मनुष्यों के दास या परमेश्वर के सेवक?
“यहोवा के साक्षी कुछ हद तक प्रशंसा के काबिल हैं।” जर्मन किताब ज़ेअर, ग्रूबलर, एन्तूज़ीआस्टॆन (दिव्यदर्शी, चिंतक, उत्साही) ऐसा कहती है। साक्षियों के प्रति कुछ-कुछ आलोचनात्मक होने के बावजूद, यह स्वीकार करती है: “आमतौर पर, वे दोषरहित, मध्य-वर्गीय जीवन बिताते हैं। वे मेहनती और अपने काम में ईमानदार होते हैं, वे शांतिमय नागरिक और कर देने में ईमानदार होते हैं। वे पैसे के पीछे अंधाधुंध नहीं भागते। . . . उनके अधिवेशनों में उनका अनुशासन तारीफ के काबिल है। उनकी त्याग की भावना किसी भी अन्य धार्मिक समूह जैसी है; सेवकाई में वे बाकी सबसे आगे हैं। लेकिन जो बात उनको हमारे दिन के हर अन्य मसीही चर्च और समूह से ऊँचा उठाती है वह है उनका अटूट निश्चय। इसी निश्चय के साथ उनमें से ज़्यादातर लोग कैसी भी परिस्थिति में और किसी भी खतरे का सामना करते हुए अपनी धार्मिक शिक्षाओं की घोषणा करते हैं।”a
ऐसी सकारात्मक टिप्पणियों के बावजूद, उठनेवाली चंद आवाज़ें यहोवा के साक्षियों को एक बिलकुल अलग तरीके से पेश करने की कोशिश करती हैं। संसार भर के अधिकांश देशों में, साक्षियों ने दशकों से बिना किसी रोकथाम के अपनी धार्मिक सभाएँ खुलेआम चलायी हैं। करोड़ों लोग उन्हें जानते हैं, उनका आदर करते हैं और यह मानते हैं कि उनको अपने धर्म का पालन करने का अधिकार है। तो फिर, यहोवा के साक्षियों की पहचान के बारे में किसी भी प्रकार की अनिश्चितता क्यों है?
शायद इस अनिश्चितता का एक कारण है कि हाल ही में अनेक अन्य धार्मिक समूह बाल-दुर्व्यवहार, सामूहिक आत्महत्या और आतंकवादी हमलों में शामिल हुए हैं। बेशक, इस प्रकार का असामान्य व्यवहार सब तरफ है, केवल धार्मिक प्रवृत्ति के लोगों में ही नहीं। लेकिन, जहाँ तक धर्म का सवाल है अनेक लोग आलोचना करने लगे हैं और दुश्मन भी हो गए हैं।
मनुष्यों के पीछे चलने के खतरे
एक “पंथ” की परिभाषा इस तरह दी गयी है, “एक खास सिद्धांत को या एक अगुए को माननेवाला समूह।” उसी तरह, किसी “संप्रदाय” के सदस्यों को “एक व्यक्ति, विचार या वस्तु के प्रति बड़ी भक्ति” होती है। असल में, मानवी अगुओं और उनके विचारों का कड़ाई से पालन करनेवाले किसी भी धार्मिक समूह के सदस्य मनुष्यों के दास बनने के खतरे में होते हैं। अगुए पर केंद्रित एक मज़बूत संबंध के कारण एक व्यक्ति भावात्मक और आध्यात्मिक रूप से उस पर निर्भर हो जाता है जो अच्छा नहीं है। यह खतरा और बढ़ जाता है जब एक व्यक्ति बचपन से सांप्रदायिक माहौल में पाला-पोसा जाता है।
जिनको एक धर्म के बारे में ऐसी चिंताएँ हैं उनको विश्वसनीय जानकारी की ज़रूरत है। कुछ लोगों को शायद बताया गया हो कि यहोवा के साक्षी ऐसे धार्मिक संगठन का भाग हैं जो अपने सदस्यों को दास बना देता है, उनको ज़ोर-ज़बरदस्ती से काबू में रखता है, नाहक उनकी आज़ादी को कम करता है और उन्हें पूरे समाज से अलग कर देता है।
यहोवा के साक्षी जानते हैं कि ऐसी चिंता करने का कोई कारण नहीं है। इसलिए, वे आपको खुद जाँच करने का आमंत्रण देते हैं। अच्छी तरह जाँच करने के बाद, खुद निष्कर्ष निकालिए। क्या साक्षी परमेश्वर के सेवक हैं, जैसा वे कहते हैं, या असल में मनुष्यों के दास हैं? उन्हें कहाँ से शक्ति मिलती है? पृष्ठ १२-२३ पर दिए गए दो लेख ऐसे सवालों के संतोषजनक जवाब देंगे।
[फुटनोट]
a सन् १९५० के मूल संस्करण में ऊपर दिया हुआ कथन नहीं था। सन् १९८२ के संशोधित संस्करण में इसका छपना, यहोवा के साक्षियों को बेहतर तरीके से समझने के रुख को ज़ाहिर करता है।