अध्ययन लेख 23
गीत 2 यहोवा तेरा नाम
यहोवा का नाम आपके लिए कितना मायने रखता है?
“यहोवा ऐलान करता है, ‘तुम मेरे साक्षी हो।’”—यशा. 43:10.
क्या सीखेंगे?
हम किस तरह यहोवा के नाम को पवित्र कर सकते हैं और उस पर लगे इलज़ामों को झूठा साबित कर सकते हैं?
1-2. हम कैसे जानते हैं कि यीशु के लिए यहोवा का नाम बहुत मायने रखता है?
यहोवा का नाम यीशु के लिए सबसे ज़्यादा अहमियत रखता था और दूसरों को यह नाम बताने में उसने सबसे अहम भूमिका निभायी। जैसा हमने पिछले लेख में देखा, यहोवा के नाम को पवित्र करने के लिए यीशु ने अपनी जान तक दे दी। (मर. 14:36; इब्रा. 10:7-9) इसके लिए वह और क्या करेगा? अपने हज़ार साल के राज के बाद यीशु खुशी-खुशी सारा अधिकार यहोवा को सौंप देगा। (1 कुरिं. 15:26-28) यीशु ने यहोवा के नाम की खातिर जो कुछ किया, उससे पता चलता है कि वह अपने पिता से कितना प्यार करता है।
2 जब यीशु धरती पर आया, तो वह अपने पिता के नाम से आया था। (यूह. 5:43; 12:13) उसने अपने चेलों को यहोवा के नाम के बारे में बताया। (यूह. 17:6, 26) उसने अपने पिता के नाम से चमत्कार किए और लोगों को सिखाया। (यूह. 10:25) अपने चेलों के बारे में उसने यहोवा से कहा, “अपने नाम की खातिर” उनकी देखभाल कर। (यूह. 17:11) यहोवा का नाम यीशु के लिए बहुत मायने रखता था। तो सोचिए, अगर कोई यीशु का चेला होने का दावा करता है, तो क्या उसे यीशु के पिता का नाम पता नहीं होना चाहिए और उसका इस्तेमाल नहीं करना चाहिए?
3. इस लेख में हम क्या जानेंगे?
3 हम यीशु के चेले हैं और हमें भी यहोवा के नाम से बहुत प्यार है। (1 पत. 2:21) इस लेख में हम जानेंगे कि जो ‘राज की खुशखबरी’ सुनाते हैं, उन्हें क्यों यहोवा ने अपना नाम दिया है। (मत्ती 24:14) हम यह भी जानेंगे कि अगर हममें से हरेक के लिए यहोवा का नाम मायने रखता है, तो हम क्या करेंगे।
‘ऐसे लोग जो परमेश्वर के नाम से पहचाने जाएँ’
4. (क) स्वर्ग लौटने से ठीक पहले यीशु ने अपने चेलों से क्या कहा? (ख) यीशु ने जो कहा, उससे क्या सवाल उठता है?
4 स्वर्ग लौटने से ठीक पहले यीशु ने अपने चेलों से कहा, “जब तुम पर पवित्र शक्ति आएगी, तो तुम ताकत पाओगे और यरूशलेम और सारे यहूदिया और सामरिया में, यहाँ तक कि दुनिया के सबसे दूर के इलाकों में मेरे बारे में गवाही दोगे।” (प्रेषि. 1:8) तो यीशु के चेलों को सिर्फ इसराएल में ही नहीं, बल्कि दुनिया के कोने-कोने में प्रचार करना था। इससे हर राष्ट्र के लोगों को यीशु का चेला बनने का मौका मिलता। (मत्ती 28:19, 20) लेकिन यीशु ने कहा था कि ‘तुम मेरे बारे में गवाही दोगे।’ तो क्या इसका यह मतलब है कि चेलों को सिर्फ यीशु के बारे में गवाही देनी थी और यहोवा के नाम के बारे में कुछ नहीं बताना था? इस सवाल का जवाब हमें प्रेषितों अध्याय 15 में मिलता है।
5. प्रेषितों और प्राचीनों के फैसले से कैसे पता चलता है कि यहोवा का नाम सब लोगों को बताया जाना था? (तसवीर भी देखें।)
5 ईसवी सन् 49 में प्रेषित और यरूशलेम के प्राचीन इस बात पर चर्चा करने के लिए इकट्ठा हुए कि मसीही बनने के लिए गैर-यहूदियों को खतना कराने की ज़रूरत है या नहीं। बैठक के आखिर में यीशु के भाई याकूब ने कहा, “[पतरस] ने पूरा ब्यौरा देकर बताया कि परमेश्वर ने कैसे पहली बार गैर-यहूदी राष्ट्रों की तरफ ध्यान दिया ताकि उनके बीच से ऐसे लोगों को इकट्ठा करे जो परमेश्वर के नाम से पहचाने जाएँ।” फिर उसने भविष्यवक्ता आमोस की बात दोहरायी और कहा, “ताकि उसके बचे हुए लोग, सब राष्ट्रों के साथ मिलकर जी-जान से यहोवा की खोज करें, जिनके बारे में यहोवा ने कहा है कि वे मेरे नाम से पुकारे जाते हैं।” (प्रेषि. 15:14-18) तो नए चेलों को ना सिर्फ यहोवा के बारे में सिखाया जाता, बल्कि वे ‘उसके नाम से पुकारे’ भी जाते। इसका मतलब, वे यहोवा का नाम दूसरों को बताते और उसके नाम से उनकी पहचान होती।
जब पहली सदी के शासी निकाय की बैठक हुई, तो भाई साफ समझ गए कि यह बहुत ज़रूरी है कि मसीही परमेश्वर के नाम से जाने जाएँ (पैराग्राफ 5)
6-7. (क) यीशु धरती पर क्यों आया था? (ख) उसके धरती पर आने की सबसे बड़ी वजह क्या थी?
6 यीशु के नाम का मतलब है, “यहोवा उद्धार है।” यहोवा ने यीशु के ज़रिए उन सभी को उद्धार दिलाया है जो उस पर और उसके बेटे पर विश्वास करते हैं। यीशु इसलिए धरती पर आया ताकि वह इंसानों की खातिर अपनी जान दे। (मत्ती 20:28) उसके फिरौती बलिदान से इंसानों को पापों की माफी मिल सकती है और वे हमेशा की ज़िंदगी पा सकते हैं।—यूह. 3:16.
7 लेकिन इंसानों को उद्धार दिलाने की ज़रूरत क्यों पड़ी? जैसा हमने पिछले लेख में देखा, जब सबसे पहले इंसान आदम-हव्वा ने परमेश्वर की आज्ञा तोड़ी तो वे पापी बन गए और हमेशा की ज़िंदगी से हाथ धो बैठे। इसलिए इंसानों को उद्धार दिलाने की ज़रूरत थी। (उत्प. 3:6, 24) लेकिन यीशु सिर्फ उनका उद्धार करने नहीं आया था, वह इससे भी ज़रूरी मसले के लिए आया था। वह यहोवा के नाम पर लगे कलंक को मिटाने आया था। (उत्प. 3:4, 5) तो इंसानों को उद्धार दिलाने से भी ज़रूरी मसला यह था कि यहोवा का नाम पवित्र किया जाए। और यीशु ने इसे पवित्र करने में सबसे अहम भूमिका निभायी, क्योंकि वह यहोवा का प्रतिनिधि था और उसके नाम से आया था।
अगर कोई यीशु का चेला होने का दावा करता है, तो क्या उसे यीशु के पिता का नाम पता नहीं होना चाहिए और उसका इस्तेमाल नहीं करना चाहिए?
8. यीशु पर विश्वास करनेवालों के लिए क्या समझना ज़रूरी था?
8 यीशु पर विश्वास करनेवाले सभी यहूदी और गैर-यहूदी लोगों के लिए यह समझना ज़रूरी था कि असल में उन्हें उद्धार दिलानेवाला यीशु का पिता यहोवा है। (यूह. 17:3) इसके अलावा, यीशु की तरह वे भी यहोवा के नाम से जाने जाते। उन्हें यह भी समझना था कि यहोवा के नाम को पवित्र करना सबसे ज़रूरी है और उनका उद्धार इसी बात पर निर्भर करता है। (प्रेषि. 2:21, 22) इसलिए उन्हें यहोवा और यीशु दोनों के बारे में सीखना था। यही वजह थी कि यूहन्ना 17 में जो प्रार्थना दर्ज़ है, उसके आखिर में यीशु ने कहा, “मैंने तेरा नाम उन्हें बताया है और आगे भी बताऊँगा ताकि जो प्यार तूने मुझसे किया, वह उनमें भी हो और मैं उनके साथ एकता में रहूँ।”—यूह. 17:26.
“तुम मेरे साक्षी हो”
9. हमें किस बात को सबसे ज़्यादा अहमियत देनी चाहिए?
9 अब तक हमने जो चर्चा की, उससे साफ पता चलता है कि यीशु के चेलों के लिए ज़रूरी है कि वे यहोवा के नाम को पवित्र करें। (मत्ती 6:9, 10) उन्हें यहोवा के नाम को सबसे ज़्यादा अहमियत देनी चाहिए और अपने कामों से यह साफ ज़ाहिर करना चाहिए। लेकिन हम यहोवा के नाम को पवित्र कैसे कर सकते हैं, यानी शैतान ने उसके नाम पर जो कलंक लगाया है उसे कैसे मिटा सकते हैं?
10. यशायाह अध्याय 42-44 में किस मुकदमे के बारे में बताया गया है? (यशायाह 43:9; 44:7-9) (तसवीर भी देखें।)
10 यशायाह अध्याय 42-44 से पता चलता है कि यहोवा का नाम पवित्र करना कितना ज़रूरी है और इसके लिए हम क्या कर सकते हैं। इन अध्यायों में बताया है कि यहोवा और दूसरे देवी-देवताओं के बीच मुकदमा चल रहा है कि सच्चा परमेश्वर कौन है। यहोवा उनसे कहता है कि अगर वे सच्चे हैं, तो यह साबित करें और अपना दावा सच साबित करने के लिए गवाहों को पेश करें। लेकिन वे एक भी गवाह पेश नहीं कर पाते हैं।—यशायाह 43:9; 44:7-9 पढ़िए।
आज हम भी एक मुकदमे में शामिल हैं और हमें यहोवा का पक्ष लेना है (पैराग्राफ 10-11)
11. यशायाह 43:10-12 में यहोवा अपने लोगों से क्या कहता है?
11 यशायाह 43:10-12 पढ़िए। यहोवा अपने लोगों के बारे में कहता है, “तुम मेरे साक्षी हो और मैं परमेश्वर हूँ।” फिर वह उनसे एक सवाल करता है, “क्या मेरे सिवा कोई परमेश्वर है?” (यशा. 44:8) ज़रा सोचिए, यह कितनी बड़ी बात है कि हमें इस सवाल का जवाब देने का मौका मिला है! हम अपने कामों से और अपनी बातों से यह साबित कर सकते हैं कि यहोवा ही सच्चा परमेश्वर है और उसका नाम सबसे महान है। हम जिस तरह ज़िंदगी जीते हैं, उससे दिखा सकते हैं कि हम यहोवा से सच्चे दिल से प्यार करते हैं। और शैतान चाहे हम पर कोई भी आज़माइश लाए, हम यहोवा के वफादार रहना चाहते हैं। इस तरह हम उसके नाम को पवित्र करते हैं।
12. यशायाह 40:3, 5 में दी भविष्यवाणी कैसे पूरी हुई?
12 जब हम यहोवा का पक्ष लेते हैं और उसके नाम को पवित्र करते हैं, तो हम यीशु मसीह की तरह बन रहे होते हैं। यशायाह ने यह भी भविष्यवाणी की थी कि एक शख्स आएगा जो ‘यहोवा का रास्ता तैयार करेगा।’ (यशा. 40:3) यह भविष्यवाणी कैसे पूरी हुई? हम जानते हैं कि यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले ने यीशु के लिए रास्ता तैयार किया था। यीशु यहोवा के नाम से आया था और उसने यह नाम दूसरों को भी बताया। इसलिए देखा जाए तो यूहन्ना ने यहोवा का ही रास्ता तैयार किया। (मत्ती 3:3; मर. 1:2-4; लूका 3:3-6) यशायाह की भविष्यवाणी में यह भी बताया गया था कि “यहोवा की महिमा प्रकट होगी।” (यशा. 40:5) जब यीशु धरती पर आया, तो उसने पूरी तरह यहोवा की महिमा प्रकट की। वह बिलकुल अपने पिता जैसा था। उसने जो कुछ किया, जो कुछ कहा, वह ऐसा था मानो अगर यहोवा धरती पर आता, तो वह भी वही करता और वही कहता।—यूह. 12:45.
13. हम यीशु की तरह क्या कर सकते हैं?
13 यीशु की तरह हम भी यहोवा के साक्षी हैं और उसके बारे में गवाही देते हैं। हम यहोवा के नाम से जाने जाते हैं और उसके शानदार कामों के बारे में सबको बताते हैं। लेकिन उसके बारे में अच्छी गवाही देने के लिए हमें लोगों को यह भी बताना होगा कि उसका नाम पवित्र करने के लिए यीशु ने क्या अहम भूमिका निभायी है। (प्रेषि. 1:8) यीशु परमेश्वर यहोवा का सबसे बड़ा गवाह था, उसने जिस तरह उसके बारे में गवाही दी वैसी किसी ने नहीं दी। हम भी उसी की तरह बनना चाहते हैं। (प्रका. 1:5) हम और किस तरह दिखा सकते हैं कि यहोवा का नाम हमारे लिए सबसे ज़्यादा मायने रखता है?
यहोवा का नाम हमारे लिए बहुत मायने रखता है
14. जैसा भजन 105:3 में बताया है, हम यहोवा के नाम के बारे में कैसा महसूस करते हैं?
14 हम यहोवा के नाम पर गर्व करते हैं। (भजन 105:3 पढ़िए।) यहोवा को यह देखकर बहुत खुशी होती है कि हम उसके नाम पर गर्व करते हैं। (यिर्म. 9:23, 24; 1 कुरिं. 1:31; 2 कुरिं. 10:17) हम गर्व से लोगों को बताते हैं कि यहोवा पवित्र परमेश्वर है और वह जो भी करता है सही करता है। हम साथ काम करनेवालों को, स्कूल के साथियों को, पड़ोसियों और दूसरों को यह बताने से पीछे नहीं हटते कि हम यहोवा के साक्षी हैं! शैतान चाहता है कि हम यहोवा के नाम के बारे में दूसरों को बताना बंद कर दें। (यिर्म. 11:21; प्रका. 12:17) वह और उसके झूठे भविष्यवक्ता तो चाहते हैं कि लोग यहोवा का नाम ही भूल जाएँ। (यिर्म. 23:26, 27) लेकिन हमें यहोवा का नाम बहुत प्यारा है और इस वजह से हम “सारा दिन आनंद मनाते हैं।”—भज. 5:11; 89:16.
15. यहोवा का नाम पुकारने का क्या मतलब है?
15 हम परमेश्वर का नाम पुकारते हैं। (योए. 2:32; रोमि. 10:13, 14) परमेश्वर का नाम पुकारने के लिए ज़रूरी है कि हम जानें कि उसका नाम क्या है और उसका इस्तेमाल करें। लेकिन इसके साथ-साथ यह भी ज़रूरी है कि हम जानें कि वह कैसा परमेश्वर है, उस पर भरोसा करें और मदद के लिए उसकी ओर ताकें। (भज. 20:7; 99:6; 116:4; 145:18) परमेश्वर का नाम पुकारने का यह भी मतलब है कि हम दूसरों को उसके नाम और गुणों के बारे में बताएँ और उन्हें अपने अंदर सुधार करने में मदद दें ताकि वे यहोवा को खुश कर सकें और उद्धार पाएँ।—यशा. 12:4; प्रेषि. 2:21, 38.
16. हम शैतान को झूठा कैसे साबित कर सकते हैं?
16 हम यहोवा के नाम की खातिर दुख सहने के लिए भी तैयार हैं। (याकू. 5:10, 11) जब हम पर मुश्किलें आती हैं और हम यहोवा के वफादार बने रहते हैं, तो हम शैतान को झूठा साबित करते हैं। अय्यूब के दिनों में शैतान ने यहोवा के सेवकों पर इलज़ाम लगाया था, “इंसान अपनी जान बचाने के लिए अपना सबकुछ दे सकता है।” (अय्यू. 2:4) उसने दावा किया था कि लोग सिर्फ अच्छे वक्त में ही यहोवा की सेवा करेंगे। अगर उन पर मुसीबतें आएँगी, तो वे यहोवा को छोड़ देंगे। अय्यूब ने वफादार रहकर शैतान के इलज़ाम को झूठा साबित किया। आज हमारे पास भी मौका है कि हम उस इलज़ाम को झूठा साबित करें। शैतान चाहे हम पर जो भी मुसीबतें लाए, हम यहोवा के वफादार रहेंगे और भरोसा रखेंगे कि वह अपने नाम की खातिर हमारी देखभाल करेगा।—यूह. 17:11.
17. जैसा 1 पतरस 2:12 में बताया है, हम और किस तरह यहोवा के नाम की महिमा कर सकते हैं?
17 हम जो कुछ करते हैं, यहोवा के नाम की महिमा के लिए करते हैं। (नीति. 30:9; यिर्म. 7:8-11) हम यहोवा के साक्षी हैं और उसके नाम से जाने जाते हैं। हमारी वजह से या तो यहोवा के नाम की तारीफ हो सकती है या बदनामी। (1 पतरस 2:12 पढ़िए।) इसलिए हम अपनी बातों और कामों से हमेशा यहोवा की तारीफ करना चाहते हैं। ऐसा करके हम अपरिपूर्ण इंसान यहोवा के नाम की महिमा कर सकते हैं।
18. हम और कैसे दिखा सकते हैं कि यहोवा का नाम हमारे लिए सबसे ज़्यादा अहमियत रखता है? (फुटनोट भी देखें।)
18 हमें अपने नाम से ज़्यादा यहोवा के नाम की चिंता है। (भज. 138:2) कई बार ऐसा हो सकता है कि यहोवा के नाम की महिमा करने की वजह से लोग हमारे बारे में बुरा-भला कहें।a ऐसे में हम यीशु की मिसाल याद रख सकते हैं। वह एक मुजरिम के तौर पर मौत सहने के लिए तैयार था, क्योंकि वह यहोवा के नाम की महिमा करना चाहता था। इसके लिए उसे “शर्मिंदगी” उठानी पड़ती, लेकिन उसने इस बात की “ज़रा भी परवाह नहीं की” कि लोग उसके बारे में क्या सोचेंगे। (इब्रा. 12:2-4) उसने अपना पूरा ध्यान यहोवा की मरज़ी पूरी करने पर लगाए रखा।—मत्ती 26:39.
19. आप यहोवा के नाम के बारे में कैसा महसूस करते हैं और क्यों?
19 हमें यहोवा के नाम पर और उसका साक्षी कहलाने पर गर्व है। उसके लिए हम कोई भी बदनामी सहने को तैयार हैं। हमें अपने नाम से ज़्यादा यहोवा के नाम की परवाह है। शैतान चाहे हमारे सामने जो भी मुश्किलें लाए, आइए हम हमेशा यहोवा के नाम की महिमा करते रहें। और ऐसा करके साबित करें कि यहोवा का नाम हमारे लिए सबसे ज़्यादा मायने रखता है, ठीक जैसे यीशु के लिए रखता था।
गीत 10 यहोवा की जयजयकार करें!
a अय्यूब यहोवा का बहुत वफादार था। याद कीजिए जब उसके बच्चे मारे गए और उसकी संपत्ति लूट ली गयी, तब “अय्यूब ने कोई पाप नहीं किया, न ही उसके साथ जो बुरा हुआ उसके लिए परमेश्वर को दोष दिया।” (अय्यू. 1:22; 2:10) लेकिन एक वक्त पर वह भी यहोवा से ज़्यादा खुद के बारे में सोचने लगा। जब उसके तीन साथियों ने उस पर झूठे इलज़ाम लगाए और उसका नाम खराब किया, तो वह “बेसिर-पैर की बातें” करने लगा। यहोवा का नाम पवित्र करने और उसका पक्ष लेने के बजाय वह अपने नाम और इज़्ज़त के बारे में सोचने लगा।—अय्यू. 6:3; 13:4, 5; 32:2; 34:5.