क्या आपका बच्चा सोच-समझकर फैसला कर पाएगा?
1. खून के बारे में साक्षी बच्चों ने क्या फैसला किया है? एक मिसाल बताइए।
कैसा फैसला? खून चढ़वाने के बारे में। प्रहरीदुर्ग, मई 1, 1992 के अंक में दिया लेख, “यहोवा द्वारा सिखाये गये मार्ग पर चलें” में जैसे बताया गया है, यहोवा के साक्षियों के बच्चों को खून चढ़ाने का मसला उठने पर सोच-समझकर अपना फैसला बताना पड़ा था। और इस तरह उन्होंने यह साबित किया कि वे इस मामले में परमेश्वर के नियम को उतनी ही गंभीरता से मानना चाहते हैं जितना कि उनके माँ-बाप। क्या आपके नाबालिग बच्चे, ज़रूरत की घड़ी में ऐसा फैसला लेने के लिए तैयार हैं?
2. खून लेने से इनकार करनेवाले एक बच्चे के मामले में, अदालत ने कानून के किस उसूल को लागू किया और इससे मसीही माता-पिता और उनके नाबालिग बच्चे क्या सीखते हैं?
2 कानून क्या कहता है? अमरीका की सबसे बड़ी अदालत ‘इलिनोइज़ सुप्रीम कोर्ट’ ने यह फैसला सुनाया है कि सयाने बच्चे को भी खून चढ़वाने से इनकार करने का हक है। सत्रह साल की एक बहन के मुकद्दमे की जाँच करने के बाद, अदालत ने यह फैसला सुनाया: “अगर यह साफ और पक्के तौर पर साबित हो जाता है कि यह बच्ची इतनी सयानी है कि अपने फैसले का अंजाम बखूबी समझ सकती है [और] एक बालिग की तरह सोच-समझकर फैसला कर सकती है, तो ‘नाबालिग सयाने बच्चे के उसूल’ के तहत, कानून उसे कोई भी इलाज स्वीकार करने या ठुकराने का हक देता है।” इसलिए, डॉक्टर या अधिकारी आपके बच्चे से सवाल कर सकते हैं ताकि वे तय कर पाएँ कि क्या बच्चा इतना सयाना है कि अपने फैसले खुद कर सके। वे शायद बच्चे की ज़ुबाँ से सुनना चाहें कि उसे खून लेने से क्यों एतराज़ है। इसलिए बच्चे को मुनासिब हद तक यह समझना ज़रूरी है कि उसकी हालत कितनी नाज़ुक है और इलाज का कौन-सा तरीका अपनाने से क्या अंजाम होगा। और उसे डॉक्टरों और अधिकारियों को साफ-साफ और पूरे यकीन के साथ बताना चाहिए कि खून के बारे में परमेश्वर के नियम को लेकर खुद उसका धार्मिक विश्वास क्या है।
3. माता-पिताओं को किन सवालों पर गंभीरता से सोचना चाहिए, और क्यों?
3 आपका बच्चा क्या कहेगा? क्या आपके बच्चे यह बताने के काबिल हैं कि खून के बारे में खुद उनका क्या मानना है? क्या वे पूरे दिल से मानते हैं कि ‘लोहू से परे रहने’ का हुक्म परमेश्वर ने दिया है? (प्रेरि. 15:29; 21:25) क्या वे अपने विश्वास के बारे में दूसरों को बाइबल से समझा सकते हैं? अगर डॉक्टर कहते हैं कि खून न लेने से बच्चे की जान जा सकती है, तो क्या बच्चा हिम्मत के साथ अपने इस फैसले को सही ठहरा सकता है कि वह किसी भी सूरत में खून नहीं लेगा? क्या बच्चा माता-पिता की गैर-हाज़िरी में भी ऐसा कर सकता है? यह देखते हुए कि ‘हम सब समय और संयोग के वश में हैं,’ आप अपने बच्चों को कैसे तैयार कर सकते हैं, ताकि अचानक उनकी खराई की परीक्षा होने पर वे उसका सामना कर सकें?—सभो. 9:11; इफि. 6:4.
4, 5. (क) माता-पिता पर क्या ज़िम्मेदारी है, और वे इस ज़िम्मेदारी को कैसे पूरा कर सकते हैं? (ख) माता-पिता की मदद करने के लिए क्या-क्या इंतज़ाम किए गए हैं?
4 माता-पिताओ, आप क्या कर सकते हो? बच्चों को खून के बारे में परमेश्वर का नज़रिया समझाना, आप माता-पिताओं की ज़िम्मेदारी है। (2 तीमु. 3:14, 15) रीज़निंग किताब के पेज 70-4 पर इस बारे में साफ समझाया गया है। अपने परिवार के साथ इस जानकारी का ध्यान से अध्ययन कीजिए। पेज 74-6 पर दिए भाग “अगर कोई कहे —” की मदद से अपने बच्चों को अभ्यास करवाइए। ऐसा करने से बच्चों को दूसरों के सामने यह समझाने का तजुरबा हासिल होगा कि वे क्या मानते हैं और क्यों। (1 पत. 3:15) खून के मसले पर हमें जानकारी देनेवाली दूसरी चीज़ें हैं, ब्रोशर, आपके जीवन को लहू कैसे बचा सकता है? और प्रहरीदुर्ग, जून 15, 2004, पेज 14-24. इनके अलावा, बगैर खून इलाज की स्वास्थ्य सेवा—मरीज़ की ज़रूरतें और उसके अधिकार पूरा करती है और बगैर खून इलाज—चिकित्सा क्षेत्र चुनौती स्वीकार करता है, ये दोनों वीडियो प्रोग्राम भी हमें इस बारे में भरोसेमंद जानकारी देते हैं कि बगैर खून इलाज और सर्जरी कराना क्यों समझदारी का काम है और यह कितना कारगर है। ये दोनों वीडियो अब एक डी.वी.डी. पर उपलब्ध हैं जिसका नाम है, बगैर खून इलाज के तरीके—डॉक्युमेंट्री श्रृंखला। क्या आपके परिवार ने हाल में ये वीडियो देखे हैं और क्या उन पर चर्चा की गयी है?
5 खून के बारे में ‘परमेश्वर की भली और भावती और सिद्ध इच्छा अनुभव से मालूम करने’ में अपने बच्चों की मदद कीजिए। तब वे सोच-समझकर ऐसा फैसला कर पाएँगे जिस पर यहोवा की आशीष होगी।—रोमि. 12:2.