‘यहोवा, दयालु और अनुग्रहकारी ईश्वर’
“यहोवा, यहोवा, ईश्वर दयालु और अनुग्रहकारी, कोप करने में धीरजवन्त, और अति करुणामय और सत्य।”—निर्गमन ३४:६.
१. (क) बाइबल से उन लोगों को कैसे तसल्ली मिलती है जिन्होंने अपनों को सच्ची उपासना से भटकते देखा है? (ख) यहोवा राह से भटक जानेवालों को किस नज़र से देखता है?
एक मसीही पिता कहता है: “मेरी बेटी ने मुझसे साफ-साफ कह दिया कि अब मैं कलीसिया से कोई ताल्लुक नहीं रखना चाहती। यह सुनने के बाद कई महीनों तक मेरे सीने में ऐसा दर्द रहा जो मुझे अंदर-ही-अंदर खाए जा रहा था। मौत ही इससे बेहतर होती।” अपनों को सच्ची उपासना की राह से भटकते हुए देखकर सचमुच बड़ी तकलीफ होती है। क्या आप पर भी कभी ऐसी गुज़री है? अगर गुज़री है तो आपको यह जानकर तसल्ली मिलेगी कि यहोवा भी इस तकलीफ से गुज़र चुका है और आपसे हमदर्दी रखता है। (निर्गमन ३:७; यशायाह ६३:९) मगर वह इस तरह राह से भटक जानेवालों को किस नज़र से देखता है? बाइबल बताती है कि दया से भरकर यहोवा उन्हें पुकारता है कि वे वापस लौट आएँ ताकि वह उन्हें अपनी पनाह में ले सके। उसने मलाकी के समय के ढीठ यहूदियों से मिन्नतें की: “तुम मेरी ओर फिरो, तब मैं भी तुम्हारी ओर फिरूंगा।”—मलाकी ३:७.
२. बाइबल कैसे दिखाती है कि दया के गुण को यहोवा से अलग करना नामुमकिन है?
२ सीनै पहाड़ पर मूसा को परमेश्वर की दया का मतलब समझाया गया। वहाँ, यहोवा ने अपने बारे में बताया कि वह “दयालु और अनुग्रहकारी [ईश्वर], कोप करने में धीरजवन्त, और अति करुणामय और सत्य” है। (निर्गमन ३४:६) यह घोषणा ज़ोर देती है कि दया के गुण को यहोवा से अलग करना नामुमकिन है। और मसीही प्रेरित पतरस ने लिखा कि परमेश्वर ‘चाहता है कि सब को मन फिराव का अवसर मिले।’ (२ पतरस ३:९) लेकिन, परमेश्वर की दया की भी कुछ सीमाएँ हैं। मूसा को बताया गया, “दोषी को वह किसी प्रकार निर्दोष न ठहराएगा।” (निर्गमन ३४:७; २ पतरस २:९) फिर भी, “परमेश्वर प्रेम है” और प्रेम दिखाने का एक बड़ा तरीका है दया दिखाना। (१ यूहन्ना ४:८; याकूब ३:१७) यहोवा ‘अपने क्रोध को सदा बनाए नहीं रखता,’ पर वह “करुणा से प्रीति रखता है।”—मीका ७:१८, १९.
३. दया के बारे में यीशु के नज़रिये के मुकाबले शास्त्रियों और फरीसियों का नज़रिया कैसा था?
३ यीशु बिलकुल अपने स्वर्गीय पिता की तरह ही था। (यूहन्ना ५:१९) पापियों को दया दिखाकर वह उनके पापों को अनदेखा नहीं कर रहा था बल्कि जैसी हमदर्दी वह बीमार लोगों के लिए महसूस करता था, वैसी हमदर्दी वह उनके लिए दिखा रहा था। (मरकुस १:४०, ४१ से तुलना कीजिए।) जी हाँ, यीशु के लिए परमेश्वर की व्यवस्था की “गम्भीर बातों” में दया भी शामिल थी। (मत्ती २३:२३) इसके मुकाबले, शास्त्रियों और फरीसियों के बारे में सोचिए, जो न्याय करते वक्त इतनी सख्ती से नियमों को लागू करते थे कि दया की कोई गुंजाइश ही नहीं रहती थी। जब उन्होंने यीशु को पापियों के संग मिलते-जुलते देखा तो शिकायत की: “यह तो पापियों से मिलता है और उन के साथ खाता भी है।” (लूका १५:१, २) यीशु ने उस पर इलज़ाम लगानेवालों को तीन दृष्टांत देकर जवाब दिया और हर दृष्टांत परमेश्वर की दया पर ज़ोर देता है।
४. यीशु ने कौन-से दो दृष्टांत बताए और दोनों में क्या सबक सिखाया गया था?
४ पहला, यीशु ने एक मनुष्य के बारे में बताया जो ९९ भेड़ों को छोड़कर एक खोई हुई भेड़ को ढूँढ़ने के लिए निकल पड़ता है। यीशु यहाँ क्या बताना चाह रहा था? “एक मन फिरानेवाले पापी के विषय में भी स्वर्ग में इतना ही आनन्द होगा, जितना कि निन्नानवे ऐसे धर्मियों के विषय नहीं होता, जिन्हें मन फिराने की आवश्यकता नहीं।” इसके बाद, यीशु ने एक स्त्री के बारे में बताया जिसका एक सिक्का खो गया था और जब वह सिक्का उसे मिला तब वह बहुत आनंदित हुई। यीशु का क्या मतलब था? “एक मन फिरानेवाले पापी के विषय में परमेश्वर के स्वर्गदूतों के साम्हने आनन्द होता है।” यीशु ने तीसरा दृष्टांत एक कहानी के रूप में सुनाया।a कुछ लोग इसे दुनिया की सबसे बढ़िया कहानी मानते हैं। इस कहानी पर गौर करने से हम यहोवा की दया की कदर कर सकेंगे और उसके जैसी दया दिखा सकेंगे।—लूका १५:३-१०.
बागी बेटा घर छोड़कर चला जाता है
५, ६. यीशु के तीसरे दृष्टांत में छोटे बेटे ने कैसे दिल को ठेस पहुँचानेवाली बेकदरी दिखायी?
५ “किसी मनुष्य के दो पुत्र थे। उन में से छुटके ने पिता से कहा कि हे पिता संपत्ति में से जो भाग मेरा हो, वह मुझे दे दीजिए। उस ने उन को अपनी संपत्ति बांट दी। और बहुत दिन न बीते थे कि छुटका पुत्र सब कुछ इकट्ठा करके एक दूर देश को चला गया और वहां कुकर्म में अपनी संपत्ति उड़ा दी।”—लूका १५:११-१३.
६ छोटे बेटे ने ऐसी बेकदरी दिखायी जिससे दिल को ठेस पहुँचती है। पहले उसने जायदाद में से अपना हिस्सा माँगा और फिर उसे “कुकर्म में” उड़ा दिया। “कुकर्म” शब्द का अनुवाद एक यूनानी शब्द से किया गया है जिसका मतलब है “ऐशो-आराम की ज़िंदगी।” एक विद्वान कहता है कि इस शब्द का मतलब, “अच्छे चरित्र को पूरी तरह त्याग देना” है। तो यह उचित ही है कि यीशु की कहानी के युवक को अकसर गुमराह या उड़ाऊ बेटा कहा जाता है, जिसका मतलब है अंधाधुंध खर्च करनेवाला और पैसा बरबाद करनेवाला।
७. आज गुमराह बेटे जैसे कौन लोग हैं और ऐसे कई व्यक्ति “दूर देश” जाने की आज़ादी क्यों पाना चाहते हैं?
७ क्या गुमराह बेटे जैसे लोग आज भी पाए जाते हैं? जी हाँ। दुःख की बात है कि कुछ लोग हमारे स्वर्गीय पिता, यहोवा के “घर” की पनाह से दूर चले गए हैं। (१ तीमुथियुस ३:१५) इनमें से कुछ लोगों को लगता है कि परमेश्वर के घर का माहौल बंदिशों से भरा है, और यहोवा की निगाह उन्हें सुरक्षा से ज़्यादा एक रुकावट लगती है। [भजन ३२:८ (फुटनोट) से तुलना कीजिए।] एक मसीही स्त्री की मिसाल लीजिए जिसे बचपन से ही बाइबल के उसूल सिखाए गए थे, लेकिन बाद में उसे शराब और नशीली दवाओं की लत पड़ गयी। अपने जीवन के उस अंधियारे दौर को याद करते हुए वह कहती है: “मैं दिखाना चाहती थी कि मैं अपनी ज़िंदगी खुद सँवार सकती हूँ। मैं मन-मरज़ी करना चाहती थी और नहीं चाहती थी कि कोई भी इस मामले में मुझे अपनी राय दे।” उस गुमराह बेटे की तरह यह युवती भी आज़ाद रहना चाहती थी। दुःख की बात है कि उसके ऐसे कामों की वज़ह से जिनके लिए बाइबल सख्त मना करती है उसे मसीही कलीसिया से निकालना पड़ा।—१ कुरिन्थियों ५:११-१३.
८. (क) परमेश्वर के स्तरों के खिलाफ जीने का रुझान दिखानेवाले लोगों की मदद कैसे की जा सकती है? (ख) उपासना के बारे में अपने फैसले पर एक व्यक्ति को क्यों अच्छी तरह सोच लेना चाहिए?
८ सचमुच यह देखकर बहुत तकलीफ होती है जब कोई संगी विश्वासी परमेश्वर के स्तरों के खिलाफ जीने का रुझान दिखाता है। (फिलिप्पियों ३:१८) जब ऐसा होता है तब प्राचीन और आध्यात्मिक रीति से मज़बूत दूसरे लोग इस भटकनेवाले व्यक्ति को सही राह पर लाने की भरपूर कोशिश करते हैं। (गलतियों ६:१) फिर भी, मसीह के चेले होने का जूआ यानी ज़िम्मेदारी उठाने के लिए किसी से ज़ोर-ज़बरदस्ती नहीं की जाती। (मत्ती ११:२८-३०; १६:२४) यहाँ तक कि बच्चों को भी बालिग होने पर उपासना के बारे में खुद फैसला करना चाहिए। आखिरकार, हम सब आज़ाद मरज़ी रखनेवाले इंसान हैं और हर इंसान को परमेश्वर के सामने अपना लेखा खुद देना होगा। (रोमियों १४:१२) बेशक, हम भी वही ‘काटेंगे जो हमने बोया’ है। यीशु की कहानी का गुमराह बेटा यही सबक जल्द ही सीखनेवाला था।—गलतियों ६:७, ८.
दूर देश में मायूस
९, १०. (क) गुमराह बेटे के हालात कैसे बदल गए और उसने क्या किया? (ख) उदाहरण दीजिए कि कैसे आज सच्ची उपासना को छोड़नेवाले लोगों की दुर्दशा गुमराह बेटे जैसी होती है।
९ “जब वह सब कुछ खर्च कर चुका, तो उस देश में बड़ा अकाल पड़ा, और वह कंगाल हो गया। और वह उस देश के निवासियों में से एक के यहां जा पड़ा: उस ने उसे अपने खेतों में सूअर चराने के लिये भेजा। और वह चाहता था, कि उन फलियों से जिन्हें सूअर खाते थे अपना पेट भरे; और उसे कोई कुछ नहीं देता था।”—लूका १५:१४-१६.
१० हालाँकि गुमराह बेटा कंगाल हो चुका था, फिर भी उसने घर वापस जाने की बात नहीं सोची। इसके बजाय, वह उस देश के एक निवासी के पास गया जिसने उसे सूअर चराने का काम दिया। क्योंकि मूसा की व्यवस्था में सूअरों को अशुद्ध बताया गया था, इसलिए एक यहूदी ऐसी नौकरी करने के बारे में सोच भी नहीं सकता था। (लैव्यव्यवस्था ११:७, ८) पर अगर गुमराह बेटे के विवेक ने आवाज़ उठायी भी होगी तो उसे इस आवाज़ को दबा देना पड़ा। आखिरकार वह यह उम्मीद तो नहीं कर सकता था कि उसका मालिक, अपने ही देश में एक कंगाल-बदहाल विदेशी की भावनाओं की परवाह करे। गुमराह बेटे की यह दुर्दशा उन अनेक लोगों जैसी है जिन्होंने आज सच्ची उपासना की सीधी राह को छोड़ दिया है। अकसर, ये लोग ऐसे काम करने लगते हैं जिन्हें वे पहले बहुत गंदा समझते थे। मिसाल के तौर पर, १७ साल की उम्र में एक नौजवान ने अपनी मसीही ज़िंदगी से आज़ाद होने का फैसला किया। वह खुद कहता है, “अनैतिकता और नशीली दवाओं ने बरसों से सिखाई गई बाइबल की शिक्षाओं को मिटा डाला।” जल्द ही इस नौजवान को डकैती और कत्ल के इलज़ाम में जेल हो गयी। हालाँकि बाद में वह आध्यात्मिक रीति से फिर से चंगा हो गया, फिर भी “पाप में थोड़े दिन के सुख भोगने” के लिए उसे कितनी बड़ी कीमत चुकानी पड़ी!—इब्रानियों ११:२४-२६ से तुलना कीजिए।
११. गुमराह बेटे की हालत और बदतर कैसे हो गयी और आज कुछ लोगों ने कैसे जाना है कि इस संसार की कशिश “व्यर्थ धोखे” के सिवाय कुछ नहीं?
११ गुमराह बेटे की हालत और बदतर हो गयी जब “उसे कोई कुछ नहीं देता था।” उसके नए दोस्त कहाँ गए? अब जब वह कौड़ी-कौड़ी का मोहताज था तब वे भी उससे “घृणा” करने लगे। (नीतिवचन १४:२०) उसी तरह, आज अनेक लोग जो विश्वास से भटक जाते हैं वे जान जाते हैं कि इस संसार की कशिश और इसका नज़रिया “व्यर्थ धोखे” के सिवाय और कुछ नहीं। (कुलुस्सियों २:८) एक युवती जो परमेश्वर के संगठन से कुछ समय दूर चली गयी थी कहती है, “यहोवा की अगुवाई के बिना मैंने बहुत तकलीफें झेलीं। मैंने संसार के हिसाब से खुद को ढालने की कोशिश की, लेकिन मैं दिल से संसार के लोगों जैसी नहीं थी इसलिए उन्होंने मुझे ठुकरा दिया। मैं खोई हुई बच्ची थी जिसे रास्ता दिखाने के लिए पिता की ज़रूरत थी। तब मुझे यहोवा की ज़रूरत का एहसास हुआ। इसके बाद मैंने उसे फिर कभी न छोड़ने का फैसला किया।” यीशु के दृष्टांत में गुमराह बेटे को भी यही एहसास हुआ।
गुमराह बेटा होश में आता है
१२, १३. किन बातों से कुछ लोगों को आज अपने आपे में आने में मदद मिली है? (बक्स देखिए।)
१२ “जब वह अपने आपे में आया, तब कहने लगा, कि मेरे पिता के कितने ही मजदूरों को भोजन से अधिक रोटी मिलती है, और मैं यहां भूखा मर रहा हूं। मैं अब उठकर अपने पिता के पास जाऊंगा और उस से कहूंगा कि पिता जी मैं ने स्वर्ग के विरोध में और तेरी दृष्टि में पाप किया है। अब इस योग्य नहीं रहा कि तेरा पुत्र कहलाऊं, मुझे अपने एक मजदूर की नाईं रख ले। तब वह उठकर, अपने पिता के पास चला।”—लूका १५:१७-२०.
१३ गुमराह बेटा “अपने आपे में आया।” कुछ समय तक, वह मौज-मस्ती में डूबा रहा, मानो किसी दूसरी ही दुनिया में हो। लेकिन अब उसे एहसास हुआ कि असल में उसकी आध्यात्मिक हालत क्या थी। जी हाँ, हालाँकि वह गिर चुका था फिर भी इस नौजवान के लिए उम्मीद की एक किरण बाकी थी। उसमें अभी-भी कुछ अच्छा था। (नीतिवचन २४:१६. २ इतिहास १९:२, ३ से तुलना कीजिए।) उन लोगों के बारे में क्या जो आज परमेश्वर के झुंड को छोड़कर चले जाते हैं? क्या यह सोचना सही होगा कि वे कभी वापस नहीं आ सकते या कि हर बार उनके बगावत करने से यह साबित होता है कि उन्होंने पवित्र आत्मा के खिलाफ पाप किया है? (मत्ती १२:३१, ३२) ऐसा ज़रूरी नहीं है। इनमें से कई ऐसे हैं जिनके लिए गलत मार्ग पर चलना एक सज़ा के बराबर होता है और कुछ समय बाद इनमें कई अपने आपे में आ जाते हैं। परमेश्वर के संगठन से अलग रहकर बिताए वक्त के बारे में एक बहन कहती है, “मैं एक पल के लिए भी यहोवा को नहीं भूली। मैं हमेशा बस यही दुआ माँगती थी कि एक-न-एक दिन, किसी तरह, वह मुझे सच्चाई में वापस ले ले।”—भजन ११९:१७६.
१४. गुमराह बेटे ने क्या करने की सोची और इस बात में उसने नम्रता कैसे दिखायी?
१४ लेकिन जो भटक चुके हैं वो अपने हालात को बदलने के लिए क्या कर सकते हैं? यीशु की कहानी में गुमराह बेटे ने वापस घर लौटने और अपने पिता से माफी माँगने का फैसला किया। उसने यह कहने की सोची, “मुझे अपने एक मजदूर की नाईं रख ले।” मज़दूर को एक दिन की मज़दूरी पर रखा जाता था, और अगले दिन काम से निकाला जा सकता था। उसे घर के दास से भी कम समझा जाता था क्योंकि दास भी एक मायने में परिवार के सदस्य जैसा होता था। गुमराह बेटा यह नहीं सोच रहा था कि उसे बेटे की हैसियत से कबूल किया जाए। वह सबसे निचला दर्जा पाने के लिए भी तैयार था, ताकि वह नए सिरे से हर दिन अपने पिता के लिए अपनी वफादारी साबित कर सके। लेकिन, कुछ ऐसा होने जा रहा था जिसकी उस गुमराह बेटे ने उम्मीद भी नहीं की थी।
दिल छू लेनेवाला स्वागत
१५-१७. (क) अपने बेटे को देखकर पिता ने क्या किया? (ख) अपने बेटे को पिता ने जो वस्त्र, अँगूठी और जूतियाँ दी उसका क्या मतलब था? (ग) पिता के दावत देने से क्या नज़र आता है?
१५ “वह अभी दूर ही था, कि उसके पिता ने उसे देखकर तरस खाया, और दौड़कर उसे गले लगाया, और बहुत चूमा। पुत्र ने उस से कहा; पिता जी, मैं ने स्वर्ग के विरोध में और तेरी दृष्टि में पाप किया है; और अब इस योग्य नहीं रहा, कि तेरा पुत्र कहलाऊं। परन्तु पिता ने अपने दासों से कहा; झट अच्छे से अच्छा वस्त्र निकालकर उसे पहिनाओ, और उसके हाथ में अंगूठी, और पांवों में जूतियां पहिनाओ। और पला हुआ बछड़ा लाकर मारो ताकि हम खाएं और आनन्द मनावें। क्योंकि मेरा यह पुत्र मर गया था, फिर जी गया है: खो गया था, अब मिल गया है: और वे आनन्द करने लगे।”—लूका १५:२०-२४.
१६ कोई भी प्यार करनेवाला माँ-बाप अपने बच्चे को आध्यात्मिक रीति से चंगा होते देखना चाहेगा। इसलिए हम कल्पना कर सकते हैं कि गुमराह बेटे का पिता कैसे हर दिन अपने घर के सामने उसकी राह ताकता होगा। वह हर पल यही कामना करता होगा कि मेरा बेटा घर लौट आए। अचानक उसे उसी रास्ते पर अपना बेटा आता हुआ दिखाई देता है! उस लड़के को पहचानना भी मुश्किल था। फिर भी, “वह अभी दूर ही था” कि उसका पिता उसे पहचान लेता है। उसकी नज़रें चीथड़ों और टूटे हुए दिल से भी बढ़कर कुछ देख लेती हैं; उसे सिर्फ अपना बेटा नज़र आता है और वह उसे मिलने के लिए दौड़कर जाता है!
१७ जब पिता अपने बेटे के करीब पहुँचता है, तो उसे गले लगाकर बड़े प्यार से चूमता है। फिर वह अपने दासों को अपने बेटे के लिए वस्त्र, अँगूठी और जूतियाँ लाने का हुक्म देता है। यह वस्त्र कोई सादा कपड़ा नहीं था, बल्कि “अच्छे से अच्छा” कपड़ा था—शायद यह ऐसा सुंदर कढ़ाई किया हुआ बागा था जो किसी बड़े मेहमान को इज़्ज़त देने के लिए पहनाया जाता था। क्योंकि आम तौर पर दास अँगूठी और जूतियाँ नहीं पहनते थे, इसलिए पिता सबको यह साफ-साफ जताए दे रहा था कि उसके बेटे का स्वागत पूरी तरह से परिवार के एक सदस्य के नाते किया जा रहा है। लेकिन पिता यहीं नहीं रुक गया। उसने अपने बेटे की वापसी का जश्न मनाने के लिए एक दावत देने का हुक्म दिया। यह साफ है कि यह शख्स अपने बेटे को सिर्फ ऊपरी तौर पर माफ नहीं कर रहा था या सिर्फ यह सोचकर माफ नहीं कर रहा था कि अब जब यह आ ही गया है तो माफ करना उसका फर्ज़ है। बल्कि वह पूरे दिल से माफ करना चाहता था। वह खुशी के मारे फूला नहीं समा रहा था।
१८, १९. (क) गुमराह बेटे की कहानी से आपने यहोवा के बारे में क्या सीखा? (ख) यहूदा और यरूशलेम के साथ यहोवा के व्यवहार से जैसे नज़र आता है, वह पापी के लौटने की “प्रतीक्षा” कैसे करता है?
१८ गुमराह बेटे की इस कहानी से उस परमेश्वर के बारे में अब तक हमने क्या सीखा है जिसकी उपासना करने का सम्मान हमारे पास है? एक तो यह कि यहोवा “दयालु और अनुग्रहकारी, कोप करने में धीरजवन्त, और अति करुणामय और सत्य” है। (निर्गमन ३४:६) वाकई, दया परमेश्वर का एक श्रेष्ठ गुण है। ज़रूरतमंदों के साथ वह दया से ही बर्ताव करता है। दूसरे, यीशु की कहानी हमें सिखाती है कि यहोवा “क्षमा करने को तत्पर रहता है।” (भजन ८६:५, NHT) वह मानो पापी इंसानों के दिल में बदलाव देखने की आस देखता रहता है ताकि वह इसकी बिनाह पर दया दिखा सके।—२ इतिहास १२:१२; १६:९.
१९ मिसाल के तौर पर इस्राएल के साथ परमेश्वर के व्यवहार के बारे में सोचिए। यहोवा से प्रेरणा पाकर भविष्यवक्ता यशायाह ने यहूदा और यरूशलेम को ‘नख से सिर तक घावों से भरा हुआ’ बताया। फिर भी, उसने यह कहा: “यहोवा तुम पर अनुग्रह करने के लिए ठहरा रहता है, और स्वर्ग में प्रतीक्षा करता है कि तुम पर दया करे।” (तिरछे टाइप हमारे।) (यशायाह १:५, ६; ३०:१८, NHT; ५५:७; यहेजकेल ३३:११) यीशु की कहानी के पिता की तरह, वह मानो हर घड़ी उन लोगों की ‘राह ताकता’ है। उसका घर छोड़कर जानेवालों के लौटने का वह बेसब्री से इंतज़ार करता है। क्या प्यार करनेवाले एक पिता से हम यही उम्मीद नहीं करेंगे?—भजन १०३:१३.
२०, २१. (क) आज कई लोग किस तरह परमेश्वर की दया से खिंचकर आते हैं? (ख) अगले लेख में किस बात पर चर्चा की जाएगी?
२० हर साल, यहोवा की दया से खिंचकर कई लोगों को होश आता है और वे सच्ची उपासना की तरफ लौट आते हैं। उनके अपनों के लिए यह क्या ही खुशी की बात होती है! मिसाल के तौर पर, शुरू में बताए गए मसीही पिता को लीजिए। खुशी की बात है कि उसकी बेटी आध्यात्मिक रीति से चंगी हो गयी और आज वह एक पूर्ण-समय की सेवक है। वह कहता है, “इस मिटते हुए संसार में इससे ज़्यादा खुशी मुझे नहीं मिल सकती। मेरी आँखों में अब दुःख के नहीं बल्कि खुशी के आँसू हैं।” बेशक, यहोवा भी बेहद खुश है!—नीतिवचन २७:११.
२१ लेकिन गुमराह बेटे की इस कहानी से और भी कुछ सीखना बाकी है। यीशु कहानी जारी रखता है ताकि वह शास्त्रियों और फरीसियों के कठोर, दोष लगानेवाले रवैये और यहोवा की दया के बीच फर्क बता सके। उसने ऐसा कैसे किया और इसका हमारे लिए क्या मतलब है, यह चर्चा अगले लेख में की जाएगी।
[फुटनोट]
a यह ज़रूरी नहीं कि बाइबल में बतायी गयी कहानियाँ और दूसरे दृष्टांत असल में हुए हों। इसके अलावा, क्योंकि इन कहानियों का मकसद एक सबक सिखाना है, इसलिए इसमें बतायी हर बात का दोहरा अर्थ लगाने की कोई ज़रूरत नहीं है।
दोहराने के लिए
◻ दया के बारे में यीशु का रवैया फरीसियों के मुकाबले में कैसे अलग था?
◻ आज कौन लोग गुमराह बेटे जैसे हैं और कैसे?
◻ किन हालात से गुमराह बेटा अपने आपे में आया?
◻ पिता ने पछतावा दिखानेवाले अपने बेटे को कैसे दया दिखायी?
[पेज 11 पर बक्स]
ये होश में आए
कुछ लोगों को जिन्हें मसीही कलीसिया से पहले निकाल दिया गया था, होश में आने के लिए किस बात ने मदद की? यहाँ कुछ बातें दी गयी हैं जो इस मामले पर रोशनी डालती हैं।
“मन ही मन मैं अब भी जानती थी कि सच्चाई कहाँ है। सालों तक बाइबल अध्ययन करने और सभाओं में जाने का मुझ पर बहुत गहरा असर था। मैं कब तक यहोवा से मुँह मोड़े रह सकती थी? उसने मुझे नहीं छोड़ा था; मैंने ही उसे छोड़ दिया था। आखिरकार मैंने माना कि मैं कितनी गलत और हठी थी और कि यहोवा का वचन हमेशा सच्चा रहा—‘आप जो बोएँगे वही काटेंगे।’ ”—सी. डब्ल्यू.
“मेरी बच्ची बात करने लगी और मेरा दिल मचलने लगा क्योंकि मैं उसे सिखाना चाहती थी कि यहोवा कौन है और उससे कैसे प्रार्थना करनी चाहिए। मैं सो नहीं सकी और एक बार आधी रात को मैं अपनी गाड़ी लेकर एक पार्क में गयी और वहाँ फूट-फूटकर रोयी। मैं बहुत रोयी और एक लंबे अरसे बाद मैंने यहोवा से प्रार्थना की। बस मैं इतना जानती थी कि मुझे अपनी ज़िंदगी में यहोवा को वापस लाना है और मुझे उम्मीद थी कि वह मुझे माफ कर सकेगा।”—जी. एच.
“जब कभी धर्म की बात होती तो मैं लोगों से कहती कि अगर ऐसा धर्म चुनना पड़े जो सच्चाई सिखाता हो तो मैं एक यहोवा की साक्षी होना चाहूँगी। फिर मैं कहती कि पहले मैं एक साक्षी ही थी, लेकिन मैं इसके अनुसार जी नहीं पायी, इसलिए मैंने इसे छोड़ दिया। यह सोचकर मैं अकसर दोषी महसूस करती और दुःखी हो जाती थी। आखिर मुझे मानना पड़ा कि ‘मैं लाचार हो चुकी हूँ। मुझे बहुत भारी बदलाव करना होगा।’ ”—सी. एन.
“पैंतीस साल पहले मेरे पति को और मुझे कलीसिया से बहिष्कृत किया गया था। और फिर, १९९१ में हमें ऐसी खुशी मिली जिसकी हमें उम्मीद नहीं थी। हमारे पास दो प्राचीन आए जिन्होंने हमें बताया कि यहोवा के पास वापस लौटना संभव है। छः महीने बाद, कलीसिया में फिर से बहाल होने पर हमारी खुशी का ठिकाना न रहा। मेरे पति ७९ साल के हैं और मैं ६३ की हूँ।”—सी. ए.