अपने विद्यार्थी के दिल तक कैसे पहुँचा जाए
1. यीशु की शिक्षाओं का उसके सुननेवालों पर क्या असर पड़ा?
1 जब यीशु मसीह लोगों को सिखाता था, तो उसकी बातें उसके सुननेवालों के दिल तक पहुँचती थीं। बाइबल बताती है कि कम-से-कम एक मौके पर जब उसने अपने चेलों को शास्त्र का मतलब अच्छी तरह समझाया, तो उनके “दिल की धड़कनें तेज़” हो गयी थीं। (लूका 24:32) एक व्यक्ति का दिल उसे परमेश्वर की आज्ञा मानने के लिए उभारता है। तो सवाल उठता है कि हम अपने विद्यार्थियों को कैसे सिखा सकते हैं, ताकि उनका दिल उन्हें अपनी ज़िंदगी में बदलाव करने के लिए उभारे?—रोमि. 6:17.
2. एक व्यक्ति के दिल तक पहुँचने के लिए सूझ-बूझ से काम लेना क्यों ज़रूरी है?
2 सूझ-बूझ से काम लीजिए: अगर आप किसी को यहोवा की सेवा करने के लिए उकसाना चाहते हैं, तो कई बार उन्हें सिर्फ यह बता देना काफी नहीं होता कि क्या सही है और क्या गलत। और अगर हम बाइबल से एक-के-बाद-एक बहुत-सी आयतें दिखाकर उसकी धार्मिक शिक्षाओं को झूठा साबित करने की कोशिश करें, तो उसके लिए सच्चाई को कबूल करना और भी मुश्किल हो सकता है। अगर हम उसे यहोवा की सेवा करने के लिए उकसाना चाहते हैं, तो पहले हमें यह जानना होगा कि वह क्यों फलाँ बातों को मानता है और क्यों फलाँ काम करता है। हम सूझ-बूझ से काम लेते हुए उससे कुछ ऐसे सवाल पूछ सकते हैं, जिनसे वह हमें अपने दिल की बात बता सके। (नीति. 20:5) उसके बाद ही हम परमेश्वर के वचन से उसे ऐसी जानकारी बता पाएँगे, जो उसके दिल को छू जाएगी। इसलिए यह ज़रूरी है कि हम अपने विद्यार्थी में निजी दिलचस्पी लें और सब्र रखें। (नीति. 25:15) याद रखिए कि हर कोई सच्चाई में जल्दी तरक्की नहीं करता, कुछ लोगों को तरक्की करने में थोड़ा वक्त लग सकता है। यहोवा की पवित्र शक्ति को उनकी सोच और काम करने के तरीके पर असर करने दीजिए।—मर. 4:26-29.
3. हम अपने विद्यार्थियों में अच्छे गुण बढ़ाने के लिए क्या कर सकते हैं?
3 अच्छे गुण बढ़ाने में उनकी मदद कीजिए: हम जिन्हें सिखाते हैं, उनमें अच्छे गुण बढ़ाने के लिए हम उन्हें बाइबल से ऐसे किस्से बता सकते हैं जिनमें यहोवा की भलाई और प्यार के बारे बताया है। हम भजन 139:1-4 या लूका 12:6, 7 जैसी आयतें दिखाकर उन्हें यह बता सकते हैं कि परमेश्वर हममें से हरेक में किस हद तक निजी दिलचस्पी लेता है। जब एक व्यक्ति यहोवा की महा-कृपा के लिए दिल से शुक्रगुज़ार होता है, तो उसके दिल में यहोवा के लिए प्यार और उसकी भक्ति करने की इच्छा बढ़ती है। (रोमि. 5:6-8; 1 यूह. 4:19) और जब वह सीखता है कि उसके चालचलन से या तो यहोवा को खुशी या फिर दुख पहुँचता है, तो उसे इस तरह पेश आने का बढ़ावा मिलता है, जिससे यहोवा का दिल खुश हो और उसकी महिमा हो।—भज. 78:40, 41; नीति. 23:15.
4. लोगों को सिखाते वक्त हम फैसले लेने की उनकी आज़ादी के लिए कैसे आदर दिखा सकते हैं?
4 यहोवा अपनी आज्ञा मनवाने के लिए किसी के साथ ज़ोर-ज़बरदस्ती नहीं करता। इसके बजाय वह उन्हें बताता है कि उसका कहा मानने में ही उनकी भलाई है, ताकि वे खुद-ब-खुद उसकी आज्ञा मानने का फैसला करें। (यशा. 48:17, 18) जब हम लोगों को इस तरह सिखाते हैं जिससे वे खुद अपने लिए फैसले लेते हैं, तो हम यहोवा की मिसाल पर चलते हैं। जब लोग खुद-ब-खुद अपनी ज़िंदगी में बदलाव करते हैं, तो वे उन फैसलों पर डटे रहते हैं। (रोमि. 12:2) इसके अलावा, ऐसा करने से वे यहोवा के और भी करीब आते हैं, जो ‘मनों को जाँचता’ है।—नीति. 17:3.