निजी दिलचस्पी दिखाइए —हालात के मुताबिक पेशकश को ढालिए
प्रेरित पौलुस हमेशा अपने सुननेवालों की संस्कृति और सोच-विचार को ध्यान में रखकर उन्हें खुशखबरी सुनाने की अपनी पेशकश को ढालता था। ऐसा करने में उसने एक उम्दा मिसाल पेश की। (1 कुरि. 9:19-23) हमें भी यही कोशिश करनी चाहिए। अगर हम पहले से थोड़ी-बहुत तैयारी करें, तो अपने इलाके के लोगों के हिसाब से उन पेशकशों का इस्तेमाल कर पाएँगे जो हमारी राज्य सेवकाई में दी जाती हैं। जब हम किसी दरवाज़े पर पहुँचते हैं, तो शायद हमें कुछ ऐसी चीज़ें नज़र आएँ जिनसे यह सुराग मिल सकता है कि घर-मालिक को किन बातों में दिलचस्पी है। फिर उन्हीं बातों को हम अपनी पेशकश में शामिल कर सकते हैं। इसके अलावा, एक और तरीका है जिससे हम लोगों के हिसाब से खुशखबरी की अपनी पेशकश को ढाल सकते हैं।
2 सामनेवाला जो कहता है, उसी बात को आधार बनाकर बातचीत आगे बढ़ाइए: घर-मालिक को खुशखबरी सुनाते वक्त, अकसर हम उससे कोई सवाल पूछते हैं। जब वह अपनी राय बताता है, तो उसे सुनने के बाद आप क्या करते हैं? क्या आप बस नाम के लिए उसके साथ हाँ-में-हाँ मिलाते हैं और फिर वही बोलते जाते हैं जो आप पहले से तैयार करके आए हैं? या आप घर-मालिक के जवाब को ध्यान में रखकर आगे की बात करते हैं, जिससे पता चलता है कि आप उसकी बात का लिहाज़ करते हैं? अगर आप सामनेवाले की बात में सच्ची दिलचस्पी दिखाएँगे, तो आप व्यवहार-कुशलता से और भी कुछ सवाल पूछ सकेंगे। इस तरह आप जान सकेंगे कि असल में उसके मन में क्या है। (नीति. 20:5) फिर आप राज्य संदेश के उस पहलू पर बातचीत कर पाएँगे, जो घर-मालिक की चिंताओं का सीधा-सीधा हल बताती है।
3 इसके लिए ज़रूरी है कि हम ऐसे विषयों पर भी चर्चा करने को राज़ी हों, जिनकी हमने पहले से तैयारी नहीं की है। मान लीजिए, हम घर-मालिक से समाचारों में आयी किसी समस्या का ज़िक्र करके बातचीत शुरू करते हैं, मगर घर-मालिक अपने इलाके में हुई किसी समस्या के बारे में बोलना शुरू करता है या अपनी कोई परेशानी बताता है। ऐसे में अगर हम वाकई घर-मालिक की मदद करना चाहते हैं, तो हम उसी मामले को लेकर बाइबल से चर्चा करेंगे जिसमें घर-मालिक को दिलचस्पी है।—फिलि. 2:4.
4 ज़रूरत के मुताबिक अपनी बातचीत को ढालना: अगर घर-मालिक कोई सवाल करता है, तो शायद किसी और वक्त पर उस बारे में चर्चा करना बेहतर रहेगा। जिस विषय पर उसने सवाल किया है, उसके बारे में पहले हम ज़्यादा जानकारी के लिए खोजबीन कर सकते हैं, और फिर उसके पास लौटकर बातचीत जारी रख सकते हैं। हम ऐसी किताबें-पत्रिकाएँ भी उसे दे सकते हैं जिनमें उस विषय पर ब्यौरेदार जानकारी दी गयी है। यह सब दिखाता है कि हम दूसरों की सचमुच मदद करना चाहते हैं ताकि वे यहोवा को जान सकें।—2 कुरि. 2:17.