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प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1995
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आगे बेहतर समय है

“हमारे पास एक-शून्य-एक है,” एक स्त्री कहती है।

“मेरे लिए तो स्थिति और भी बदतर है,” उसकी सहेली जवाब देती है। “मैं शून्य-शून्य-एक पर हूँ।”

पश्‍चिम अफ्रीका के कुछ भागों में, ऐसे संक्षिप्त वार्तालाप को किसी व्याख्या की ज़रूरत नहीं है। दिन में तीन भोजन (एक-एक-एक) खाने के बजाय, एक-शून्य-एक पर एक व्यक्‍ति दिन में केवल दो बार खा सकता है—सुबह को एक बार और शाम को एक बार। शून्य-शून्य-एक पर एक युवा पुरुष अपनी स्थिति समझाता है: “मैं दिन में एक बार खाता हूँ। मैं अपने फ्रिज में पानी भरकर रखता हूँ। मैं रात को सोने से पहले गॉरी [कसावा] खाता हूँ। इसी प्रकार मैं स्थिति का सामना करता रहा हूँ।”

आज बढ़ती संख्या में लोगों की यही दुर्दशा है। क़ीमत बढ़ती हैं, और पैसे की क्रय-शक्‍ति घटती है।

खाद्य-पदार्थों की कमी पूर्वबतायी गयी

प्रेरित यूहन्‍ना को दिए गए दर्शनों की श्रंखला में, परमेश्‍वर ने उन कठिन परिस्थितियों के बारे में पूर्वबताया जिनका अनेक लोग आज सामना करते हैं। उनमें खाद्य-पदार्थों की कमी भी होती। यूहन्‍ना वर्णन करता है: “मैं ने दृष्टि की, और देखो, एक काला घोड़ा है; और उसके सवार के हाथ में एक तराजू है।” (प्रकाशितवाक्य ६:५) यह अनर्थकारी घोड़ा और सवार आकाल को चित्रित करते हैं—खाद्य-पदार्थों की इतनी कमी होगी कि इसे तौल-तौलकर नियंत्रित रूप से वितरित किया जाएगा।

इसके बाद प्रेरित यूहन्‍ना कहता है: “और मैं ने . . . यह कहते सुना, कि दीनार का सेर भर गेहूं, और दीनार का तीन सेर जव।” यूहन्‍ना के दिन में, एक सैनिक के लिए दैनिक राशन सेर भर गेहूँ था, और एक दिन के काम के लिए मज़दूरी में एक दीनार दिया जाता था। अतः, रिचर्ड वेमथ का अनुवाद इस आयत को ऐसे व्यक्‍त करता है: “एक पावरोटी के लिए एक पूरे दिन की मज़दूरी, तीन जव की रोटी के लिए एक पूरे दिन की मज़दूरी।”—प्रकाशितवाक्य ६:६.

आज एक पूरे दिन की मज़दूरी क्या है? रिपोर्ट संसार की जनसंख्या की दशा १९९४ (अंग्रेज़ी) कहती है: “कुछ १.१ अरब लोग, जो विकासशील संसार की जनसंख्या का लगभग ३० प्रतिशत हैं, तक़रीबन $१ प्रति दिन पर जीते हैं।” अतः, संसार के ग़रीब लोग, एक दिन की मज़दूरी से शाब्दिक तौर पर लगभग एक पावरोटी ही ख़रीद पाते हैं।

निश्‍चय ही यह उनके लिए, जो बहुत ही ग़रीब हैं, कोई आश्‍चर्य की बात नहीं है। “रोटी!” एक व्यक्‍ति ने विस्मय से कहा। “रोटी कौन खाता है? आजकल रोटी एक ऐसा भोजन है जो केवल विशेष अवसरों पर ही खाया जाता है!”

यह व्यंग्यात्मक बात है कि खाद्य-पदार्थों की कोई कमी नहीं है। यू.एन. स्रोतों के अनुसार, पिछले दस वर्षों के दौरान, संसार के खाद्य-पदार्थों के उत्पादन में २४ प्रतिशत वृद्धि हुई, जो कि संसार की जनसंख्या की वृद्धि से ज़्यादा थी। लेकिन, खाद्य-पदार्थों में इस वृद्धि का आनन्द सब लोगों ने नहीं उठाया। उदाहरण के लिए, अफ्रीका में खाद्य-पदार्थों का उत्पादन वास्तव में ५ प्रतिशत गिर गया, जबकि जनसंख्या ३४ प्रतिशत बढ़ी। सो विश्‍वव्यापी तौर पर खाद्य-पदार्थों की सामान्य प्रचुरता के बावजूद, अनेक देशों में खाद्य-पदार्थों की कमी जारी है।

खाद्य-पदार्थ की कमी का अर्थ है ऊँची क़ीमत। जो उपलब्ध है उसे ख़रीदने के लिए पैसे पाने को रोज़गार की कमी, कम मज़दूरी, और बढ़ती हुई मुद्रास्फीति और भी कठिन बना देती है। मानव विकास रिपोर्ट १९९४ (अंग्रेज़ी) कहती है: “लोग भूखे रहते हैं इसलिए नहीं कि खाद्य-पदार्थ उपलब्ध नहीं है—बल्कि इसलिए कि उसे ख़रीदने की उनकी औक़ात नहीं है।”

आशाहीनता, कुण्ठा, और हताशा बढ़ती जा रही है। “लोगों में यह भावना है कि आज बुरा है, लेकिन कल और भी बुरा होगा,” पश्‍चिम अफ्रीका में रहनेवाली ग्लोरी ने कहा। एक और स्त्री ने कहा: “लोग महसूस करते हैं कि वे एक महाविपत्ति की ओर बढ़ रहे हैं। वे महसूस करते हैं कि एक ऐसा दिन आएगा जब बाज़ार में कुछ भी नहीं बचेगा।”

अतीत में यहोवा ने अपने सेवकों की देखरेख की

परमेश्‍वर के सेवक जानते हैं कि यहोवा अपने विश्‍वासी जनों को सँभालने और कठिन परिस्थितियों का सामना करने के लिए शक्‍ति देने के द्वारा प्रतिफल देता है। प्रबन्ध करने की परमेश्‍वर की क्षमता में ऐसा भरोसा, दरअसल, उनके विश्‍वास का एक महत्त्वपूर्ण भाग है। प्रेरित पौलुस ने लिखा: “परमेश्‍वर के पास आनेवाले को विश्‍वास करना चाहिए, कि वह है; और अपने खोजनेवालों को प्रतिफल देता है।”—इब्रानियों ११:६.

यहोवा ने हमेशा अपने विश्‍वासी सेवकों की देखरेख की है। साढ़े तीन साल के सूखे के दौरान, यहोवा ने भविष्यवक्‍ता एलिय्याह के लिए भोजन प्रदान किया। शुरू-शुरू में, परमेश्‍वर ने कौओं को आज्ञा दी कि वे एलिय्याह के लिए रोटी और मांस लाएँ। (१ राजा १७:२-६) बाद में, यहोवा ने चमत्कारिक रूप से उस विधवा के मैदा और तेल के भण्डार को बनाए रखा जिसने एलिय्याह के लिए भोजन प्रदान किया। (१ राजा १७:८-१६) उसी आकाल के दौरान, दुष्ट रानी ईज़ेबेल द्वारा भविष्यवक्‍ताओं पर की गयी तीव्र धार्मिक सताहट के बावजूद, यहोवा ने निश्‍चित किया कि उसके भविष्यवक्‍ताओं को रोटी और पानी प्रदान किया जाए।—१ राजा १८:१३.

बाद में, जब बाबुल के राजा ने धर्मत्यागी यरूशलेम पर घेरा डाला, तब लोगों को ‘तौल तौलकर और चिन्ता कर करके रोटी खानी’ पड़ी। (यहेजकेल ४:१६) स्थिति इतनी निराशाजनक हो गयी कि कुछ स्त्रियों ने अपने ख़ुद के बच्चों का मांस खाया। (विलापगीत २:२०) फिर भी, भविष्यवक्‍ता यिर्मयाह हालाँकि अपने प्रचार की वजह से हिरासत में था, यहोवा ने यह निश्‍चित किया कि ‘जब तक नगर की सब रोटी न चुक जाए, तब तक [यिर्मयाह] को रोटीवालों की दूकान में से प्रतिदिन एक रोटी दी जाए।’—यिर्मयाह ३७:२१.

जब रोटी की सप्लाई चुक गयी, तब क्या यहोवा यिर्मयाह को भूल गया? प्रत्यक्षतः नहीं, क्योंकि जब बाबुलवासियों ने शहर को पराजित किया, तब यिर्मयाह को “रसद और उपहार देकर विदा किया” गया।—यिर्मयाह ४०:५, ६, NHT. भजन ३७:२५ भी देखिए।

परमेश्‍वर आज अपने सेवकों को सँभालता है

जिस तरह यहोवा अतीत की पढ़ियों में दोनों, भौतिक और आध्यात्मिक रूप से अपने सेवकों की देखरेख करता था, वैसे ही वह आज भी करता है। उदाहरण के लिए, लामिटूण्डे के अनुभव पर ग़ौर कीजिए, जो पश्‍चिम अफ्रीका में रहता है। वह बताता है: “मेरा एक काफ़ी बड़ा मुर्ग़ी-फ़ार्म हुआ करता था। एक दिन, सशस्त्र लुटेरे फ़ार्म पर आए और अधिकांश मुर्ग़ियाँ, आपात-स्थिति में इस्तेमाल किया जानेवाला जनरेटर, और हमारे पास जितने पैसे थे उसे चुरा कर ले गए। उसके कुछ ही समय बाद, जो थोड़ी-सी मुर्ग़ियाँ बच गयी थीं, वे बीमारी से मर गयीं। इससे मेरा मुर्ग़ियों का व्यापार चौपट हो गया। दो सालों तक मैंने नौकरी ढूँढ़ने की असफल कोशिश की। स्थिति सचमुच कठिन थी, लेकिन यहोवा ने हमें सँभाला।

“मेरे यह पहचानने से कि यहोवा हमें परिष्कृत करने के लिए बातों को घटने देता है, उन कठिन समयों से निपटने में मुझे मदद मिली। मेरी पत्नी और मैंने पारिवारिक बाइबल अध्ययन का हमारा नित्यक्रम जारी रखा, और इससे वास्तव में हमें मदद मिली। प्रार्थना भी शक्‍ति का एक बड़ा स्रोत था। कभी-कभी मुझे प्रार्थना करने को मन नहीं करता था, लेकिन जब मैंने वाक़ई प्रार्थना की तो मुझे अच्छा महसूस हुआ।

“उस कठिन अवधि के दौरान, मैंने शास्त्र पर मनन करने के महत्त्व को सीखा। मैं भजन २३ के बारे में बहुत सोचा करता था, जो यहोवा के बारे में हमारा चरवाहे के रूप में बात करता है। और एक शास्त्रवचन जिसने मुझे प्रोत्साहित किया, वह फिलिप्पियों ४:६, ७ था जो ‘परमेश्‍वर की शान्ति, जो समझ से बिलकुल परे है’ का ज़िक्र करता है। और एक पाठ जिसने मुझे शक्‍ति प्रदान की, वह था १ पतरस ५:६, ७ जो कहता है: ‘परमेश्‍वर के बलवन्त हाथ के नीचे दीनता से रहो, जिस से वह तुम्हें उचित समय पर बढ़ाए। और अपनी सारी चिन्ता उसी पर डाल दो, क्योंकि उस को तुम्हारा ध्यान है।’ इन सब आयतों ने मुझे उन कठिन समयों में मदद की। जब आप मनन करते हैं, तब आप अपने मन के उन विचारों को बदलने में समर्थ होते हैं जो हताशा उत्पन्‍न करते हैं।

“अब मैं फिर से कार्यरत हूँ, लेकिन सच कहूँ तो, स्थिति अब भी कठिन है। ठीक जिस प्रकार बाइबल ने २ तीमुथियुस ३:१-५ में पूर्वबताया, हम ‘अन्तिम दिनों’ में जी रहे हैं, जो ‘कठिन समय’ से चिन्हित है। शास्त्रवचन जो कहता है उसे हम बदल नहीं सकते। सो मैं ज़िन्दगी के आसान होने की अपेक्षा नहीं करता। फिर भी, मैं महसूस करता हूँ कि यहोवा की आत्मा स्थिति से निपटने में मेरी मदद कर रही है।”

इन कठिन समयों के बावजूद, जिसमें हम जी रहे हैं, जो यहोवा और उसके राजा-पुत्र, यीशु मसीह में भरोसा रखते हैं वे निरुत्साहित नहीं होंगे। (रोमियों १०:११) स्वयं यीशु हमें आश्‍वासन देता है: “इसलिये मैं तुम से कहता हूं, कि अपने प्राण के लिये यह चिन्ता न करना कि हम क्या खाएंगे? और क्या पीएंगे? और न अपने शरीर के लिये कि क्या पहिनेंगे? क्या प्राण भोजन से, और शरीर वस्त्र से बढ़कर नहीं? आकाश के पक्षियों को देखो! वे न बोते हैं, न काटते हैं, और न खत्तों में बटोरते हैं; तौभी तुम्हारा स्वर्गीय पिता उन को खिलाता है; क्या तुम उन से अधिक मूल्य नहीं रखते। तुम में कौन है, जो चिन्ता करके अपनी अवस्था में एक घड़ी भी बढ़ा सकता है? और वस्त्र के लिये क्यों चिन्ता करते हो?”—मत्ती ६:२५-२८.

ये निश्‍चय ही इन कठिन समयों में विचार-परिक्षा करनेवाले सवाल हैं। लेकिन यीशु ने इन आश्‍वासन देनेवाले शब्दों से बात को जारी रखा: “जंगली सोसनों पर ध्यान करो, कि वे कैसे बढ़ते हैं, वे न तो परिश्रम करते, न कातते हैं। तौभी मैं तुम से कहता हूं, कि सुलैमान भी, अपने सारे विभव में उन में से किसी के समान वस्त्र पहिने हुए न था। इसलिये जब परमेश्‍वर मैदान की घास को, जो आज है, और कल भाड़ में झोंकी जाएगी, ऐसा वस्त्र पहिनाता है, तो हे अल्पविश्‍वासियो, तुम को वह क्योंकर न पहिनाएगा? इसलिये तुम चिन्ता करके यह न कहना, कि हम क्या खाएंगे, या क्या पीएंगे, या क्या पहिनेंगे? क्योंकि अन्यजाति इन सब वस्तुओं की खोज में रहते हैं, और तुम्हारा स्वर्गीय पिता जानता है, कि तुम्हें ये सब वस्तुएं चाहिए। इसलिये पहिले तुम उसके राज्य और धर्म की खोज करो तो ये सब वस्तुएं भी तुम्हें मिल जाएंगी।”—मत्ती ६:२८-३३.

आगे बेहतर समय है

हर संकेत है कि संसार के अनेक भागों में, बिगड़ती हुई आर्थिक और सामाजिक परिस्थितियाँ बदतर होना जारी रखेंगी। फिर भी, परमेश्‍वर के लोग समझते हैं कि ये परिस्थितियाँ अस्थायी हैं। राजा सुलैमान के शानदार शासन ने एक ऐसे राजा के धर्मी शासकत्व की पूर्वझलक दी जो सुलैमान से बड़ा है और जो पूरी पृथ्वी पर शासन करेगा। (मत्ती १२:४२) वह राजा मसीह यीशु है, जो “राजाओं का राजा और प्रभुओं का प्रभु” है।—प्रकाशितवाक्य १९:१६.

भजन ७२, जिसकी प्रारंभिक पूर्ति राजा सुलैमान के सम्बन्ध में हुई, यीशु मसीह के भव्य शासन का वर्णन करता है। उन में से कुछेक अद्‌भुत बातों पर ग़ौर कीजिए जो वह राजा के तौर पर मसीह के अधीन पृथ्वी के भविष्य के बारे में पूर्वबताता है।

संसार-भर में शान्तिपूर्ण परिस्थितियाँ: “उसके दिनों में धर्मी फूले फलेंगे, और जब तक चन्द्रमा बना रहेगा, तब तक शान्ति बहुत रहेगी। वह समुद्र से समुद्र तक और महानद से पृथ्वी की छोर तक प्रभुता करेगा।”—भजन ७२:७, ८.

कंगालों के लिए चिन्ता: “वह दोहाई देनेवाले दरिद्र को, और दुःखी और असहाय मनुष्य का उद्धार करेगा। वह कंगाल और दरिद्र पर तरस खाएगा, और दरिद्रों के प्राणों को बचाएगा। वह उनके प्राणों को अन्धेर और उपद्रव से छुड़ा लेगा; और उनका लोहू उसकी दृष्टि में अनमोल ठहरेगा।”—भजन ७२:१२-१४.

खाद्य-पदार्थों की बहुतायत: “देश में पहाड़ों की चोटियों पर बहुत सा अन्‍न होगा।”—भजन ७२:१६.

यहोवा की महिमा से पृथ्वी का परिपूर्ण होना: “धन्य है, यहोवा परमेश्‍वर जो इस्राएल का परमेश्‍वर है; आश्‍चर्य कर्म केवल वही करता है। उसका महिमायुक्‍त नाम सर्वदा धन्य रहेगा; और सारी पृथ्वी उसकी महिमा से परिपूर्ण होगी।”—भजन ७२:१८, १९.

सो सचमुच आगे बेहतर समय है।

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