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    प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1998
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    प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1990
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प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1998
w98 6/15 पेज 26-29

सच्चा न्याय—कब और कैसे?

निर्दोष लोगों को सच्चे न्याय से डरने का कोई कारण नहीं होना चाहिए। बेशक, लगभग हर जगह के नागरिक एहसानमंद हो सकते हैं अगर उनके देश में ऐसी कानूनी व्यवस्था है जो न्याय चुकाने की कोशिश करती हो। ऐसी व्यवस्था में कई कानून होते हैं, उनको लागू करवाने के लिए पुलिस दल होता है और न्याय करने के लिए अदालतें होती हैं। सच्चे मसीही जिस न्यायिक व्यवस्था के अधीन रहते हैं उसका आदर करते हैं। ऐसा वे बाइबल की सलाह के अनुसार करते हैं जो कहती है, ‘प्रधान अधिकारियों के आधीन रहो।’—रोमियों १३:१-७.

फिर भी, अनेक देशों की न्यायिक व्यवस्था ने नुकसानदेह और शर्मनाक गलतियाँ की हैं।a दोषी को सज़ा देने और निर्दोष को बचाने के बजाय, कभी-कभी निर्दोष लोगों को ऐसे अपराध के लिए सज़ा दी गयी है जो उन्होंने किया ही नहीं। दूसरे व्यक्‍तियों ने कई साल जेलखाने में काटे हैं, और फिर उन्हें सज़ा पूरी होने से पहले रिहा कर दिया जाता है। रिहा होते वक्‍त इस बात का पक्का सबूत नहीं होता कि क्या वे दोषी थे और उन्हें दोषी मानना उचित था या नहीं। इसलिए, अनेक लोग पूछते हैं, क्या कभी सबके लिए सच्चा न्याय होगा? अगर होगा तो कब और कैसे? निर्दोष लोगों की रक्षा करने के लिए हम किस पर भरोसा रख सकते हैं? और अन्याय का शिकार हुए लोगों के लिए कौन-सी आशा है?

अन्याय किया गया

१९८० के दशक में, जर्मनी में “युद्ध के बाद के समय में एक सबसे सनसनीखेज़ मुकद्दमा हुआ,” जिसमें एक माँ को अपनी दो बेटियों की हत्या के जुर्म में आजीवन कारावास की सज़ा सुनायी गयी थी। लेकिन, कई साल बाद उसके विरुद्ध सबूतों की दोबारा जाँच की गयी और नए मुकद्दमे के चलते उसे रिहा कर दिया गया। डी साइट ने १९९५ में रिपोर्ट किया कि पहला फैसला “एक न्यायिक गलती साबित हो सकता है।” इस लेख के लिखने के समय तक, यह स्त्री अपने दोषी या निर्दोष होने के बारे में अनिश्‍चित स्थिति में नौ साल जेल में बिता चुकी थी।

सन्‌ १९७४ के नवंबर की एक शाम को, इंग्लैंड के बरमिंगम शहर के बीच का हिस्सा दो बमों के विस्फोट से काँप उठा, और इससे २१ लोग मारे गए। यह एक ऐसी घटना थी जिसके बारे में लोकसभा के एक सदस्य, क्रिस मलॆन ने लिखा कि इसे “बरमिंगम में कभी कोई नहीं भूलेगा।” बाद में, “छः निर्दोष व्यक्‍तियों पर ब्रिटिश इतिहास में इस सबसे बड़ी हत्या का दोष लगाया गया।” बाद में उन पर लगाए गए इलज़ामों को गलत साबित किया गया—लेकिन तब जब वे सलाखों के पीछे १६ साल बिता चुके थे!

कानूनी सलाहकार कॆन क्रिसपिन ने एक मुकद्दमे की रिपोर्ट दी जिसने “आम जनता का ध्यान इस कदर आकर्षित किया जो ऑस्ट्रेलियाई कानून के इतिहास में अनोखा था।” एक परिवार एअर्ज़ रॉक नामक जगह पर पिकनिक मना रहा था और तब उनका बच्चा गुम हो गया और फिर कभी नहीं मिला। माँ पर हत्या का इलज़ाम लगाया गया, दोषी ठहराया गया और उसे आजीवन कारावास की सज़ा सुनायी गयी। सन्‌ १९८७ में, जब वह कैद में तीन साल से ज़्यादा बिता चुकी थी, एक सरकारी जाँच से पता लगा कि उसके खिलाफ दिया गया सबूत उसे दोषी साबित नहीं करता। उसे बाइज़्ज़त बरी किया गया।

दक्षिणी अमरीका में रहनेवाली १८ साल की एक स्त्री की १९८६ में हत्या कर दी गयी। एक अधेड़ पुरुष पर इलज़ाम लगाया गया, उसे दोषी ठहराया गया और मौत की सज़ा सुनायी गयी। उसने मौत का इंतज़ार करते हुए छः साल बिता दिए, उसके बाद ही यह साबित हुआ कि उस अपराध से उसका कोई लेना-देना नहीं था।

न्यायिक गलतियों के क्या यही इक्का-दुक्का उदाहरण हैं? यूनिवर्सिटी ऑफ पॆन्सिलवेनिया लॉ स्कूल का डेविड रूडॉफस्की कहता है: “मैं इस न्यायिक व्यवस्था में करीब २५ साल से हूँ और मैंने कई मुकद्दमे देखे हैं। मेरी राय में जिन पर दोष लगाया जाता है परंतु असल में निर्दोष होते हैं . . . उनकी तादाद कुल दोषी लोगों में पाँच से १० प्रतिशत होती है।” क्रिसपिन एक चिंताजनक सवाल पूछता है: “क्या और भी ऐसे निर्दोष लोग हैं जो निराश होकर कैदखानों में बैठे हैं?” ऐसी दुःखद गलतियाँ कैसे हो सकती हैं?

मानवीय न्यायिक व्यवस्थाएँ—मानवीय कमज़ोरियों समेत

“कोई मानवीय व्यवस्था सिद्ध होने की आशा नहीं कर सकती,” १९९१ में ब्रिटॆन के अपील कोर्ट ने ज़ोर देकर कहा। न्यायिक व्यवस्था उतनी ही न्यायपूर्ण और विश्‍वासयोग्य हो सकती है जितना उसे बनाने और चलानेवाले लोग। गलतियाँ करना, बेईमानी करना और पक्षपात करना लोगों के स्वभाव में होता है। इसलिए, इसमें कोई आश्‍चर्य नहीं कि मनुष्य की न्यायिक व्यवस्थाएँ ठीक इन्हीं कमियों को ज़ाहिर करती हैं। इस पर गौर कीजिए।

जर्मनी के जज रॉल्फ बॆनडर के अनुसार, सभी आपराधिक मामलों में से ९५ प्रतिशत मामलों में सबूत के तौर पर गवाहों के बयानात निर्णायक होते हैं। लेकिन अदालत में ऐसे गवाहों पर क्या हमेशा भरोसा किया जा सकता है? जज बॆनडर को ऐसा नहीं लगता। वह अनुमान लगाते हैं कि अदालत में आनेवाले आधे गवाह झूठ बोलते हैं। जर्मनी के यूनिवर्सिटी ऑफ म्यूनिच में आपराधिक कानून के वरिष्ठ प्रोफॆसर, बर्न्ट शूनमान ने ऐसी ही एक टिप्पणी की। डी साइट को दिए गए एक इंटरव्यू में, शूनमान ने पुष्टि की कि गवाहों के बयान मुख्य—फिर भी अविश्‍वसनीय—सबूत होते हैं। “मेरे विचार से न्याय में गलतियों का एक आम कारण है कि जज गवाहों के अविश्‍वसनीय बयान पर भरोसा करता है।”

गवाह गलती कर सकते हैं; और उसी तरह पुलिस भी। खासकर लोगों में रोष पैदा करनेवाले किसी अपराध के बाद, पुलिस किसी को गिरफ्तार करने के दबाव में आ जाती है। ऐसे हालात में, कुछ पुलिसवाले सबूत पैदा करने या जिस पर शक है उससे अपराध कबूल करवाने के प्रलोभन में पड़ गए हैं। बरमिंगहम के बम-विस्फोटों के लिए दोषी ठहराए गए छः व्यक्‍तियों को जब रिहा किया गया, तब ब्रिटॆन के एक समाचार-पत्र, दी इंडिपेंडंट में यह सुर्खी आयी: “छः लोगों को दोषी ठहराने का आरोप भ्रष्ट पुलिस के मत्थे।” द टाइम्स्‌ के अनुसार: “पुलिस ने झूठ कहा, जालसाज़ी की और धोखा दिया।”

कुछ मामलों में, पक्षपात के कारण पुलिस और आम लोग किसी अमुक जाति, धर्म या देश के लोगों पर शक करते हैं। जैसा कि यू.एस.न्यूज़ एण्ड वर्ल्ड रिपोर्ट कहता है, एक अपराध को सुलझाना शायद बाद में “तर्क-वितर्क के बजाय जातिवाद का मसला” बनकर रह जाए।

जब एक मुकद्दमा अदालत में पेश किया जाता है, तब फैसले केवल गवाहों के बयान के आधार पर ही नहीं बल्कि वैज्ञानिक सबूत के आधार पर भी होते हैं। अपराध शास्त्र के बहुत ज़्यादा जटिल होते क्षेत्र में, जज या जूरी से बैलिस्टिक्स्‌ या हाथ की उँगलियों के निशान, लिखावट, रक्‍त वर्ग, बालों का रंग, कपड़ों के धागे या डीएनए (DNA) के नमूनों के आधार पर दोष या निर्दोषिता का निर्णय करने के लिए कहा जा सकता है। एक वकील ने कहा कि अदालतों को “विस्मयकारी और जटिल तरीके समझानेवाले वैज्ञानिकों के बड़े-बड़े दलों का सामना करना पड़ता है।”

इसके अलावा, पत्रिका नेचर कहती है कि अपराध शास्त्र से मिले सबूतों का अर्थ समझाने के बारे में सभी वैज्ञानिकों का विचार एक-सा नहीं होता। “अपराध-शास्त्र के वैज्ञानिकों में उचित मतभेद हो सकता है।” दुःख की बात है, “गलत अपराध-शास्त्रीय सबूत की वज़ह से अनेक लोगों पर गलत दोष लगाए गए हैं।”

चाहे हम कहीं भी क्यों न रहते हों, सभी न्यायिक व्यवस्थाएँ जो इस वक्‍त काम कर रही हैं मनुष्य की कमज़ोरियाँ ज़ाहिर करती हैं। तो फिर निर्दोष लोगों की रक्षा करने के लिए हम किस पर भरोसा रख सकते हैं? क्या हम आशा कर सकते हैं कि कभी सच्चा न्याय मिलेगा? और न्याय में गलती के शिकारों के लिए क्या आशा है?

“मैं यहोवा न्याय से प्रीति रखता हूं”

अगर आप या आपके परिवार का कोई सदस्य, न्याय में किसी गलती का शिकार हुआ है तो यहोवा परमेश्‍वर और उसका पुत्र यीशु समझते हैं कि आप पर क्या गुज़र रही है। इतिहास का सबसे घिनौना अन्याय तब हुआ जब मसीह को यातना स्तंभ पर मार दिया गया था। प्रेरित पतरस हमें बताता है कि यीशु ने ‘पाप न किया।’ फिर भी, उस पर झूठे गवाहों ने इलज़ाम लगाए, उसे दोषी ठहराया गया और मार दिया गया।—१ पतरस २:२२; मत्ती २६:३, ४, ५९-६२.

कल्पना कीजिए कि अपने पुत्र पर ऐसा ज़ुल्म ढाए जाते देखकर यहोवा को कैसा लगा होगा! न्याय यहोवा के प्रमुख गुणों में से एक है। बाइबल हमें बताती है: “उसकी सारी गति न्याय की है।”—व्यवस्थाविवरण ३२:४; भजन ३३:५.

यहोवा ने इस्राएल को एक उत्कृष्ट न्यायिक व्यवस्था दी थी। हत्या के अनसुलझे मामले में, मौत का प्रायश्‍चित्त बलिदान देकर किया जाता था। न्याय करनेवालों पर हर अपराध को सुलझाने का दबाव नहीं था, जिसकी वज़ह से एक निर्दोष व्यक्‍ति पर दोष लगाने का खतरा हो सकता था। किसी भी व्यक्‍ति को केवल अप्रत्यक्ष प्रमाण या वैज्ञानिक प्रमाण के आधार पर दोषी नहीं ठहराया जा सकता था; कम-से-कम दो चश्‍मदीद गवाहों की ज़रूरत होती थी। (व्यवस्थाविवरण १७:६; २१:१-९) ये उदाहरण दिखाते हैं कि यहोवा के स्तर ऊँचे हैं और उसे इस बात की चिंता रहती है कि सही तरीके से न्याय किया जाए। असल में वह कहता है: “मैं यहोवा न्याय से प्रीति रखता हूं।”—यशायाह ६१:८.

बेशक, इस्राएल की न्यायिक व्यवस्था ऐसे मनुष्यों के हाथों में थी जिनमें हमारी जैसी कमियाँ थीं। ऐसे भी कुछ मामले थे जिनमें कानून को गलत तरीके से लागू किया गया। राजा सुलैमान ने लिखा: “यदि तू किसी प्रान्त में निर्धनों पर अन्धेर और न्याय और धर्म को बिगड़ता देखे, तो इस से चकित न होना।”—सभोपदेशक ५:८.

यहोवा अपने पुत्र पर किए गए अन्याय को ठीक करने के काबिल था। इस बात की निश्‍चितता ने यीशु को शक्‍ति दी, जिसने “उस आनन्द के लिये जो उसके आगे धरा था, . . . क्रूस का दुख सहा।” उसी तरह, इस पुरानी व्यवस्था में अन्याय के बारे में सुनते हुए या खुद इसका अनुभव करते हुए भी परादीस पृथ्वी पर मसीहा के शासन के अधीन, जब सच्चे न्याय का बोलबाला होगा, जीने की आनंददायक आशा हमें धीरज धरने की शक्‍ति दे सकती है। ऐसा कोई नुकसान या घाव नहीं है जिसे सही समय पर यहोवा ठीक नहीं कर सकता। यहाँ तक कि ऐसे लोग भी जो किसी न्यायिक गलती के कारण अपनी जान गवाँ बैठते हैं पुनरुत्थान पा सकते हैं।—इब्रानियों १२:२; प्रेरितों २४:१५.

अगर हम अन्याय के शिकार होने के कारण दुःखी हैं, हम इस बात के लिए एहसानमंद हो सकते हैं कि अनेक न्यायिक व्यवस्थाओं में ऐसे कानूनी माध्यम होते हैं जो शायद हमें स्थिति को सुधारने में मदद दें। मसीही ऐसे माध्यमों का इस्तेमाल कर सकते हैं। लेकिन, वे इस सच्चाई को याद रखते हैं: अपरिपूर्ण न्यायिक व्यवस्थाएँ ऐसे मानव समाज का प्रतिबिंब हैं जिसमें ढेरों परिवर्तन किए जाने की ज़रूरत है। परमेश्‍वर के हाथों यह परिवर्तन जल्द ही होनेवाला है।

यहोवा जल्द ही इस अन्याय से भरी रीति-व्यवस्था को मिटा देगा और इसकी जगह एक नयी व्यवस्था लाएगा जिसमें “धार्मिकता बास करेगी।” हम पूरी तरह विश्‍वास कर सकते हैं कि उस समय हमारा सृष्टिकर्ता अपने मसीहाई राजा, यीशु मसीह के ज़रिए न्याय करेगा। सबके लिए सच्चा न्याय बहुत जल्द आ रहा है! हम इस आशा के लिए कितने एहसानमंद हो सकते हैं।—२ पतरस ३:१३.

[फुटनोट]

a यहाँ जिन मुकदमों का ज़िक्र किया गया है, उनमें प्रहरीदुर्ग किसी व्यक्‍ति के दोषी या निर्दोष होने का संकेत नहीं दे रही है, न ही यह पत्रिका किसी देश की न्यायिक व्यवस्था को दूसरों से बेहतर बता रही है। इसके अलावा, यह पत्रिका किसी खास किस्म की सज़ा का समर्थन नहीं करती। यह लेख, इसके लिखे जाने के समय पर ज्ञात तथ्य केवल बता रहा है।

[पेज 27 पर बड़े अक्षरों में लेख की खास बात]

अपरिपूर्ण न्यायिक व्यवस्थाएँ—साथ ही भ्रष्ट सरकार, पतित धर्म और बेईमान व्यापार-वर्ग—ऐसे मानव समाज का प्रतिबिंब हैं जिसमें ढेरों परिवर्तन किए जाने की ज़रूरत है

[पेज 28 पर बक्स]

पवित्र शास्त्र से शांति

नवंबर १९५२ में, डेरिक बेन्टली और क्रिस्टफर क्रेग ने इंग्लैंड में लंदन के पास, क्रोएडन के एक मालगोदाम में चोरी की। बेन्टली १९ साल का था और क्रेग १६ का। पुलिस बुलायी गयी और क्रेग ने एक पुलिसवाले पर गोली चलायी और उसे मार दिया। क्रेग ने जेल में नौ साल बिताए, जबकि बेन्टली को जनवरी १९५३ में हत्या के आरोप में फाँसी दी गयी।

बेन्टली की बहन, आइरिस ने ४० साल तक अपने भाई पर लगे उस हत्या के कलंक को मिटाने का अभियान चलाया जो उसके भाई ने की ही नहीं। सन्‌ १९९३ में, राजघराने ने सज़ा को लेकर एक माफीनामा जारी किया, और यह स्वीकार किया कि डेरिक बेन्टली को फाँसी नहीं दी जानी थी। आइरिस बेन्टली ने इस मुकद्दमे के बारे में किताब उसका न्याय करो (अंग्रेज़ी) में लिखा:

“गोली चलाए जाने के करीब एक साल पहले वह सड़क पर एक यहोवा के साक्षी से मिला था . . . बहन लेन हमारे पास ही फेयरव्यू रोड पर रहती थीं और उन्होंने डेरिक को अपने घर बाइबल कहानियाँ सुनने के लिए बुलाया। . . . एक अच्छी बात यह थी कि बहन लेन के पास रिकॉर्ड पर बाइबल कहानियाँ थीं, जो उसने डेरिक को कुछ समय के लिए दिए [क्योंकि वह पढ़ने में अच्छा नहीं था]। . . . वह लौटकर मुझे बताता था कि बहन ने उसे क्या-क्या बताया था, जैसे कि मरने के बाद हम सब वापस आएँगे।”

जब आइरिस बेन्टली का भाई फाँसी पर चढ़ने से पहले अपनी मौत का इंतज़ार कर रहा था, तब वह उससे मिली। डेरिक को कैसा महसूस हो रहा था? “बहन लेन ने उससे जो बातें कही थीं, उनसे उसे अपनी आखिरी घड़ियों में मदद मिली।”—तिरछे टाइप हमारे।

अगर आप न्याय में गलती के कारण दुःख-तकलीफ झेल रहे हैं, तो आपके लिए बाइबल सच्चाइयों को पढ़ना और उन पर मनन करना अच्छा होगा। इससे बहुत ज़्यादा शांति मिल सकती है, क्योंकि यहोवा परमेश्‍वर “दया का पिता, और सब प्रकार की शान्ति का परमेश्‍वर है। वह हमारे सब क्लेशों में शान्ति देता है।”—२ कुरिन्थियों १:३, ४.

[पेज 29 पर तसवीर]

घिनौना अन्याय हुआ जब मसीह को मार डाला गया

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