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प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1997
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एक बेहतर तरीक़ा

यहोवा के साक्षी संसार में आध्यात्मिकता के क्षय और समाज में जो अनैतिकता तथा धार्मिक अनिश्‍चितता व्याप्त है, उसके बारे में चिन्तित हैं। परिणामस्वरूप, उन्हें कभी-कभी मूलतत्त्ववादी कहा जाता है। लेकिन क्या वे हैं? जी नहीं। जबकि उनके मज़बूत धार्मिक विश्‍वास होते हैं, लेकिन जिस अर्थ से यह पद इस्तेमाल होने लगा है उस अर्थ में वे मूलतत्त्ववादी नहीं हैं। वे राजनैतिक नेताओं पर किसी अमुक दृष्टिकोण को बढ़ावा देने के लिए दबाव नहीं डालते, और जिनसे वे सहमत नहीं होते हैं उनके विरुद्ध प्रदर्शनों तथा हिंसा का सहारा नहीं लेते। उन्होंने एक बेहतर तरीक़ा पाया है। वे अपने अगुवे, यीशु मसीह का अनुकरण करते हैं।

यहोवा के साक्षी विश्‍वस्त हैं कि धार्मिक सत्य मौजूद है, कि यह बाइबल में पाया जाता है। (यूहन्‍ना ८:३२; १७:१७) लेकिन बाइबल मसीहियों को कृपालु, भला, नम्र, और तर्कशील होने की शिक्षा देती है—ऐसे गुण जो धर्मान्धता की अनुमति नहीं देते। (गलतियों ५:२२, २३; फिलिप्पियों ४:५) याकूब की बाइबल पुस्तक में, मसीहियों को “जो ज्ञान ऊपर से आता है” उसे विकसित करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है, जिसका वर्णन यों किया गया है कि वह “पहिले तो पवित्र होता है फिर मिलनसार, कोमल और मृदुभाव और दया, और अच्छे फलों से लदा हुआ” होता है। याकूब आगे कहता है: “मिलाप करानेवालों के लिये धार्मिकता का फल मेल-मिलाप के साथ बोया जाता है।”—याकूब ३:१७, १८.

यहोवा के साक्षी याद रखते हैं कि यीशु को सच्चाई के बारे में बहुत चिन्ता थी। उसने पुन्तियुस पीलातुस से कहा: “मैं ने इसलिये जन्म लिया, और इसलिये जगत में आया हूं कि सत्य पर गवाही दूं।” (यूहन्‍ना १८:३७) हालाँकि वह सच्चाई का एक निर्भीक समर्थक था, उसने अपने विश्‍वास को दूसरों पर थोपने की कोशिश नहीं की। इसके बजाय, उसने उनके मनों और हृदयों को आकर्षित किया। वह जानता था कि उसका स्वर्गीय पिता, एक “भला और खरा” परमेश्‍वर, फ़ैसला करता कि पृथ्वी की सतह से झूठ और अन्याय को कैसे और कब मिटाना है। (भजन २५:८, NHT) इसलिए, उसने उन लोगों को दबाने की कोशिश नहीं की जो उससे सहमत नहीं होते थे। इसकी विषमता में, यह उसके दिन के ऑर्थोडॉक्स धार्मिक अगुवे थे जिन्होंने यीशु को दबाने की कोशिश की।—यूहन्‍ना १९:५, ६.

यहोवा के साक्षियों को धार्मिक सिद्धान्तों के बारे में पक्का विश्‍वास है, और वे नैतिक मामलों में ठोस मान्यताओं को प्रकट करते हैं। प्रेरित पौलुस की तरह, वे क़ायल हैं कि “एक ही प्रभु है, एक ही विश्‍वास, एक ही बपतिस्मा” है। (इफिसियों ४:५) वे यीशु के शब्दों से भी अवगत हैं: “सकेत है वह फाटक और सकरा है वह मार्ग जो जीवन को पहुंचाता है, और थोड़े हैं जो उसे पाते हैं।” (मत्ती ७:१३, १४) फिर भी, वे अपने विश्‍वासों का पालन करने के लिए दूसरों पर ज़बरदस्ती करने की कोशिश नहीं करते। इसके बजाय, वे पौलुस का अनुकरण करते हैं और जो ऐसा करने की इच्छा करते हैं, उनसे ‘परमेश्‍वर के साथ मेल मिलाप करने’ का “निवेदन” करते हैं। (२ कुरिन्थियों ५:२०) यही बेहतर तरीक़ा है। यही परमेश्‍वर का तरीक़ा है।

धार्मिक मूलतत्त्ववाद, जैसे यह शब्द आज इस्तेमाल होता है, बहुत ही भिन्‍न है। मूलतत्त्ववादी समाज पर अपने सिद्धान्तों को थोपने के लिए अनेक तिकड़म अपनाते हैं—जिनमें हिंसा शामिल है। ऐसा करने में, वे राजनैतिक व्यवस्था का एक अभिन्‍न अंग बन जाते हैं। लेकिन, यीशु ने कहा कि उसके अनुयायियों को ‘संसार का कोई भाग नहीं होना’ चाहिए। (यूहन्‍ना १५:१९, NW; १७:१६; याकूब ४:४) इन शब्दों के सामंजस्य में, यहोवा के साक्षी राजनैतिक वाद-विवादों में सख़्त तटस्थता बनाए रखते हैं। और, जैसा इतालवी अख़बार फुओरिपाजिना स्वीकार करता है, वे “किसी पर कोई ज़बरदस्ती नहीं करते; वे जो कहते हैं उसे स्वीकार करने या ठुकराने के लिए सभी स्वतंत्र है।” परिणाम? साक्षियों का बाइबल का शान्तिपूर्ण संदेश सभी प्रकार के लोगों को आकर्षित करता है, ऐसे लोगों को भी जो कभी मूलतत्त्ववादी थे।—यशायाह २:२, ३.

ठोस मान्यताओं का एक संसार

साक्षी समझते हैं कि मनुष्य उन समस्याओं को सुलझा नहीं सकते जो मूलतत्त्ववादियों को चिन्तित करती हैं। आप किसी व्यक्‍ति को परमेश्‍वर में विश्‍वास करने या आपके निजी विश्‍वासों को स्वीकारने के लिए ज़बरदस्ती नहीं कर सकते। यह सोचना कि ऐसा संभव है, इतिहास की कुछ बदतरीन भयावह बातों की ओर ले गया, जैसे कि धर्मयुद्ध, मध्ययुगीन धर्माधिकरण, और अमरीकी आदिवासियों के “धर्मपरिवर्तन।” लेकिन, यदि आप परमेश्‍वर में भरोसा रखते हैं, तो आप मामलों को उसके हाथों में छोड़ने को इच्छुक होंगे।

बाइबल के मुताबिक़, परमेश्‍वर ने एक समय निर्धारित किया है जिसके दौरान उसने मनुष्यों को उसके नियमों को तोड़ने और इस प्रकार दुःख और पीड़ा का कारण बनने की अनुमति दी है। वह समय अब लगभग समाप्त होने आया। पहले ही, यीशु परमेश्‍वर के स्वर्गीय राज्य में राजा के तौर पर शासन कर रहा है, और जल्द ही वह राज्य मानव सरकारों को हटाने और मानवजाति के रोज़-ब-रोज़ शासन की बाग-डोर थाम लेने के लिए कार्य करेगा। (मत्ती २४:३-१४; प्रकाशितवाक्य ११:१५, १८) नतीजा एक विश्‍वव्यापी परादीस होगा जिसमें शान्ति और धार्मिकता की भरमार होगी। उस समय सच्चे परमेश्‍वर की उपासना कैसे की जानी चाहिए, इस बारे में कोई अनिश्‍चितता नहीं होगी। “धर्मी लोग पृथ्वी के अधिकारी होंगे, और उस में सदा बसे रहेंगे।” (भजन ३७:२९) प्रेममय-कृपा, सच्चाई, न्याय, और भलाई जैसी अनन्त मान्यताएँ सभी आज्ञाकारी मानवजाति की भलाई के लिए विजयी होंगी।

उस समय की प्रत्याशा करते हुए, भजनहार एक कविता के लहज़े में कहता है: “करुणा और सच्चाई आपस में मिल गई हैं; धर्म और मेल ने आपस में चुम्बन किया है। पृथ्वी में से सच्चाई उगती और स्वर्ग से धर्म झुकता है। फिर यहोवा उत्तम पदार्थ देगा, और हमारी भूमि अपनी उपज देगी। धर्म उसके आगे आगे चलेगा, और उसके पांवों के चिन्हों को हमारे लिये मार्ग बनाएगा।”—भजन ८५:१०-१३.

जबकि हम संसार को बदल नहीं सकते, हम आज भी व्यक्‍तियों के तौर पर ईश्‍वरीय मान्यताएँ विकसित कर सकते हैं। अतः, हम उस प्रकार के लोग होने की कोशिश कर सकते हैं जिन्हें परमेश्‍वर उस नए संसार में अपने उपासकों के तौर पर चाहेगा। तब हम उन नम्र लोगों में होंगे जिनका ज़िक्र भजनहार ने किया: “नम्र लोग पृथ्वी के अधिकारी होंगे, और बड़ी शान्ति के कारण आनन्द मनाएंगे।” (भजन ३७:११) परमेश्‍वर उसकी इच्छा करनेवाले लोगों को सहारा और आशीष देता है, और वह उनके भविष्य के लिए अद्‌भुत बातों की प्रतिज्ञा करता है। प्रेरित यूहन्‍ना ने कहा: “संसार और उस की अभिलाषाएं दोनों मिटते जाते हैं, पर जो परमेश्‍वर की इच्छा पर चलता है, वह सर्वदा बना रहेगा।”—१ यूहन्‍ना २:१७.

[पेज 7 पर तसवीर]

यहोवा के साक्षी सभी को परमेश्‍वर के राज्य के सुसमाचार से वाक़िफ़ होने के लिए आमंत्रित करते हैं

[पेज 6 पर चित्र का श्रेय]

पृष्ठ ३, ४, ५, और ६ पर दिया गया लैम्प: Printer’s Ornaments/by Carol Belanger Grafton/Dover Publications, Inc.

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