मेलन सीडर पॉइन्ट, ओहायो, अमेरिका में हुआ था। परमेश्‍वर की आत्मा स्पष्ट रूप से प्रगट हुई, और उसके अभिषिक्‍त सेवक विश्‍वव्यापी गवाही देने का अभियान शुरू करने के लिए प्रेरित हुए, जो कि आज तक हो रहा है। उसके परिणामस्वरूप क्या ही महान विस्तार हुआ है! सीडर पॉइन्ट के उस सम्मेलन के ७,००० उपस्थित जनों की संख्या बढ़कर १,०६,५०,१५८ हो गई, जो ३० मार्च, १९९१ को यीशु की मृत्यु की यादगारी के अवसर पर उपस्थित थे। इनमें से केवल ८,८५० व्यक्‍तियों ने ही अभिषिक्‍त मसीही होने का संकेत दिया। यहोवा की सामर्थी आत्मा के द्वारा संपूर्ण पृथ्वी पर जो फल उत्पन्‍न हुए हैं, उन्हें देखकर उन सभी को कितना आनन्द हुआ है!—यशायाह ४०:२९, ३१.

१९. यहोवा के दिन की निकटता को दृष्टि में रखते हुए हम में से प्रत्येक की मनोवृत्ति किस प्रकार होनी चाहिए?

१९ “यहोवा के उस बड़े और भयानक दिन का आना” बिल्कुल निकट ही है जो शैतान की रीति-व्यवस्था को उजाड़ देगा। (योएल २:३१) खुशी की बात यह है कि “जो कोई यहोवा से प्रार्थना करेगा वह छुटकारा पाएगा।” (प्रेरितों २:२१) यह कैसे होगा? प्रेरित पतरस हमें बताता है कि “प्रभु का दिन चोर की नाईं आएगा” और फिर आगे कहता है: “तो जब कि ये सब वस्तुएं, इस रीति से पिघलनेवाली हैं, तो तुम्हें पवित्र चालचलन और भक्‍ति में कैसे मनुष्य होना चाहिए। और परमेश्‍वर के उस दिन की बाट किस रीति से जोहना चाहिए और उसके जल्द आने के लिये कैसा यत्न करना चाहिए।” यह ध्यान में रखकर कि यहोवा का दिन निकट है, हम एक धार्मिक “नए आकाश और नई पृथ्वी” की पूर्ति को भी देखकर आनंदित होंगे, जिसकी प्रतिज्ञा यहोवा ने की है।—२ पतरस ३:१०-१३.

[फुटनोट]

a La Repubblica, रोम, इटली, नवम्बर १२, १९८५, और La rivista del clero italiano, मई १९८५.

क्या आप बता सकते है?

▫ “यहोवा का दिन” क्या है?

▫ यीशु “पृथ्वी की दाख लता” की कटनी कैसे काटेंगे, और क्यों?

▫ टिड्डियाँ की विपत्ति ने १९१९ से मसीही जगत को कैसे पीड़ित किया है?

▫ यहोवा की आत्मा उसके लोगों पर सा.यु. वर्ष ३३ में, और फिर १९१९ में कैसे उण्डेली गई थी?

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