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  • क्या ईश्‍वर को हमसे हमदर्दी है?

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  • क्या ईश्‍वर को हमसे हमदर्दी है?
  • प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है (जनता के लिए)—2018
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  • इंसान की रचना से हम क्या सीखते हैं?
  • ईश्‍वर हमसे कितनी हमदर्दी रखता है, इस बारे में पवित्र शास्त्र क्या बताता है?
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प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है (जनता के लिए)—2018
wp18 अंक 3 पेज 8-9
एक लड़की का घुटना छिल गया है और दूसरी लड़की उससे हमदर्दी जता रही है; एक औरत रो रही है और दूसरी औरत उसे दिलासा दे रही है

क्या ईश्‍वर को हमसे हमदर्दी है?

इंसान की रचना से हम क्या सीखते हैं?

किसी से हमदर्दी रखने का मतलब है, उसके हालात और उसकी भावनाओं को समझना। दूसरे शब्दों में कहें तो यह समझना कि अगर आप उसकी जगह होते, तो कैसा महसूस करते। मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ डॉ. रिक हैनसन बताते हैं कि दूसरों से हमदर्दी जताने की काबिलीयत हममें पैदाइशी होती है।

ज़रा सोचिए: हम इंसानों में हमदर्दी रखने की काबिलीयत क्यों होती है, जबकि यह किसी और प्राणी में नहीं होती? पवित्र शास्त्र में इसकी यह वजह बतायी गयी है कि परमेश्‍वर ने इंसानों को अपनी छवि में बनाया है। (उत्पत्ति 1:26) इसका मतलब यह है कि हम काफी हद तक परमेश्‍वर के जैसे अच्छे गुण दर्शा सकते हैं। इसलिए जब एक इंसान किसी की तकलीफ देखकर उसकी मदद करता है, तो वह असल में अपने बनानेवाले परमेश्‍वर यहोवा की तरह हमदर्दी जता रहा होता है।​—नीतिवचन 14:31.

ईश्‍वर हमसे कितनी हमदर्दी रखता है, इस बारे में पवित्र शास्त्र क्या बताता है?

ईश्‍वर हमसे हमदर्दी रखता है इसलिए जब हम तकलीफ में होते हैं, तो उसे बहुत दुख होता है। पुराने ज़माने में जब इसराएली लोग मिस्र देश में गुलाम थे और उन्हें कड़ी मज़दूरी करनी पड़ी थी और बाद में 40 साल वीराने में भटकना पड़ा था, तो परमेश्‍वर ने उनका दुख समझा। शास्त्र कहता है, “जब-जब वे तकलीफ में थे, उसे भी तकलीफ हुई।” (यशायाह 63:9) ध्यान दीजिए कि परमेश्‍वर न सिर्फ जानता था कि वे तकलीफ में हैं, बल्कि उनका दर्द भी महसूस करता था। उसने कहा, “मैं अपने लोगों का दुख अच्छी तरह समझ सकता हूँ।” (निर्गमन 3:7) “जो तुम्हें छूता है वह मेरी आँख की पुतली को छूता है।” (जकरयाह 2:8) जब दूसरे हमें दुख पहुँचाते हैं, तो वह भी हमारे साथ दुखी होता है।

शायद हम खुद को बिलकुल बेकार समझते हों और हमें लगता हो कि हम परमेश्‍वर से हमदर्दी पाने के लायक नहीं। लेकिन पवित्र शास्त्र कहता है, “परमेश्‍वर हमारे दिलों से बड़ा है और सबकुछ जानता है।” (1 यूहन्‍ना 3:19, 20) इसका मतलब है कि वह हमारे बारे में हमसे भी अच्छी तरह जानता है। उसे अच्छी तरह पता है कि हम किन हालात से गुज़र रहे हैं, हमारे मन में कैसे विचार उठ रहे हैं और हम कैसा महसूस करते हैं। इसलिए वह हमारा दुख-दर्द समझता है।

हम ईश्‍वर से आस लगा सकते हैं कि वह हमें दिलासा, बुद्धि और सहारा देगा, क्योंकि वह दुखी लोगों की मदद करता है

पवित्र शास्त्र हमें यकीन दिलाता है कि . . .

  • “तुम यहोवा से फरियाद करोगे और वह तुम्हें जवाब देगा, तुम मदद के लिए उसे पुकारोगे और वह कहेगा, ‘मैं यहाँ हूँ।’”​—यशायाह 58:9.

  • “यहोवा ऐलान करता है, ‘मैंने सोच लिया है कि मैं तुम्हारे साथ क्या करूँगा। मैं तुम पर विपत्ति नहीं लाऊँगा बल्कि तुम्हें शांति दूँगा। मैं तुम्हें एक अच्छा भविष्य और एक आशा दूँगा। तुम मुझे पुकारोगे, मेरे पास आकर मुझसे प्रार्थना करोगे और मैं तुम्हारी सुनूँगा।’”​—यिर्मयाह 29:11, 12.

  • “दया करके मेरे आँसुओं को अपनी मशक में भर ले। उनका हिसाब तेरी किताब में लिखा है।”​—भजन 56:8.

ईश्‍वर हम पर ध्यान देता है, हमें समझता है और हमसे हमदर्दी रखता है

जब हमें एहसास होता है कि ईश्‍वर हमसे हमदर्दी रखता है, तो हमें मुसीबतों से लड़ने की हिम्मत मिलती है। वह कैसे? आइए मारिया नाम की एक स्त्री से जानें कि उसे कैसे हिम्मत मिली।

मारिया कहती है, “मेरे बेटे को कैंसर हो गया था। वह दो साल तक इस बीमारी से लड़ता रहा और फिर 18 साल की उम्र में उसकी मौत हो गयी। अपने बेटे को खोने का गम मुझसे सहा नहीं जाता था। मुझे लगता था कि मेरे साथ बहुत अन्याय हुआ है। मैं यहोवा से नाराज़ थी कि उसने मेरे बेटे पर ध्यान नहीं दिया और उसे नहीं बचाया।”

“छ: साल बाद एक दिन ऐसा हुआ कि मैंने एक मसीही बहन को अपने दिल का सारा हाल कह सुनाया। मैंने उसे बताया कि मुझे ऐसा लगता है, यहोवा मुझसे प्यार नहीं करता। वह बहन मेरी बात काटे बिना घंटों तक इत्मीनान से सुनती रही। फिर उसने शास्त्र की एक ऐसी आयत बतायी, जो मेरे दिल को छू गयी। वह है 1 यूहन्‍ना 3:19, 20 जहाँ लिखा है, ‘परमेश्‍वर हमारे दिलों से बड़ा है और सबकुछ जानता है।’ बहन ने मुझे समझाया कि यहोवा हमारे मन की पीड़ा समझता है।”

“मैंने खुद को समझाने की बहुत कोशिश की, फिर भी मैं यहोवा से नाराज़ ही रही। फिर एक दिन मैंने भजन 94:19 पढ़ा जिसमें लिखा है, ‘जब चिंताएँ मुझ पर हावी हो गयीं, तब तूने मुझे दिलासा दिया, सुकून दिया।’ मुझे ऐसा लगा जैसे ये वचन मेरे लिए ही लिखे गए हैं। कुछ समय बाद मैं यहोवा को अपना दुख-दर्द बताने लगी, जिससे मुझे सुकून मिलने लगा क्योंकि अब मुझे एहसास हो गया था कि यहोवा मेरी तकलीफें जानता है और मेरी प्रार्थना सुनता है।”

यह जानकर हमें कितना दिलासा मिलता है कि यहोवा हमारे हालात और हमारी भावनाएँ समझता है। लेकिन सवाल यह है कि आखिर हमें ज़िंदगी में इतनी दुख-तकलीफें क्यों सहनी पड़ती हैं? क्या परमेश्‍वर हमारी गलतियों की सज़ा दे रहा है? क्या वह कभी ये दुख-तकलीफें मिटाएगा? इस बारे में हम बाद के लेखों में चर्चा करेंगे।

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