खुशियों-भरा समाँ—गिलियड की १०४वीं कक्षा का ग्रैजुएशन
यह खुशी का दिन है, और हम सब आनंद मना रहे हैं।” इन शब्दों से यहोवा के साक्षियों के शासी निकाय के सदस्य, कैरी बार्बर ने मार्च १४, १९९८ के दिन, गिलियड नामक वॉचटावर बाइबल स्कूल की १०४वीं कक्षा के ग्रैजुएशन के आनंदमय कार्यक्रम की शुरूआत की। कार्यक्रम को शुरू करने के लिए ४,९४५ श्रोतागण को राज्य गीत क्रमांक २०८ गाने के लिए आमंत्रित किया गया। गीत का शीर्षक है “आनंद का एक गीत।”
खुश रहने के लिए व्यावहारिक सलाह
कार्यक्रम की शुरूआत बाइबल पर आधारित पाँच छोटे-छोटे भाषणों की श्रंखला से हुई। इन भाषणों में ग्रैजुएशन दिन में व्याप्त हर्षमय भावना को कैसे बनाए रखना है, इस पर कुछ व्यावहारिक सलाह थी।
पहला भाषण लेखन विभाग के जोसॆफ ईम्स ने दिया। उन्होंने “वफादार लोगों की भावना की नकल कीजिए” शीर्षक पर बात की, जो २ शमूएल अध्याय १५ व १७ में दिए गए बाइबल वृत्तांत पर आधारित था। इस वृत्तांत में दाऊद का पुत्र, अबशालोम बगावत भड़काकर परमेश्वर द्वारा अपने पिता को दिए गए राज्य को हड़पने की साज़िश करता है। लेकिन, ऐसे भी लोग थे जो यहोवा के अभिषिक्त राजा दाऊद के प्रति वफादार बने रहे। इससे नए मिशनरी जन क्या सबक सीख सकते थे? “आप अपनी मिशनरी कार्य-नियुक्ति में जहाँ कहीं भी जाते हैं, ईश्वरशासित अधिकार के लिए सहयोग की भावना व आदर को वफादारी से बढ़ावा दीजिए। दूसरों को भी ऐसा ही करने में मदद दीजिए,” भाई ईम्स ने समाप्ति में कहा।
इसके बाद का कार्यक्रम डेविड सिनक्लैर का था, जिन्होंने ‘यहोवा के तम्बू में’ मेहमान बनकर रहने के लिए १० ज़रूरी माँगें बताईं। इनका उल्लेख भजन १५ में किया गया है। उनके भाषण का शीर्षक था “अपने मिशनरी तंबू में मेहमान बनकर रहिए।” इस भाषण ने ग्रैजुएट हो रहे विद्यार्थियों को अपनी-अपनी मिशनरी कार्य-नियुक्तियों में, जहाँ वे मेहमान बनकर रहेंगे, इस भजन को लागू करने के लिए प्रोत्साहित किया। भाई सिनक्लैर ने ईश्वरीय स्तरों के मुताबिक हर हमेशा जीने के महत्त्व को विशिष्ट किया। इसका नतीजा क्या होगा? भजन १५:५ कहता है: “जो कोई ऐसी चाल चलता है वह कभी न डगमगाएगा।”
इसके बाद, शासी निकाय के सदस्य, जॉन बार ने उस बलवर्द्धक प्रभाव की ओर ध्यान खींचा जो मसीही सभाओं में गाने से होता है। लेकिन वह कौन-सा सबसे आनंदमयी गीत है जो आज दुनिया में चारों ओर गाया जा रहा है? यह परमेश्वर के मसीहाई राज्य का सुसमाचार है। इस गीत को गाने या राज्य के बारे में प्रचार करने से क्या परिणाम मिल रहे हैं? गीत क्रमांक २०८ की दूसरी पंक्ति संक्षिप्त में कहती है: “राज्य प्रचार व मसीही शिक्षा के ज़रिए, अनेक लोग यहोवा की ओर है खिंचते। आनंद के गीत ये भी हैं गाते, ओ, कितनी ही दूर-दूर दिल खोल कर हैं सुनाते!” जी हाँ, हर दिन करीब-करीब १,००० नए चेले बपतिस्मा ले रहे हैं। भाई बार ने समाप्ति में कहा: “क्या यह विचार आपको गद्गद नहीं करता भाइयो, कि आपको ऐसे क्षेत्रों में भेजा जा रहा है कि आप ठीक वैसे लोगों से मुलाकात करें जो आपके स्तुति के गीत सुनने के लिए आतुर हैं?”
इसके बाद लेखन विभाग के जेम्स मैंज़ ने भाषण दिया जिसका शीर्षक था, “तजुर्बेकारी की बातें सुनिए।” उन्होंने यह बताया कि कुछ बातें केवल अपने तजुर्बे से ही सीखी जा सकती हैं। (इब्रानियों ५:८) फिर भी, नीतिवचन २२:१७ हमें “कान लगाकर बुद्धिमानों के वचन,” यानी ऐसों के वचन ‘सुनने’ के लिए प्रोत्साहित करता है जिन्होंने अनुभव हासिल किया है। जो लोग उनसे पहले ग्रैजुएट हो चुके हैं, उनसे आज ग्रैजुएट हो रहे विद्यार्थी काफी कुछ सीख सकते हैं। “वे स्थानीय दुकानदारों से मोल-भाव करना जानते हैं। शारीरिक या नैतिक खतरों की वज़ह से शहर के किन इलाकों से दूर रहना है, वे इस बात को जानते हैं। वे स्थानीय लोगों के जज़्बातों को समझते हैं। लंबे समय के मिशनरी जानते हैं कि आपकी कार्य-नियुक्ति में खुश रहने व कामयाब होने के लिए आपको क्या ज़रूरत है,” भाई मैंज़ ने कहा।
“अपनी ईश्वरशासित कार्य-नियुक्ति की कदर कीजिए” शीर्षक विषय पर बात करते हुए, गिलियड स्कूल के रजिस्ट्रार, वालस लिवरॆन्स ने समझाया कि जबकि प्रेरित पौलुस, तीमुथियुस व बरनबा जैसे कुछ मिशनरियों ने अपनी कार्य-नियुक्तियाँ पवित्र आत्मा या फिर किसी चमत्कारिक प्रकटन के ज़रिए परमेश्वर से पाईं, गिलियड में प्रशिक्षित मिशनरियों को दुनिया भर के इलाकों में “विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास” द्वारा नियुक्त किया जाता है। (मत्ती २४:४५-४७) उन्होंने मिशनरियों की कार्य-नियुक्ति क्षेत्रों की तुलना उन स्थानों से की जहाँ गिदोन ने मिद्यानियों से लड़ने के लिए अपने लोगों को नियुक्त किया था। (न्यायियों ७:१६-२१) भाई लिवरॆन्स ने आग्रह किया, “अपनी ईश्वरशासित मिशनरी कार्य-नियुक्ति की कदर कीजिए। ठीक जिस तरह गिदोन के सैनिक ‘अपने अपने स्थान पर खड़े रहे,’ उसी तरह अपनी-अपनी कार्य-नियुक्ति को यही समझिए कि वह आपके खड़े रहने का स्थान है। विश्वास रखिए कि ठीक जिस तरह यहोवा ने गिदोन के तीन सौ लोगों का इस्तेमाल किया, उसी तरह वह आपका भी इस्तेमाल कर सकता है।”
लोगों में रुचि लेने से खुशी मिलती है
प्रहरीदुर्ग ने एक दफे कहा था: “इस दुनिया की बनायी हुई वस्तुओं व यंत्रों, जिनके टिकने की कोई निश्चितता नहीं होती, के इर्द-गिर्द अपनी रुचियों व जीवन को केंद्रित करने के बजाय, कितना बेहतर व बुद्धिमानी की बात होगी यदि हम लोगों को अपनी सच्ची रुचि का केंद्र बनाते हैं और दूसरों के लिए कुछ करने में सच्ची खुशी पाना सीखते हैं।” इसके सामंजस्य में, गिलियड स्कूल के एक प्रशिक्षक भाई मार्क नूमैर ने विद्यार्थियों के एक समूह के साथ क्षेत्र सेवकाई में हुए उनके अनुभवों की चर्चा की और टिप्पणी की: “दूसरों में व्यक्तिगत दिलचस्पी दिखाने से ही आप अच्छे मिशनरी बन सकते हैं।”
विदेशी क्षेत्र में खुशी की कुंजियाँ
मिशनरी कार्य में कामयाबी व खुशी की कुछ कुंजियाँ क्या हैं? सेवा विभाग के भाई चार्ल्स वुडी और लातिन अमरीका में भूतपूर्व मिशनरी व शिक्षण समिति के सहायक भाई हैरॆल्ड जैकसन ने ब्रांच परसनॆल के स्कूल की नवीं कक्षा में हाज़िर होनेवाले विभिन्न शाखा समितियों के सदस्यों का इंटरव्यू लिया। इन लोगों ने जो सलाह दी, उनके कुछ अंश नीचे दर्ज़ हैं:
ज़ाम्बिया के एलबर्ट मूसोंडा ने कहा: “जब मिशनरी जन भाइयों के पास जाकर उन्हें नमस्ते कहने में पहल करते हैं तो इससे बहुत ही अच्छी भावना बढ़ती है क्योंकि ऐसा करने से अन्य भाई मिशनरी के करीब आएँगे और मिशनरी भी उनके करीब जाएगा।”
ग्वाटेमाला के रोलान्डो मोरालस ने सुझाव दिया कि जब नए मिशनरियों को मित्रवत् लोग कुछ पीने को देते हैं, तो वे कृपापूर्वक व व्यवहार-कुशलता से यूँ जवाब दे सकते हैं: “मैं इस देश में जुम्मा-जुम्मा आया हूँ। काश, मैं इसे स्वीकार कर पाता, लेकिन मेरे शरीर में फिलहाल आपकी तरह स्वाभाविक रोधक्षमता नहीं है। उम्मीद है कि एक-ना-एक दिन मैं इसे स्वीकार कर पाऊँगा, और तब ऐसा करने में मुझे बहुत खुशी होगी।” इस प्रकार के जवाब देने से क्या लाभ मिलते हैं? “लोगों को आपत्ति नहीं होगी, और मिशनरी दूसरों के साथ कृपा से व्यवहार कर रहे होंगे।”
मिशनरियों को उनकी कार्य-नियुक्तियों में टिके रहने के लिए कौन-सी बात मदद कर सकती है? गिलियड की ७९वीं कक्षा के ग्रैजुएट, भाई पॉल क्रूडस गत १२ साल से लाइबीरिया में सेवा कर रहे हैं। उन्होंने यह कहा: “मैं जानता हूँ यह सच है कि माता-पिता को अपने बच्चों की कमी खलती है। लेकिन ऐसे पल भी होते हैं जब मिशनरी उस देश, वातावरण, संस्कृति व लोगों से आदी होने की कोशिश कर रहा है। ऐसे समय पर उसके मन में आ सकता है कि सब कुछ छोड़-छाड़कर भाग जाए। तब यदि उसे घर से चिट्ठी आती है जिसमें लिखा होता है, ‘हमें तुम्हारी कमी बहुत ही खलती है; हमें नहीं मालूम कि तुम्हारे बिना हम कैसे जी सकते हैं,’ तब सारा बाँध टूट सकता है और मिशनरी अपना बोरिया-बिस्तर बाँधकर घर की ओर रवाना हो सकता है। आज यहाँ मौजूद रिश्तेदारों को यह बात याद रखना बहुत ही ज़रूरी है।”
इंटरव्यू के बाद, कार्यक्रम का अंतिम भाषण शासी निकाय के सदस्य, थियोडोर जारज़ ने दिया। उनका शीर्षक था: “अपने जीवन में राज्य को सर्वप्रमुख रखिए।” विकर्षित हुए बिना मिशनरी कैसे अपने कार्य में मन लगा सकते हैं? उन्होंने उन्हें निजी बाइबल अध्ययन की समय-सारणी बनाने के लिए प्रोत्साहित किया जो अपने जीवन में राज्य हितों को सर्वप्रमुख रखने में उनकी मदद करेगी। और यह सलाह समय पर दी गयी: “कुछ मिशनरी इलेक्ट्रॉनिक चीज़ों, ई-मेल व कंप्यूटर में इतने मसरूफ हो गए कि उन्होंने निजी अध्ययन की उपेक्षा की है। ऐसी चीज़ों के इस्तेमाल में हमें संतुलन रखने की समझ होनी चाहिए। किसी ऐसे काम में अत्यधिक समय न गवाँए जिसकी वज़ह से परमेश्वर के वचन का व्यक्तिगत अध्ययन करने के लिए हमारे पास समय ही न बचे।”
भाई जारज़ के भाषण के बाद डिप्लोमा पेश करने और कक्षा की ओर से कदरदानी का खत पढ़ने का वक्त आया। कक्षा के प्रतिनिधि ने सब की भावनाओं को इस तरह व्यक्त किया: “हमने उस प्रेम का ठोस सबूत देखा जिसके बारे में यीशु ने कहा था कि यह उसके चेलों की विशेषता होगी, और इस बात ने हमें आश्वस्त किया है कि चाहे हम कहीं भी क्यों न हों, हमें सहारा देने के लिए हमारा स्नेहिल, प्रेममय, माँ-समान संगठन मौजूद है। ऐसे सहारे की बिना पर हम दुनिया के किसी भी कोने में जाने को तैयार हैं।” गिलियड की १०४वीं कक्षा का ग्रैजुएशन क्या ही दिल छू लेनेवाली समाप्ति थी—वाकई, खुशियों-भरा समाँ!
[पेज 24 पर बक्स]
कक्षा के आँकड़े
प्रतिनिधित्व किए गए देशों की संख्या: ९
नियुक्ति के देशों की संख्या: १६
विद्यार्थियों की संख्या: ४८
विवाहित दंपतियों की संख्या: २४
औसतन उम्र: ३३
सच्चाई में औसतन साल: १६
पूर्ण-समय सेवकाई में औसतन साल: १२
[पेज 25 पर तसवीर]
गिलियड नामक वॉचटावर बाइबल स्कूल की स्नातक होनेवाली १०४वीं कक्षा
नीचे दी गयी सूची में, पंक्तियों का क्रम आगे से पीछे की ओर है, और प्रत्येक पंक्ति में नाम बाएँ से दाएँ सूचीबद्ध हैं।
(१) रोमेरो, एम.; हाउवर्थ, जे.; ब्लैकबर्न-केन, डी.; होएंग्गासर, ई.; वैस्ट, एस.; टोम, एस. (२) कोलोन, डब्ल्यू.; ग्लैनसी, जे.; कोनो, वाई.; ड्रूस, पी.; टॉम, एस.; कोनो, टी. (३) टॉम, डी.; ज़ेशमाईस्तर, एस.; गर्डल, एस.; एलवॆल, जे.; डनेक, पी.; तीबॆडो, एच. (४) टेलर, ई.; हिलड्रॆड, एल.; सानचॆस, एम.; एन्डरसन, सी.; बॆकनोर, टी.; होएंग्गासर, ई. (५) हाउवर्थ, डी.; वार्ड, सी.; हिंच, पी.; मॆकडानल्ड, वाई.; सानचॆस, टी.; टोम, ओ. (६) ड्रूस, टी.; तीबॆडो, ई.; एलवॆल, डी.; डनेक, डब्ल्यू.; ब्लैकबर्न-केन, डी.; वार्ड, डब्ल्यू. (७) एन्डरसन, एम.; ज़ेशमाईस्तर, आर.; मॆकडानल्ड, आर.; बॆकनोर, आर.; ग्लैनसी, एस.; गर्डल, जी. (८) रोमेरो, डी.; हिंच, आर.; हिलड्रॆड, एस.; टेलर, जे.; कोलोन, ए.; वैस्ट, डब्ल्यू.
[पेज 26 पर तसवीर]
१०४वीं कक्षा को प्रशिक्षित करने में भाग लेनेवाले भाई: (बाएँ से) डब्ल्यू. लिवरॆन्स, यू. ग्लास, के. एडम्स्, एम. नूमैर