अपने दिमाग की हिफाज़त कीजिए
1. 2013 के सेवा साल के सर्किट सम्मेलन का विषय क्या है? इस कार्यक्रम का मकसद क्या है?
यीशु ने अपने चेलों को आज्ञा दी कि वे यहोवा से अपने पूरे दिल, अपनी पूरी जान और अपने पूरे दिमाग से प्यार करें। (मत्ती 22:37, 38) इस साल के अधिवेशन और सम्मेलनों का कार्यक्रम इस तरह तैयार किया गया है कि हम अंदर से कैसे इंसान हैं, उसमें सुधार ला सकें। ज़िला अधिवेशन का विषय है, “अपने दिल की हिफाज़त कर!” 2013 के सेवा साल के खास सम्मेलन दिन का विषय है, “अपने ज़मीर की हिफाज़त कीजिए।” और सर्किट सम्मेलन का विषय है, “अपने दिमाग की हिफाज़त कीजिए,” जो मत्ती 22:37 पर आधारित है। इस कार्यक्रम की मदद से हममें से हरेक अपनी सोच की जाँच करके उसे ऐसी बना पाएगा जिससे यहोवा को खुशी हो।
2. कार्यक्रम के दौरान हमें किन सवालों के जवाब ढूँढ़ने चाहिए?
2 क्या जानकारी पेश की जाएगी: सर्किट सम्मेलन के दौरान हमें इन सवालों के जवाब ढूँढ़ने की कोशिश करनी चाहिए, जो कि कार्यक्रम के खास मुद्दे हैं:
• हम ‘इंसानों जैसी सोच’ रखने से कैसे दूर रह सकते हैं?
• हम अविश्वासियों के मन पर पड़ा परदा हटाने में कैसे मदद दे सकते हैं?
• हममें मन का कैसा स्वभाव होना चाहिए?
• सही तरीके से मनन करने के क्या-क्या फायदे हैं?
• अगर हम चाहते हैं कि यहोवा हमारी सोच को ढालता रहे तो हमें क्या करना होगा?
• परिवार को खुशहाल बनाने के लिए पति, पत्नी, माता-पिता और बच्चे क्या कर सकते हैं?
• हम यहोवा के दिन के लिए कैसे तैयार हो सकते हैं?
• “कड़ी मेहनत करने के लिए अपने मन की सारी शक्ति बटोर लो,” इसका मतलब क्या है?
• सीखी बातों को अपनी ज़िंदगी में लागू करने के क्या फायदे होते हैं?
3. यह क्यों ज़रूरी है कि हम दोनों दिन हाज़िर रहें, कार्यक्रम पर ध्यान दें और सीखी बातों को लागू करें?
3 शैतान हमारे दिमाग, यानी हमारी सोच को बिगाड़ने की ज़बरदस्त कोशिश कर रहा है। (2 कुरिं. 11:3) इसलिए हमें अपने दिमाग की हिफाज़त करनी चाहिए और अपने सोचने के तरीके पर काबू रखना चाहिए। हमें मसीह का मन ज़ाहिर करते रहने और इस अधर्मी संसार के बुरे असर से दूर रहने की ज़रूरत है। (1 कुरिं. 2:16) इसलिए सर्किट सम्मेलन के दोनों दिन हाज़िर होने की योजना बनाइए, कार्यक्रम पर अच्छी तरह ध्यान दीजिए और जो अहम जानकारी पेश की जाएगी, उसे लागू कीजिए। ऐसा करने से हम पूरे जोश के साथ राज की सेवा करने के लिए अपने मन की सारी शक्ति बटोर पाएँगे।—1 पत. 1:13.