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धर्म बदलने की वज़ह

बहुत से लोगों के लिए धर्म सिर्फ एक लेबल बनकर रह गया है। इससे सिर्फ इतना पता चलता है कि एक व्यक्‍ति रविवार को कौन से चर्च जाता है, कौन से चर्च में उसकी शादी होगी और कौन से कब्रिस्तान में उसे दफनाया जाएगा। मगर इस लेबल से यह पता नहीं चलता कि वह किस किस्म का इंसान है, वह क्या जानता है और उसका विश्‍वास क्या है। उदाहरण के लिए एक सर्वे से पता चला कि मसीही कहलानेवाले ५० प्रतिशत लोगों को इतना भी नहीं मालूम था कि पहाड़ी उपदेश किसने दिया। जबकि भारत के प्रसिद्ध नेता गाँधी जी को यह मालूम था हालाँकि वे एक हिन्दू थे!

एक तो लोगों को अपने धर्म के बारे में इतना कम मालूम है और फिर जब उनका विश्‍वास धर्म पर से उठ जाता है तो क्या हमें ताज्जुब करना चाहिए? जी नहीं। लेकिन, ऐसा भी नहीं कि सब लोगों का विश्‍वास धर्म पर से उठ गया हो। जिन लोगों ने बाइबल सीखने के लिए मदद ली है वे अकसर अचंभा करते हैं कि इससे उन्हें बहुत लाभ हुआ है। बाइबल ही कहती है: “यहोवा जो तेरा छुड़ानेवाला और इस्राएल का पवित्र है, वह यों कहता है, मैं ही तेरा परमेश्‍वर यहोवा हूं जो तुझे तेरे लाभ के लिये शिक्षा देता हूं, और जिस मार्ग से तुझे जाना है उसी मार्ग पर तुझे ले चलता हूं।” (तिरछे टाइप हमारे)—यशायाह ४८:१७.

तो फिर उन लोगों को क्या करना चाहिए जिनकी आध्यात्मिक भूख नहीं मिटती? उन्हें परमेश्‍वर की सेवा करने की इच्छा नहीं छोड़नी चाहिए! इसके बजाय उन्हें बाइबल से देखना चाहिए कि खुद परमेश्‍वर ने उनके लिए क्या प्रबंध किया है।

मुश्‍किल सवालों के जवाब

बर्न्ड सात साल का था जब उसने अपनी माँ को मरते हुए देखा।a बचपन में वह यही सोचता रहता कि आखिर ‘मेरी माँ गई कहाँ? उसके बगैर मैं कैसे जीऊँगा?’ किशोरावस्था में बर्न्ड चर्च का जोशीला सदस्य बन गया। दुनिया में इतने गमों को देखकर उसने सोचा कि बड़ा होकर मुझे ऐसे देश में जाना चाहिए जहाँ मैं लोगों की मदद कर सकूँ। मगर अभी भी वह उन सवालों से परेशान था जिनके सही जवाब चर्च उसे नहीं दे पाया था।

एक दिन बर्न्ड अपने स्कूल के दोस्त के साथ बात कर रहा था जो एक यहोवा का साक्षी था। बर्न्ड को उसके दोस्त ने बाइबल से दिखाया कि उसकी माँ अचेत अवस्था में है और मौत की नींद सो रही है। बर्न्ड ने इस बात को बतानेवाले बाइबल के बहुत से वचनों को सीखा जैसे कि सभोपदेशक ९:५: “मरे हुए कुछ भी नहीं जानते।” अब बर्न्ड के पास यह चिंता करने का कोई कारण नहीं था कि उसकी माँ कहीं शोधन-स्थान या उससे भी खतरनाक नरक में तड़प रही है। जबकि बहुत से धर्मों में अमर आत्मा की शिक्षा दी जाती है लेकिन बर्न्ड ने बाइबल से सीखा कि जब एक आदमी मरता है उसके अंदर से कुछ ऐसी चीज़ नहीं निकलती जो अमर रहती है।

बर्न्ड ने यह भी सीखा कि मरे हुओं के लिए एक शानदार आशा है। उसने खुद बाइबल में प्रेरितों की किताब से पढ़ा: “धर्मी और अधर्मी दोनों का जी उठना होगा।” (प्रेरितों २४:१५) वह यह जानकर बहुत खुश हुआ कि मरे हुओं का जी-उठना यहीं ज़मीन पर होगा जिसे परमेश्‍वर फिर से एक खूबसूरत सुख-बगिया बना देगा!—भजन ३७:२९; प्रकाशितवाक्य २१:३, ४.

जल्द ही बर्न्ड की आध्यात्मिक ज़रूरतें बाइबल के सच्चे ज्ञान से पूरी हुईं। बर्न्ड का विश्‍वास धर्म पर से नहीं उठा था। उसने चर्च को छोड़ दिया जो उसकी आध्यात्मिक भूख को नहीं मिटा सका था। अब उसने उस धर्म को अपनाया है जो पूरी तरह से बाइबल पर आधारित है। वह कहता है: “यह १४ साल पहले की बात है मगर आज तक मुझे चर्च छोड़ने का कोई दुःख नहीं हुआ। अब मुझे मालूम है कि हमारी मुसीबतों का कारण हमारा सृजनहार नहीं बल्कि इस संसार का सरदार शैतान है, और वही इस दुनिया की सारी दुःख-तकलीफों के लिए दोषी है। मगर परमेश्‍वर बहुत जल्द शैतान की दुनिया द्वारा की गई बुराइयों के असर को दूर कर देगा। मेरी मम्मी भी मरे हुओं में से जी-उठेगी। वो कितनी खुशी का माहौल होगा!”

आखिरकार विदेश जाकर दूसरों की सेवा करने की बर्न्ड की ख्वाहिश पूरी हुई। क्योंकि सभी मुसीबतों का एकमात्र हल परमेश्‍वर का राज्य है, बर्न्ड अब वहाँ दूसरों को इस राज्य के बारे में सिखा रहा है। बर्न्ड की तरह लाखों लोगों ने सीखा है कि परमेश्‍वर जल्द ही इंसानों की दु:ख-तकलीफों को मिटा देगा। उनको यह जानकर बेहद खुशी होती है कि एक ऐसा धर्म है जो आध्यात्मिक ज़रूरतों को पूरा करता है।—मत्ती ५:३, NW.

ज़िंदगी का मकसद क्या है?

जैसे-जैसे पश्‍चिम की दुनिया धर्म से अलग होती जा रही है बहुत से लोग पूछते हैं कि ‘आखिर ज़िंदगी का मकसद क्या है?’ जवाब बाइबल में मिलता है। माइकल को भी जवाब बाइबल से ही मिला। १९७५ के करीब माइकल आतंकवादियों की टोली में शामिल होना चाहता था। उसकी ज़िंदगी का सिर्फ एक मकसद रह गया था कि उन दौलतमंद लोगों को निशाना बनाए जो अन्याय के लिए ज़िम्मेदार हैं। वह कहता है: “मैं अपने घर से कभी-भी पिस्तौल के बगैर बाहर नहीं निकला। मेरा प्लैन था कि ज़्यादा-से-ज़्यादा बड़े-बड़े राजनेताओं और उद्योगपतियों को मार दूँ। इस मकसद को पूरा करने के लिए, मैं अपनी जान तक कुरबान करने को तैयार था।”

माइकल चर्च जाता था। मगर ज़िंदगी के असली मकसद के बारे में चर्च में उसे कोई भी नहीं बता सका था। फिर जब यहोवा के साक्षी उसके घर गए और बाइबल से उसके सवालों के जवाब दिए तो माइकल ने उनकी बातों को बड़े ध्यान से सुना। उसने यहोवा के साक्षियों के राज्य गृह में, उपासना की सभाओं में जाना शुरू कर दिया।

माइकल की बाइबल में इतनी दिलचस्पी के बारे में उसके दोस्त जानना चाहते थे। माइकल ने उन्हें प्रोत्साहित किया, “इस रविवार को मीटिंग में आना, थोड़ी देर रुकना, और वहाँ जो कुछ तुम सुनोगे अगर वह तुम्हें अच्छा न लगे तो अपने घर वापस चले जाना।” ठीक ऐसा ही हुआ। बाइबल पर आधारित ४५ मिनट के भाषण के बाद उसके अधिकतर दोस्त उठकर चले गए। लेकिन सिर्फ सूज़न नहीं गई। इस जवान औरत ने मीटिंग में जो कुछ सुना उससे बहुत प्रभावित हुई। कुछ समय बाद माइकल और सूज़न ने शादी कर ली। वे बपतिस्मा लेकर यहोवा के साक्षी बन गए। माइकल कहता है, “अब मुझे पता है कि हम इस ज़मीन पर क्यों हैं। हमें यहोवा ने बनाया है। ज़िंदगी का हमारा असली मकसद यही है कि उसके बारे में जानें और उसकी मर्ज़ी पूरी करें। इसी से सच्ची संतुष्टि मिलती है!”

माइकल की तरह लाखों लोग हैं जिन्होंने बाइबल के इन शब्दों को अपने दिलों पर लिख लिया है: “सब कुछ सुना गया; अन्त की बात यह है कि परमेश्‍वर का भय मान और उसकी आज्ञाओं का पालन कर; क्योंकि मनुष्य का सम्पूर्ण कर्त्तव्य यही है।”—सभोपदेशक १२:१३.

ज़िंदगी की समस्याओं से मुकाबला करना

हम सब उस भविष्यवाणी को पूरा होते हुए देख रहे हैं जो २ तीमुथियुस ३:१ में दी गई है: “अन्तिम दिनों में कठिन समय आएंगे।” कोई भी “कठिन समय” की समस्याओं से बचा नहीं रह सकता। मगर इनसे मुकाबला करने में बाइबल हमारी मदद ज़रूर करती है।

स्टीवन और औलिव दंपति पर ध्यान दें जिन्होंने यहोवा के साक्षियों से बाइबल का अध्ययन करना शुरू किया। अध्ययन से पहले बहुतों की तरह उनको भी अपने रिश्‍ते में समस्याएँ थीं। स्टीवन बताता है: “हमारा संबंध बिगड़ता जा रहा था। हमारे मकसद अलग-अलग और पसंद फरक-फरक थी।” संबंध सुधारने में उन्हें कहाँ से मदद मिली? स्टीवन आगे कहता है, “यहोवा के साक्षियों ने हमें सिखाया कि कैसे हम बाइबल के सिद्धांतों को अपनी ज़िंदगी में लागू कर सकते हैं। हमने पहली बार जाना कि नि:स्वार्थ होने और दूसरे की चिंता करने का सही मतलब क्या है। बाइबल सिद्धांतों को लागू करने से हम एक दूसरे के बहुत करीब आए हैं। अब हमारी वैवाहिक ज़िंदगी बेहद खुशहाल और रिश्‍ता बहुत मज़बूत है।”

परमेश्‍वर के साथ एक करीबी रिश्‍ता

हाल के गैलप सर्वे के मुताबिक ९६ प्रतिशत अमरीकी परमेश्‍वर में विश्‍वास करते हैं और उनमें से अधिकतर उससे प्रार्थना करते हैं। इसके बावजूद एक अलग सर्वे दिखाता है कि वहाँ आज चर्चों और यहूदी उपासना-घरों में हाज़िरी पिछले ५० सालों में सबसे कम है। करीब ५८ प्रतिशत अमरीकी कहते हैं कि वे महीने में ज़्यादा-से-ज़्यादा शायद एक बार चर्च जाते हैं। बात साफ है कि धर्म लोगों को परमेश्‍वर के करीब नहीं लाया है। और यह समस्या सिर्फ अमरीका में ही नहीं है।

बवारिया में लिंडा पली बढ़ी। वह पक्की कैथोलिक थी और हर रोज़ प्रार्थना करती थी। मगर फिर भी यह सोच-सोचकर परेशान थी कि भविष्य में क्या होगा। इंसान के लिए परमेश्‍वर के उद्देश्‍य के बारे में उसे कुछ मालूम नहीं था। जब लिंडा १४ साल की थी तब वह यहोवा के साक्षियों से मिली। वह बताती है: “उन्होंने जो बताया वह मुझे बहुत दिलचस्प लगा इसलिए मैंने उनसे बाइबल को समझानेवाली दो किताबें ले लीं और उन्हें फौरन पढ़ डाला।” दो साल बाद लिंडा ने यहोवा के साक्षियों से बाइबल का अध्ययन करना शुरू किया। वह कहती है: “परमेश्‍वर के बारे में जो कुछ मैं बाइबल से सीखती थी, मैं देख सकती थी कि वह सही था।” लिंडा ने अपने चर्च को छोड़ दिया और १८ साल की उम्र में बपतिस्मा लेकर यहोवा की साक्षी बन गई।

किस वज़ह से लिंड़ा ने अपना धर्म बदला था? वह बताती है: “मेरे चर्च ने मुझे सिखाया कि एक परमेश्‍वर है और मैं उस पर विश्‍वास करने लगी। मगर वह मेरे लिए भावनाहीन था और मुझसे बहुत दूर था। बाइबल अध्ययन करने से न सिर्फ परमेश्‍वर में मेरा विश्‍वास मज़बूत हुआ बल्कि मैं परमेश्‍वर को अच्छी तरह जान पाई और उससे प्यार करने लगी। अब परमेश्‍वर से मेरा बहुत ही करीबी रिश्‍ता है, ऐसा रिश्‍ता जो दूसरी किसी भी चीज़ के मुकाबले अनमोल है।”

सच्चा धर्म फायदेमंद है!

क्या आपका धर्म आपको आध्यात्मिक राह दिखाता है? क्या वह सिखाता है कि ज़िंदगी की मुश्‍किलों का सामना करने में बाइबल कैसे आपकी मदद कर सकती है? क्या वह बाइबल में दी गई भविष्य की आशा के बारे में सिखाता है? क्या वह सही बाइबल-ज्ञान के मुताबिक सृजनहार के साथ हमारा एक करीबी रिश्‍ता बनवाता है? अगर ऐसा नहीं है तो हिम्मत मत हारिए। धर्म में विश्‍वास खोने की बजाए उस धर्म की तलाश कीजिए जो सिर्फ बाइबल पर आधारित हो। फिर आप उन लोगों में से होंगे जिनके बारे में बाइबल की यशायाह नामक किताब में भविष्यवाणी की गई थी: “प्रभु यहोवा यों कहता है, ‘देखो, मेरे दास तो खाएंगे . . . मेरे दास पीएंगे . . . मेरे दास आनन्द करेंगे . . . मेरे दास हर्ष के मारे जयजयकार करेंगे।’”—यशायाह ६५:१३, १४.

[फुटनोट]

a इस लेख में कुछ नाम बदल दिए गए हैं।

[पेज 4, 5 पर तसवीरें]

बाइबल हमें परमेश्‍वर को जानने में और उससे प्यार करने में मदद करती है

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