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प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1996
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यहोवा ने हमें कभी नहीं त्यागा

नाशो डोरी द्वारा बताया गया

एमब्रिश्‍तान दक्षिणी अल्बेनिया का एक छोटा-सा पहाड़ी गाँव है, जो यूनान से ज़्यादा दूर नहीं है। मैं वहाँ १९०७ में पैदा हुआ था। जब मैं पाँच बरस का था, तब मैंने एक यूनानी स्कूल में जाना शुरू किया, लेकिन पहले विश्‍व युद्ध के दौरान जब इटालियन सेना ने अल्बेनिया पर धावा बोला, तब मेरी शिक्षा रुक गयी। युद्ध के बाद, मैंने अपनी शिक्षा दोबारा शुरूकीलेकिन अल्बेनियन भाषा में।

हालाँकि मेरे माता-पिता बहुत धार्मिक नहीं थे, वे अल्बेनियन ऑर्थोडॉक्स चर्च की परम्पराओं को मानते थे। मेरे दादाजी के भाई एमब्रिश्‍तान में एक पादरी थे, सो मैंने गिरजे में काम किया और मुझे ऑर्थोडॉक्स चर्च की गतिविधियाँ ख़ुद देखने को मिलीं। परम्पराएँ इतनी खोखली प्रतीत होती थीं, और पाखण्ड से मैं परेशान था।

स्थानीय रिवाज़ के अनुसार, मेरे माता-पिता ने मेरे विवाह के लिए एक युवती को चुना। अर्जिरो पास के ग्राबोवा गाँव से थी, और १९२८ में हमारा विवाह हुआ, जब वह १८ बरस की थी।

बाइबल सच्चाई को सीखना

लगभग उसी समय मैंने ऑर्थोडॉक्स चर्च के बारे में अमरीका से भेंट करने आए एक चचेरे भाई से शिकायत की। “अमरीका में, मेरे घर के पास,” उसने जवाब दिया, “लोगों का एक समूह है जिनका गिरजा नहीं है, लेकिन वे बाइबल का अध्ययन करते हैं।” बिना कोई गिरजे के बाइबल का अध्ययन करने का विचार मुझे आकर्षक लगा। सो मैंने पूछा कि क्या वह मुझे कुछ बाइबल साहित्य भेज सकता है।

हमारे वार्तालाप के बारे में मैं तब तक पूरी तरह भूल गया था जब तक कि लगभग एक साल बाद मैंने मिलवॉकी, विसकॉनसन से एक पैकेज नहीं प्राप्त किया। अन्दर अल्बेनियन भाषा में परमेश्‍वर की वीणा पुस्तक और यूनानी में प्रहरीदुर्ग थी। मैंने पुस्तक पर सरसरी नज़र दौड़ायी और असली गिरजे का एक उल्लेख देखा। इस बात ने मुझे परेशान किया। ‘मैं गिरजे से कोई वास्ता नहीं रखना चाहता,’ मैंने अपने आपसे कहा। सो मैंने पुस्तक को पूरी तरह से नहीं पढ़ा।

१९२९ में, मैं सेना में भरती हुआ और अल्बेनिया की राजधानी, टिरॉना के शहर को भेजा गया। वहाँ मेरी मुलाक़ात स्टाथी मूसी से हुई, जो एक यूनानी बाइबल पढ़ रहा था। “क्या आप गिरजा जाते हैं?” मैंने पूछा। “जी नहीं,” उसने जवाब दिया। “मैंने गिरजा छोड़ दिया। मैं अंतर्राष्ट्रीय बाइबल विद्यार्थियों में से एक हूँ।” एक अन्य सैनिक और मैं स्टाथी के साथ रविवार को एक सभा में गए। वहाँ मैंने सीखा कि असली गिरजा कोई इमारत या एक धर्म नहीं है, बल्कि यह मसीह के अभिषिक्‍त सेवकों से बना है। अब मैं समझ गया कि परमेश्‍वर की वीणा क्या कह रही थी।

नाशो आइड्रिज़ी और स्पायरो रूहो अमरीका से १९२० के दशक के मध्य में अल्बेनिया को लौट आए थे और जो बाइबल सच्चाइयाँ उन्होंने वहाँ सीखी थीं उन्हें फैला रहे थे। मैं टिरॉना में मुट्ठी-भर बाइबल विद्यार्थियों के साथ सभाओं में उपस्थित होने लगा। जल्द ही मुझे यह स्पष्ट हो गया कि मैंने यहोवा के संगठन को पा लिया था। सो अगस्त ४, १९३० को, पास की नदी में मेरा बपतिस्मा हुआ।

बाद में मैं जूते बनाने के अपने पेशे को जारी रखने के लिए एमब्रिश्‍तान लौटा। लेकिन उससे महत्त्वपूर्ण, मैंने जो बाइबल सच्चाइयाँ सीखी थीं उन्हें मैं दूसरों के साथ बाँटने भी लगा। मैं उनसे कहता: “यीशु मसीह गिरजे की मूर्तियों की तरह नहीं है। वह जीवित है!”

विरोध के बावजूद प्रचार करना

अकमद बे ज़ोगया ने १९२५ में सत्ता हासिल की, १९२८ में अपने आपको किंग जोग प्रथम बनाया, और १९३९ तक शासन किया। हमारे मसीही कार्य के लिए मानव अधिकारों के उसके मंत्री ने अनुमोदन दिया। फिर भी, हमें समस्याएँ थीं। ऐसा इसलिए था क्योंकि आंतरिक मामलों के मंत्री, मूसॉ जूका का रोम के पोप के साथ नज़दीकी सम्बन्ध था। जूका ने आदेश दिया कि केवल तीन धर्मों को मान्यता दी जाए—मुसलमान, ऑर्थोडॉक्स, और रोमन कैथोलिक। पुलिस ने हमारी पुस्तकों को ज़ब्त करने और हमारे प्रचार को रोकने की कोशिश की लेकिन वे असफल रहे।

१९३० के दशक के दौरान, मैं अकसर बरॉट जाया करता था, जो अल्बेनिया का एक बड़ा शहर है जहाँ से मिहाल स्वेसी हमारे प्रचार कार्य को निर्देशित करता था। हमने पूरे देश में प्रचार दौरों का प्रबन्ध किया। एक बार मुझे श्‍कोडर के नगर को दो सप्ताह के लिए भेजा गया, और मैं काफ़ी साहित्य छोड़ने में समर्थ हुआ था। १९३५ में हम में से एक समूह ने कालसायरा के नगर में प्रचार करने के लिए एक बस को किराए पर लिया। फिर अल्बेनिया का एक बड़ा दौरा परमॆट, लॆसकोविक, एरसॆकी, कॉरचा, पॉग्रॉडॆट्‌स, और एलबासॉन के नगरों के लिए नियत किया गया। हमने टिरॉना में दौरा ऐन वक़्त पर ख़त्म किया ताकि हम मसीह की मृत्यु के स्मारक को मना सकें।

आध्यात्मिक भोजन की आपूर्ति ने हमें आध्यात्मिक रूप से मज़बूत रहने में मदद की, सो हमने कभी त्यागा हुआ नहीं महसूस किया। १९३० से १९३९ तक, मैं नियमित रूप से यूनानी प्रहरीदुर्ग प्राप्त करता था। हर रोज़ कम-से-कम एक घंटे के लिए बाइबल पढ़ना भी मेरा लक्ष्य था, जिसे मैंने अपनी दृष्टि कमज़ोर होने से पहले कुछ ६० सालों तक किया। बस हाल ही में अल्बेनियन भाषा में सम्पूर्ण बाइबल उपलब्ध हुई है, सो मैं ख़ुश हूँ कि मैंने बचपन में यूनानी सीखी। उन प्रारंभिक दिनों में अन्य अल्बेनियन साक्षियों ने भी यूनानी पढ़ना सीख लिया ताकि वे भी सम्पूर्ण बाइबल पढ़ सकें।

१९३८ में, अर्जिरो ने बपतिस्मा प्राप्त किया। १९३९ तक हमारे दस बच्चों में से सात का जन्म हो चुका था। दुःख की बात है, हमारे पहले सात बच्चों में से तीन बच्चे बचपन में ही गुज़र गए।

दूसरे विश्‍व युद्ध के दौरान कठिनाइयाँ

अप्रैल १९३९ में, दूसरे विश्‍व युद्ध की शुरूआत से कुछ ही पहले, इटालियन फ़ासिस्ट सेना ने अल्बेनिया पर हमला किया। उसके बाद जल्द ही यहोवा के साक्षियों के कार्य पर प्रतिबन्ध लगाया गया, लेकिन लगभग ५० राज्य उद्‌घोषकों के हमारे छोटे समूह ने प्रचार करना जारी रखा। दूसरे विश्‍व युद्ध के दौरान हमारी कुछ १५,००० पुस्तकें और पुस्तिकाएँ ज़ब्त की गयीं और नष्ट कर दी गयीं।

जानी कोमिनो के पास साहित्य के लिए उसके घर से जुड़ा हुआ एक बड़ा गोदाम था। जब इटालियन सेनाओं को पता चला कि पुस्तकें अमरीका में मुद्रित की गयी थीं, तो वे परेशान हो गए। “तुम मत-प्रचारक हो! अमरीका इटली के विरुद्ध है!” उन्होंने कहा। उत्साही युवा भाई थोमाइ और वासीली कामा को गिरत्नतार किया गया, और जब पता चला कि जो पुस्तकें वे वितरित कर रहे थे वे कोमिनो से आयी थीं, तो उसे भी गिरत्नतार किया गया। जल्द ही पूछताछ के लिए पुलिस ने मुझे बुलाया।

“क्या आप इन पुरुषों को जानते हैं?” उसने पूछा।

“जी हाँ,” मैंने जवाब दिया।

“क्या आप इनके साथ काम करते हैं?”

“जी हाँ,” मैंने जवाब दिया। “हम यहोवा के साक्षी हैं। हम सरकारों के विरुद्ध नहीं हैं। हम तटस्थ हैं।”

“क्या आप इस साहित्य को वितरित करते रहे हैं?”

जब मैंने जवाब हाँ में दिया, तो उन्होंने मुझे हथकड़ी लगायी, और मुझे जुलाई ६, १९४० को जेल में डाला गया। वहाँ मैं अपने गाँव के पाँच अन्य लोगों के साथ शामिल हो गया—जोसफ कासी, लूकन बारको, जानी कोमिनो, और कामा भाई। जेल में रहते वक़्त हम तीन अन्य साक्षियों से मिले—गोरी नासी, निकोधिम शैती, लीयॉनॆडॆस पोप। हम सब नौ जनों को १.८ बाय ३.७ मीटर की कोठरी में ठूँस दिया गया!

कुछ दिनों के बाद, हमें एकसाथ बाँधकर परमॆट शहर ले जाया गया। तीन महीने बाद हमें टिरॉना के जेल में स्थानांतरित किया गया और बिना सुनवाई के और आठ महीने हिरासत में रखा गया।

अंततः, हम एक सैन्य अदालत के सामने पेश हुए। भाई शैती और मुझे २७ महीनों की सज़ा दी गयी, भाई कोमिनो को २४ महीनों की, और अन्य लोगों को १० महीनों के बाद रिहा कर दिया गया। हमें जिरकॉस्टर जेल में स्थानांतरित किया गया, जहाँ भाई गोले फ्लोको ने १९४३ में हमारी रिहाई प्राप्त करने में मदद की। बाद में हमारा परिवार परमॆट के शहर में बस गया, जहाँ मैं छोटी कलीसिया का ओवरसियर बना।

हालाँकि हमारे कार्य पर प्रतिबन्ध था और हमारे चारों तरफ़ के देशों में दूसरा विश्‍व युद्ध चल रहा था, हमने राज्य संदेश को प्रचार करने की अपनी नियुक्‍ति को पूरा करने में जितना कर सकते थे उतना करना जारी रखा। (मत्ती २४:१४) १९४४ में कुल मिलाकर १५ साक्षी जेल में थे। फिर भी, इन कठिन समयों के दौरान, हमने यहोवा द्वारा कभी त्यागा हुआ नहीं महसूस किया।

तटस्थता के वाद-विषय पर परखा जाना

हालाँकि युद्ध १९४५ में समाप्त हुआ, हमारी कठिनाइयाँ जारी रहीं और बदतर भी हो गयीं। दिसम्बर २, १९४६ के चुनाव के दौरान अनिवार्य मतदान लागू किया गया। जिसने भी भाग न लेने की जुर्रत की, उसे सरकार का दुश्‍मन समझा गया। परमॆट की हमारी कलीसिया के लोग पूछने लगे, “हमें क्या करना चाहिए?”

“यदि आप यहोवा में भरोसा रखते हैं,” मैंने जवाब दिया, “तो आपको मुझसे पूछने की ज़रूरत नहीं कि क्या करना है। आप पहले ही जानते हैं कि यहोवा के लोग तटस्थ हैं। वे संसार का कोई भाग नहीं।”—यूहन्‍ना १७:१६.

चुनाव का दिन आ पहुँचा, और सरकारी प्रतिनिधि हमारे घर आए। उन्होंने शान्तिपूर्ण रूप से शुरू किया, “ओह, आइए हम एक प्याला कॉफ़ी पीते हैं और बात करते हैं। क्या आप जानते हैं कि आज क्या है?”

“जी हाँ, आज चुनाव हो रहे हैं,” मैंने जवाब दिया।

“आपको जल्दी करनी चाहिए, नहीं तो आपको देरी हो जाएगी,” एक अफ़सर ने कहा।

“जी नहीं, मेरा जाने का इरादा नहीं है। हमारा वोट यहोवा के लिए है,” मैंने जवाब दिया।

“तो ठीक है, फिर आइए और विरोधी दल के लिए वोट दीजिए।”

मैंने समझाया कि यहोवा के साक्षी पूरी तरह से तटस्थ हैं। जब हमारी स्थिति जानी-मानी हो गयी, तो हम पर ज़्यादा दबाव डाला गया। हमें आदेश दिया गया कि हम अपनी सभाएँ आयोजित करना बन्द करें, सो हम गुप्त रूप से मिलने लगे।

अपने गाँव को लौटना

१९४७ में मैं और मेरा परिवार एमब्रिश्‍तान को लौटे। उसके कुछ ही समय बाद, दिसम्बर की एक ठण्डी दोपहर को, मुझे सिगुरीमी (गुप्त पुलिस) के दत्नतर में बुलाया गया। “क्या आप जानते हैं कि मैंने आपको क्यों बुलाया है?” अफ़सर ने पूछा।

“मुझे लगता है, क्योंकि आपने मेरे विरुद्ध आरोप सुने हैं,” मैंने जवाब दिया। “लेकिन बाइबल कहती है कि संसार हमसे घृणा करेगा, सो आरोपों से मुझे आश्‍चर्य नहीं होता।”—यूहन्‍ना १५:१८, १९.

“मुझसे बाइबल के बारे में बात मत करो,” उसने तुनककर कहा। “मैं आपको बुरी तरह पीटूँगा।”

वह अफ़सर और उसके लोग चले गए लेकिन मुझे बाहर ठण्ड में खड़े रहने का आदेश दिया। कुछ समय के बाद उसने मुझे वापस अपने दत्नतर में बुलाया और आदेश दिया कि हम अपने घर में सभाएँ आयोजित करना बन्द कर दें। “तुम्हारे गाँव में कितने लोग रहते हैं?” उसने पूछा।

“एक सौ बीस लोग,” मैंने कहा।

“वे कौन-से धर्म के हैं?”

“अल्बेनियन ऑर्थोडॉक्स।”

“और तुम?”

“मैं यहोवा का एक साक्षी हूँ।”

“एक सौ बीस लोग एक रास्ते चलते हैं और तुम दूसरे?” फिर उसने मुझे गिरजे में मोमबत्तियाँ जलाने का आदेश दिया। जब मैंने कहा कि मैं ऐसा नहीं करूँगा, तो वह मुझे एक छड़ी से मारने लगा। अंततः जब मुझे रिहा किया गया, तब लगभग रात का एक बजा था।

साहित्य आपूर्ति का बन्द होना

दूसरे विश्‍व युद्ध के समाप्त होने के बाद, हमें फिर से डाक द्वारा प्रहरीदुर्ग प्राप्त होने लगी, लेकिन अंततः पत्रिकाएँ पहुँचनी बन्द हो गयीं। फिर, एक रात दस बजे, मुझे गुप्त पुलिस ने बुलाया। “यूनानी में एक पत्रिका आयी है,” मुझे बताया गया, “और हम चाहते हैं कि आप हमें समझाएँ कि यह सब किसके बारे में है।”

“मुझे अच्छी तरह यूनानी नहीं आती,” मैंने कहा। “मेरा पड़ोसी इसे बेहतर जानता है। शायद वह आपकी मदद कर सके।”

“जी नहीं, हम चाहते हैं कि आप इसे समझाएँ,” कुछ यूनानी प्रहरीदुर्ग की प्रतियाँ बाहर निकालते हुए एक अफ़सर ने कहा।

“ओह, ये तो मेरी हैं!” मैं चिल्ला उठा। “निश्‍चय ही, मैं इसके बारे में समझा सकता हूँ। देखिए, ये पत्रिकाएँ ब्रुकलिन, न्यू यॉर्क से आती हैं। वहीं यहोवा के साक्षियों का मुख्यालय स्थित है। मैं यहोवा का एक साक्षी हूँ। लेकिन ऐसा लगता है कि उन्होंने पते में कुछ ग़लती की है। ये पत्रिकाएँ आपको नहीं, मुझे भेजी जानी थीं।”

उन्होंने मुझे पत्रिकाएँ नहीं दीं, और उस समय से लेकर १९९१ तक, ४० से भी अधिक साल बाद तक, हमने अल्बेनिया में कोई बाइबल साहित्य नहीं प्राप्त किया। उन सभी सालों के दौरान, हमने केवल बाइबल का इस्तेमाल करते हुए प्रचार करना जारी रखा। १९४९ में लगभग २० साक्षी जेल में थे; कुछ को पाँच साल की सज़ा हुई थी।

कठिनाइयाँ बढ़ती हैं

१९५० के दशक में, यह दिखाते हुए कि वे सेना का समर्थन करते थे, लोगों को काग़ज़ात साथ रखने के लिए आदेश दिया गया था। लेकिन यहोवा के साक्षियों ने ऐसे काग़ज़ात साथ रखने से इनकार कर दिया। इसकी वजह से, भाई कोमिनो और मैंने दो महीने और जेल में बिताए।

उस समय के दौरान जब सरकार ने कुछ धर्मों को अस्तित्व में रहने की अनुमति दी थी, हमारे पास कुछ हद तक स्वतंत्रता थी। लेकिन, १९६७ में सब धर्मों पर प्रतिबन्ध लगाया गया, जिससे अल्बेनिया आधिकारिक रूप से पूरी तरह एक नास्तिक देश बन गया। साक्षियों ने सभाएँ आयोजित करना जारी रखने की कोशिश की, लेकिन यह बहुत कठिन हो गया। हम में से कुछ लोगों ने अपने कोट के अस्तर में एक ख़ास जेब सिल ली ताकि हम एक छोटी बाइबल छिपा सकें। फिर हम उसे पढ़ने के लिए किसी खेत में जाते।

टिरॉना के साक्षी पकड़े गए, और तीन जनों को दूर श्रमिक शिविरों में पाँच साल की सज़ा दी गयी। इसके परिणामस्वरूप, उनके परिवारों को दुःख उठाना पड़ा। छोटे, पृथक गाँवों के हम लोगों को नहीं भेजा गया क्योंकि हमें गंभीर ख़तरा नहीं समझा गया। लेकिन हमारी तटस्थता की वजह से भोजन-सूचियों में से हमारे नामों को हटा दिया गया। अतः, जीवन बहुत कठिन हो गया। साथ ही, हमारे दो और बच्चे गुज़र गए। फिर भी हमने यहोवा द्वारा कभी त्यागा हुआ नहीं महसूस किया।

अल्बेनिया में भय व्यापक था। हरेक पर नज़र रखी जाती थी, और गुप्त पुलिस ऐसे किसी भी व्यक्‍ति पर रिपोर्ट लिखती जो शासन करनेवाली पार्टी से भिन्‍न राय व्यक्‍त करने की जुर्रत करता। सो हम अपनी गतिविधि के बारे में लिखित रिपोर्ट बनाने के बारे में बहुत चौकस थे। हम आध्यात्मिक प्रोत्साहन के लिए दो या तीन से ज़्यादा के समूहों में नहीं मिल सकते थे। फिर भी, हमने प्रचार करना कभी नहीं रोका।

भाइयों में उलझन पैदा करने के प्रयास में, गुप्त पुलिस ने यह अफ़वाह फैलायी कि टिरॉना का एक प्रमुख साक्षी गुप्तचर था। इसकी वजह से कुछ लोगों ने विश्‍वास खो दिया और हमारी एकता कुछ हद तक भंग हो गयी। बिना किसी सामयिक बाइबल साहित्य के और यहोवा के दृश्‍य संगठन के साथ कोई संपर्क नहीं होने की वजह से, कुछ लोग भय का शिकार हो गए।

इसके अतिरिक्‍त, अधिकारियों ने यह अफ़वाह फैलायी कि अल्बेनिया के एक अति सम्मानित मसीही प्राचीन, स्पायरो रूहो ने आत्महत्या कर ली थी। “देखा आपने,” उन्होंने कहा, “रूहो ने भी हार मान ली।” यह बाद में प्रत्यक्ष हुआ कि भाई रूहो की वास्तव में हत्या की गयी थी।

१९७५ में, अर्जिरो और मैं टिरॉना में अपने बेटे के साथ कुछ महीने रहे। चुनाव के समय के दौरान, शहर के अधिकारियों ने यह धमकी देने के द्वारा हम पर दबाव डाला: “यदि तुम वोट नहीं दोगे, तो हम तुम्हारे बेटे की नौकरी छीन लेंगे।”

“मेरा बेटा अपनी नौकरी २५ सालों से कर रहा है,” मैंने जवाब दिया। “आपके पास उसके और उसके परिवार के बारे में विस्तृत व्यक्‍तिगत रिकार्ड हैं। मैंने ४० से भी ज़्यादा सालों से वोट नहीं दिया है। यह जानकारी सामान्यतः कार्यकर्ता रिकार्ड में होती है। यदि यह नहीं है, तो आपके रिकार्ड ठीक-ठाक नहीं हैं। यदि यह आपके रिकार्ड में है, तो आप इतने सालों तक इसे काम करने की अनुमति देने के द्वारा अपनी पार्टी के प्रति विश्‍वासघाती रहे हैं।” यह सुनने पर, अधिकारियों ने कहा कि यदि हम एमब्रिश्‍तान को लौट जाते हैं, तो वे विवाद को आगे नहीं बढ़ाएँगे।

नाटकीय परिवर्तन

१९८३ में हम एमब्रिश्‍तान से लैच शहर को स्थानांतरित हुए। उसके कुछ ही समय बाद, १९८५ में अधिनायक की मृत्यु हो गयी। उसने तब से शासन किया था जब से १९४६ में वे पहले अनिवार्य चुनाव हुए थे। समय आने पर, टिरॉना के मुख्य चौक पर छायी हुई उसकी मूर्ति और स्टालिन की मूर्ति निकाल दी गयी।

उन दशकों के दौरान जब हमारी गतिविधि पर प्रतिबन्ध लगाया गया था, अनेक साक्षियों के साथ क्रूरता से सलूक किया गया, और कुछ को मार दिया गया। एक व्यक्‍ति ने सड़कों पर कुछ साक्षियों को बताया: “साम्यवादियों के समय के दौरान, हम सब ने परमेश्‍वर को छोड़ दिया था। केवल यहोवा के साक्षी परीक्षाओं और कठिनाइयों के बावजूद उसके प्रति वफ़ादार रहे।”

जैसे-जैसे ज़्यादा स्वतंत्रता दी गयी, नौ लोगों ने जून १९९१ में मसीही सेवकाई में गतिविधि रिपोर्ट की। जून १९९२ में, प्रतिबन्ध के हटाए जाने के एक महीने बाद, ५६ लोगों ने प्रचार कार्य में भाग लिया। उस साल की शुरूआत में, मसीह की मृत्यु के स्मारक में ३२५ लोगों के उपस्थित होने से हम अति आनन्दित हुए। तब से प्रचार करनेवालों की संख्या ६०० से अधिक हो गयी है, और अप्रैल १४, १९९५ को स्मारक पर कुल ३,४९१ लोग उपस्थित हुए! हाल के वर्षों में हमारी कलीसियाओं में इतने सारे युवा लोगों को जुड़ते हुए देखना मेरे लिए अवर्णनीय आनन्द की बात रही है।

अर्जिरो यहोवा के प्रति वफ़ादार रही है और इन अनेक सालों में मेरे प्रति निष्ठावान भी रही है। जब मैं जेल में था या प्रचार कार्य में सफ़र कर रहा था, उसने धैर्यपूर्वक बिना शिकायत के परिवार की ज़रूरतों की देखभाल की। हमारे एक बेटे और उसकी पत्नी ने १९९३ में बपतिस्मा प्राप्त किया। इस बात ने हमें कितना ख़ुश किया।

केवल परमेश्‍वर के राज्य के लिए

अल्बेनिया में यहोवा के संगठन को इतना एकीकृत और आध्यात्मिक समृद्धि का आनन्द उठाते हुए देखने में मैं कितना हर्षित हूँ। मैं यरूशलेम के वृद्ध शमौन की तरह महसूस करता हूँ जिसे मरने से पहले, पूर्व प्रतिज्ञात मसीहा को देखने का बहुमूल्य विशेषाधिकार दिया गया था। (लूका २:३०, ३१) अब जब मुझसे पूछा जाता है कि किस प्रकार की सरकार मुझे पसन्द है, तो मैं कहता हूँ: “मुझे ना तो साम्यवाद पसन्द है ना ही पूँजीवाद। चाहे लोग या सरकार ज़मीन के स्वामी हों, यह महत्त्वपूर्ण नहीं है। सरकारें सड़कें बनाती हैं, दूर गाँवों को बिजली देती हैं, और कुछ हद तक व्यवस्था का प्रबन्ध करती हैं। लेकिन, यहोवा की सरकार, उसका स्वर्गीय राज्य उन कठिन समस्याओं का एकमात्र हल है जिसका सामना अल्बेनिया साथ ही साथ शेष संसार कर रहा है।”

परमेश्‍वर के राज्य के बारे में प्रचार करने में परमेश्‍वर के सेवक पृथ्वी-भर में जो कर रहे हैं, वह किसी मानव का काम नहीं है। यह परमेश्‍वर का काम है। हम उसके सेवक हैं। हालाँकि अल्बेनिया में हमें अनेक कठिनाइयाँ हुई थीं और काफ़ी समय से यहोवा के दृश्‍य संगठन के साथ हमारा कोई संपर्क नहीं था, हम उसके द्वारा कभी त्यागे नहीं गए। उसकी आत्मा हमेशा मौजूद थी। उसने मार्ग के हर क़दम पर हमें मार्गदर्शित किया। इसे मैंने अपनी पूरी ज़िन्दगी में देखा है।

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